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संपादक को धमकाने का आरोप भी साजिश

: ‘मीडिया खबर डॉट कॉम’ के संपादक पुष्कर पुष्प को धमकी दिए जाने वाली खबर के संबंध में : मीडिया खबर एक वेबसाइट है। कुछ दिन पहले इस वेबसाइट ने आज़ाद न्यूज़ चैनल को लेकर खबरें छापनी शुरू की। ये खबरें शुरू हुईं पेशेवर मुद्दों से। लेकिन बाद में खबरों के माध्यम से व्यक्तिगत आक्षेप शुरू हो गए। चैनल के बड़े लोगों पर निजी आरोप लगाए जाने लगे।

<p style="text-align: justify;">: <strong>'मीडिया खबर डॉट कॉम' के संपादक पुष्कर पुष्प को धमकी दिए जाने वाली खबर के संबंध में </strong>: मीडिया खबर एक वेबसाइट है। कुछ दिन पहले इस वेबसाइट ने आज़ाद न्यूज़ चैनल को लेकर खबरें छापनी शुरू की। ये खबरें शुरू हुईं पेशेवर मुद्दों से। लेकिन बाद में खबरों के माध्यम से व्यक्तिगत आक्षेप शुरू हो गए। चैनल के बड़े लोगों पर निजी आरोप लगाए जाने लगे।</p>

: ‘मीडिया खबर डॉट कॉम’ के संपादक पुष्कर पुष्प को धमकी दिए जाने वाली खबर के संबंध में : मीडिया खबर एक वेबसाइट है। कुछ दिन पहले इस वेबसाइट ने आज़ाद न्यूज़ चैनल को लेकर खबरें छापनी शुरू की। ये खबरें शुरू हुईं पेशेवर मुद्दों से। लेकिन बाद में खबरों के माध्यम से व्यक्तिगत आक्षेप शुरू हो गए। चैनल के बड़े लोगों पर निजी आरोप लगाए जाने लगे।

इसमें मैनेजमेंट से लेकर वरिष्ठ पदों पर बैठे सभी लोग शामिल थे। वरिष्ठ पदों में ज़्यादातर नाम ऐसे हैं जो कई दशकों से पत्रकारिता में हैं और अपना अपना मुकाम रखते हैं। मीडिया खबर डॉट काम ने इन सब पर ऐसे निजी आरोप लगाने शुरू किए जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं था। मसलन फलां व्यक्ति चोर है, फलां व्यक्ति बलात्कारी है। और भी ऐसे गंभीर आरोप लगाए गए जिससे उन व्यक्तियों के पेशेवर, सामाजिक, वैवाहिक और पारिवारिक जीवन पर मुश्किलें खड़ी हो गई। ये सिलसिला लगातार एक महीने से ज़्यादा चला और बीस से ज़्यादा लेख लिखे गए।

हालांकि शुरू में संस्थान और इससे जुड़े लोग व्यक्तिगत आरोपों की अनदेखी करते रहे। लेकिन तत्पश्चात कानूनी सलाह पर बताया गया कि अगर इस मामले को नज़रअंदाज़ किया गया तो वे सभी व्यक्ति बाद में मुश्किल में फंस सकते हैं। इस कानूनी राय के बाद कुछ वरिष्ट पत्रकारों ने साइबर कानून के तहत एक रिपोर्ट दर्ज कराने की सोची। दिल्ली पुलिस के साइबर सेल में तीन जुलाई, 2010, को तीनों लोगों ने अपने अपने स्तर पर शिकायत दर्ज की। रिपोर्ट का क्रमांक सी 1581 /10  DCP-III है। ये तीन पत्रकार हैं- नवीन सिन्हा,रवींद्र शाह और कमलकांत गौरी।

बाद में मीडिया खबर ने फिर इन खबरों को ज़ोर शोर से उछालना शुरू किया। इस पर कानूनी राय के बाद मीडिया खबर को इन्हीं तीन लोगों ने कानूनी नोटिस भी भेजा। इस बारे में कई लोगों की तरफ से इन तीन पत्रकारों पर ये दबाव डालने की लगातार कोशिश की गई कि किसी तरह से मीडिया खबर के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज न की जाए। इसमें उन्हें तमाम तरह की धमकियां दी गईं कि अगर आप ऐसा करेंगे तो वो इस तरह से या उस तरह से नुकसान पहुंचाएगा। ये भी कहा गया कि आप सब लोग मुश्किल में आ जाएंगे।

लेकिन आरोप इतने गंभीर थे और लगातार वैबसाइट के द्वारा उछाले जा रहे थे कि इसमें कोई कार्रवाई न करने का मतलब होता कि किसी भी वरिष्ठ पत्रकार का चरित्रहनन कोई भी व्यक्ति कर सकता है और उसकी जीवनभर की कमाई को मिट्टी में मिला सकता है। ये सवाल पूरी पत्रकार बिरादरी का है कि हम अपना मतलब साधने के लिए क्या किसी भी पत्रकार भाई की बलि चढ़ा सकते हैं ?

इन तीनों पत्रकारों ने धमकियों के आगे झुकने से इनकार कर दिया। इसके बाद एक और षड्यंत्र रचा गया जिसमें  आरोप लगाया गया कि मीडिया खबर के संपादक को ये लोग जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। इन तीनों लोगों का कहना है कि हम लोग कानून से चलने वाले लोग हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो हम शुरू से ही कानूनी रास्ता अख्तियार नहीं करते। हम लोग हिंसा में विश्वास नहीं रखते। अगर ऐसा करेंगे तो हममे और मीडिया खबर की लेखन-हिंसा में कोई अंतर नहीं रह जाएगा। इनका ये भी कहना है कि हमने किसी को कोई धमकी नहीं दी है और न ही देंगे। हमने कानूनी रास्ता अख्तियार किया है और उसी पर चलेंगे। आखिर सवाल पूरी पत्रकार बिरादरी और उसे पीत-पत्रकारिता से बचाने का है।

(आजाद न्यूज के नवीन सिन्हा, रवींद्र शाह और कमलकांत गौरी की तरफ से संयुक्त रूप से जारी विज्ञप्ति)

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0 Comments

  1. संजीव सिंह

    August 1, 2010 at 6:44 am

    धमकी दे सकते हैं की नहीं . इसका प्रमाण खुद भड़ास4 मीडिया का यह वीडियो है जिसमें भड़ास4 मीडिया के सम्पादक यशवंत जी ने आज़ाद न्यूज़ और चैनल में बैठे इन दागदार चेहरों को बेनकाब किया है. इस वीडियो के जरिये भड़ास4 मीडिया ने आज़ाद न्यूज़ में एक स्ट्रिंगर की पिटाई के मामले का खुलासा किया था. वीडियो में साफ़ तौर पर स्ट्रिंगर ने रवीन्द्र शाह समेत आज़ाद न्यूज़ के कई लोगों का नाम लिया है. यह रहा भड़ास4 मीडिया का वह वीडियो लिंक.

    http://www.youtube.com/watch?v=f0N8LJsa-Hk&feature=player_embedded

    http://www.youtube.com/watch?v=4BiAr_yfADc&feature=player_embedded

  2. पंकज सिंह

    August 1, 2010 at 1:05 pm

    यशवंत जी, भड़ास के लिए यह विज्ञप्ति जारी करने वाले वही लोग हो जो कल तक भड़ास और उन जैसे न्यूज पोर्टल को दो कौड़ी का बता रहे थे। यही नवीन सिन्हा ने आपके बारे में टिप्पणी की थी कि भड़ास में छपने से क्या होता है, दो कौड़ी की साइट है और य़शवंत तो चार हजार की नौकरी मांगता फिरता था। पुष्कर को इन्होंने भिखमंगा बताया है। ऐसे सामंती और अलोकतांत्रिक लोग आज मजबूरी में वर्चुअल स्पेस की शरण में आए हैं। इन्हें बख्शना मत। रवीन्द्र शाह ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके एक छोटे चैनल में काम कर रहे एक पत्रकार की नौकरी सिर्फ इसलिए ले ली क्योंकि माना जा रहा था कि यह लड़का मीडिया खबर सहित कई साइटों के संपर्क में है। गौरी ने प्रोपैगैंडा किया कि उसने अपनी ताकत से मीडिया खबर को बंद करवा दिया और अगर भड़ास पर ऐसा कुछ आएगा तो भड़ास को भी बंद करा दिया जाएगा। ये तीनों आपस में कुत्तों की तरह लड़ते रहते थे। जब से उक्त साइट ने इन्हें बेनकाब करना शुरू, इन सबमें एकता हो गई। एक बात और, यही विज्ञप्ति दो दिन पहले हिन्दी के कुछ साइटों पर उदय रंजन (लेखक) नाम के आदमी के हवाले से छपी थी और अचानक वही कंटेट रवीन्द्र शाह, कमलकांत गौरी और नवीन सिन्हा की प्रेस विज्ञप्ति बन गया। इसका साफ मतलब है कि उदय शंकर कोई और नहीं रवीन्द्र शाह या इनमें से ही कोई एक है।

  3. पंकज सिंह

    August 1, 2010 at 6:41 pm

    मेरे कमेंट के अंतिम वाक्य में उदय शंकर को उदय रंजन पढ़ें..

  4. Manoj Burnwal

    August 2, 2010 at 6:12 am

    Azad channel se jude in logon ko ab samajh mai aa gaya hai. charon taraf se ghirne ke baad ab apni safai de rahe hain. agar ye itne hi sarif hote to na to media khabar koi news publish karta aur na hi inhe dhamki dene ki jarurat padti. media khabar badhai ka paatr hai ki usne media se jude logon ki hakkikat samne lane ka prayas kiya hai.

  5. rajesh bhatia

    August 2, 2010 at 6:58 am

    रविन्द्र शाह जो आज इतनी सफाई दे रहे हैं ………………..इस कार्यप्रणाली के जनक हैं ये बीमारी इन्होने एस १ से चालू की और अब आज़ाद में ले गए .मैं स्वयं विजय दीक्षित के संसथान में १ लाख सेलरी के डुबो के बैठा हूँ ,रविन्द्र शाह जो स्वयं आज को साफ़ सुथरा पत्रकार बता रहे हैं पहले अपने आप से पूंछें ———-“”मैं क्या हो गया रविन्द्र ?”

  6. विक्रम शाह

    August 2, 2010 at 1:08 pm

    यशवंत जी, मैं एक स्वतंत्र पत्रकार हूं। मीडिया में मेरा अनुभव तीन वर्षों का है। मीडिया खबर बनाम आजाद न्यूज मामले से अपना लेना-देना महज पत्रकारीय दृष्टिकोण बनाने के सिलसिले तक सीमित है। चूंकि, दोनों पक्षों के कुछ लोगों से मेरी बातचीत होती है, इसलिए मैं एक निष्कर्ष पर पहुंच पाया हूं। आशा है, आप इसे स्थान देंगे.
    विक्रम शाह.

    तब पीत नहीं पराग पत्रकारिता थी वह?

    कठघरे में खड़े लोगों को आदर्शवाद की चादर ओढ़ते देर नहीं लगती और छोटे से छोटा संकट भी कायरों को एकजुट कर देता है। आजाद न्यूज के तीन पत्रकारों-रवीन्द्र शाह, कमलकांत गौरी और नवीन सिन्हा के लिए तो फिलवक्त यही कहा जा सकता है। जिन तर्कों की बदौलत ये तीनों सच को झूठ साबित करने में लगे हैं, वे बेहद पिलपिले हैं।

    प्रोपैगैंडा मीडिया खबर नहीं बल्कि आजाद न्यूज फैला रहा है। मैंने भी मीडिया खबर की रिपोर्टें पढ़ी हैं। सभी रिपोर्टों की भाषा संयत और शालीन है। कहीं भी मॉडरेटर ने किसी को बलात्कारी या चोर नहीं ठहराया है। लेकिन, अगर जनता और पाठकों की नजर में संबंधित पत्रकार ऐसे हैं तो इसका क्या इलाज है। इस पर तो उन पत्रकारों को ही गंभीरता से विचार करना होगा कि आखिर उनकी छवि ऐसी क्यों बनी है। पत्रकारों को गुलामों की तरह लाइन में लगाकर सैलरी देना कहां तक उचित है ? कई दिनों तक चैनल ब्लैक आउट रहे और मीडिया पोर्टल चुप रहें तो बहुत अच्छा। उनके यहां महीनों एसी न चले, सिस्टम बैठ जाए, पत्रकार गर्मी से परेशान रहें और उन्हें पीने को पानी और पेशाब करने की जगह तक न मिले और कोई न्यूज पोर्टल कुछ न लिखे तो ठीक। चैनल के कथित बड़े पत्रकारों का प्रशस्ति गायन-संध्या वंदना हो तो अच्छा, नहीं तो वे प्रोपैगैंडा कर रहे हैं।

    जब रोज-ब-रोज आजाद न्यूज में पत्रकारों का अपमान होता है, तब मालिकान के तलवे चाट रहे ये बड़े पत्रकार क्यूं नहीं कोई आवाज उठाते। हाल ही में आजाद में काम करने वाले एक कनिष्ठ पत्रकार के पिताजी का देहावसान हुआ। लिहाजा, उसे लंबी छुट्टी पर जाना पड़ा। छुट्टी वाला यह महीना जून का था। उसमें तीन दिन उपस्थित रहा था वह। अपेक्षा थी कि मानवीयता और पेशेवर नैतिकता के आधार पर उसे पूरे महीने की सैलरी मिल जाएगी। लेकिन, गरीब पत्रकारों के लाखों रुपये का गबन करने वाला एचआर नदीम अली तो तीन दिन के ही पैसे देने को राजी नहीं है। कह रहा है, “अब एक (तीन) दिन का पैसा क्या दें तुम्हें”। ऐसी संवेदनहीनता और अमानवीय व्यवहारों के बीच जीते इन कथित बड़े पत्रकारों को शर्म नहीं आती जब ये कहते हैं कि उन्होंने जीवन में एक “मुकाम” हासिल किया है। हां, मुकाम बनाया है तलवे चाटने का, मुकाम षड्यंत्र रचने का..। मुकाम पर पहुंचे पत्रकारों का काम सिर्फ मालिकों की सेवा करना नहीं होता बल्कि पत्रकारों और पत्रकारिता के प्रति भी उनकी कुछ जिम्मेवारी बनती है। और आजाद में तो यह रोज की घटना है। जो लोग चैनल छोड़ कर चले जाते उनका पैसा तो मानो शेर के मुंह में चला जाता है। उनके पैसे जाहिल और बदतमीज नदीम अली, जिसे पत्रकारों से पेश आने तक का सलीका नहीं मालूम, कभी नहीं देता। ऐसे तीसेक लोगों की लिस्ट जल्द ही वर्चुअल स्पेस पर जारी की जाएगी। एक अन्य पत्रकार मित्र के साथ ऐसी ही घटना हो चुकी है आजाद में। उनके आजाद छोड़े आठ महीने हो गए लेकिन, एचआर उनके पैसे नहीं दे रहा। वजह, उस पत्रकार ने चैनल के कथित बड़े पत्रकारों की चाकरी करने से मना कर दिया था। मीडिया खबर से कथित तौर पर “निकटता” रखने के “जुर्म” में उस पत्रकार को एक अन्य चैनल से साजिश के तहत बाहर करने की सफल कोशिश की गई। षड्यंत्र रवीन्द्र शाह ने रचा। अपनी ताकत का दुरुपयोग करके उन्होंने उक्त चैनल में उस पत्रकार के लिए ऐसी स्थितियां उत्पन्न कर दीं कि उसने वहां से त्यागपत्र दे दिया। अब रवीन्द्र शाह, कमलकांत गौरी और नवीन सिन्हा अपने गुर्गों से खबर भेज रहे हैं कि उक्त पत्रकार को अपने पैतृक घर चले जाना चाहिए क्योंकि दिल्ली में तो वे लोग उसे कहीं नौकरी में नहीं आने देंगे।

    अब बात आरोप-प्रत्यारोप के सच की कसौटी पर उतरने की। आजाद न्यूज के आउटपुट हेड रवीन्द्र शाह के बारे में कई न्यूज पोर्टल पर लिखा-पढ़ा-मिटाया गया कि इन्हें एसवन में अंजू खंडेलवाल नाम की महिला पत्रकार ने भरे न्यूज रूम में सबके सामने यौन शोषण के आरोप में कई थप्पड़ जड़े थे। यह सच्चाई पर आधारित एक तथ्य है। क्या शाह जी इस खबर का खंडन करने की स्थिति में हैं। क्या वे साफ कर सकते हैं कि अंजू ने उन्हें थप्पड़ रसीदे या नहीं। रवीन्द्र शाह ने जब आजाद ज्वाइन किया था तो यही कमलकांत गौरी और नवीन सिन्हा उन्हें अछूत की तरह ट्रीट करते थे। गौरी जी ने घोषित कर रखा था कि जो कोई रवीन्द्र के कमरे में जाएगा उसे उनका कोपभाजन बनना पड़ेगा। तब रवीन्द्र शाह ने न्यूज डायरेक्टर अंबिकानंद सहाय से जुड़े कुछ लोगों का कमलकांत गौरी के खिलाफ जमकर इस्तेमाल करना चाहा। लेकिन, जब काम निकलता नहीं दिखा तो गिरगिट की तरह रंग बदल कर गौरी से जा मिले। स्ट्रिंगर की पिटाई के मास्टरमाइंड रवीन्द्र शाह ही थे। उधर, स्ट्रिंगर की खबर को न्यूज पोर्टल तक पहुंचाने का काम कमलकांत गौरी के कर-कमलों से हुआ था। तब पीत नहीं पराग पत्रकारिता थी वह? लड़की से थप्पड़ खाने और लड़कियों को खाद्य और पेय पदार्थ समझने वाले लोग जब पत्रकारिता के इथिक्स की दुहाई देते हैं, तो शर्म आती है। कमलकांत गौरी अपने से आधी उम्र की चैनल की ही लड़कियों पर डोरे डालते रहें और कोई खबर न बनाए तो हम सरोकार वाले हो जाएंगे नहीं तो हम पीत पत्रकारिता कर रहे हैं। माफ कीजिएगा, आजाद जैसे किराना चैनल(जहां पत्रकारों को लाइन में खड़े करके कैश हाथ में थमाया जाता रहा है) और उसके दुकानदार-पत्रकारों से किसी को किसी तरह के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है।

    यह मामला वर्चुअल स्पेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संघर्ष का नहीं है। मामला, मीडिया में नकारात्मक और जहरीले तत्वों को स्वीकार्यता देने या नहीं देने का है। हमने भी इस मुद्दे पर आजाद न्यूज और मीडिया खबर के सूत्रों से बात की। मालूम हुआ कि साइट के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने या न करने को लेकर चैनल के अंदर ही दो फाड़ वाली स्थिति थी। आजाद न्यूज कागज के मामले में बहुत कमजोर है। कई तरह के लाइसेंसों से लेकर तमाम तरह की सरकारी और विधिक अनुमतियों से चैनल वंचित है। चैनल के सालाना ऑडिट का कोई रिकार्ड नहीं है। श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाने में व्यस्त इस चैनल के कई लोगों ने माना कि अगर केस-मुकदमे की नौबत आएगी तो कोर्ट में चैनल कई आरोपों से घिरता नजर आएगा। चैनल के बंद या सील होने की भी स्थिति आ सकती है। लिहाजा, चैनल के अंदर के लोग फैसला नहीं कर पा रहे थे कि मीडिया खबर को कानूनी नोटिस भेजा जाए या नहीं। स्ट्रिंगर की पिटाई वाली खबर हटवाने के लिए पहले विज्ञापन का लालच भी दिया गया था। इसके बाद हालिया मामले में डराने-धमकाने की कोशिशें शुरू हुईं जो जान से मारने की धमकी की सीमा तक जा पहुंची। साथ ही, कई तरह के प्रोपैगैंडा फैलाने का काम ये तीनों महानुभाव करते रहे। यह कहा गया कि मीडिया खबर को बंद करवा दिया गया है, जबकि साइट रिलॉचिंग की तैयारी कर रहा था। मुखबिरी के संदेह से घिरे आजाद न्यूज के लोगों को डराने के लिए यह शिगूफा छोड़ा गया कि मीडिया खबर के मॉडरेटर ने आजाद न्यूज से माफी मांगते हुए उन लोगों की लिस्ट चैनल को मुहैय्या कराई है, जो अब तक साइट को खबरें देते रहे थे। प्रोपैगैंडा करने में माहिर लोग जब दूसरे पर ऐसे ही आरोप मढ़ रहे हों, तो अचरज होता है।

    दरअसल, आजाद जैसे डी-ग्रेड चैनल न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बल्कि समग्रता में पत्रकारिता के लिए ही खतरा हैं। पत्रकारिता के जनपक्षधर और सरोकारयुक्त बने रहने के लिए जरूरी है कि ऐसे चैनलों,शोषण के कारखानों और उनके कारिंदों के खिलाफ जमकर मोर्चा लिया जाए। वर्चुअल स्पेस को किसी की नसीहत की जरूरत नहीं है। दूसरे चैनलों के विजुअल, आइडिया और कंटेट की चोरी में लिप्त इन डी-ग्रेड चैनलों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। बहरहाल, मीडिया खबर और आजाद न्यूज से संबंधित विवाद को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और वर्चुअल स्पेस के संघर्ष के रूप में देखे जाने की जरूरत नहीं है। आजाद न्यूज की तरफ से मीडिया खबर को दी गई धमकी उस गैरपेशेवर और अपत्रकारीय प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करती है जो मालिकों के काले धन को सफेद बनाने और उसमें अपना हिस्सा बटोरने की चाहत में किसी भी हद तक जाने को आतुर है। पत्रकारिता में यह बिल्कुल नई लेकिन बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति की शुरूआत है। अंत में, जब मार पड़ती है तो आदमी सबसे पहले अपना चेहरा छुपाता है। रवीन्द्र शाह, कमलकांत गौरी और नवीन सिन्हा वाली यह अपत्रकारत्रयी यही काम कर रही है।

  7. सुधीर

    August 2, 2010 at 3:09 pm

    यशवंत जी. इन तीनों को सबक सिखाने का वक़्त है. ये पूरे मामले को वर्चुअल स्पेस बनाम इलेक्ट्रानिक मीडिया कर मामले को जेनेरालाईज करना चाहते हैं. ये तीनों दुष्ट हैं और प्रोपगेंडा करने में माहिर हैं. इनको सजा मिलनी चाहिए. ये धमकी क्या किसी की जान भी ले सकते हैं. दरअसल पत्रकार के रूप में ये भूखे दरिन्दे हैं.

  8. संजय सिंह

    August 2, 2010 at 3:15 pm

    विक्रम शाह ने क्या खूब लिखा है. आज़ाद के थ्री इडियटस की इसमें धज्जियाँ उड़ा दी गयी है. यशवंत जी . कहाँ आपने इसे कमेन्ट बॉक्स में छुपा कर रखा है. थोडा सजा – धजा के इन थ्री इडियट की बारात तो निकालिए.

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