13 सितंबर 2008। शाम 6 बजकर 10 मिनट। दिल्ली के करोलबाग के गफ्फार मार्केट में जबरदस्त धमाका। टोटल टीवी पर गफ्फार मार्केट के मोबाइल बाजार से संवाददाता संदीप मिश्र और योगेंद्र लगातार धमाकों की जानकारी दे रहे थे। व्यापारी संघ के एक नेता के फोनो के दौरान टोटल टीवी का स्टूडियो धमाके से दहल उठा। ये सब कुछ लाइव था। जो लोग उस समय टोटल टीवी देख रहे होंगे, वो धमाके की गूंज सुन पाए होंगे। नीचे झांका तो नई दिल्ली हाउस के सामने कई लोग औंधे पड़े थे।
मैं भागते हुए नीचे पहुंचा। मेरे साथ साथी रिपोर्टर रोहिल पुरी, अमित शुक्ला और कई कैमरापर्सन भागे। नीचे हमारे रिपोर्टर विवेक सिन्हा पहले से ही मौजूद थे। वो किसी शूट से लौट कर आए थे। एक साधु औंधे मुंह पड़ा था। कई महिलाएं खून से लथपथ थीं। विवेक सिन्हा ने रिपोर्टिंग की कमान संभाली। बाकी साथियों ने आने-जाने वाली गाड़ियों को रोक कर घायलों को अस्पताल भेजना शुरू कर दिया। पुलिसकर्मी भी मीडिया के इस रोल से काफी राहत की सांस ले रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था कि हर धमाके के बाद मीडिया खिंचाई में लग जाती है। लेकिन यहां तो मीडिया कंधा से कंधा मिलाकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में साथ दे रही है। ये बात बाद में एसआई मोहनलाल ने मुझे बताई थी।
अक्सर शांत से रहने वाले अमित शुक्ला का उस दिन ग़ुस्सा भी देखा। एक आटोवाला घायल को ले जाने में आनाकानी कर रहा था। पैसे की बहस में लगा था। अमित ने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और फटकारते हुए कहा कि फौरन इसे अस्पताल पहुंचाओ। ये मेरा कोई रिश्तेदार नहीं है। इसके बदन से जो लाल लहू बह रहा है, वो एक भारतीय का है।
रिपोर्टरों की लगन और इंसानियत देखकर मैं समझ गया कि हमारी टीम इस जज्बे को जानती है कि सबसे पहले बाइट या विज़ुअल दिखाकर कोई महान पत्रकार नहीं हो जाता। इस बीच और भी कई जगहों से धमाकों की खबरें आने लगीं। मनीष मासूम, विवेक वाजपेयी, रमन ममगई, संदीप मिश्र, योगेंद्र, विवेक सिन्हा, अमित शुक्ला, रोहिल पुरी, मधुरेंद्र कुमार, प्राची, दीपक बिष्ट, सुनील सोलंकी ने फील्ड में कमान संभाल ली। हमारी टीम ने बेशक सबसे पहले खबर दी। सबसे पहले विज़ुअल्स दिखाए। लेकिन एक पेशेवर का जो इंसानी चेहरा दिखाया, उसे देखकर हर इंसान को नाज होगा। मैं स्टूडियो पहुंच गया। रिपोर्टरो की अच्छी बात ये थी कि पुलिस की बखिया उधड़ने की बजाए वो ये बता रहे थे कि पुलिस ने कितने जिंदा बमों को निष्क्रिय करने में कामयाबी हासिल की है। संदीप मिश्र ने उस जवान से भी बात करने की कोशिश की, जिसने रीगल सिनेमा हॉल के पास रखे बम को खुद ही निष्क्रिय कर दिया। उसने बम निरोधक दस्ते का भी इंतजार नहीं किया। उसे अपनी जान की भी परवाह नहीं थी।
हमारे रिपोर्टर अस्पतालों में भर्ती ऐसे कई मरीजों को दवा दिला रहे थे, जिनके पास उस समय पैसे नहीं थे। टोटल टीवी पर एक ऐसे ही घायल को दवा लाकर देते रिपोर्टर को हमारे प्रधान संपादक विनोद मेहता ने देख लिया। उनका फौरन निर्देश आया कि सभी रिपोर्टरों को कहा दो, जेब में जितने पैसे हैं, घायलों के इलाज में लगाएं। एकाउंट्स सेक्शन रातभर खुला रहेगा। जिस रिपोर्टर को जितने पैसे की जरूरत हो, मंगाकर लोगों का इलाज कराएं।
मीडिया का एक दूसरा चेहरा भी देखने को मिला। करोड़ों- अरबों रुपए की लागत से चैनल चलानेवालों की मानसिकता देखी। वो दावा करते हैं कि देश दुनिया की हर खबर को दर्शकों के सामने पल भर में ला देंगे। उनके पास दुनिया की सबसे मार्डन टेक्नोलॉजी है। सबसे पराक्रमी. चरम उत्साही और विद्वानों की फौज है। जो हर खबर की नब्ज को समझते हैं। हर प्रोमो में ये साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं कि वो बाक़ी चैनलों से इक्कीस हैं। उनका सानी नहीं है। सब उनके सामने पानी भरते हैं। ऐसे मूर्धन्य पराक्रमियों की टोली ने जन्मसिद्ध अधिकार के साथ धमाकों की तस्वीरों को घंटों अपने चैनल पर दिखाया। ये तस्वीरें वो टोटल टीवी से लेकर लाइव दिखा रहे थे।
इस जन्मसिद्ध अधिकार के खेल में कोई भी चैनल पीछे नहीं रहना चाहता था। पहले दिखाने की होड़ और जिद में चैनलों ने शुरू में सौजन्य लिखना भी जरूरी नहीं समझा। शुरू में हर चैनल के स्क्रीन पर टोटल टीवी का फुटेज चैनल लोगो के साथ टेलीकास्ट होता रहा। यहां तक टोटल टीवी के प्रायोजकों के लोगो भी बाकी चैनलों पर दिखे। हमारे रिपोर्टरों के वॉकथ्रू, टिकटैक, इंटरव्यू और फुटेज उदार-उद्दत भाव से दिखाए जाते रहे। बाद में कई चैनलों ने टोटल टीवी का चैनल लोगो हटा दिया और बहुत छोटी सी टिकुली बिंदी लगा दी- सौजन्य टोटल टीवी।
स्टार न्यूज ने टोटल टीवी का फुटेज दिखाया लेकिन उसे मोजैक कर। पता नहीं सौजन्य लिखा भी या नहीं।
इंडिया टीवी ने एंकर को भी दिखा डाला।
इस सब के बाद एक सवाल ने मुझे मथ कर रख दिया। किसी भी चैनल का फुटेज उधार लेने से पहले तथाकथित बड़े चैनल और पराक्रमी- विद्वान लोगों को ये नहीं लगता कि उस चैनल से एक बार इजाजत मांगी जाए। या यूं कहें कि इन तथाकथित चैनलों ने एक नया ट्रेंड शुरू किया है। किसी से कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं। सब अपना है भाव से जहां से जो भी काम का मिले, उसे टीप लो।
तो अब हम क्या उम्मीद करें कि नाग-नागिन, भूत प्रेत की इस दौड़ में अब टेपा-टेपी का भी खेल होगा ? क्योंकि सवाल टीआरपी और पहले दिखाने का है।
लेखक चंदन प्रताप सिंह टोटल टीवी के राजनीतिक संपादक हैं। उनसे उनकी मेल आईडी [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।