प्रेस क्लब आफ इंडिया ने किया विरोध का ऐलान : 15 जनवरी को काली पट्टी बांधेंगे देशभर के पत्रकार : 15 जनवरी को 12 बजे से जंतर-मंतर पर जुटेंगे सैकड़ों मीडियाकर्मी : प्रस्तावित कानून की प्रतियां फूंकेंगे टीवी, प्रिंट और वेब के पत्रकार : देशभर में कई जिला मुख्यालयों पर स्थानीय पत्रकारों ने 15 जनवरी को धरना देने का ऐलान किया : नाराज टीवी संपादकों ने शुरू किया सरकार विरोधी ब्लाग : अखबारों और ब्लागों पर सरकार की मीडिया विरोधी नीति के खिलाफ खुलकर लिखने लगे हैं संपादक और पत्रकार : टीवी संपादकों की बैठक में कानून में प्रस्तावित संशोधनों को मीडिया की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी की मूल भावना के खिलाफ करार दिया गया : मीडिया के समर्थन में अगले कुछ दिनों में कई संगठन उतरेंगे सड़कों पर
‘इमरजेंसी सिचुवेशन’ के नाम पर जनांदोलनों की खबर भी टीवी पर न दिखाने देने की साजिश रच चुकी केंद्र सरकार के प्रस्तावित काले कानून के खिलाफ प्रेस क्लब आफ इंडिया भी उठ खड़ा हुआ है। क्लब के महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने आज आजादी पसंद नागरिकों से आह्वान किया कि वे सरकार की मीडिया विरोधी हरकत के खिलाफ एकजुट होकर साझे कार्यवाही की शुरुआत करें। विस्तार से पढ़ें के लिए क्लिक करें— The Press Club of India calls for unified action
न्यूज चैनलों के संपादकों ने आज एक बैठक कर केबल टेलीविजन नेटवर्क एक्ट में सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर विचार किया। बैठक में सभी संपदाकों ने संशोधनों को मीडिया की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूलभूत लोकतांत्रिक सिद्धांत के खिलाफ करार दिया। विस्तार से पढ़ने को क्लिक करें- TV Editors condemn proposed gag on electronic media
प्रस्तावित काले कानून के खिलाफ सैकड़ों मीडियाकर्मी 15 जनवरी को दिन में 12 बजे दिल्ली के जंतर-मंतर पर जुटेंगे और काला दिवस मनाएंगे। भड़ास4मीडिया डाट काम, विस्फोट डाट काम और तीसरा स्वाधीनता आंदोलन ने संयुक्त रूप से आह्वान किया है कि सभी मीडियाकर्मी 15 जनवरी को काला दिवस मनाएं और काली पट्टी बांधकर ही काम पर जाएं। इस दिन मीडियाकर्मी 12 बजे से जंतर-मंतर पर इकट्ठा होना शुरू होंगे और केबल टेलीविजन नेटवर्क एक्ट में प्रस्तावित संशोधनों की प्रतियां फूंकेंगे। देश के कोने-कोने से मीडियाकर्मियों के फोन और मेल भड़ास4मीडिया के पास आने शुरू हो गए हैं। काले कानून से क्षुब्ध पत्रकारों ने अपने-अपने जिला मुख्यालयों पर 15 जनवरी को धरना और विरोध प्रदर्शन जैसे कार्यक्रमों का ऐलान कर दिया है।
टीवी संपादकों ने अपनी आवाज को पूरी दुनिया तक पहुंचाने के लिए नायाब तरीका निकाला है। इन लोगों ने संयुक्त रूप से एक ब्लाग बनाया है जिसका नाम रखा है- रिटर्न आफ सेंसर। इस ब्लाग पर स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर का एक आलेख Live and Kicking भी है, जो हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ है। ईटीवी के पोलिटिकल एडीटर एनके सिंह का आलेख How State machinery seeks to deflect public anger from political class to TV media भी ब्लाग पर देखा जा सकता है। प्रस्तावित काले कानून पर संपादकों की राय को भी ब्लाग पर डाल दिया गया है। टीवी संपादकों की आज हुई बैठक के डिटेल, प्रेस क्लब आफ इंडिया की प्रेस विज्ञप्ति, टीवी संपादकों द्वारा प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र को भी प्रकाशित कर दिया गया है। ब्लाग का यूआरएल है- http://www.returnofcensor.blogspot.com
देशोन्नति के ग्रुप एडीटर और नए लांच होने वाले हिंदी अखबार राष्ट्रप्रकाश के प्रधान संपादक एसएन विनोद ने अखबार में आज के अपने कालम में इसी विषय पर विस्तार से लिखा है। शीर्षक है- खबरदार, सरकार ऐसी हिमाकत न करे। इसमें एसएन विनोद ने लिखा है- ”मीडिया को अपने इशारे पर नचाने की सरकारी साजि़श पर मैं स्तब्ध हूं. क्या मनमोहन सरकार कोई निर्णय लेने के पूर्व इतिहास के पन्नों को नहीं पलटती? या वह जानबूझकर अन्जान होने का स्वांग करती है! हालांकि प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह की दयनीय स्थिति को देखकर कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री को जानबूझकर अंधेरे में रखा जाता है. लेकिन यह उम्रदराज प्रधानमंत्री अपनी आंखों के सामने घटित घटनाओं को कैसे भूल गया? मैं बात पूर्व में मीडिया पर लगाए गए अंकुश की कर रहा हूं, ऐसे प्रयासों की कर रहा हूं. सन् 1982 में ‘बिहार प्रेस विधेयक’ और सन् 1988 में केन्द्र की राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रेस के खिलाफ लाए गए ‘मानहानि विधेयक’ के राष्ट्रव्यापी विरोध और उनकी मौत की घटना को क्या सरकार भूल गयी! लगता ऐसा ही है, जो उसने एक बार फिर मीडिया पर सरकारी नियंत्रण की कोशिश की है- ‘काला कानून’ बनाने की ओर अग्रसर है….. ”
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इसी तरह रतलाम के पंकज व्यास ने अपने ब्लाग पर लिखा है- ”किसी महान विचारक ने ठीक ही कहा है कि मीडिया वह प्यानो है, जिस पर अगर सरकारी नियंत्रण हो जाए, तो वह उसमें से सरकार अपने हिसाब से सूर निकालेंगी। सरकार जिस तरह से कानून लाना चाहती है, उससे तो साफ जाहिर होता है कि मीडिया से अब अपने हिसाब से सूर निकालने का मन बना लिया गया है। अगर, सरकार की मंशा यही है, तो समझिए कि वह दिन दूर नहीं जब मीडिया सरकारी भोंपू बन जाएगा, जिसमें से वहीं आप सुन-पढ़ पाएंगे जो सरकारें चाहेगी। मीडिया सरकार के हाथों की कठपुतली और जन-जन बेबस, जनता की आवाज पर ताला और चारों तरफ सरकारी राज और लोकतंत्र को खतरा….”
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