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4 लोगों के लिए 30 फोटोग्राफर!

मेरठ मीडिया का भी जवाब नहीं। कल कमाल हो गया। चार लोगों को कवर करने के लिए तीस प्रेस फोटोग्राफर पहुंच गए। ऐसा भी नहीं था कि चार आदमी सेलिब्रेटी हों या वे चार आदमी कोई अजूबा करने वाले थे। मेरठ का एक स्थानीय संगठन ‘परिवार’ के नाम पर ‘तलवार’ भांजता रहता है। यह संगठन जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरुकता लाने का दावा करता है। साल भर सरकार को ज्ञापन भेजता है कि देश की जनसंख्या बढ़ने से रोकें।

<p style="text-align: justify;">मेरठ मीडिया का भी जवाब नहीं। कल कमाल हो गया। चार लोगों को कवर करने के लिए तीस प्रेस फोटोग्राफर पहुंच गए। ऐसा भी नहीं था कि चार आदमी सेलिब्रेटी हों या वे चार आदमी कोई अजूबा करने वाले थे। मेरठ का एक स्थानीय संगठन 'परिवार' के नाम पर 'तलवार' भांजता रहता है। यह संगठन जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरुकता लाने का दावा करता है। साल भर सरकार को ज्ञापन भेजता है कि देश की जनसंख्या बढ़ने से रोकें।</p>

मेरठ मीडिया का भी जवाब नहीं। कल कमाल हो गया। चार लोगों को कवर करने के लिए तीस प्रेस फोटोग्राफर पहुंच गए। ऐसा भी नहीं था कि चार आदमी सेलिब्रेटी हों या वे चार आदमी कोई अजूबा करने वाले थे। मेरठ का एक स्थानीय संगठन ‘परिवार’ के नाम पर ‘तलवार’ भांजता रहता है। यह संगठन जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरुकता लाने का दावा करता है। साल भर सरकार को ज्ञापन भेजता है कि देश की जनसंख्या बढ़ने से रोकें।

जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए यह संगठन चीन की जनसंख्या नियंत्रण नीति की वकालत करता है। इस संगठन के कार्यकर्ता 188वां ज्ञापन देने मेरठ के कलेक्ट्रट गए थे। मजे की बात यह है कि संगठन केवल चार ही कार्यकर्ता जुटा पाया था। मेरठ के मीडिया के लिए यह बात नई भी नहीं थी। उसे यह पता था कि इस संगठन के कार्यकर्ता चार-छह से ज्यादा कभी नहीं रहे। मीडिया को यह पता था कि यह संगठन हर रोज की तरह ज्ञापन में क्या लिखेगा। कुछ अखबारों ने तस्वीर के साथ खबर छापी भी। हालांकि ‘अमर उजाला’ ने खबर का हैडिंग यही दिया कि ‘4 लोगों के लिए 30 फोटोग्राफर’।

क्या यह हैरत की बात नहीं है कि सब कुछ जानने की बावजूद भी मेरठ के तीस फोटोग्राफर खबर कवर करने पहुंच गए। इस बात का राज यह है कि संगठन के ‘आजीवन’ अध्यक्ष महोदय के मेरठ मीडिया के बहुत अच्छे ‘सम्बन्ध’ हैं। इसलिए यदि अध्यक्ष महोदय यह कह दें कि मै आज फलां जगह जाकर ‘खासूंगा’ तो मीडिया खबर कवर करने पहुंच जाता है। शायद इसे ही ‘लाबिंयग’ कहते हैं।

दूसरी ओर मेरठ मीडिया का आलम यह है कि बहुत ही गम्भीर विषय पर होने वाले सेमिनार में भी कभी-कभी एक भी रिपोर्टर या फोटोग्राफर नहीं पहुंचता। पहुंचता है भी तो कार्यक्रम शुरु होने से पहले ही विज्ञप्ति मांगने लगता हैं। वे इतना भी नहीं सोचते कि कार्यक्रम से पहले विज्ञप्ति कैसे जारी हो सकती है। मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी सेमिनार की कवरेज किसी रिपोर्टर ने मौके पर बैठकर की हो। या तो पहले ही विज्ञप्ति मांग ली जाती है या कार्यक्रम के बाद आयोजकों से फोन पर बात करके काम चला लिया जाता है।

मीडिया की इसी हरकत की वजह से अब आयोजक पहले ही विज्ञप्ति तैयार कर लेते हैं। इससे कभी-कभी बहुत ही हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती है। कार्यक्रम में कुछ बोला जाता है और अखबारों में कुछ छपता है। कोई वक्ता आया ही नही, लेकिन न आने वाले वक्ता का वक्तव्य भी छप जाता है। जो आया उसका वक्तव्य गोल हो जाता है।

मेरठ से सलीम अख्तर सिद्दीक़ी की रिपोर्ट

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0 Comments

  1. markanday mani gkp

    July 17, 2010 at 4:01 pm

    agar khabar choot jati to sampadak class le laleta. rahi baat 4logo ki to photographar ne nahi kaha hoga ki 4 logo ko ana hai.

  2. एक मित्र

    July 17, 2010 at 4:46 pm

    सत्‍यवचन महाराज…अब ये भी बताईए कि रेड लाइट एरिया से उगाही करने वालों को कैसे हीरो बना रहा है।

  3. Saleem saifi

    July 17, 2010 at 7:51 pm

    Good, Ab Yahi sahi

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