Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

जवाब हम देंगे (1)

कुमार संजय सिंहस्ट्रिंगरों का माफियानुमा दबदबा और मृणाल जी की हिटलरी !!

दैनिक हिंदुस्तान की प्रमुख संपादक मृणाल पांडेय का संपादकीय लेख पढ़कर ही लगा था कि इसका जवाब लिखना बेहद जरूरी है। मैंने लिखकर रोजी रोटी चलाने की कोशिश की थी पर मामला जमा नहीं और मुफ्त में लिखने का शौक या छपास रोग रहा नहीं। इसलिए लिखना हो नहीं पाया। पर भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह ने मानो चुनौती दी है कि मृणाल पांडेय को जवाब देना बहुत मुश्किल है।

कुमार संजय सिंह

कुमार संजय सिंहस्ट्रिंगरों का माफियानुमा दबदबा और मृणाल जी की हिटलरी !!

दैनिक हिंदुस्तान की प्रमुख संपादक मृणाल पांडेय का संपादकीय लेख पढ़कर ही लगा था कि इसका जवाब लिखना बेहद जरूरी है। मैंने लिखकर रोजी रोटी चलाने की कोशिश की थी पर मामला जमा नहीं और मुफ्त में लिखने का शौक या छपास रोग रहा नहीं। इसलिए लिखना हो नहीं पाया। पर भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह ने मानो चुनौती दी है कि मृणाल पांडेय को जवाब देना बहुत मुश्किल है।

(जानता हूं कोई तीर नहीं मारने जा रहा पर मृणाल जी ने मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मारा है तो जितना संभव और मौका है, काट-बकोट लूं। उन्होंने तो जो करना था सो कर ही लिया है)। मृणाल जी को मैंने पहले कभी नहीं पढ़ा है क्योंकि फिक्शन में मेरी दिलचस्पी नहीं रही। मृणाल पांडेय ने एनडीटीवी से नौकरी छोड़ने के बाद वहां के हालात पर एक फिक्शन लिखा था। फिक्शन इसलिए क्योंकि सच को साफ-साफ कहने-लिखने का साहस उनमें न  था। इसलिए सारी बातें अमूर्तता और इशारों-इशारों से कहने की कोशिश की। एक और चीज है, लिखे से कमाई भी हो जाती है इसलिए लिखना छोड़ा भी नहीं जा सकता। और लिखने के लिए कुछ न कुछ लिखना है तो उन्होंने यह लेख भी दे मारा। सच को फिक्शन की शक्ल में लिखकर खुद मानहानि से बचने का रास्ता अपना चुकी मृणालजी को सच कहने वाले पसंद नहीं हैं, तभी तो उन्होंने अपने लेख में विश्वव्यापी मंदी से शुरू करके बदलती अखबारी दुनिया और पत्रकारिता की चुनौतियां विषय पर लेख लिखकर उन्होंने वही किया है जो उनके शब्दों में, ..कुछेक विवादास्पद पत्रकारों ने ब्लॉग जगत की राह पकड़कर … और अपुष्ट खबरें छापकर …. किया है।

मृणाल पांडे को विश्वव्यापी मंदी और इस कारण दुनिया भर के अखबारों की हुई दुर्दशा की चिन्ता के साथ-साथ इस बात की भी चिन्ता है कि हिन्दी पत्रकार रूपी एक मछली भी पूरे तालाब को गंदा कर सकती है और उन्होंने बताया है कि हमारे यहां आम जनता के बीच भाषायी पत्रकारों की छवि बहुत उज्ज्वल या आदर योग्य नहीं है। पर वे यह नहीं बतातीं कि इसे ठीक करने के लिए वे क्या कर रही हैं या क्या किया है। बहुत ही चलताऊ अंदाज में उन्होंने हिन्दी पत्रकारों को कोसा है पर इससे भाषायी पत्रकारिता की नकारात्मक छवि कैसे ठीक होगी, यह नहीं समझ आ रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स को रोजाना के कामकाज चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा, यह तो उन्होंने बताया है पर यह नहीं बताया कि हिन्दुस्तान से बेरोजगार हुए लोग को कर्ज भी मिल पा रहा है कि नहीं।

विवादास्पद पत्रकारों (में से एक) ने अगर अपने ब्लॉग पर (जिसका नाम ही गॉशिप अड्डा है) यह लिख दिया कि हिन्दुस्तान समूह के मालिक के निधन के बावजूद लखनऊ में पार्टी मनी या हिन्दुस्तान टाइम्स ने उनकी जगह किसी और की फोटो छाप दी तो इसमें गलत क्या है। इससे भाषायी पत्रकारिता की नकारात्मक छवि भी कहां आगे बढ़ पाई। यह महानता तो अंग्रेजी के अखबार की थी। इसी तरह शैलबाला मामले की सूचना देकर भड़ास4मीडिया ने क्या गलत किया। उसने तो उस सपने की खबर भी दी जो हिन्दुस्तान वालों को पहले ही आ गई थी कि शैलबाला नौकरी से निकाले जाने के बाद धकियाई जाएंगी और धकियाने वालों के खिलाफ थाने जाएंगी

इसी तरह, रचना वर्मा ने अगर आपकी दी सलाह – परेशानी है तो नौकरी छोड़ दो, को सार्वजनिक करके भाषायी पत्रकारिता की नकारात्मक छवि को आगे बढ़ाया है तो इसका श्रेय आपको ही है। आपने अंग्रेजी की एक महिला टीवी पत्रकार के खिलाफ ब्लॉग पर आपत्तिजनक भाषा में अभियान चलाने के मामले का जिक्र किया है। संबंधित पत्रकार और उसके संस्थान ने उससे माफी मंगवा ली, उसने पोस्ट हटा ली। उसकी थू-थू हो गई। बाकियों को सीख भी मिल गई होगी। अब क्या आप उसकी जान लेंगी। इस मामले का हवाला देकर आप क्या कहना चाहती हैं। इसे कोई भी सही नहीं कहेगा और किसी को ऐसी आजादी नहीं चाहिए। लेकिन  किसी एक ब्लॉगर ने ऐसा किया इसलिए ब्लॉगिंग ही बंद कराने की आपकी इच्छा खतरनाक है।

अगर उमेश जोशी ने लिखा है कि प्रभाष जोशी की भाषा से उनके दंभ, क्रूरता और रागद्वेष का पता चलता है तो क्या यह कोई नई बात है। और अगर प्रभाष जोशी ने इसका प्रतिकार नहीं किया तो क्या उनके शालीन मौन के ऊल जलूल अर्थ निकाले जा सकते हैं। मृणाल पांडेय ऐसा मानती हों तो मानें पर उनसे सहमत होने का कोई कारण नहीं है। दूसरी ओर, संपादक पत्रकार जब सार्वजनिक जीवन जीने वालों की निजी जिन्दगी में झांकते और झांकने का अधिकार व आजादी चाहते हैं तो क्या संपादकों को इसके लिए खुद तैयार नहीं होना चाहिए।

आप अपने लिखे से अपनी जो छवि बनाती हैं उसके आधार पर कितने युवा लोग पत्रकार बनने का फैसला करते हैं, आपके मातहत आपके साथ काम करने के लिए लालायित रहते हैं और कई बार जब उन्हें आपके मातहत आकर पता चलता है कि असल में आप वो नहीं हैं जो लबादा आपने पहन रखा है तो उनके मन पर क्या बीतती है, उनके दिल-दिमाग में क्या होता है, इसकी कल्पना कभी की है आपने। प्रभाष जोशी को महान पत्रकार मानकर कितने ही लोग पत्रकार बन गए। अपने कैरियर के संबंध में महत्त्वपूर्ण निर्णय कर लिया पर समय निकल जाने के बाद उनकी यह राय मालूम हुई कि ज्यादा पैसे देने से कोई अच्छा शीर्षक नहीं लगा सकता या अच्छी कविता नहीं लिख सकता। यह उनकी राय है। सार्वजनिक है। इस राय के लिए उन्हें अच्छा संपादक कहा जा सकता है पर यह भी सच है कि पैसे ठीक न मिलें तो अच्छा शीर्षक लगाने वाला शीर्षक लगाता ही रहेगा, यह जरूरी नहीं है।

इसलिए आप यानी ऊंचे पद पर बैठे वरिष्ठ पत्रकार या नागरिक कैसे हैं, यह जानना उनका हक है जो ऐसे लोगों के प्रशंसक हैं और अगर कोई यह काम कर रहा है तो उसके खिलाफ मानहानि कानून और सत्ता, शक्ति का उपयोग करके आप कोई महानता नहीं कर रही हैं। भाषायी पत्रकारिता की नकारात्मक छवि को आगे बढ़ने से रोकने के लिए मानहानि कानून का सहारा लेने की बजाय निन्दक नियरे राखिए आंगन कुटि छवाय में विश्वास कीजिए – सबका भला होगा। अगर आपमें पत्रकारिता को धंधई पटरी पर लाने की स्वस्थ इच्छा वाकई है तो उन घोटालों और गड़बड़ियों पर भी नजर डालिए जो मालिकान कर रहे हैं और कुछेक संपादक भी। मुफ्त में काम करने वाले स्ट्रिंगरों को कैसे रखा और हटाया जाता है, सब जानते हैं। ऐसे में वे क्या माफियानुमा दबदबा बनाएंगे और क्या पानी मिलाएंगे। वैसे भी, बेचारे तो जरा सा ही दूध बेच पाते हैं उसमें कितना पानी मिला लेंगे। उनकी चिन्ता छोड़िए।


लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं। पत्रकारिता को बाय-बाय बोलने के बाद वे इन दिनों अनुवाद का काम बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। शौकिया तौर पर मीडिया की खबरों के एक ब्लाग खबरी अड्डा का संचालन भी करते हैं। संजय से संपर्क करने के लिए उन्हें [email protected] पर मेल कर सकते हैं या फिर 09810830265 पर काल कर सकते हैं।
Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement