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दुख-दर्द

ये है मीडिया वाले के प्रति मीडिया का रवैया

: घर में पड़ी डकैती की न किसी अखबार ने खबर छापी न किसी चैनल ने दिखाई : मनोज कुमार सहारा समय न्यूज चैनल में सीनियर नान लीनियर एडिटर हैं. परसों रात वे काम खत्म कर अपने घर लौटे तो देखा कि घर से सारा सामन गायब है. उनके घर में डकैती पड़ी थी. उन्होंने सूचना अपने चैनल और पुलिस को दी. देखते ही देखते कई चैनलों और अखबारों के लोग पहुंच गए. पुलिस के बड़े अफसर भी पहुंचे. सबने बाइट ली, बयान लिया, जानकारी ली और काफी देर तक छानबीन जांच के बाद चले गए. अगले दिन तक किसी चैनल ने न तो खबर दिखाई और न ही किसी अखबार में खबर प्रकाशित हुई. आहत मनोज ने भड़ास4मीडिया को फोन कर बताया कि मीडिया वाला होने के बावजूद उनके साथ मीडिया का रवैया बेहद खराब रहा.

<p style="text-align: justify;">: <strong>घर में पड़ी डकैती की न किसी अखबार ने खबर छापी न किसी चैनल ने दिखाई </strong>: मनोज कुमार सहारा समय न्यूज चैनल में सीनियर नान लीनियर एडिटर हैं. परसों रात वे काम खत्म कर अपने घर लौटे तो देखा कि घर से सारा सामन गायब है. उनके घर में डकैती पड़ी थी. उन्होंने सूचना अपने चैनल और पुलिस को दी. देखते ही देखते कई चैनलों और अखबारों के लोग पहुंच गए. पुलिस के बड़े अफसर भी पहुंचे. सबने बाइट ली, बयान लिया, जानकारी ली और काफी देर तक छानबीन जांच के बाद चले गए. अगले दिन तक किसी चैनल ने न तो खबर दिखाई और न ही किसी अखबार में खबर प्रकाशित हुई. आहत मनोज ने भड़ास4मीडिया को फोन कर बताया कि मीडिया वाला होने के बावजूद उनके साथ मीडिया का रवैया बेहद खराब रहा.</p> <p>

: घर में पड़ी डकैती की न किसी अखबार ने खबर छापी न किसी चैनल ने दिखाई : मनोज कुमार सहारा समय न्यूज चैनल में सीनियर नान लीनियर एडिटर हैं. परसों रात वे काम खत्म कर अपने घर लौटे तो देखा कि घर से सारा सामन गायब है. उनके घर में डकैती पड़ी थी. उन्होंने सूचना अपने चैनल और पुलिस को दी. देखते ही देखते कई चैनलों और अखबारों के लोग पहुंच गए. पुलिस के बड़े अफसर भी पहुंचे. सबने बाइट ली, बयान लिया, जानकारी ली और काफी देर तक छानबीन जांच के बाद चले गए. अगले दिन तक किसी चैनल ने न तो खबर दिखाई और न ही किसी अखबार में खबर प्रकाशित हुई. आहत मनोज ने भड़ास4मीडिया को फोन कर बताया कि मीडिया वाला होने के बावजूद उनके साथ मीडिया का रवैया बेहद खराब रहा.

मनोज दिल्ली में शाहदरा थाना क्षेत्र के मान सरोवर पार्क में रहते हैं. उनकी पत्नी बच्चे के साथ मायके चंडीगढ़ गई हुई हैं. घर पर कोई न था. करीब साढ़े तीन लाख की ज्वेलरी, 25 हजार नगद और अन्य कीमती सामान जूते कपड़े घड़ी वगैरह सब डकैत ले गए. मनोज के मुताबिक 7 लाख का नुकसान हुआ है उनका. मीडिया वाले अगर खबर चलाते, खबर प्रकाशित करते तो पुलिस पर डकैतों को पकड़ने का दबाव बनता और उनका सामान लौट सकता था. लेकिन उन्हें दुख हुआ कि उनके घर पड़ी डकैती की खबर को किसी ने तवज्जो नहीं दी. सभी चैनलों के लोग बाइट और विजुवल ले गए. सभी अखबारों के क्राइम रिपोर्टरों ने घटना को कवर किया. पर कहीं उनकी खबर दिखी नहीं. जो मीडियाकर्मी ड्यूटी पर रहा हो और घर जाए तो उसे सब कुछ लुटा मिले तो क्या ये खबर नहीं है? मनोज का कहना है कि उन्हें मीडिया के लोगों पर पूरा भरोसा है. अगर वे मेरी मदद करेंगे तो मुझे न्याय मिल सकेगा. आखिर एक मीडियाकर्मी अपने जीवन में जो कुछ पाता है वह उसके घर की जमा पूंजी ही तो है. अगर यही घर कोई उजाड़कर चला जाए तो वो कैसे जियेगा.

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0 Comments

  1. Bhupendra Pratibaddh

    August 21, 2010 at 8:44 am

    Manoj ji, yeh afsos media mein shashwat hai.apni khabar chhapna, kahna, ek dusare se bantana apmanjanak mana aur samjha jata hai. patrakar ko duniya jahan se uper ki chij samjha jata hai. dukh to yeh hai ki apni biradari mein apnepan, apsi samajh aur samvedana ka nitant abhav hai. apki jama punji luti aur biradari tamasha dekhkar laut gayi aur do line likhne mein kalam tut gayi to esase biradari ki apne hi logon ke prati udasinta aur alagav hi sabit hota hai. hamein apse puri sahanubhuti hai. es asamvedana ke alam mein hamari chahat hai ki kisi aur biradaran ke sath aisa na ho. biradaran jago aur apno ke dukh ke sathi bano, anyatha apne par ayegi to tamashayi hi nazar ayenge, madadgar nahin.
    – Bhupendra Pratibaddh, chandigarh

  2. rajiv

    August 21, 2010 at 10:32 am

    manoj bhai, apke ghar dakaiti hui, iska mujhe dukh hai. dakaito ke pakarne ka kam police hai, media ka nahi. media ka sahi hal dekhne ke liye Peepli live picture dekh lo. ab media ki khabaron ko log majak samjhane lage hain. apka byte nahi chala to ap us majak ka patra banane se bach gaye. unhe dhanayabad karo.

  3. सोनिया

    August 21, 2010 at 5:38 pm

    यही तो मीडिया की असलियत है। आज का मीडिया कुत्तों और बिल्लियों की कहानियों को खबर बनाना जानता है। लेकिन किसी साथी की पीड़ा में सहयोग के लिए खबर चला दे, या छाप दे तो हमारे अपनों के पेट में दर्द होने लगता है कि … अरे वो कहीं हीरो बन जाएगा। अपने साथी को उसकी तकलीफ की खबर की वजह से प्रचार मिल जाए तो तकलीफ … कैसा मीडिया है। ये तो यशवंत सिंह है, जो हम लोगों को भी खबर के लायक समझकर अपना पोर्यल हमारे लिए चला रहे हैं। वरना मीडिया में हर स्तर पर किसी की भी आपस में दो कौड़ी की भी इज्जत नहीं है। क्या करें… सिर्फ नौकर बनकर चुपचाप नौकरी करते रहो, हम अपने घर में ही जीरो हैं, कहीं भी पत्रकारिता का रौब नहीं चला सकते।

  4. govind goyal sriganganagar

    August 22, 2010 at 9:54 am

    ganganagar me bhee yahi hal hai.

  5. अशोक कुमार शर्मा

    August 25, 2010 at 2:06 pm

    मुझे याद है पायनीयर अखबार के मेरठ संवाददाता श्री एम्०सी०अग्रवाल का बरसों पहले जब वहाँ निधन हुआ तो उनकी अर्थी में कंधा बदलनेवाला तक नहीं मिल रहा था. हम चंद लोगों को सूरजकुंड शमसान तक लगभग कराहते हुए उनके पार्थिव शरीर को ले जाना पड़ा था.
    २- बरेली में जब दैनिक आज के स्थानीय संपादक गिरिजेश राय को रात के ढाई बजे दिल का दौरा पड़ा और सुबह डोक्टरों ने बिना परखे उन्हें मृत घोषित कर दिया तो उन्हें जिंदा बचाने की कोशिश में वहां के सिर्फ एक क्राइम रिपोर्टर तारिक ने साथ दिया. खुद दैनिक आज ने अपने संपादक के बारे में ना तो प्रमाणपत्र दिया और न खबर छापी. केवल यूएनआई की एक खबर के बूते ही मैने गिरिजेश राय को संपादक साबित किया और मेडिकल सहायता दिलाई.
    गिरिजेश राय आज भी जीवित हैं और गोरखपुर में रहते हैं.
    मीडिया वाकई निष्ठुर और बेरहम होता जा रहा है. इसके दुष्परिणाम भी उसे ही भुगतने हैं.

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