मीडिया हाउस, गैर-मीडिया हाउस, सरकारी विश्वविद्यालय, निजी यूनिवर्सिटी, कालेज, संस्थान… जिसे देखो वही जमकर पत्रकार पैदा करने में जुटा हुआ है. लंबी-चौड़ी फीस और किताबी पढ़ाई. उसके बाद शिशु पत्रकार प्रकट होते हैं.
ये शिशु पत्रकार भटकने के लिए छोड़ दिए जाते हैं मीडिया के खूंखार जंगल में. कोई मरे या जिए, इन-उन संस्थानों की बला से. बिलबिलाते हुए पत्रकारिता शिशु इधर-उधर घूमते रहते हैं. सीवी-रिज्यूम डालते रहते हैं. फोन पर फोन करते रहते हैं. जी सर जी सर यस सर प्लीज सर… की आवाज सुनाते रहते हैं. इस उम्मीद में कि जाने कब उनकी किस्मत का दरवाजा खुल जाए. और, वे मीडिया के कथित ग्लैमरस गगन-गैलेक्सी के टिमटिमाते तारे नजर आएं. पर ज्यादातर के करियर की शुरुआती काली रात खत्म ही नहीं होती. देखते-देखते, शिशु पत्रकारों की एक और खेप चली आती है मीडिया बाजार में.
मीडिया शिक्षण की दुकानों पर कोई लगाम नहीं है और न ही कोई पाठ्यक्रम है और न पैरामीटर. जिसे जो मन में आ रहा है, पढ़ा समझा बता रहा है. इंटर पास बच्चों के बाप अपने बेटों के लिए लाख दो लाख करियर के नाम पर रखे रहते हैं, मीडिया संस्थानों और गैर मीडिया संस्थानों में मीडिया स्कूलों के जरिए इसी रुपये को टपकाने की होड़ लगी है.
ताजी सूचना ये है कि तहलका वालों ने भी मीडिया स्कूल खोल दिया है. तरुण तेजपाल के नाम और चेहरे के सहारे जर्नलिज्म स्कूल चलाने की घोषणा हो चुकी है. तहलका के मीडिया स्कूल का नाम रखा गया है ‘सोर्स’. ‘सोर्स’ में फिलहाल तीन तरीके के कोर्स कराए जाएंगे. एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स, तीन महीने वाला सर्टिफिकेट कोर्स और तीन महीने का क्रिएटिव राइटिंग में सर्टिफिकेट कोर्स.
‘तहलका’ अपने नाम के मुताबिक पत्रकार तैयार कर पाता है या नहीं, ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन फिलहाल तो यही लग रहा है कि तीन महीने, साल भर में कोई चाहे कैसी भी घुट्टी पिला दे, असली पत्रकार पैदा कर पाना मुश्किल है.
टाइम्स आफ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस, मलयाला मनोरमा, द पायनियर, आज तक, एनडीटीवी… सब पत्रकारिता के स्कूल चला रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता का स्तर सुधरने की जगह दिनों दिन गिरता जा रहा है. क्या कहा जाए इसे? ‘तहलका’ के पत्रकारिता स्कूल के विज्ञापन में तरुण तेजपाल का चेहरा कुछ यूं इस्तेमाल किया गया है….
Sachin patel
June 20, 2010 at 2:15 pm
Gali kucho nukkad par saji Patrakaar banane ke dukaan badti jaa rahi hai. Aaj desh me jitne bachhe nahi paida ho rahe hai usse kahi jayda Patrakaar paida ho rahe hai. En media school ke pass course source ki kami hai . Tarun Tejpal apne source ke jariye source chalane ki kowshish karege . Hame ummeed hai ki achhe khoji patrakaar paida ho . Aaj kal Asli or farji patrakaar ki pahchaan kar pana muskil hai. Tarun ji ne kowi bhi kaam kiya hai vah better hota hai . Hum unke sath hai. Tarun ji Badhaee ho .
http://www.sakshatkar.com
http://www.sakshatkar-tv.blogspot.com
http://www.bareillymedianetwork.blogspot.com
गजेन्द्र राठौड़, बेंगलूरु
June 20, 2010 at 3:46 pm
आज पत्रकारिता को व्यापार में उतार दिया गया हैं। पत्रकार पैदा करने के लिए कई अखबारों ने अपनी दुकान खोल रखी हैं। पाठ्यक्रम के नाम पर अपने ही अखबार के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से कुछ दिन प्रशिक्षण, वो भी केवल नाम का प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं। पत्रकारिता के पैरामीटर तो इन्होंने ताक पर रख दिए हैं। जो मन में आया वो दुकान में बेच दिया। इन शिशु पत्रकारों को हकीकत तो तब पता चलती हैं, जब यह क्षेत्र में जाते हैं। नजारा कुछ ओर ही बंया आता है, ऐसे में यह शिशु पत्रकार या तो बीच में ही दम तौड़ देते हैं या अपनी डिग्रियों को लेकर भटकते रहते हैं। अगर कहीं जगह भी मिल गई तो वहां की गन्दी राजनीति को समझ ही नहीं पाते। सबसे अहम बात तो यह हैं कि इन संस्थाओं से पास आउट पत्रकारों की डिग्री व डिप्लोमा को अन्य अखबार प्रबंधक मान्यता ही नहीं देता। परिणाम एक बड़ी रकम गई…।
गजेन्द्र राठौड़, राजस्थान पत्रिका, बेंगलूरु
June 20, 2010 at 3:50 pm
आज पत्रकारिता को व्यापार बना दिया गया हैं। पत्रकार पैदा करने के लिए कई अखबारों ने अपनी दुकानें खोल रखी हैं। पाठ्यक्रम के नाम पर अपने ही अखबार के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से कुछ दिन प्रशिक्षण, वो भी केवल नाम का प्रशिक्षण दिलाया जा रहा हैं। पत्रकारिता के पैरामीटर तो ताक पर रख दिए गए हैं। जो मन में आया वो दुकान में बेच दिया। इन शिशु पत्रकारों को हकीकत तो तब पता चलती हैं, जब ये क्षेत्र में जाते हैं। नजारा कुछ ओर ही बयां होता है, ऐसे में यह शिशु पत्रकार या तो बीच में ही दम तोड़ देते हैं या अपनी डिग्रियों को लेकर भटकते रहते हैं। अगर कहीं जगह भी मिल गई तो वहां की गन्दी राजनीति को समझ ही नहीं पाते। सबसे अहम बात तो यह है कि इन संस्थाओं से पास आउट पत्रकारों की डिग्री व डिप्लोमा को अन्य अखबार प्रबंधक मान्यता ही नहीं देते। परिणाम एक बड़ी रकम गई…।
pankaj
June 20, 2010 at 4:51 pm
Yashwantji
aapne badi hi satik tippni ki hai,patrkarita ke es naye factory ka kya hasra hota hai dekhna hoga,lekin jo log moti rakam lekar hi patrkar paida kar sakte hain,wo aam janta ki awaz kabhi nahin utha sakte,,,
paisa apni kimat to wasul karega hi aur wo garib ki khabar to chuka nahin sakti,,,
kundan sahoo
June 20, 2010 at 6:27 pm
Aur kiton ko bargalayenge ye media ke log ??? achambha tab hota hai jab bade aur ek swath mansik star ke patrakar bhi media ko ek bazar samajhne lagte hai, ye prabandhan nausikhuon ke liye sahi paribhasha ho sakti hai, lekin jab asal patrakar kee or se hi aise kaamo ki pahal hoti hai to dukh hota.
khair ! tarunji ye chahte hain to sahi hi hoga , lekin meri nazar mein patrakar ko karmbaddh pathyasoochi se nahin tayar kiya ja sakta. mera manna hai, agar tarunji ko raat ko sote wakt isi prashna ko lekar chain kee need aa jaye to samajhyi ki unhone sahi kiya hai, nahin to mai jo kah raha hoon wo kathan bilkul satya hai.
sanjeev tiwari
June 20, 2010 at 7:33 pm
bahuto kadekha hai enka baki hai ye bhi bajar me jor ajmaes kar le . bad me berojgar bhaio ki baddua hi leni padegi. kya ye yah sochkar media sansthan khole hai ki yaha se niklane wale bachho ka kya hoga
jagdeep kr yadav
June 21, 2010 at 7:52 am
420…ke bazar me ek aur 420 aaa rahe hai. Badhai ko ……….
bittoo
June 21, 2010 at 12:02 pm
sab chutiya panti hai !
ravishankar vedoriya 9685229651
June 21, 2010 at 12:14 pm
phir ek nai dukan khulne wali hai
ratan singh shekhawat
June 21, 2010 at 5:51 pm
वैसे तो पूरे मीडिया के लिए ही कोई कानून कायदे नहीं हैं। न कंटेंट को लेकर, न पत्रकारों की भर्ती को लेकर और न ही उनको मिलने वाले वेतन को लेकर। पूरा मीडिया भले ही प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग बनकर रह गया है। जब हम इसमें प्रवेश करने वाले पत्रकारों के प्रशिक्षण को ही केवल पवित्र बनाना चाहते हैं तो ऐसा कीजिए न इसके लिए भी आईआईटी और आईआईएम की तर्ज पर अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा का प्रावधान कर दीजिए। कुछ निश्चित कॉलेजों को ही इसके आधार पर पत्रकारिता के कोर्स करवाने की मान्यता दीजिए। फिर देखिए केवल प्रशिक्षित लोग ही आपके पास पहुंचेंगे। फिलहाल तो मीडिया के ग्लैमर को भुनाने की कोशिश में हर कोई जुटा है और बच्चों से फीस के रूप में बड़ी रकम लूट लेना चाहता है।
ratan singh shekhawat
June 21, 2010 at 6:08 pm
दीपक तुमसे लंबे समय बाद मुलाकात इस तरह होगी मुझे यकीन नहीं आ रहा। मैं तब भी तेरे विचारों से सहमत नहीं था और आज भी। दोस्ती अपनी जगह है। जिन बुद्धिजीवियों को तुम गाली दे रहे हो मैं तो उनमें ही तुम्हें भी मानता हूं। समझ में नहीं आता तुम किस आधार पर माओवाद और नक्सलवाद को सही ठहराते हो। और मेरे दोस्त। भारत में हो तो सुरक्षित हो, ऐसी हरकत पर किसी और देश में होते तो मार दिए जाते। माओवादियों ने ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में करीब 200 लोगों की जान लेकर उस पर अफसोस जता दिया और तुम गदगद हो गए। यह वैसा ही है जैसे कोई तुम्हारी पत्नी का बलात्कार कर हत्या कर दे और बाद में अफसोस जता दे। तब तुम्हें कोई पूछे तुम रो रहे हो या गदगद हो। आदिवासियों के साथ सरकार नाइंसाफी कर रही यही कहना चाहते हैं ना आप। लेकिन बताओ माओवादी क्या कर रहे हैं। देश के खिलाफ जो युद्ध कर रहे हैं उन्हें तुम और अरुंधती राय किसी आधार पर अच्छा बता रहे हो। जिन्हें आपकी सरकार देश का दुश्मन बता रही है उनका समर्थन करने वालों को तो इसकी कीमत कभी न कभी चुकानी ही पड़ेगी।
karn dev
June 21, 2010 at 8:24 pm
yah log keval repoter bana saktey hain patrakar nahi.:)