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‘मीडिया हाउसों का भविष्य और टेल्यूरिक एनर्जी’

संजीव गुप्तरीजनल इंजीनियरिंग कालेज, कालीकट (केरल) से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद वास्तु के क्षेत्र में गहन रिसर्च करने वाले संजीव गुप्त मीडिया पर वास्तु के गहरे असर के बारे में काफी कुछ बताते हैं। भड़ास4मीडिया से एक मुलाकात में संजीव ने कहा कि अगर किसी भी मीडियाकर्मी की दक्षता उसके घर, आफिस में उसके बैठन की जगह से कम या ज्यादा होती है। अगर आफिस का चेंबर कोस्मिक एनर्जी से कनेक्ट नहीं है तो इंटेलीजेंस प्रभावित होती है। कोस्मिक एनर्जी डिस्टर्ब होने से वो जो भी डिसीजन लेगा, उसके गलत होने की आशंका ज्यादा होगी।

संजीव गुप्त

संजीव गुप्तरीजनल इंजीनियरिंग कालेज, कालीकट (केरल) से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद वास्तु के क्षेत्र में गहन रिसर्च करने वाले संजीव गुप्त मीडिया पर वास्तु के गहरे असर के बारे में काफी कुछ बताते हैं। भड़ास4मीडिया से एक मुलाकात में संजीव ने कहा कि अगर किसी भी मीडियाकर्मी की दक्षता उसके घर, आफिस में उसके बैठन की जगह से कम या ज्यादा होती है। अगर आफिस का चेंबर कोस्मिक एनर्जी से कनेक्ट नहीं है तो इंटेलीजेंस प्रभावित होती है। कोस्मिक एनर्जी डिस्टर्ब होने से वो जो भी डिसीजन लेगा, उसके गलत होने की आशंका ज्यादा होगी।

संजीव के मुताबिक अगर आफिस में अपने बैठने की जगह को आप ठीक नहीं कर सकते तो अपने घर को अपने खानपान व एक्सरसाइज के जरिए कोस्मिक एनर्जी से कनेक्ट कर सकते हैं जिसका अच्छा असर आपके आफिस के काम पर पड़ेगा। साथ क्वांटम फिजिक्स के सिद्धांत पर बनी जर्मनी की एक मशीन के जरिए हम लोग किसी भी शख्स के घर व आफिस की एनर्जीज के बारे में पता लगाकर उसे ठीक करा देते हैं।

वास्तु को बिल्डिंग बायोलाजी बताने वाले संजीव का कहना है कि इस विधा पर भारत से ज्यादा रिसर्च फ्रांस व जर्मनी में किया गया है। मीडिया कंपनियों के मालिकों के बारे में संजीव का कहना है कि उनके लिए टेल्यूरिक एनर्जी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। टेल्यूरिक एनर्जी फाइनेंस व इस्टेबिलिटी से रिलेटेड होती है। अगर टेल्यूरिक एनर्जी वीक है तो कंपनी का डूबना तय है। जो पैसा लगाता है, वह ज्यादा पैसा चाहता है। इस लिजाह से टेल्यूरिक एनर्जी का रोल काफी इंपार्टेंट होता है। इसके बाद नंबर आता है ग्लोबल एनर्जी का। ज्यादा लोगों तक अपने ब्रांड को पहुंचाने व लोकप्रिय कराने में ग्लोबल एनर्जी का रोल बहुत महत्वपूर्ण होता है। लोग उस ब्रांड के बारे में कैसा फील करते हैं, यह ग्लोबल एनर्जी का असर तय करता है। आखिरी फैक्टर है कोस्मिक एनर्जी का। इंटेलीजेंस और विजन का काम कोस्मिक एनर्जी का होता है। इसलिए मीडिया का कोई काम शुरू करने से पहले वास्तु पर थोड़ा सा ध्यान जरूर देना चाहिए।

पदमश्री एवार्ड पा चुके मशहूर आर्किटेक्ट लोरी बेकर के साथ काम कर चुके संजीव का मानना है कि आजकल वास्तु पर जो किताबें मार्केट में हैं वे दरअसल पुराने जमाने के राजाओं व दूसरे देशों में बने वास्तु के परंपरागत नियमों पर आधारित हैं जो आज के समय की समस्याओं से निपटने में सक्षम नहीं है। इस कारण कई बार लोग इन किताबों के प्रयोगों को आजमाते हैं और रिजल्ट सकारात्मक न होने पर वास्तु से मोहभंग का ऐलान कर देते हैं। इसमें गलती लोगों की नहीं बल्कि उन अधकचरी किताबों का है जो नियमों को जनरलाइज तरीके से पेश करती हैं। संजीव का मानना है कि जिस तरह आदमी का शरीर बीमार और स्वस्थ होता है, उसी तरह बिल्डिंग भी बीमार और स्वस्थ होती हैं। आदमी में एनर्जी का फ्लो उसके काम को प्रभावित करता है तो बिल्डिंग में भी एनर्जी संजीव गुप्तफ्लो काफी कुछ तय करता है। बिल्डिंग का एनर्जी फ्लो उसमें रहने वाले लोगों का दशा-दिशा तय करता है। संजीव का कहना है कि इस आधुनिक दौर में वास्तु के विज्ञान को संपूर्णता में समझने के लिए काफी रिसर्च की जरूरत होती है। आज के जमाने में वास्तु को खान-पान, पहनावा व कसरत आदि के जरिए भी नियंत्रित किया जा सकता है।

संजीव कहते हैं कि आप विटामिन्स को मानें या न मानें, आक्सीजन को माने या न मानें, गेविटी को मानें या न मानें, क्योंकि ये दृश्यमान नहीं हैं लेकिन इनका वजूद है। इसी तरह वास्तु दिखता नहीं है लेकिन यह गहरा असर करता है। आपका काम क्या है, उस काम में किस तरह की एनर्जी की यूज है, वर्क से रिलेटेड प्लानेटरी इफेक्ट्स क्या हैं…. इन कई बातों के आधार पर वास्तु से संबंधित विश्लेषण शुरू होते हैं। लखनऊ के नामी वास्‍तुविद और आर्किटेक्‍ट संजीव गुप्‍त का कहना है कि समाचार पत्र-पत्रिकाओं के कार्यालयों में भी वास्‍तु उतना ही प्रभावी होता है जितना कि भवन निमार्ण में। संजीव एक किताब भी लिख चुके हैं, ‘वैज्ञानिक वास्‍तु एवं उसके प्रभाव’ नाम से। इस किताब को पिल्ग्रिम्‍स बुक हाउस ने प्रकाशित किया है। संजीव बी4एम के साथ बातचीत में दावा किया कि जिस प्रकार भवन में रंग, स्‍थान साज-सज्‍जा आदि का महत्‍व होता है, ठीक वैसा ही महत्‍व किसी भी अखबार पर लागू होता है। अखबार का मास्‍टहेड कैसा है, किस रंग का

संयोजन प्रथम पृष्‍ठ पर किया गया है, कहां बाक्‍स बनाया जा रहा है और उस पर किस रंग का प्रयोग किया गया… वगैरह-वगैरह बातें अखबार के प्रसार के लिहाज से खासी महत्‍वपूर्ण होतीं हैं। कोई माने या न माने लेकिन स्‍थान और रंग का महत्‍व सीधे-सीधे विज्ञान से जुड़ाव रखता है। वह कहते हैं कि यदि वास्‍तु के निश्चित मापदंडों को अपनाया जाये तो पत्र-पत्रिका की निश्चित तौर पर और प्रगति संभव होगी। संजीव ने अपने दावे की पुष्टि करते हुए कहा कि वह कई अखबारों और पत्रिकाओं के कार्यालयों का दौरा करके इस नतीजे पर पहुंचे हैं। उन्‍होंने कहा कि सम्‍पादक के बैठने का कक्ष एवं अन्‍य विभागों के स्‍थान आदि की बनावट आदि का भी इस परिप्रेक्ष्‍य में खासा महत्‍व है। वास्तु के नतीजे बेहद सार्थक और दूरगामी परिणाम देने वाले हैं।

संजीव से अगर आप संपर्क करना चाहते हैं तो इन रास्तों का इस्तेमाल कर सकते हैं-

Address : H.NO. 8, Hilton Lane, Opp. U.P. State Guest House,

Adj. Parsi Dua Ka Ghar, Meerabai Marg, Lucknow. ( U.P.)

Office No. :  0522-3917539, 3917538

Cell No. : +91-9415049274

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e-mail : [email protected], [email protected]

Website: www.vastuarchitect.co.in

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