मीडिया वालों के सामने सारी सच्चाई उगली : मेरठ में दो हजार रुपये देकर एक अनाम से अखबार के पत्रकार बनकर लूट, ब्लैकमेलिंग करने वाले दो युवकों ने पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद जो जानकारियां दी, वह किसी भी मीडिया वाले को शर्मसार करने के लिए काफी है. नीचे दिए गए वीडियो को देखिए और सुनिए. पहले वीडियो में युवक बता रहा है कि वह किस तरह पैसे देकर पत्रकार बना और फिर वेश्याओं के यहां जाकर वीडियो बनाता था व उन्हें ब्लैकमेल करता था.
एक महिला अंजू गुप्ता का पर्स लूटते वक्त धरा गया यह पत्रकार अपनी बाइक पर बड़े बड़े अक्षरों में प्रेस लिखाकर चलता था. यह बाइक भी चोरी की निकली. मेरठ के थाना नौचंदी में पुलिस की गिरफ्त में खड़े इन युवाओं का कहना है कि वे गलत काम करने वाले कई लोगों का राज दुनिया को बताने की धमकी देकर पैसे ऐंठ चुके हैं. खुद को एक साप्ताहिक अखबार ‘अपराध क्यों’ का रिपोर्टर बता कर लोगों पर अपना रोब ग़ालिब किया करते थे.
दूसरे व तीसरे वीडियो में पुलिस का वर्जन है. महिला अंजू गुप्ता का बयान है. पकडे गए इन दोनों लुटेरे युवकों मोहित और रिंकू शर्मा की और कई करतूतें सामने आईं हैं. इनमे से रिंकू शर्मा बी.कॉम. का छात्र है लेकिन पढ़ाई छोड़कर वो कमाई के चक्कर में पड़ गया. पकड़े गये युवकों ने यह भी बताया कि वे दो हजार रुपये देकर इस अखबार के पत्रकार बने थे. इससे साफ है कि ये धंधा यहां ऊपर से नीचे तक चल रहा है.
·Ravindra Choudhary
March 6, 2010 at 2:33 am
यशवंत सहाब
मेरठ में पत्रकारिता की आड़ में वेश्याओं तक को ब्लैकमेल करने की घटना ज्यादा चौंकाने वाली नहीं है। हमारे यहां तो ऐसे लुटेरों की लंबी फहरिस्त है, जो पत्रकारिता की आड़ में दिन भर महेनत से कमाने वाले रेहड़ी वालों तक को भी नहीं बख्शते। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की फर्जी आईडी हाथ में लेकर घूमने वाले ऐसे लोगों की संख्या काफी अधिक है, जो दलाली करने तक में पीछे नहीं हैं। शराब क ये कथित पत्रकार मुफ्त में शौक फरमाते हैं।
पत्रकारिता के क्षेत्र में आज भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो इमानदारी के रास्ते पर चलते हुए इसे एक मिशन ही मानते हैं। लेकिन ऐसे लोग आज तमाम विपरीत परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर हैं। उनकी इमानदारी का लेबल ही उनके लिए सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। आलम यह है कि जो पत्रकार खुद को आदर्शवादी बनाए रखना चाहता है, आज उसके लिए परिवार पालना भी मुश्किल हो रहा है। मीडिया हाउसों के मालिक उनकी इमानदारी पर यह झांकने का प्रयास कतई नहीं करते कि सौदेबाजी से खुद को अलग रखने वाले ये आर्दश पत्रकार आज किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। हालांकि ऐसे पत्रकारों की संख्या बिकाऊ पत्रकारिता करने वाले लोगों की तुलना में कुछ फीसदी ही है। एसी गाड़ी और शानदार बंगलों में शाही ठाठ के साथ जिंदगी गुजारने वाले अधिकांश पत्रकार एक जर्नलिस्ट होने से ज्यादा व्यापारी बने हुए हैं। लुटेरों की तरह काम करने वाले ये सौदागर बड़े-बड़े डाके डालने के बावजूद अपना दामन पाक-साफ बताते फिरते हैं, जबकि इस क्षेत्र में ऐसे डकैतों की कमी भी नहीं है, जो स्ट्रिंगरों से अपना हिस्सा तक मांगने से बाज नहीं आते। ऐसे पत्रकारों की लंबी फेहरिस्त है, जो बड़े उद्योगपतियों की तरह ठाठ की जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनके बच्चे महंगी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नेताओं की चप्पलें उठाना उनकी फितरत में शूमार हो चुका है। ऐसे कथित पत्रकार एक ओर जहां नेताओं से खबरें प्रकाशित करने के नाम पर मोटा पैकेज हासिल करते हैं, वहीं अधिकारियों पर दबाव बनाकर अपने काले धंधों को चमकाने में भी कामयाब होते रहते हैं। कुछ समाचार पत्र तो ऐसे हैं, जो वेतन के नाम पर अपने पत्रकारों को सिर्फ पहचान पत्र व बाइलाइन खबरें देने तक ही सीमित हैं। ऐसे अखबारों के डेस्क प्रभारी भले ही पांच या दस हजार रुपए की नौकरी कर रहे हों, लेकिन उनके शाही ठाठ भी निराले हैं। पत्रकारिता का बंटाधार करने में कई टीवी चैनल भी पीछे नहीं हैं। स्ट्रिंगरों को पांच से दस हजार रुपए में आईडी देकर लूट के मैदान में उतारने वाले टीवी चैनल इस इमानदारी के पेशे को सबसे ज्यादा बेइमान बनाने में भूमिका निभा रहे हैं। चैनलों से फूटी कौड़ी तक नहीं मिलने के बावजूद इन चैनलों के स्ट्रिंगरों का गुजारा कैसे हो रहा है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।इमानदार अधिकारी ऐसे पत्रकारों की हकीकत जानकर उन्हें मुंह नहीं लगाते, जबकि भ्रष्ट अधिकारी ऐसे पत्रकारों के साथ दोस्ती करने में आगे रहते हैं। हैं। मुसीबत है, तो सिर्फ उन पत्रकारों की, जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने दामन को दागदार होने से बचाने के प्रयास में लगे हुए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में लगातार बढ़ती गंदगी को साफ करने के लिए ऐसे लोगों को चिंतन करना ही होगा, जो इस पेशे को बदमान होने से बचाने की दिशा में सार्थक प्रयास कर रहे हैं। नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब भ्रष्टाचारियों के साथ-साथ इमानदार पत्रकारों की छवि भी आम लोगों में पूरी तरह धूमिल हो जाएगी।
Ravindra Choudhary
March 6, 2010 at 1:37 am
Yashwant Ji Namaskar
Aaj ke samay me Anpadh aur jahil kism ke log patrakarta ki line me ghuskar is jansewa ke mishan ko badnam kar rahe hai.Jiske liye kaphi had tak Print Mediya aur electronik media nhi jimedar hai jo anpadh aur jahil ttha apradhik parvartti ke logo ko dhan ainthkar apna partinidhi banakar samaj ko lutne ka lisens pardan kar rahe hai jiski pariniti me meerut jaisi patrkaro ko sarmsar karne ki ghatna hoti hai jo patrkaro ke liye chintan ka vashay hai.aaj har kasbe shahar me eletronic tv aur print media ke nam par logo ko blackmail kiya ja raha hai aur sabhi imandar patrkaro ko bhi shak ki drashti se dekha jata hai aur nishpaksh patrkar ghar baithne ko majbur ho rahe hai.
Ravindra Choudhary
Deoband [Saharanpur]
9927958128
chandan
March 5, 2010 at 3:10 am
jo galt kaam kerta hai use sja milni chayie
chandan from punjab
EKHLAQUE KHAN
March 5, 2010 at 12:29 am
JIS SAPTAHIK AKHBAR NE REPORTER BANAYA THA USKO BHI KATGHARE ME KHARA KAREN. BINA JANCH PARTAL KR AISE LOGON KO PATRAKAR BANA KAR YE NEECH AKHBAR WALE PURI BIRADRI KO BADNAM KAR RAHE HAIN.
EKHLAQUE KHAN…….
saleem akhter siddiqui
March 3, 2010 at 8:26 am
आजकल जिसे देखों ‘पे्रस’ वाला होना चाहता है। आजकल ‘प्रेस’ होने वाला आसान भी बहुत हो गया है। किसी साप्ताहिक समाचार-पत्र के मालिक-सम्पादक को पांच सौ रुपए का नोट थमाएं और एक घंटे में आपके पास चमचाता हुई अखबार का आई-कार्ड आ जाएगा। इतने पैसे तो साधारण संवाद्दाता बनने के लगते हैं। चीफ रिपोर्टर या ब्यूरो चीफ बनना चाहते हैं तो जेब बहुत ज्यादा ढीली करनी पड़ती है। कार्ड हाथ में आने के बाद अब आपके घर में जितने भी वाहन हैं, सब पर शान से प्रेस लिखवाएं और सड़कों पर रौब गालिब करते घूमें। इससे कोई मतलब नहीं है कि आपको अपने हस्ताक्षर करने आते हैं या नहीं। कभी एक भी लाईन लिखी है या नहीं। आपके पास किसी अखबार का कार्ड है तो आप प्रेस वाले हैं। हद यह है कि गैर कानूनी काम करने वाले भी अपने पास दो-तीन अखबारों के कार्ड रखते हैं। पैसे देकर कार्ड बनाने वाले अखबारों के तथाकथित मालिक और सम्पादक भी अपन जान बचाने के लिए कार्ड के पीछे एक यह चेतावनी छाप देते हैं कि ‘यदि कार्ड धारक किसी गैरकाूनी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है तो उसका वह खुद जिम्मेदार होगा और उसी समय से उसका कार्ड निरस्त हो जाएगा।’ जिन अखबारों के नाम में ‘मानवाधिकार’ शब्द का प्रयोग हो तो उस अखबार के कार्ड की कीमत पांच से दस हजार रुपए तक हो सकती है। इसकी वजह यह है कि आप अखबार वाले के साथ ही मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हो जाते हैं। लोगों की आम धारणा है कि पुलिस और प्रशासन ‘प्रेस’ और ‘मानवाधिकार’ शब्द से बहुत खौफ खाते हैं। अब तो कुछ तथाकथित न्यूज चैनल भी ‘ब्यूरो चीफ’ बनाने के नाम पर दो लाख रुपए तक वसूल रहे हैं। न्यूज चैनल कभी दिखाई नहीं देता लेकिन उसके संवाददाता कैमरा और आईडी लेकर जरुर घूमते नजर आ जाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। बड़े अखबारों के एकाउंट सैक्शन, विज्ञापन सैक्शन और मशीनों पर अखबार छापने वाले वाले तकनीश्यिन भी अपने वाहनों पर धड़ल्ले से प्रेस लिखकर घूमते है। यहां तक की अखबार बांटने वाला हॉकर भी प्रेस शब्द का प्रयोग करते देखा जा सकता है। यही कारण है कि सड़कों पर चलने वाली प्रत्येक दूसरी या तीसरी मोटर साइकिल, स्कूटर और कार पर प्रेस लिखा नजर आ जाएगा। यकीन नहीं आता तो अपने शहर की किसी व्यस्त सड़क पर पांच-दस मिनट बाद खड़े होकर देख लें। कम-से-कम मेरठ की सड़कों का तो यही हाल है। ‘प्रेस’ से जुड़ने की लालसा के पीछे का कारण भी जान लीजिए। शहर में वाहनों की चैकिंग चल रही है तो वाहन पर प्रेस लिखा देखकर पुलिस वाला नजरअंदाज कर देता है। मोटर साइकिल पर तीन सवारी बैठाकर ले जाना आपका अधिकार हो जाता है, क्योंकि आप प्रेस से हैं। किसी को ब्लैकमेल करके भारी-भरकम पैसा कमाने का मौका भी हाथ आ सकता है। प्रेस की आड़ में थाने में दलाली भी की जा सकती है। देखा, है ना प्रेस वाला बनने में फायदा ही फायदा। तो आप कब बन रहे हैं, प्रेस वाले ?
CHANDAN GOSWAMI
March 3, 2010 at 11:44 am
yeh log patrkar nahi, aurat ki majburi ka fayda oothane wale DALAL hei,sharm aani chaaiea jis aurat ne enhe JANAM diea oosi aurt ko sare aam BLACKMAIL karte hei enhone kisi vashya ko nahi apni janam dene wali maaa rupi aurat ko blackmail kiea hei, thuuuuuu
awadhesh yadav *shimla*
March 3, 2010 at 9:30 pm
यशवन्त भाई,
बात दॊ साल पुरानी है, मॆरॆ एक अभिन्न मित्र नॆ अमर उजाला सॆ त्यागपत्र दॆनॆ कॆ बाद् मेरठ मॆ लान्च हॊ रहॆ हिन्दुस्तान कॊ ज्वाइन किया था, तब कुछ शुभचिन्तकॊ नॆ उन्हॆ नसीहत दॆतॆ हुए
कहा था… मेरठ जा रहॆ हॊ, अच्छी बात है, वास्तविक पत्रकारिता करनॆ का मौका मिलॆगा, इस पॆशॆ कॆ लिए [b]मेरठ की धरती काफी उपजाउ[/b] है, लॆकिन लाइफ मॆ तरक्की करनी है तॊ वहा तीन चीजॊ सॆ बचना. [b]पहला कन्या, दूसरा कुत्ता और तीसरा क्राइम रिपोर्टर.[/b]
दॊ सालॊ कॆ भीतर यह् नसीहत शत् प्रतिशत सच साबित हुई. मेरठ की कन्या अन्जु,प्रियका और शीबा सिरॊही कॆ रुप मॆ दॆखनॆ कॊ मिली. काजीपुर मॆ आदमखॊर कुत्तॆ कई मासूम बच्चॊ कॊ नॊचकर काल कॆ गाल मॆ पहुचा चुकॆ है… और अब क्राइम रिपोर्टर…
CHANDAN GOSWAM
March 3, 2010 at 11:19 pm
sir esme bite ke samay audio nahi baj raha hei plz check
Narender Vats
March 4, 2010 at 2:11 am
यहां तो रेहड़ीवालों तक को नहीं बख्शते भाई….
यशवंत भाई सहाब मेरठ में पत्रकारिता की आड़ में वेश्याओं तक को ब्लैकमेल करने की घटना ज्यादा चौंकाने वाली नहीं है। वेश्याओं के पास एक तरह से हराम की कमाई आती है। हमारे यहां तो ऐसे लुटेरों की लंबी फहरिस्त है, जो पत्रकारिता की आड़ में दिन भर महेनत से कमाने वाले रेहड़ी वालों तक को भी नहीं बख्शते। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की फर्जी आईडी हाथ में लेकर घूमने वाले ऐसे लोगों की संख्या काफी अधिक है, जो वेश्याओं की सप्लाई में दलाली करने तक में पीछे नहीं हैं। शराब की दुकानों से लेकर रेहडिय़ों तक पर पहुंचने वाले ये कथित पत्रकार चाट के पत्तों तक का मुफ्त में शौक फरमाते हैं।
पत्रकारिता के क्षेत्र में आज भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो इमानदारी के रास्ते पर चलते हुए इसे एक मिशन ही मानते हैं। लेकिन ऐसे लोग आज तमाम विपरीत परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर हैं। उनकी इमानदारी का लेबल ही उनके लिए सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। आलम यह है कि जो पत्रकार खुद को आदर्शवादी बनाए रखना चाहता है, आज उसके लिए परिवार पालना भी मुश्किल हो रहा है। मीडिया हाउसों के मालिक उनकी इमानदारी पर पीठ तो जरूर थपथपाते हैं, लेकिन यह झांकने का प्रयास कतई नहीं करते कि सौदेबाजी से खुद को अलग रखने वाले ये आर्दश पत्रकार आज किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। हालांकि ऐसे पत्रकारों की संख्या बिकाऊ पत्रकारिता करने वाले लोगों की तुलना में कुछ फीसदी ही है। एसी गाड़ी और शानदार बंगलों में शाही ठाठ के साथ जिंदगी गुजारने वाले अधिकांश पत्रकार एक जर्नलिस्ट होने से ज्यादा व्यापारी बने हुए हैं। बिना वेतन काम करने वाले स्ट्रिंगरों के खबर प्रकाशित करने के नाम पर सौ-पचास रुपए लेने की स्थिति बड़े सौदागरों को किसी भी सूरत में रास नहीं आती। लुटेरों की तरह काम करने वाले ये सौदागर बड़े-बड़े डाके डालने के बावजूद अपना दामन पाक-साफ बताते फिरते हैं, जबकि खर्चा निकालने के लिए सौ-पचास रुपए लेने वाले कस्बों के स्ट्रिंगर इनकी नजर में चोर होते हैं। इस क्षेत्र में ऐसे डकैतों की कमी भी नहीं है, जो स्ट्रिंगरों से अपना हिस्सा तक मांगने से बाज नहीं आते। ऐसे पत्रकारों की लंबी फेहरिस्त है, जो दस से बीस हजार रुपए मासिक होने के बावजूद बड़े उद्योगपतियों की तरह ठाठ की जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनके बच्चे महंगी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नेताओं की चप्पलें उठाना उनकी फितरत में शूमार हो चुका है। ऐसे कथित पत्रकार एक ओर जहां नेताओं से खबरें प्रकाशित करने के नाम पर मोटा पैकेज हासिल करते हैं, वहीं अधिकारियों पर दबाव बनाकर अपने काले धंधों को चमकाने में भी कामयाब होते रहते हैं। कुछ समाचार पत्र तो ऐसे हैं, जो वेतन के नाम पर अपने पत्रकारों को सिर्फ पहचान पत्र व बाइलाइन खबरें देने तक ही सीमित हैं। ऐसे अखबारों के डेस्क प्रभारी भले ही पांच या दस हजार रुपए की नौकरी कर रहे हों, लेकिन उनके शाही ठाठ भी निराले हैं। मतलब साफ है कि अपने रिपोर्टरों की खबरें प्रकाशित करने की ऐवज में ये डेस्क प्रभारी भी नजराना लेने में आगे रहते हैं। चुनावों के दौरान रिपोर्टर नेताओं व डेस्क प्रभारी के बीच डील कराने में भूमिका अदा करते हैं। जो रिपार्टर दलाली करने से इनकार कर देता है, उसकी खबरों का प्रकाशन रोक दिया जाता है।
पत्रकारिता का बंटाधार करने में कई टीवी चैनल भी पीछे नहीं हैं। स्ट्रिंगरों को पांच से दस हजार रुपए में आईडी देकर लूट के मैदान में उतारने वाले टीवी चैनल इस इमानदारी के पेशे को सबसे ज्यादा बेइमान बनाने में भूमिका निभा रहे हैं। चैनलों से फूटी कौड़ी तक नहीं मिलने के बावजूद इन चैनलों के स्ट्रिंगरों का गुजारा कैसे हो रहा है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। हाथ में चैनल की आईडी लेकर आईएएस और आपीएस से अटपटे सवाल करने वाले कई स्ट्रिंगर तो ऐसे हैं, जो शायद दसवीं कक्षा तक पास नहीं कर पाए। इमानदार अधिकारी ऐसे पत्रकारों की हकीकत जानकर उन्हें मुंह नहीं लगाते, जबकि भ्रष्ट अधिकारी ऐसे पत्रकारों के साथ दोस्ती करने में आगे रहते हैं। ऐसे में इन दोनों ही तरह के पत्रकारों की पांचों उंगलियां घी में होती हैं। मुसीबत है, तो सिर्फ उन पत्रकारों की, जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने दामन को दागदार होने से बचाने के प्रयास में लगे हुए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में लगातार बढ़ती गंदगी को साफ करने के लिए ऐसे लोगों को चिंतन करना ही होगा, जो इस पेशे को बदमान होने से बचाने की दिशा में सार्थक प्रयास कर रहे हैं। नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब भ्रष्टाचारियों के साथ-साथ इमानदार पत्रकारों की छवि भी आम लोगों में पूरी तरह धूमिल हो जाएगी।
k
March 4, 2010 at 12:13 am
ये हरामजादे हमारी क्या इमेज बना रहे हैं। प्रेस वालों को ही पुलिस से मिलकर ऐसे हवाई प्रेसगीरों पर लगाम लगानी चाहिए।
k
March 4, 2010 at 12:18 am
महिला का बयान सुनिए। वह कह रही है वह इसलिए अपनी जान की परवा किए बिना लुटेरों के पीछे दौड़ी क्योंकि बैग में उसके बच्चों के चश्मे थे, जिनका अगले दिन इक्जाम था। ऐसी होती है ममता।
Hemant Tyagi Journalist
March 4, 2010 at 12:31 am
aise na jaane kitne news paper hai jo identity card bechne ka dhanda kar rahe hai ek akhbaar nikal kar saikdon apradhiyon ko press likhkar janta ko darane dhamkaane blackmail karne ka adhikaar de dete hai.chapraasi banney ke liye bhi aadmi ka padha likha hona jaroori hota hai magar akhbaar nikalney aur reporter banney ke liye koi bhi qualification sunihchit nahi ki gayi hai.sarkar ko is disha mei kade niyam banane chahiye jis se ye pesh saaf rah sake.patrakaron ek jut hokar aise logon ko pakadkar chow raahe joote maarney chahiye.
T N MISHRA
March 4, 2010 at 12:32 am
[u][b]aise patrakar media ke naam per kalank hai. aise kameenon ko sakht saza milani chahiye.