इलाहाबाद के क्राइम रिपोर्टरों की आजकल चांदी है। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव और ‘दस्तक’ की संपादक सीमा आजाद को कथित नक्सली बताकर पकड़े जाने के बाद इन क्राइम रिपोर्टरों में सनसनी फैलाने की कुकुरदौड़ मच गयी है। इसमें सबसे आगे सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले दैनिक जागरण के क्राइम रिपोर्टर आशुतोष तिवारी हैं। वे जासूसी उपान्यासों की तर्ज पर खबरें परोस रहे हैं।
ये वही क्राइम रिपोर्टर हैं जो पिछले साल ऐसी ही एक खबर, जिसमें उन्होंने इलाहाबाद के हंडिया तहसील के धोबहा गांव की एक मस्जिद से एके-47 और कई बोरे विस्फोटक बरामद होने की फर्जी खबर लिख कर अपनी काफी थुक्का फजीहत करवा चुके हैं। बहरहाल, हम यहां सीमा आजाद और माओवाद पर उनके द्वारा प्रदर्शित ‘पांडित्य’ पर बात करेंगे। 14 फरवरी 2010 के दैनिक जागरण के प्रथम पृष्ठ पर छपे ‘माओवादियों की बंदूक, बाबू का निशाना’ में उन्होंने ‘रहस्योदघाटन’ किया कि बाबू उर्फ अर्ताउरहमान जो आईएसआई का एजेंट है, साथ ही बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी का साला है और भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में आरोपित है, अब माओवादियों से हाथ मिला चुका है।
तिवारी जी के मुताबिक वो पिछले तीन महीने से माओवादियों के साथ काम कर रहा है और उसके निशाने पर यमुना पार के युवा हैं। तिवारी जी की इस खबर पर टिप्पणी से पहले यह जान लेना जरूरी होगा कि पिछले दिनों नक्सलवाद और माओवाद की समस्या पर संसद में रिपोर्ट रखते हुए गृह मंत्री ने साफ कहा था कि “माओवादियों का आईएसआई या पाकिस्तान से संबंध जोड़ने का कोई तथ्य नहीं मिला है और न ही माओवादियों के पास से चीन निर्मित हथियार ही मिले हैं।” रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि इस तरह की खबरें जिनमें माओवादियों को पाकिस्तान या चीन से जोड़ा जाता है, मीडिया की अपनी उपज है।
समझा जा सकता है कि आशुतोष तिवारी जैसे लोग जो सरकारी रिपोर्ट को ही स्रोत और पुलिसिया केस डायरी की नकल को पत्रकारिता समझते हैं, उनकी यह रिपोर्ट खुद सरकारी स्टैंड के खिलाफ तो है ही, गृह मंत्रालय के मुताबिक, उनकी खबरें ‘मनगढ़ंत’ भी हैं। अब आते हैं ‘मुख्तार कनेक्शन पर’। सर्वविदित है कि भाजपा विधायक कृष्णा नंद राय पूर्वांचल के दुर्दांत माफिया थे, जिनका दबदबा गाजीपुर से सटे बिहार के जिलों में भी था। और खास तौर से बच्चों के अपहरण में जब-तब उनका नाम उछलता रहता था। मुख्तार अंसारी माफिया गिरोह द्वारा दिनदहाड़े की गयी कृष्णानंद राय की हत्या दो माफियाओं द्वारा वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम था जिसे भाजपा और भगवा मानसिकता के पत्रकारों ने सांप्रदायिक रंग देने की खूब कोशिश भी की थी। इसके तहत मुख्तार अंसारी के तार पाकिस्तान और आईएसआई से जोड़े जाने लगे लेकिन भगवा पत्रकारों की यह साजिश इसलिए नाकाम हो गयी क्योंकि कृष्णानंद राय की हत्या मुन्ना बजरंगी नाम के हिंदू अपराधी ने मुख्तार के कहने पर की थी। यह नाकामी एक कुंठा बन गयी।
बावजूद इसके, आशुतोष तिवारी जैसे लोग अभी भी इस अभियान में लगे हैं और तरह-तरह से कुंठा का प्रदर्शन कर रहे हैं। बाबू उर्फ अर्ताउरहमान, जो तिवारी जी के अनुसार, मुख्तार का साला और आईएसआई का एजेंट है, और जिसने पूर्वांचल में माओवादी गतिविधियों का, उन्हीं के शब्दों में, ‘ठेका’ ले चुका है, का नाम अचानक उभरना इसी अभियान और कुंठा का हिस्सा है। आशुतोष जी की जानकारी के लिए पहले तो यह बताना जरूरी है कि आईएसआई समर्थित आतंकवाद भारत में इस्लाम का शासन स्थापित करना चाहता है। ठीक वैसे ही जैसे संघ परिवार धर्मनिरपेक्ष भारत को हिंदू राष्ट्र में तब्दील कर देना चाहता है। जबकि माओवादी अपनी अराजकता और उग्रवादी गतिविधियों से भारत में माओवादी शासन लाना चाहते हैं। अब आशुतोष जी जानें कि माओवाद एक भौतिकवादी दर्शन है और उसके मानने वाले नास्तिक होते हैं।
इसी विचारधारा के चलते चीन ने जहां अनगिनत पैगोडा-बौद्ध मंदिर और उइगर के इस्लामी चरम पंथियों और उनके द्वारा संचालित संदिग्ध मदरसों और मस्जिदों को नेस्तनाबूद किया है। अब ऐसे नास्तिक माओवादियों का धर्म तंत्र स्थापित करने के लिए लड़ने वालों से कोई भी समझदार और गंभीर आदमी से संबंध जोड़ने की मूर्खता नहीं कर सकता। हां, पांचजन्य या ‘बिना हड्डी का कंकाल’ जैसा जासूसी उपन्यास पढ़ने वाला ऐसा जरूर कर सकता है। दरअसल तिवारी जी बाबू उर्फ अर्ताउरहमान को पूर्वांचल में माओवादी गतिविधियों का ‘ठेका’ लेने की खबर लिख कर पूर्वांचल में सक्रिय मुख्तार गैंग को इलाहाबाद के कथित माओवाद से जोड़कर एक मूर्खतापूर्ण लेकिन खतरनाक ‘हरा प्लस लाल’ कोरीडोर बना रहे हैं। लेकिन चूंकि वे मूल रूप से क्राइम रिपोर्टर हैं इसलिए ऐसी कल्पना लिखते समय उनका शब्द कोष आड़े आ जाता है और उन्हें ‘ठेका’ जैसे शब्द से काम चलाना पड़ता है।
दरअसल तिवारी जी पर किसी भी ऐसी घटना को ‘यमुना पार’ से जोड़ने का पुलिसिया दबाव है। इसीलिए उन्होंने लिखा कि ‘बाबू की नजर यमुना पार के युवकों पर है।’ ऐसा इसलिए कि यमुना पार क्षेत्र में अखिल भारतीय किसान मजदूर संगठन जो संसदीय व्यवस्था में यकीन रखने वाली भाकपा माले न्यूडेमोक्रेसी का किसान संगठन है, के नेतृत्व में निषाद जाति के लोग बालू माफिया, अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष और बसपा सांसद कपिल मुनि करवरिया के खिलाफ जुझारू आंदोलन चला रहे हैं। इसीलिए किसी भी कथित और काल्पनिक माओवादी आंदोलन को वह यमुना पार से जोड़कर उस आंदोलन को, जिसे वे और अन्य पत्रकार भी ‘लाल सलाम’ से संबोधित करते हैं, बदनाम करने के लिए ओवर टाइम में खट रहे हैं।
बहराहाल इस खबर का रोचक तथ्य वह वाक्य है जिसमें वे लिखते हैं ‘बाबू ने नेपाल में सरकार के तख्ता पलट में भी अहम भूमिका निभाई थी।’ यहां गौरतलब है कि माओवादियों की ही सरकार का तख्ता पलट हुआ था। ऐसे में इसे हास्यास्पद ही कहा जाएगा कि माओवादियों की सरकार गिराने वाला ही माओवादियों का सरगना भी हो। बहरहाल आशुतोष जी का यह जासूसी उपन्यास अंश यहीं नहीं रुकता और पंद्रह फरवरी यानी अगले दिन प्रथम पृष्ठ पर छपे ‘लखनऊ जेल पर माओवादी हमले का प्लान’ (आश्चर्यजनक है कि प्रदेश भर के किसी भी पत्रकार को इस हमले की साजिश की जानकारी नहीं हुयी और आशुतोष जी ने इलाहाबाद डेटलाइन से लखनऊ में होने वाले इस काल्पनिक हमले की खबर लिख दी) में लिखा कि कानपुर, लखनऊ और इलाहाबाद से माओवादियों की गिरफ्तारी एफबीआई की सहायता से हुयी।
समझा जा सकता है कि जहां दूसरे पत्रकारों की कल्पनाएं गिरफ्तारी के पीछे सर्विलांस और पुलिस की सक्रियता को ही आधार बना रहे थे, वहीं तिवारी जी की कल्पना सात समंदर पार अमेरिका स्थित एफबीआई तक पहुंच गयी। खैर जासूसी उपान्यास की तर्ज पर खबर लिखने वाले को अगर सांसद और पुलिस दोनों के दबाव में खटना पड़े तो ऐसी ही खबरें जन्म लेंगी। एक बात और, ये वही पत्रकार हैं जिन्होंने सीमा आजाद की गिरफ्तारी के दूसरे दिन लिख दिया ‘विनायक सेन और प्रशांत हाल्दर से मिल चुकी है सीमा।’ अब तिवारी जी को कौन बताया कि विनायक सेन अब जेल में नहीं हैं, बाहर हैं और उनसे कोई भी मिल सकता है और प्रशांत हाल्दर बंगाल के जाने-माने लेखक हैं जो तमाम पत्र पत्रिकाओं में लिखते हैं।
बहरहाल जेयूसीएस मानता है कि एक ऐसे समय में लेखन का क्रेज कम हो रहा हो, जासूसी उपान्यास जैसा लेखन भी प्रोत्साहन का हामी है। सवाल सिर्फ आशुतोष तिवारी पर से सांसद कपिलमुनि करवरिया और पुलिस के उस दबाव को खत्म करने का है जिससे उनका मानसिक संतुलन कम पड़ गया है। हम उनके इस दबाव से उबरने की कामना करते हैं और हालांकि आशुतोष बुद्विजीवी की श्रेणी में नहीं आते लेकिन हम उन्हें किशन पटनायक लिखित पुस्तक ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ और ‘चीन और भारतीय बुद्विजीवी’ पढ़ने का आग्रह करते हैं।
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) की तरफ से शाहनवाज आलम, राजीव यादव, विजय प्रताप व अन्य द्वारा जारी
raj sharma
March 5, 2010 at 3:05 am
agra me bhi kuch ese hi patrakaar he jo yahaan bhi dig or sp k paas beth kar bahut kush hote he or apne aapko bahut diggaj patrakar samajhne lagte he or unke sehyog se dalali kar patrkarita ko badnaam karne me lage rehte he or herat ki baat to ye he ki wo kisi bhi banner ko agra me le aate he or fir suru hota he dalali ka rashta jo ki kabhi khatm hone ka naam nahi leta
ravi
February 25, 2010 at 8:04 pm
pura Allahabad pevle hai, ki ashutosh tiwari chand logon ke hathon bike hue patrkar hain aur unki soch sanghi hai
singh
February 26, 2010 at 12:47 am
आप महान पत्रकार भाइयों की सोच की दिशा को प्रणाम करता हूँ । एक पत्रकार अब मुख्तार अंसारी जैसे दुर्दांत माफिया की पैरवी कर रहा है जो अपराध का कारखाना है । भाई शहेब अपराधियों का कोई इमां धर्म नहीं होता है वो आईएसआई क्या ओसामा से हाथ मिला सकता है । आप तीनो लोग मिल कर एक दुर्दांत माफिया को सफेदपोश का नाकौब ओढ़ना चाहते हैं । आईएसआई समर्थित आतंकवाद भारत में इस्लाम का शासन स्थापित करना चाहता है। ठीक वैसे ही जैसे संघ परिवार धर्मनिरपेक्ष भारत को हिंदू राष्ट्र में तब्दील कर देना चाहता है। तो आप लोग यही कहना चाह रहे हैं की भारत में जो भी आतंकवाद चल रहा है वो भी ठीक है तो भारत में इस्लाम का शासन स्थापित कराएँ या हिंदू राष्ट्र में तब्दील करें । और माओवादी ये कहीं से भूखे नंगे लोग नहीं हैं इनकी सोच गलत है । शाहनवाज आलम, राजीव यादव, विजय प्रताप आप तीनो भाइयों को पता होना चाहेये की एक एके ४७ की कीमत लाखों में होती है मान ले एक एके -४७ ५ लाख की भी मिले तो जरा हिसाब लगायेये की ५ लाख में कितने लोगों को रोटी दी जासकती है आज हर एक नक्सली के पास एके ४७ है । तो भाइयों चाटुकारिता छोड़ पत्रकारिता की और देखें .
गोकुल 'राज' मिश्रा
February 26, 2010 at 8:27 am
इलाहाबाद जैसे शहरों में पत्रकार एसएसपी या फिर डीआईजी के पास बैठ कर खूब खुश हो जाता है और अपने भाग्य़शाली समझता है। तो फिर क्यों न पुलिस की चमचागिरी करे। सिर्फ यही नहीं, क्राइम रिपोर्टर तो अपने को और रिपोर्टरों से ऊंचा ही समझता है। उसके बात करने के अंदाज, देखने लायक होते हैं। जागरण का पुराना रिकॉर्ड वहां के अन्य अखबारों के रिपोर्टर जानते हैं। उजाला भी कम नहीं है। अरसे से भाईभतीजावाद का फल चख रहे यहां के साथी ने भी पुलिस विभाग में अच्छी पकड़ बना रखी है। जागरण में तिवारी जी से पहले त्रिपाठी (आजकल लखनऊ में) जी के किस्से भी काफी शोहरत बटोर चुके हैं। इनके साथी रहे पूजनीय पांडे जी (दारूबाज, आजकल पटना में) सरेआम सही पत्रकारों को कलंकित करने का काम करते रहे हैं।
और क्या लिखूं सभी का कच्चा चिट्ठा जानता हूं। माफ करिएगा। मगर भड़ास पर भड़ास निकाल रहा हूं।
nitesh bhardwaj
February 26, 2010 at 1:44 pm
apka bhadas ek adarsh hai .es tarah bharas nikalege tochatukaro ka ek dal ban jayega.chatukar crame reporter ka bhras hi unki tamga hai.
Indian
February 26, 2010 at 3:37 pm
Dainik Jagran never had much credibility though it used to sell a lot. Some of its editors and reporters have been less educated and non-learned propagandists. Now there are other papers and thus the circulation has reached saturation. Whever people have alternative they take other paper. It is also not a family paper because the language is not standard and decent.
Peter
February 28, 2010 at 12:43 pm
In patrakaar bandhuon ko Krishna Nanad Rai to firauti karne walaa nazar aataa hai …. lekin durdaant apraadhi Mukhtar Ansari ke liye Padam Vibhishan ki pairavi karne waale …. leechad patrakaar ..
Abhi tak Krishna Nand Rai ke murder case mein 4 witness ka murder ho chukaa hai .. lekin inko takleef Krishna Nand Rai ke firauti se hi hai …
aise napunsak patrakaaron ka sterlization aur castration kar denaa chahiye jis se inke reproduction ki shakti samaapt ho jaaye aur ye apne jaise Bharat Mata ke liability fir paidaa na kar sake