रोज की तरह मंगलवार सुबह भी चैनल के लिए खबरों के काम में लगा था… नई खबरों, घटनाओं, आइडियाज, पर बात करने में जुटा हुआ था…… दिमाग में कई विचार उमड़-घुमड़ रहे थे… अचानक मोबाइल की घंटी बजी… सुबह-सुबह कई रिपोर्टरों को फोन खड़का चुका था… लगा कुछ नया माल मिलने वाला है… लेकिन दूसरी तरफ एक वरिष्ठ लाइन पर थे… बताया कि हिन्दुसतान टाइम्स, रांची में काम कर रहे एक सीनियर जर्नलिस्ट की भोपाल के पास सड़क दुर्घटना में मौत हो गई है… हादसे में उनकी पत्नी और साथ सफर कर रहे साथी पत्रकार भी नहीं बचे… चाहें तो खबर ब्रेक करवा सकते हैं… सुनकर पलभर के लिए सांस रुक गई…
कौन… सहसा ही मेरे मुंह से निकल पड़ा….
अक्षय कुमार और उनकी पत्नी… रांची में हिन्दुस्तान टाइम्स के प्रभारी थे… उनका जवाब था…
अ..अ..अ अक्षय… मैं उनको जानता हूं… कब हुआ ये…
एक ही पल में अतीत के कई दृश्य आंखों के सामने तैरने लगे…एक पल को फिर विश्वास नहीं हुआ कि ये वही अक्षय हैं, जो मेरे अजीज हैं… खुद को संभाला… न्यूज रूम में शोर-शराबा पहले की ही तरह जारी था… अक्षयजी के बारे में सुनकर मानो काठ मार गया था… दिल को किसी भी तरह खबर पर यकीन नहीं हो रहा था… इसी उधेड़बुन में न्यूजरूम से बाहर निकल गैलरी में आ गया…
आखिर ऐसा कैसे हो सकता है… अक्षयजी भला भोपाल क्यों आने लगे… यही सोचता हुआ रांची हिन्दुस्तान टाइम्स के एक वरिष्ठ का नंबर डायल कर दिया… बहुत डरते-डरते उनसे पूछा कि क्या आपको रांची यूनिट से किसी दुखद समाचार की सूचना है… और फिर जैसे-जैसे उनका जवाब मिलता गया, कलेजा बैठता गया… आखिर अनहोनी सच साबित हुई..
आखिर भगवान ऐसा क्यों करता है… अक्षयजी तो युवा थे… अभी उन्हें बहुत कुछ करना था… यही सब सोच रहा था, तभी न्यूज रूम के साथी का फोन आया…सर, कुछ स्क्रिप्ट्स पड़ी हैं…आप देख लें तो रिलीज कर दें…
हां, आता हूं… कहकर फोन काट दिया… न्यूजरूम में पहले की तरह तेजी थी… फिर याद आया, खबर ब्रेक करनी है…भई ये खबर ब्रेक कर दो…”दो पत्रकारों की सड़क दुघ्र्टना में मौत”…और खबर ब्रेक हो गई..
लेकिन अक्षयजी मेरे लिए खबर नहीं थे…वो तो एक जीते-जागते इंसान थे, जो बहुत कम मुलाकातों में ही मेरे दोस्त बन गए थे…
मुझे याद है, मैं जब भी रांची एचटी आफिस गया, तो अक्षयजी के केबिन के सामने से ही गुजरकर हिन्दुस्तान दैनिक के संपादकीय विभाग तक जा सकता था… आते-जाते वक्त अगर वो सीट पर होते थे तो नजरें दो-चार हो ही जाती थी और चाहे मैं कितनी ही जल्दी में क्यों नहीं रहता था, उनसे दुआ-सलाम करना जरूरी था… एक बार तो उन्होंने मजाक में कह दिया कि आप काफी देर से मेरे पास बैठे हैं… कहीं हिन्दी विभाग के आपके वरिष्ठ नाराज न हो जाएं और हम दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े…
मैंने अक्षयजी को सदा मुस्कुराते हुए ही देखा.. हालांकि मेरी उनसे मुलाकात कम ही हो पाई… लेकिन फोन पर हम बातचीत कर लेते थे… ज्यादातर खबरों के सिलसिले में… खासकर जब उन्हें धनबाद प्रिंट लोकेशन के दायरे में आने वाले इलाकों की खबरों के बारे में जानना होता था… लेकिन उस बातचीत में भी आत्मीयता होती थी… हम एक-दूसरे का हाल-चाल पूछ लेते थे…
यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि अक्षयजी काम के मामले में जितने प्रोफेशनल थे, उतने ही अच्छे इंसान भी थे… एक बार धनबाद हिन्दुस्तान में डेस्क पर काम करने वाले एक स्ट्रिंगर ने एक दिन अचानक आकर मुझसे कहा कि सर मैं इस्तीफा दे रहा हूं… जब मैने पूछा कि कहां जा रहे हैं तो उन्होंने विनम्रता से बताया कि धनबाद यूनिट में ही संवाददाता के रूप में एचटी ज्वाइन कर रहा हूं.. पैसे अच्छे मिल रहे हैं… मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी और जाने दिया… लेकिन ये सोचता रहा कि एक ही कंपनी के अंदर एक व्यकित हिन्दुस्तान छोड़कर एचटी जा रहा है, वह भी धनबाद में ही.. लेकिन उनके चयन से पहले एचटी वालों ने मुझसे क्यों नहीं पूछा कि हम आपके एक आदमी को अपने साथ लाना चाह रहे हैं… आपको कोई आपत्ति तो नहीं…. सोच रहा था कि संबंधित स्ट्रिंगर की नियुक्ति तो अक्षयजी की सहमति से ही हुई है… आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया… जब रांची में उनसे मुलाकात हुई तो पूछा कि आप तो अपनी ही कंपनी में तोड़फोड़ करने में लगे हैं.. हमारे एक आदमी को अपने साथ ले आए और मुझे बताया तक नहीं.. मुझसे पूछ तो लिया होता… सुनकर वो हैरान थे…
बार-बार कह रहे थे कि नदीम भाई मुझे नहीं मालूम ऐसा कैसे हुआ… अगर मुझे जरा भी पता होता कि संबंधित व्यक्ति हिन्दुस्तान धनबाद में काम कर रहा है तो मैं उसे एचटी धनबाद में आपकी सहमति के बगैर कैसे ला सकता था भला… मुझसे जरूर जानकारी छुपाई गई है… आप कहें तो मैं कल ही उस स्ट्रिंगर को अपने यहां से रिलीज कर देता हूं… मैंने उनसे सिर्फ इतना कहा कि आप देख लें… आखिर ये सब हुआ कैसे…
जब उन्होंने छानबीन की तो बात सच निकली…उनके चेहरे के हाव-भाव बता रहे थे कि वे परेशान थे… फिर एक लंबी सांस लेकर बोले.. नदीम भाई, आप ही बताइए, इस मामले में क्या करें… एक्शन लेना चाहिए या नहीं… गलती तो हो गई है, इसका मुझे दुख है लेकिन किसी की नौकरी……..
मैंने कहा कि आपको जो लग रहा है, वही मुझे भी लग रहा है…सो जाने दीजिए… बस बात मन में खटक रही थी, इसीलिए आपसे जिक्र किया…
अक्षयजी काम के सिलसिले में कभी-कभी धनबाद आते रहते थे…वो जब भी धनबाद आते तो हम दोनों का एक-दूसरे से मिलने का वादा रहता था…लेकिन हर बार ऐसा संयोग रहा कि धनबाद में हम कभी मिल नहीं पाए….कभी उनकी व्यस्तता रहती थी तो कभी मेरी…
जब हिन्दुस्तान छोड़कर रायपुर आया, तो भागमभाग में अक्षयजी से बात नहीं कर पाया। उन्हें बता भी नहीं पाया…हमेशा सोचता रहा कि कल बात करूंगा और कल बात करूंगा लेकिन अब वो कल कभी नहीं आएगा…यह बात मुझे हमेशा सालेगी…. आज दिनभर यही सोचता रहा कि हम जो आपाधापी, कैरियर, पैसा, नाम-शोहरत के पीछे भाग रहे हैं, वो आखिर क्या है… एक छलावा ही तो है…. रिमोट तो ऊपर है… जिस दिन उसकी मरजी होगी, स्विच आफ का बटन दब जाएगा… फिर क्या होगा… आखिर ये हायतौबा क्यों… क्यों हम काम में इतने मसरूफ हो जाते हैं कि हमारे पास अपनों से बात करने का भी वक्त नहीं होता…लेकिन इस बात की भी क्या गारंटी है कि इतना सोचने के बाद भी ये गलती हम दोबारा नहीं करेंगे….
लेखक नदीम अख्तर जी समूह के रीजनल न्यूज चैनल ‘जी 24 घंटे छत्तीसगढ़’ के रायपुर मुख्यालय में बतौर असाइनमेंट एडिटर कार्यरत हैं.