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दुख-दर्द

‘पुरस्कृत’ नीता शर्मा कब बोलेंगी सॉरी?

इफ्तिखार गिलानी पत्रकार हैं. कश्मीर के जर्नलिस्ट हैं. उन्हें आईएसआई से संबंध रखने वाला व आतंकवादियों का सपोर्ट करने वाला कहकर जेल भेज दिया गया था. सारे बड़े अखबारों ने पुलिसिया ब्रीफिंग के आधार पर उल्टी-सीधी खबरें छापीं.

<p style="text-align: justify;">इफ्तिखार गिलानी पत्रकार हैं. कश्मीर के जर्नलिस्ट हैं. उन्हें आईएसआई से संबंध रखने वाला व आतंकवादियों का सपोर्ट करने वाला कहकर जेल भेज दिया गया था. सारे बड़े अखबारों ने पुलिसिया ब्रीफिंग के आधार पर उल्टी-सीधी खबरें छापीं.</p>

इफ्तिखार गिलानी पत्रकार हैं. कश्मीर के जर्नलिस्ट हैं. उन्हें आईएसआई से संबंध रखने वाला व आतंकवादियों का सपोर्ट करने वाला कहकर जेल भेज दिया गया था. सारे बड़े अखबारों ने पुलिसिया ब्रीफिंग के आधार पर उल्टी-सीधी खबरें छापीं.

कइयों ने पुलिस अफसरों की ‘एक्सक्लूसिव ब्राफिंग’ के आधार पर इफ्तिखार गिलानी के संबंध में कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर अनर्गल ‘एक्सक्लूसिव’ खबरें छापी. ज्यादातर रिपोर्टरों ने यह नहीं सोचा कि एक पत्रकार साथी के मामले में खुद रुचि लेकर उस पर लगे आरोपों की स्वतंत्र छानबीन की जाए और पुलिस की कहानी से अलग, तथ्यात्मक रिपोर्टिंग की जाए.

पत्रकारिता में भेड़चाल के इस दौर के शिकार हुए इफ्तिखार. बाद में जब वे रिहा हो गए और सारे आरोप झूठे साबित हुए तो एक-एक कर सभी अखबारों व गलत खबरें लिखने वाले रिपोर्टरों ने उनसे माफी मांगनी शुरू कर दी. इफ्तिखार ने सभी को माफ भी कर दिया. लेकिन इस मामले में एचटी की तत्कालीन रिपोर्टर नीता शर्मा, जिन्होंने बढ़-चढ़कर पुलिसिया एक्सक्लूसिव ब्रीफिंग के आधार पर पत्रकार इफ्तिखार गिलानी को लेकर अनर्गल खबरें छापीं, को अपने किए-धरे-लिखे पर आज तक पछतावा नहीं है.

नीता बाद में एनडीटीवी चली गईं और उन्हें आजकल में कोई बेस्ट रिपोर्टर का पुरस्कार भी मिला है. नीता को बेस्ट रिपोर्टर का एवार्ड मिलने की बात सुनकर इफ्तिखार का दर्द हरा हो गया है. उन्होंने अपने पूरे मामले की एक पीडीएफ फाइल बनाकर और एक छोटा सा इंट्रो लिखकर अपने सभी दोस्तों, जानने वालों व मीडिया हाउसों को भेज दिया है. इस मेल में इफ्तिखार लिखते हैं-

ANYBODY HEARNG…….. : Neeta Sharma of NDTV gets Reporter of the Year Award.. Appalling, see her exploits during her tenure at  HT. Don’t know how many more may have fallen victim to her reporting? She is still to say regret or apologize for her irresponsible reporting..Others atleast had courage to say sorry, after I was cleared of charges and government withdrew case..

पूरे मामले की विस्तार से जानकारी लेने के लिए आप इफ्तिखार गिलानी से उनकी मेल आईडी [email protected] के जरिए संपर्क कर सकते हैं

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0 Comments

  1. अभिषेक श्रीवास्‍तव

    September 2, 2010 at 7:09 pm

    शुक्रिया यशवंत भाई… यह बहुत जरूरी मसला है जिसे एक बार फिर सामने आना ही चाहिए।

  2. prashant kumaar

    September 3, 2010 at 10:31 am

    Neeta Sharma and Barkha Dutt are not journalists. They are big sirens. They do not know the basic tenets of journalism. Jornalism requires sentiments and sacrifice. One who has not these substance to implement this in the society as Premchand and Raja Ram Mohan Roy did, can not be called a journalist. They can only be a stenographer or announcer of news channels masqurading as journalists.Gud luck Gilani saab. U must spit on the face of crooked journalists.

  3. alok tomar

    September 3, 2010 at 11:06 am

    अभिषेक ने जो लिखा है वह न भी लिखा जाता तो भी नीता शर्मा और उनकी तरह के पुलिस की खबरें प्लांट करने वाले तथाकथित अपराध संवाददाताओं की चांदी है… मैं कई को जानता हूं जिनके थानों से हफ्ते बंधे हुए हैं… नीता शर्मा के बारे में पता नहीं… नीता से ज्यादा गुस्सा उस ज्यूरी पर आना चाहिए जिसमें विनोद मेहता के नेतृत्व में कई बड़े नाम हैं और उन्हें एक सही अच्छा संवाददाता नज़र नहीं आया… विनोद मेहता को माफ कीजिए क्योंकि आदमी कई बार एक शादी में बावला हो जाता है ये तो तीन तीन किए बैठे हैं…इफ्तिखार गिलानी की गिनती हमेशा उन पत्रकारों में होती है जो जन्म और संस्कार से कश्मीरी होने के बावजूद भारत विरोधी या आलगाववाद समर्थक नहीं हैं… मगर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल किसी को कुछ भी बना सकती है और झूठ बोलने में तो दिल्ली पुलिस का जवाब ही नहीं है… आप मेरी कहानी भी सुन लीजिए…
    दिल्ली पुलिस का एक मुख्य हवलदार हुआ करता था केके पॉल उसका बेटा वकील था (अब भी है)… उस समय बाप केके पॉल के जिम्मे जिन अपराधियों को सज़ा दिलवाने की जिम्मेदारी हुआ करती थी उनके सपूत अमित पॉल उनके वकील हुआ करते थे… बाप का असर काम आता था और अमित पॉल ने बड़े बड़े ठगों, हत्यारों और जालसाजों को जमानतें दिलवाईं… बड़ी तगड़ी फीस मिलती थी.. ज़ाहिर है कि एक जूनियर वकील को मोटा पैसा मिले तो उसकी औकात के हिसाब से फीस उसकी और बाकी माल उसके बाप का..यही सब छापा था और पॉल सफाई देने के लिए तैयार नहीं थे… इसके बाद डेनमार्क के पैगम्बर वाले हरामीपन भरे कार्टूनों को बनाने और प्रकाशित करने की मानसिकता के खिलाफ एक छोटी सी टिप्पणी लिखी तो स्पेशल सेल वाले उठा ले गए… अदालत से झूठ बोला कि बाहर दंगा हो रहा है और सीधे तिहाड़ पहुंचा दिया… वहां हाई सिक्योरिटी में और उसी वार्ड में जहां गिलानी रहे थे… आतंकवादियों और हत्यारों के साथ बंद कर दिया गया… और तो और उस मीडिया समूह के मालिक विजय दीक्षित को भी अंदर कर दिया गया… उनका कसूर ये था कि उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय से माफी मांगी थी… स्टार टीवी, आजतक और जीटीवी ने तो पुलिस हिरासत में मुझसे फोन पर बात की मगर थाने से मुश्किल से एक किलोमीटर दूर एनडीटीवी में यही नीता शर्मा बकवास कर रही थी (मुझे बाद में पता लगा) कि मेरे डेनमार्क के उस अखबार से (जहां पैगम्बर वाले कार्टून छपे थे) सीधे संबंध हैं…वाशिंगटन से लेकर फ्रांस और लंदन से लेकर जोहानिसबर्ग के प्रेस क्लब भारत के राष्ट्रपति और गृहमंत्री को इस गिरफ्तारी के खिलाफ पत्र भेज रहे थे… मेरे पास वकील को देने के लिए पैसे भी नहीं थे… मगर एनडीटीवी और एक अखबार ने लिखा कि आलोक तोमर के पास करोड़ों रुपए का एक मकान है जो विवादास्पद कमाई से खरीदा गया है… एक अखबार के संपादक एक टीवी चैनल पर बैठकर सवाल कर रहे थे कि आलोक तोमर को पत्रकार मानता कौन है… मेरे घर पर भी छापा पड़ा था और सबकुछ तितर-बितर कर दिया गया था… ऑफिस के सारे कम्प्यूटर जांच के लिए पुलिस उठा ले गई थी… एक तरफ स्वर्गीय प्रभाष जोशी और स्वर्गीय कमलेश्वर बिना किसी समन के अदालत में हाजिर होकर मेरे निर्दोष होने की कसम उठाने के लिए तैयार थे… दूसरी तरफ नीता जैसे पत्रकार मुझे पेशेवर आतंकवादी साबित करने पर तुले हुए थे… काश…विभूति नारायण राय नीता शर्मा को जानते होते तो उनकी तारीफ अपने विख्यात एक शब्द में करते…शब्द आप जानते ही हैं… और न जानते हो तो गूगल पर विभूति का नाम टाइप करके देखे…
    इफ्तिखार गिलानी उम्र में छोटे हैं और मुझसे ज्यादा वक्त उन्होंने तिहाड़ में काटा है… कायदे से इस देश के प्रधानमंत्री को या कम से कम चकाचक कपड़े पहनने वाले उस समय के गृहमंत्री शिवराज पाटिल को गिलानी के चरणों पर गिर कर माफी मांगनी चाहिए थी… गिलानी का कसूर सिर्फ ये था कि वो कश्मीरी हैं और दिल्ली पुलिस और खासतौर पर स्पेशल सेल हर कश्मीरी को शक की निगाह से देखती है…गिलानी से अनुरोध है कि तिहाड़ जेल में ही बंद सैकड़ों निर्दोष कश्मीरियों को आजाद कराने की मुहिम चलाए… और मेरी जितनी औकात होगी मैं साथ देने के लिए तैयार हूं… आखिर में अभिषेक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं… क्योंकि दैनिक भास्कर में रहकर भी सरोकार बनाए रखाना काफी हद तक वैसा ही है जैसे जीबी रोड पर रहकर अपना शील बचाए रखना या कांग्रेस में रहकर भी अपनी रीढ़ बचाए रखना…
    [b][/b]

  4. Ashwani Malhotra

    September 3, 2010 at 12:47 pm

    dukh ki baat hai ki jab jab kisi paterker per anguli uthi ya police/Pershasan ne koi arop lagaya to paterkeron ne hi mamle ki chaan-been karne ki bajai use khub cash kiya,yeh jante hue bhi ki policia kahanion me kitni sachai hoti hai….kisi ne sach hi kaha hai ki garon se jayda khatra apno se hota hai.
    ashwani Malhotra NDTV Jalandhar

  5. sunil Singh

    September 3, 2010 at 1:39 pm

    2006 या 2005 के आस पास का वाकया है, जब दिल्ली पुलिस के तत्कालीन बड़े अधिकारी गुप्ता की तलवेचाटी के चक्कर में नीती शर्मा कई बेकसूरों को फंसा चुकी हैं। एक रात बड़े पुलिस अधिकारी जो शायद बाद में जेल के आईजी बन गये हैं का बेटा नशे में धुत होकर सिरी फोर्ट रोड पर हंगामा कर रहा था, वहां पर एस वन न्यूज़ चेनल का दफ्तर भी था। गुप्ता के बेटे ने वहां एक गाड़ी को टक्कर मार दी, इसके बाद मौके पर मौजूद एस वन के कैमरा पर्सन ने उसे शूट कर लिया और एक महिला रिपोर्टर ने उस रिपोर्ट को फाईल किया। उसके बाद गुप्ता ने अपना रसूख इस्तेमाल करते हुये चैनल पर मुकदमा किया और मामला अदालत में है। एस वन के पास सारे विजुअल भी थे। कुछ दिनों बाद नीता शर्मा ने एनडीटीवी पर एक रिपोर्ट दिखाई जिसमे उसने बताया कि किस तरह पुलिस अधिकारियों के परिवारों वालों को फंसा कर उन पर दबाव डाला जा रहा है। नीता शर्मा ने उस रिपोर्ट को बनाते वक्त न तो एस वन का बयान लिय़ा न ही उस एंकर और रिपोर्टर से बात की जिस के खिलाफ मुकदमा हुआ था। बस नीता ने रिपोर्ट बनाई और एनडीटीवी ने ठोक कर चला दी। किसी ने ये जानने की जहमत भी नहीं उठाई की नीता की रिपोर्ट में कितना सच है।

  6. vikash singh

    September 4, 2010 at 6:50 am

    sharam karo Ne…..ta…Are kahabat hai ki Dyeen bhi ek ghar chor ke apna shikar banati hai…

  7. Anurag pathak

    September 6, 2010 at 10:39 am

    Besharm ko sarm nhi ati

  8. SHAMS TAMANNA

    September 6, 2010 at 10:40 am

    Nita Sharma jaisi ghatiya journalist se isse zyada aur kya umeed ki ja sakti hai. Nita shayed ye bhool rahi hai ki jis police walon ke dam par wo zyada kud rahi hai wo kabhi kisi ke nahi hote hain. Jab unka matlab nikal jaiyega to wo Nita ko kisi aur ke zariye phasane main dair nahi lagayenge. Nita ko apne tailent par kuch zyada hi ghamand hai. Jis din nasha utarega usdin uska sath dene wala koi nahi hoga.

  9. himanshu mishra

    September 6, 2010 at 11:05 am

    गिलानी और तोमर साहब,
    मुझे आश्चर्य इस बात का हो रहा है की आप दोनों इतने अनुभवी पत्रकार होने के बाद भी किसी को पुरस्कार मिलने पर नाराज़ हैं, अरे साहब आजकल पुरस्कार मिलता किसे है, ये भी आपको बताना होगा? इन्हें पत्रकारिता की ऐसी तैसी करने का ही पुरस्कार मिला है, और इसके लिए यही मापदंड भी है. आप लोस छाती पीटते रहिये, चौथा स्तम्भ होने का दंभ भरते रहिये, लेकिन हम पत्रकार नहीं सत्ता के दलाल मात्र हैं, सबका अपना अपना बाप है, इसलिए विधवा विलाप बंद करें, मुझे नफरत होती है

  10. dr.ritu

    September 7, 2010 at 11:34 am

    alok ji
    ,maine kahin padha thaa ki ”padh kar likhne se jyaada sah kar likhna badi baat hai ”aaj dekh liya

  11. Jay Kumar, TV Journalist

    September 16, 2010 at 1:25 pm

    Shame NITA Shame………………….Shame…………………
    “NITA SHARMA” ko patrakarita ki nahin chatukarita ka puashkar diya gaya hai.
    Jise usne [u][b]Patrakar[/b][/u] aur [u][b]Patkarita[/b][/u] ki bali chadhakar prapt kiya hai. NITAJI is puraskar ko Apne patrakar bhai ka kata hua sar samajhkar ghar men saja ke rakhana.

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