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इधर राजभाषा सम्मेलन, उधर हिंदी का चीर हरण

9 नवम्बर, 2009 को न सिर्फ महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी का चीर हरण हो गया बल्कि यह महाराष्ट्र विधानसभा के इतिहास का एक काला अध्याय भी साबित हुआ। एक तरफ राजभाषा हिंदी के प्रचार, प्रसार और उसे कार्यान्वित करने के लिए नियुक्त राजभाषा अधिकारियों को एक सूत्र में पिरोने की बातें हो रही थी, उन्हें शील्ड और प्रशस्ति पत्र देकर राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी में शपथ लेने वाले विधायक के साथ मारपीट का सिलसिला जारी था।

9 नवम्बर, 2009 को न सिर्फ महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी का चीर हरण हो गया बल्कि यह महाराष्ट्र विधानसभा के इतिहास का एक काला अध्याय भी साबित हुआ। एक तरफ राजभाषा हिंदी के प्रचार, प्रसार और उसे कार्यान्वित करने के लिए नियुक्त राजभाषा अधिकारियों को एक सूत्र में पिरोने की बातें हो रही थी, उन्हें शील्ड और प्रशस्ति पत्र देकर राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी में शपथ लेने वाले विधायक के साथ मारपीट का सिलसिला जारी था।

विधानसभा में जिस प्रकार से राजनीतिक दलों ने सरेआम हिंदी से बलात्कार की कोशिश की गई है वह देश के करोड़ों हिंदी भाषियों के लिए बड़े शर्म की बात है। हिंदी बोलने वालों का विरोध हो या हिंदी बोलने वालों से कोई शिकायत हो तो इसे समझा जा सकता है और इसका हल ढूंढा जा सकता है लेकिन इस पूरे प्रकरण में भाषा के रूप में हिंदी का विरोध समझ से परे है क्योंकि महाराष्ट्र में इससे पहले हिंदी के साथ इस प्रकार का खिलवाड़ कभी नहीं हुआ था।

गौरतलब है कि 9 नवंबर को “आशीर्वाद” संस्था की ओर से मुंबई में एक दिवसीय “राजभाषा सम्मेलन” का आयोजन किया गया था जिसमें मुंबई के सरकारी कार्यालयों, राष्ट्रीकृत बैंकों और सार्वजनिक उपक्रमों, आदि के राजभाषा अधिकारी उपस्थित थे। इस अवसर पर देश के राजभाषा हिंदी से संबंधित अधिकारियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए आफताब आलम द्वारा संपादित “राजभाषा अधिकारी कोश “का विमोचन किया गया। लेकिन दुर्भाग्य की यह बात थी कि एक तरफ मुंबई के सैकड़ों राजभाषा अधिकारी हिंदी के प्रचार, प्रसार और उसे बढ़ाने के लिए विचार- विमर्श कर रहे थे तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी के खिलाफ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नवनिर्वाचित विधायक आग उगल रहे थे।

दरअसल, समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष और नवनिर्वाचित विधायक अबू आसिम आजमी हिंदी में शपथ ले रहे थे जिसका विरोध मनसे के विधायकों ने करना शुरू कर दिया। विरोध के बावजूद भी जब श्री आजमी ने हिंदी में शपथ लेना जारी रखा तब मनसे के उग्र विधायकों ने अबू आसिम आजमी के साथ हाथापाई शुरू कर दिया और माईक को गिरा दिया। इस कुकृत्य के कारण न सिर्फ महाराष्ट्र विधानसभा शर्मशार हुआ है बल्कि देश की करोड़ों हिंदी भाषी जनता के मुंह पर तमाचा मारने का प्रयास किया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि मराठी भाषा के नाम पर लड़ने वाले मनसे के विधायकों ने अबू आसिम आजमी के हिंदी में शपथ लेने पर खूब बवाल मचाया लेकिन कांग्रेसी विधायक बाबा सिद्दीकी ने जब अंग्रेजी में शपथ लिया तो मनसे के विधायकों ने उसका कोई विरोध नहीं किया और चुपचाप अपनी जगह पर बैठे रहे।  

वैसे तो, संसदीय मामलों के मंत्री हर्षवर्धन पाटिल के प्रस्ताव पर मनसे के चार उपद्रवी विधायकों शिशिर शिंदे, राम कदम, रमेश वंजाले और वसंत गीते को चार साल के लिए सदन से निलंबित कर दिया गया है लेकिन देश के हिंदी भाषियों का यह सवाल है कि क्या हिंदी के खिलाफ इस प्रकार का खिलवाड़ करने वालों के लिए इतनी सजा काफी है?

-मुंबई से आफताब आलम की रिपोर्ट

 

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0 Comments

  1. mahesh vairagi

    June 7, 2010 at 12:38 pm

    bahut sharmnak,aise logon per semvidhan ki avmanana ka aur desh droh ka mukdma chalana chahiye.
    Mahesh

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