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जरूरत है बहुत सारे उदयन पैदा करने की

[caption id="attachment_15180" align="alignleft"]उदयन शर्माउदयन शर्मा[/caption]उदयन शर्मा उर्फ कलम का सिपाही। साम्प्रदायिक ताकतों से कलम की तलवार से लड़ने वाला एक ऐसा योद्धा, जो कभी हारा नहीं, कभी भागा नहीं, और कभी डरा नहीं। 11 जुलाई को उसी कलम के योद्धा का जन्मदिन है। उदयन शर्मा एक ऐसी शख्सियत थे, जो हमेशा मज़लूमों के साथ खड़े होते थे। मज़लूम चाहे हिन्दू हो,  मुसलमान हो, दलित हो,  किसान हो या वंचित तबकों के वे लोग हों,  जिन्हें तथाकथित अगड़ी जातियां हाशिए पर ही देखना चाहती थीं। यही वजह है कि उनका पाठक भी, जो उनसे कभी रुबरु नहीं मिला,  उनके प्रति सम्मान का भाव रखता है। उदयन शर्मा अपने परिवार को हमेशा यह नसीहत देते थे कि तुम्हें देश की पांच फीसदी लोगों वाली सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन कभी गरीबों और वंचितों से मुंह मत मोड़ना। मेरा ताल्लुक उनसे केवल एक पाठक और लेखक का ही रहा है। मैं हमेशा से ही ‘रविवार’ के खुला मंच में नियमित रुप से पत्र लिखता था। सम्भवत: ये 1985 की बात है कि ‘रविवार’  ने मेरे पत्र को सर्वश्रेष्ठ पत्र आंका और मुझे 50 रुपए का इनाम दिया। लेखन से यह मेरी पहली कमाई थी।

उदयन शर्मा

उदयन शर्माउदयन शर्मा उर्फ कलम का सिपाही। साम्प्रदायिक ताकतों से कलम की तलवार से लड़ने वाला एक ऐसा योद्धा, जो कभी हारा नहीं, कभी भागा नहीं, और कभी डरा नहीं। 11 जुलाई को उसी कलम के योद्धा का जन्मदिन है। उदयन शर्मा एक ऐसी शख्सियत थे, जो हमेशा मज़लूमों के साथ खड़े होते थे। मज़लूम चाहे हिन्दू हो,  मुसलमान हो, दलित हो,  किसान हो या वंचित तबकों के वे लोग हों,  जिन्हें तथाकथित अगड़ी जातियां हाशिए पर ही देखना चाहती थीं। यही वजह है कि उनका पाठक भी, जो उनसे कभी रुबरु नहीं मिला,  उनके प्रति सम्मान का भाव रखता है। उदयन शर्मा अपने परिवार को हमेशा यह नसीहत देते थे कि तुम्हें देश की पांच फीसदी लोगों वाली सुविधाएं उपलब्ध हैं लेकिन कभी गरीबों और वंचितों से मुंह मत मोड़ना। मेरा ताल्लुक उनसे केवल एक पाठक और लेखक का ही रहा है। मैं हमेशा से ही ‘रविवार’ के खुला मंच में नियमित रुप से पत्र लिखता था। सम्भवत: ये 1985 की बात है कि ‘रविवार’  ने मेरे पत्र को सर्वश्रेष्ठ पत्र आंका और मुझे 50 रुपए का इनाम दिया। लेखन से यह मेरी पहली कमाई थी।

मेरे लिए ये कमाल की बात रही कि ‘रविवार’ ने मेरा प्रत्येक पत्र प्रकाशित किया। उदयन शर्मा की की रिपोर्टों और उनके नियमित कालम ‘प्रथम पुरुष’  का मैं हमेशा दीवाना रहा। जब ‘रविवार’ तीन रुपए का आता था और सिनेमा का टिकट भी लगभग तीन रुपए का ही होता था तब संडे की छुट्टी के दिन मेरा युवा मन दोगला हो जाता था। मैं यह तय नहीं कर पाता था कि ‘रविवार’ खरीदूं या अमिताभ बच्चन की सुहाग फिल्म देखूं। अंत में मैं ‘रविवार’ को ही तरजीह देता था।

उदयन शर्मा से मुलाकात करने की हमेशा से दिल में ख्वाहिश रहती थी। ख्वाहिश पूरी तो हुई लेकिन अजीब हालात में हुई थी। मेरा ताल्लुक मेरठ के मलियाना से है। 23 मई 1987 को मलियाना में पीएसी का कहर बरपा हुआ था। पूरा मेरठ साम्प्रदायिक हिंसा में जल रहा था। यही वह वक्त था, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस से बगावत करके पूरे देश में जन-जागरण कर रहे थे। राम मंदिर आन्दोलन की आड़ में हिन्दू साम्प्रदायिक ताकतें मुसलमानों को निशाना बना रहीं थीं। यूपी में तो हाल बहुत बुरा था। साम्प्रदायिक दंगों की वजह से मुसलमानों में कांग्रेस के प्रति जबरदस्त नाराजगी थी। ऐसे में उदयन शर्मा ‘रविवार’ में कांग्रेंस के फेवर में लिख रहे थे और विश्वनाथ प्रताप सिंह और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह पर हमला कर रहे थे। एक बार को ऐसा लगा कि उदयन शर्मा ने ‘रविवार’ को कांग्रेस का मुखपत्र बना दिया है। इन्हीं दिनों में शायद जून का आखिरी या जुलाई का पहला हफ्ता था, उदयन मेरठ के दंगों पर कवर स्टोरी करने मेरठ आए थे। इसी परिप्रेक्ष्य में वे मलियाना भी आए। कुरबान अली उनके साथ थे। उन्होंने मुझसे पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली। जब वे चलने को हुए तो मैंने उनसे पूछना चाहा कि आपने रविवार को कांग्रेस का मुखपत्र क्यों बना दिया है। लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई। मुझे लगा कि ये छोटा मुंह और बड़ी बात हो जाएगी। लेकिन जब बिल्कुल ही चलने लगे तो मैंने उनसे अपना सवाल दाग ही दिया। सवाल का जवाब उन्होंने तल्खी और झुंझलाहट के साथ दिया था। उन्होंने कहा था- ”तुम अभी वीपी सिंह और जैल सिंह की असलियत नहीं जानते हो। जल्दी ही उनकी असलियत सामने आ जाएगी”। मुझे लगा कि शायद मैंने सवाल पूछकर उन्हें नाराज कर दिया है। लेकिन ऐसा था नहीं।

मेरठ के दंगों को एक साल हुआ तो मुझे उनका एक आदेश मिला कि एक साल बाद मलियाना के क्या हालात हैं,  इस पर एक रिपोर्ट ‘रविवार’ को भेजूं। मैं ‘रविवार’ के लिए रिपोर्ट लिखूंगा, यह सोचकर ही मैं रोमांचित था। बहरहाल, मैंने रिपोर्ट भेजी और ‘रविवार’ में प्रमुखता से प्रकाशित हुई। जब ‘रविवार’ का प्रकाशन स्थगित हुआ तो मेरे लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था। ऐसा  लगा कि जनता की आवाज ही बंद हो गयी है। लेकिन जल्दी ही उदयन शर्मा हिन्दी साप्ताहिक ‘संडे आब्जर्वर’  में अपने पूरे तेवरों के साथ हाजिर हो गए। हालांकि ‘संडे आब्वर्जवर’ वाला प्रयोग ज्यादा दिन तक नहीं चल सका था। दो साल बाद वह भी बंद हो गया।

उदयन शर्मा का 23 अप्रैल 2001 को इस दुनिया से जाना पत्रकारिता जगत का तो जो नुकसान था, वह अपनी जगह, लेकिन सबसे बड़ा नुकसान देश की उस जनता का हुआ था, जिसकी आवाज बनकर वे सरकारों को चेताया करते थे। फरवरी 2002 में जब गुजरात का दंगा हुआ और नरेन्द्र मोदी ने मुसलमानों को निशाना बनाया तो उस समय उदयन शर्मा बहुत याद आए थे। उनको याद करने के लिए मेरठ में मैंने अपने कुछ दोस्तों की मदद से एक संगोष्ठी का आयोजन किया था। संगोष्ठी का विषय ‘साम्प्रदायिक हिंसा और मीडिया की भूमिका’ था। मेरे मित्र ओमकार चौधरी उस समय दिल्ली अमर उजाला में कार्यरत थे। मैंने उनसे जिक्र किया कि मैं मेरठ में उदयन शर्मा की याद में एक सेमिनार करना चाहता हुं। उन्होंने उत्साह बढ़ाया। उन्होंने ही मेरी बात उदयन शर्मा के विशेष सहयोगी संतोष नायर से कराई। संतोष नायर ने ही कुरबान अली,  आनन्द प्रधान,  आनन्द कुमार और उदयन शर्मा की पत्नी नीलिमा जी को लाने की जिम्मेदारी ली। 7 मई 2002 को मेरठ के चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स सभागार में एक सफल सेमिनार का आयोजन किया गया।

इससे जुड़ी मजेदार बात यह है कि संतोष भारतीय को मैंने उनके लैंडलाइन फोन पर सेमिनार में शिरकत करने के लिए जब फोन किया तो फोन से लगी आंसरिंग मशीन ने संदेश छोड़ने को कहा। संतोष भारतीय ने मैसेज सुना तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया। इतना जरूर पता चला कि उदयन शर्मा की याद में मेरठ में कुछ हो रहा है। मुझे बहुत खुशी हुई जब मैंने देखा कि संतोष भारतीय आधे-अधूरे संदेश मिलने के बावजूद सेमिनार में शिरकत करने के लिए मेरठ तक चले आए। संतोष भारतीय ने ही उस दिन कहा था कि मेरठ के लोगों की तरह ही उदयन शर्मा को दिल्ली में हर साल याद किया जाना चाहिए। इस तरह उदयन शर्मा के इस दुनिया से चले जाने के बाद पहली बार उनको मेरठ में याद किया गया। यह मेरठ के लिए गर्व की बात है।

उदयन शर्मा के जीवनकाल में उनकी तीन पुस्तकें,  1978 में ‘हिंसा का लावा’, 1995 में समाजवादी नेता मधु लिमये की याद में विभिन्न लेखकों के लेखों का एक संग्रह प्रकाशित किया था। तीसरी पुस्तक ‘दहशत’ साम्प्रदायिक दंगों की रिपोर्टिंग का संग्रह था। उनके निधन के बाद 2002 में धर्मयुग,  साप्ताहिक हिन्दुस्तान तथा रविवार में सामाजिक विषयों पर उनकी रिपोर्टिंग तथा लेखों का संग्रह ‘फिर पढ़ना इसे’ नाम से प्रकाशित हुआ था। उनकी अन्य पुस्तकें ‘किस्सा कश्मीर का’ तथा ‘जनता पार्टी क्यों टूटी’ आदि प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त कुरबान अली के संपादन में ‘उदयन’ नाम से एक स्मारिका 11 जुलाई 2007 को  प्रकाशित हो चुकी है। इस स्मारिका में उदयन शर्मा के लेखों का अनूठा संग्रह तो है ही साथ में उनके निधन पर समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के उदयन के बारे में व्यक्त किए गए उदगार भी शामिल हैं। आनन्द प्रधान के सम्पादन में उनके लेखों एक संग्रह ‘साम्प्रदायिकता की चुनौतियां’  भी प्रकाशित हो चुका है। इस संग्रह में साम्प्रदायिक ताकतों को बेनकाब किया गया है। इन सब किताबों को पढ़कर पता लगता है कि उदयन शर्मा की कलम में कितनी ताकत थी। उदयन शर्मा की ये किताबें पत्रकारिता के छात्रों के लिए एक वरदान साबित हो सकती हैं।

अब जब,  भारतीय पत्रकारिता मिशन न होकर केवल धंधा हो गयी है तो ऐसे में उदयन शर्मा को केवल याद करना की काफी नहीं है। जरुरत बहुत सारे उदयन शर्मा पैदा करने की है। दिल्ली में 11 जुलाई को हर साल मीडिया की भूमिका पर बहस होती है। निष्कर्ष सिर्फ इतना ही निकलता है कि मीडिया भी बाजार के दबाव की वजह से मजबूर है। पत्रकार तो मीडिया हाउस के महज नौकर हैं। और नौकर वही करता है, जो मालिक चाहता है। अबकी बार भी 11 जुलाई का विषय ‘लोकसभा चुनाव और मीडिया को सबक’ रखा गया है। देखिएगा, बहस के बाद ऐसा ही लगेगा कि पिछली बहसों का एक्शन रि-रिप्ले देख रहे हों। कोई प्रभाष जोशी जैसा खांटी पत्रकार ही कह सकता है कि अबकी लोकसभा चुनाव में मीडिया के एक हिस्से ने अपने आप को कोठे की तवायफ सलीम अख्तर सिद्दीकीबना दिया।


सामयिक मुद्दों पर कलम के जरिए सक्रिय हस्तक्षेप करने वाले सलीम अख्तर सिद्दीक़ी मेरठ के निवासी हैं। वे ब्लागर भी हैं और ‘हक बात‘ नाम के अपने हिंदी ब्लाग में लगातार लिखते रहते हैं। उनसे संपर्क 09837279840 या  [email protected] This e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it के जरिए किया जा सकता है।

उदयन शर्मा के बारे में और ज्यादा जानने-पढ़ने के लिए आप इन लिंक पर भी क्लिक कर सकते हैं-
  1. उदयन को मैं सदी का सुपरस्टार पत्रकार कहूंगा

  2. पंडितजी संग काम करने का मुझे भी मौका मिला था

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