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माओवादियों का गांधीवादी प्रयोग

[caption id="attachment_17301" align="alignleft" width="241"]ऑपरेशन ग्रीन हंट :  पहले यहाँ आदिवासी घर था ऑपरेशन ग्रीन हंट : पहले यहाँ आदिवासी घर था [/caption]यह अदभुत तो नहीं, आश्चर्यजनक जरूर है। साथ ही चिंतलनार में छह दर्जन से अधिक सुरक्षाबलों की हत्या के बाद यह खबर सुकून देने वाली है। सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है कि माओवादियों ने गांधीवादी प्रयोग शुरू कर दिये हैं, पर यह सच है।

ऑपरेशन ग्रीन हंट : पहले यहाँ आदिवासी घर था

ऑपरेशन ग्रीन हंट :  पहले यहाँ आदिवासी घर था

ऑपरेशन ग्रीन हंट : पहले यहाँ आदिवासी घर था

यह अदभुत तो नहीं, आश्चर्यजनक जरूर है। साथ ही चिंतलनार में छह दर्जन से अधिक सुरक्षाबलों की हत्या के बाद यह खबर सुकून देने वाली है। सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है कि माओवादियों ने गांधीवादी प्रयोग शुरू कर दिये हैं, पर यह सच है।

यह उतना बड़ा सच है जितना कि चिंतलनार हमले से पहले माओवादियों द्वारा आसपास के दस गांवों में किया गया सर्वे। इस सर्वे में पाया कि महीने दिन के भीतर वहां 70 से अधिक महिलाओं का सुरक्षाबलों ने बलात्कार किया और गांव के गांव फूंक डाले। माओवादियों के नेता गुड्सा उसेंडी के इस बयान को लिखने के साथ ही हो सकता है कि मैं ‘खूनी दरिंदों’ का हमसफर मान लिया जाऊं। हो सकता है उन 70 महिलाओं के साथ हुई हिंसा को माओवादी दुष्प्रचार मान लिया जाये। ठीक उसी तरह जिस तरह से पिछले नवंबर से लेकर अब तक 107 हत्याओं की लिस्ट लेकर घूम रहे आदिवासियों की दिल्ली से लेकर दंतेवाड़ा तक कोई सुनने वाला नहीं है। वे अभी-अभी दिल्ली स्थित कांस्टिच्यूशन क्लब में ‘इंडिपेंडेंट पीपुल्स ट्रिब्यूनल’ की तीनदिनी बैठक में दंतेवाड़ा का हालात बताने आये भी थे। मगर उनको चिंता यह सताये जा रही थी कि यहां से जाने के बाद दंतेवाड़ा से अपने गांव सकुशल पहुंच पायेंगे कि नहीं।

अब मूल मुद्दे पर आयें तो सुरक्षा बलों के मुकाबले में भारी जान-माल गंवा रहे माओवादी और उनकी समर्थक जनता ने झारखंड में संघर्ष का एक नया प्रयोग किया है। सरकार कि घोषणा के मुताबिक झारखंड के 22 में से अठारह जिले माओवाद प्रभावित हैं। प्रभावित जिलों में से एक खूंटी है। बाकी जिलों की तरह वहां भी केंद्र सरकार की मदद से राज्य सरकार आपरेशन ग्रीनहंट चला रही है। रांची से लगभग पचास किलोमीटर दूर जिले के अड़की थाना क्षेत्र में जब लोगों ने आपरेशन का हल्ला सुना तो, सुरक्षा बलों के अत्याचारों से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय में जुट गये। उन्हीं में से चार गांवों के लोगों ने तय किया कि क्यों न जब तक आपरेशन हो तब तक हम थाने ही में रहें और जब सुरक्षा बल आपरेशन कर लौट आयें तो हम वापस गांव जायें।

फिर क्या था, इन गांवों के लोग इकठ्ठा होकर अपनी ढोर-डंगर, सामान और मुर्गे-मुर्गियां लेकर भोर में ही अड़की थाना परिसर पहुंच गये और वहां डेरा डाल लिया। पुलिस के लिए यह अचंभित करने वाला था। पुलिस अधिकारियों के पूछने पर लोगों ने बताया कि आज हमारे गांवों में आपरेशन ग्रीन हंट होना है इसलिए पहले ही हम लोग थाने आ गये। जो जांच-पड़ताल करनी है, जिन माओवादियों को पकड़ने हमारे गांव जाना है, यहीं पहचान कर लीजिए।

माओवादी इलाकों में चल रहे आपरेशन से त्रस्त जनता के बीच का यह सामान्य अनुभव है कि ग्रामीणों पर सुरक्षा बल माओवादी या समर्थक होने का आरोप लगाकर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं। जिससे बचने के लिए लोग भागकर जंगलों में जाते हैं। वैसे में सुरक्षा बलों की निगाह किसी पर पड़ गयी तो गोली मार देते हैं, नहीं तो माओवादी बताकर प्रताड़ित करते हैं। कुछ नहीं मिलने पर गांव के गांव फंकने में भी वह नहीं हिचकते। जाहिर है यह अनुभव अड़की थाना क्षेत्र के उन ग्रामीणों का भी रहा होगा जो डेरा डाल चुके थे।

ग्रामीणों ने पुलिस वालों  को यह भी सुझाव दिया कि अगर आप लोगों को हम लोगों की बात में कोई फरेब नजर आता है तो, हमारे गांवों   में जांच कर आइये। जब तक आप लोग वापस नहीं आते, तब तक हम लोग यहीं थाने में ही रहेंगे। बस गांव वालों ने यह मांग रखी कि हमारे खाने-पीने का इंतजाम कर दिया जाये, जिससे सुरक्षा बल आराम से दो-चार दिन तक अभियान चला सके।

कल तक जो लोग सुरक्षा बलों के डर से भागे फिरते थे वे आज थाने में बेहद संतुष्ट होकर इत्मीनान से बैठे हुए थे, जबकि पुलिस की घिग्घी बंधी हुई थी कि कैसे वह लोगों को वापस गांवों में भेजे। आखिरकार बहुत समझाने-बुझाने और इस आश्वासन पर कि ‘आपके गांवों में कोई आपरेशन नहीं चलाया जायेगा’ ग्रामीण वापस अपने गांव लौटे। उस दिन ग्रामीणों के पास सुरक्षा बलों से मुकाबले के लिए हथियार तो नहीं थे, मगर उन्होंने जो संघर्ष का तरीका अख्तियार किया था, वह हमेशा ही हथियार की हर राजनीति पर भारी रहा है और रहेगा। अब देखना है कि सरकार माओवादियों के इस गांधीवादी प्रयोग पर क्या प्रतिक्रिया करती है।

अजय प्रकाश के जनज्वार ब्लाग से साभार

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0 Comments

  1. brijesh singh

    April 17, 2010 at 1:53 pm

    ajay prakash force ko badnaam mat karo. yeh tumhare muh se accha nahi lag raha hea

  2. om prakash shukla

    April 17, 2010 at 6:23 pm

    ajai ji bahut badhia artcle likha hai,adiwasioke samne yah samsya bakai gambhir hai ki surakcha balo ki talshi abhian ka samana kaise kare Is tarah ke prayasso ki adhik se adhik prachar milana chahie,jisase in garib adivasioko dohari mar se rahat mil sake.Kyoki chidumrum ji ne ape dal tatha kai mukhya mantrio aur sahyogi dalo ki upekcha ker apna vyactigat agenda lagu ker rahe hai.Opration green hut ko kabulne ko bhi taiyar nahi hai ki aisa koi abhiyan chalaya ja raha hai,unaka kahana hai ki yah midea ki upaj hai ,isi se jahir hai ki we jo ker rahe hai vah wo nahi hai jo dikh raha hai baran wah tamam is abhiya ka birodh karne walo ki alochana ko samarthan deta hai ki adiwasio ko bagar uchit muawaja tatha vyavastha kiye unhe unke jamin se khdedane ka hi mamla hai aur yah sab Vedanta,Pasco,TataMittal etc. ke li sansadhan jutane ke liye kiya ja raha hai.Yah isase bhi sabit hata hai ki ab sarakar jinaki jamin ja rahi hai unhe 26% hisedari dene ki bat bhi karane lagi hai.Ap isi tarah in samasyao per likhte rahiye aj bahut jaruri hi gaya hai kyo ki khaye,piye aghye log ke liye to bhukh hona hi gali ki tarah hai. ek bar fir badhai swikare.

  3. subhash singh

    April 17, 2010 at 7:41 pm

    माना कि नक्सलवाद सामाजिक और आर्थिक विषमता की उपज है और सरकार को उससे निपटने के लिए गैर बराबरी की समाज व्यवस्था को खत्म करनी चाहिए लेकिन साथ ही यह भी सच है कि सामाजिक और आर्थिक बराबरी लाने के नाम पर नक्सलवादी गरीबों का उद्धार करने की बजाय उनका इस्तेमाल सुरक्षा बलों के खिलाफ बेढंगे तरीके से कर रहे हैं। क्या उन्हें नहीं मालूम है कि सुरक्षा बलों के जवान भी किसी परिवार के हैं और ऐसे परिवार मध्यवर्ग के ही हैं। संभव है कि अति सुदूर रहने के कारण किसी जवान ने किसी के साथ ज्यादती की हो लेकिन यह मानना असंभव है कि सामूहिक रूप से वे गांववालों पर अन्याय और अनाचार करते हैं। नक्सलियों के समर्थन में अति उत्साह दिखाने की जरूरत नहीं है। जरूरत है उनसे लड़ने की।

  4. Shikha Raj.

    April 18, 2010 at 10:43 am

    Ajay, Tumhare es emagine story ko padh kar bahut hasi aai. Farzi photographs lagakar caption likhte ho. Chintalnar (Tadmetla) ki ghatna ne tumhare jaise soch rakhne wale hazaro logo ki mansikta badal di, Par pata nahi tumhare vichar kaise nahi badle. Tumne likha hai ki 107 hatyaon ki list lekar DELHI me ghumne wale Dantewada ke triblo ki koi sunne wala nahi tha.
    lag raha hai ki tumhe kuchh hath nahi laga. Kyonki hath me list thamaye en aadiwashiyo ko Delhi me ghumane walo ke gal to yar lal ho chuke hai. tum kaise pichhd gaye. Chalo lage raho, aisi hi jhuthi kahaniya gadhte raho. Ek na ek din aapne makshad me jarur kamyab ho jayoge…..

  5. Rajesh Shukla

    April 18, 2010 at 4:08 pm

    Aakhir hum es baat ko kab samajh payenge ki ye adiwasi jarurat se jyada chalak aur dhurt hai.. ye bechre bankar hamare desh ko ghun ki tarh chst rahe hai…Hum in ke kriykalap per bariki se gaur kari To pata chalta hai ki INKI gatvidhia bhi kamobesh KASHMIRI ATANKIO ki tarah hai. Ye AADIWASI hi inhe surakshabalo ke khilaf prasai dete hai… Apne aashni se SURAKSHABALON par AAROP laga diya lekin kabhi kya unke baare me socha jo ainke dwaraSAHID kiye gaye hai.. Jo apne ghar se door dusari jagah pe dusare logo ke liye jaan se rahe hai….

  6. rashi bansal

    April 19, 2010 at 4:15 am

    yah ajeebogareeb hai ki jab aadivasiyon ke ghar jalaye jate hain to unke photo dekhkar shikha jaise logon ko farziwada lagata hai lekin jab force ke saath koi durghatna hoti hai ya sarkari jan mal ka nuksaan hota hai to deshbhakti chkalkne lagti hai. magar ye kitna ajeeb hai ki hamme se kuchh hi log aadiwasiyon ko bhi shayad hamare beech se mante hain. unke adhikaro ke liye jo aawaz uthata hai use maowadi ghoshit kar diya jata hai.
    yah atiwadi rawaiya theek nahi hai. duniya ka itihaas gavah hai ki nayay ke bagair shanti sambhav nahi hai.isliye sarkar aadiwasiyon ke parti nyay ko sunishchit kare jisse ki desh grihyudh ki chapet main aane se bach jaye

  7. Pankaj Kumar Singh

    July 23, 2010 at 11:46 am

    Sarakar ki nitiya hi naksalvad ko janm de rahi hai. Dusara punjipatiyo ka sosan.
    Yah dono ki hinsa hi naksaliyo ko hinsa ke liye majabur kiya hai.

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