अगर गरीबी हो मुकाबिल तो अखबार निकालो। चाहिये अकूत सम्पत्ति तो अखबार निकालो।।
अगर टेंशन बने कोई देशभक्त तो निपटाना है आसां। छापो फर्जी खबर, केस लपेटो, चलो अखबार निकालो।।
अगर परेशां हो पैसा बढ़ाने की खातिर, नहीं सुनता पुलिस वाला फरियाद जो तेरी। अरे मूरख उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अखबार निकालो ।।
अगर नहीं है मुकाबला तेरा वश में भ्रष्ट अफसर और नेताओं से। अब चेत जा और छाप डाल, बस कर इतना एक अखबार निकालो।।
नहीं है गर दौलत की मेहरबानी तुझ पर, नहीं बढ़ता पैसा तेरा बैक, बीमा शेयर से अगर। फिक्र छोड़, उठ जाग, छाप धड़ाधड़ संस्करण अनेक और अखबार निकालो।।
छोड़ देशभक्ति के चोंचले, छोड़ गरीब की आवाज उठाना, मूरख भूखों मर जायेगा। चेत जाग धन की देवी लक्ष्मी पुकारती तुझे, उठो और अखबार निकालो।।
समझ आयोजित और प्रायोजित के अर्थ, अखबार चला ले जायेगा। अगर है चमचागिरी और मक्खनमारी की कला से सम्पन्न, ढेरों विज्ञापन पा जायेगा।। पुलिस वाले की तरह फरियादी से भी ले, मुल्जिम से भी वसूल। इतनी समझ गर आ गयी तुझे तो पक्ष विपक्ष दोनो से मिलेगा धन तुझे, चलो उठो अखबार निकालो।।
पाठक बना रहेगा, कन्जूमर कहलायेगा, जेब पर टैक्स ठुकेंगें कई, चौतरफा लुट जायेगा। अगर ठिकाने लगाने हैं ब्लैक मनी के पैसे तुझे, हजम भ्रष्टाचार की कमाई, उठ जाग चलो अखबार निकालो।।
यदि है परेशान पत्रकारों से नेताओं से और फर्जी शिकायतों से। अरे चेत नादान, सीख मंत्र वशीकरन का अब जाग उठ और चलो अखबार निकालो।।
नहीं सुनेगा देस में कोई बात तेरी, नक्कारखाने में तूती बन रह जायेगा। बिन नर्राये जो चाहे, कान में मोबाइली मंत्र फूंकना सारे कारज सिद्ध करना तो चलो अखबार निकालो।।
अखबार निकाला और सिद्ध हो गये हजारों जोगी, शेष सब जोगना हो गये। कभी बेचते थे मूंगफली, चराते थे भैंसे, ढोते थे रिक्शा, हांके थे तांगे, आज पत्रकार हो गये।। नहीं है दो कौड़ी की कदर जो तेरी, चिन्ता न कर उनकी भी नहीं थी कभी। उन्हें भी जलालत झेलनी पड़ी थी कभी, मारा पुलिस ने था अफसरों ने दफ्तरों से भगाया था, पत्रकार बने तो माननीय हो गये।। बनेगा पत्रकार, मिटेगा अंधकार, जीवन में उजाला छा जायेगा, गुण्डे से माननीय हो जायेगा। अरे बेवकूफ फेंक बन्दूक आ चम्बल के गहरे भंवर तले, लगा मशीन छाप अखबार बिन बन्दूक का शाही डकैत हो जायेगा।। कहॉं खाक छानता है चम्बल के बीहड़ों में दो चार पकड़ में क्या कमा पायेगा। पौना पुलिस ले जायेगी, चौथाई के लिये मारा जायेगा, फेंक बन्दूक बीहड़ की गहरी खाई में चल आ बन जा माननीय, उठ जाग और चलो अखबार निकालो।।
भटकता फिरता है चोरी भडि़याई करते, किसी दीवाल से फिसलेगा मारा जायेगा। केवल दस परसेण्ट पर चोरी में क्या कर पायेगा, नब्बे खाकी खायेगी, छोड़ ये जान का संकट उठ जाग और चलो अखबार निकालो।। कई चोर थे, कई पिटे भी थे कई की इज्जत तार तार हुयी थी कभी मगर तब जब वे पत्रकार नहीं थे। पत्रकार हुये और पुज गये, सारे काम सफेद हो गये, मिलतीं हैं लड़कियां भी शराब और मुर्गे भी उन्हें, अरे मूरख जाग उठ और अखबार निकालो।।
कभी वे तरसते थे, छिपके हसीनाओं के निहोरे करते थे, शराब की बूंद को तरसा करते थे, बोतल खाली कबाड़ी से खरीद कर उन्हें उल्टी कर नब्बे बूंद टपका कर प्याला भरते थे जो। पत्रकार बने तो दिन फिर गये, अम्बाह जौरा और रेशमपुरा तक सरकारी गाड़ी में जायेगा, सुन्दरीयों के साथ दिन औ रात बितायेगा, सरकारी शराब और मुर्गे चाटेगा, फिर भी न तू अघायेगा, जाग बेवकूफ उठ चलो अखबार निकालो।।
क्या कलेक्टर क्या कमिश्र्नर, मंत्री भी क्या औ संतरी भी क्या। अब बेवकूफ खुदी को कर बुलन्द इतना कि सब तुझसे पूछें बता तेरी रजा क्या है, बस जाग चेत उठ एक अखबार निकालो।।
वह वक्त वह बातें हवा हुयीं, जब अखबार निकलते थे स्वतंत्रता की लड़ाई के लिये। अब तू छाप अखबार गरीबी हटाने के लिये, चमचागिरी करने के लिये प्रचार साधन के लिये।। अरे पगले, भ्रष्ट अफसर नेता औ बाबू कीमती ध्ारोहर हैं देश के लिये। नहीं बढ़ने देते मुद्रा स्फीति, नहीं करते वायदा कभी धन बढ़ाने का।। चलन में है भ्रष्टाचार, संवैधानिक दर्जा है भ्रष्टाचार का, इन्हें संरक्षण दे, फलीभूत कर, कमाऊ पूत हैं देश के ये कर्णधार। इनसे मिल कर चलेगा, अखबार चलेगा, वरना कागज के कोटे को तरस जायेगा, इनके साथ चल विज्ञापन बटोर उठ पागल उठ चलो अखबार निकालो।।