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तेरे चैनल में ना रखेंगे कदम आज के बाद…

आंसुओं-दुखों में डूबी यह कविता एक न्यूज चैनल के कर्मचारी की है. इसे पढ़कर आप समझ सकते हैं कि जूनियर पदों पर काम कर रहे लोग कितना झेलते हैं. कवि से एक माफी मांगना चाहूंगा कि उन्होंने अपने चैनल का नाम इसमें साफ-साफ लिख दिया है, जिसे संपादित कर दिया गया है. न्यूज चैनल का नाम हटाकर वहां सिर्फ ‘चैनल’ शब्द का प्रयोग किया जा रहा है. वैसे, इतना बता दें कि कवि महोदय ने जिस न्यूज चैनल के बारे में लिखा है, उसका मुख्यालय दिल्ली-एनसीआर में नहीं है. तो लीजिए, कविता पढ़कर कुछ बूंदें आप भी टपकाइए…. -यशवंत

<p align="justify">आंसुओं-दुखों में डूबी यह कविता एक न्यूज चैनल के कर्मचारी की है. इसे पढ़कर आप समझ सकते हैं कि जूनियर पदों पर काम कर रहे लोग कितना झेलते हैं. कवि से एक माफी मांगना चाहूंगा कि उन्होंने अपने चैनल का नाम इसमें साफ-साफ लिख दिया है, जिसे संपादित कर दिया गया है. न्यूज चैनल का नाम हटाकर वहां सिर्फ 'चैनल' शब्द का प्रयोग किया जा रहा है. वैसे, इतना बता दें कि कवि महोदय ने जिस न्यूज चैनल के बारे में लिखा है, उसका मुख्यालय दिल्ली-एनसीआर में नहीं है. तो लीजिए, कविता पढ़कर कुछ बूंदें आप भी टपकाइए.... -यशवंत</p>

आंसुओं-दुखों में डूबी यह कविता एक न्यूज चैनल के कर्मचारी की है. इसे पढ़कर आप समझ सकते हैं कि जूनियर पदों पर काम कर रहे लोग कितना झेलते हैं. कवि से एक माफी मांगना चाहूंगा कि उन्होंने अपने चैनल का नाम इसमें साफ-साफ लिख दिया है, जिसे संपादित कर दिया गया है. न्यूज चैनल का नाम हटाकर वहां सिर्फ ‘चैनल’ शब्द का प्रयोग किया जा रहा है. वैसे, इतना बता दें कि कवि महोदय ने जिस न्यूज चैनल के बारे में लिखा है, उसका मुख्यालय दिल्ली-एनसीआर में नहीं है. तो लीजिए, कविता पढ़कर कुछ बूंदें आप भी टपकाइए…. -यशवंत

पूरा जीवन बीत गया

चैनल में रीत गया

मिस काल से परिजनों को देते थे संदेश, चैनल के खातिर छोड़े बीवी बच्चे अपना देश।

गये परदेस तो मिला खाने को ठेले का चावल, नहीं भरा पेट तो पी लिया सरकारी नल का जल।

पूरा जीवन बीत गया.

चैनल में रीत गया.

घर वालों ने पूछा तो बताया होटल में ठहरा हूं, हालत लगती है कि किसी होटल का पहरा हूं।

कभी करता बीमार मुझे जब ठेले का भोजन, घर में बताते याद में टूटा शरीर का मेरे कण-कण।

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पूरा जीवन बीत गया

चैनल में रीत गया

आता है मोबाइल पर संदेश कि सेलरी आई है, भागकर पहुंचे एटीएम चेहरे पर खुशहाली छाई है।

लाइन में लगकर जल्दी से जब हम कार्ड लगाते हैं, खंगाल एडीएम अपना सारा पैसा लेकर आते हैं।

पूरा जीवन बीत गया.

चैनल में रीत गया.

हड़बड़ी में कई बार अपनी कार्ड फंसाई है, लाइन से आवाज निकली कि क्या चैनल का इंप्लाई है।

मैं कह देता भाई मेरी गल्ती नहीं सारी है, महीने में एक बार ही आती मेरी बारी है।

पूरा जीवन बीत गया.

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चैनल में रीत गया.

एक तारीख को राजा दो प्रजा तीन को फकीर, ठेले वाला भी खींच देता रजिस्टर में एक बड़ी लकीर।

जब निकलना ही था तो भर्ती क्यों किया था, मेरी जवानी का रस खींच कर खून पिया ही क्यों था।

पूरा जीवन बीत गया.

चैनल में रीत गया.

तुमने समझाया नहीं एचओपी-एलओपी का चक्कर, देते रहे हमेशा हम और चैनलों को खबरों में टक्कर।

बंद किया सेंटर तुमने बंद किए सब दरवाजे, सिर्फ दो सवालों का कम से कम मौका देते।

पूरा जीवन बीत गया.

चैनल में रीत गया.

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तुमने भेजा फैक्स हमारे तो दम निकले, बड़े बे-आबरू होकर तेरे चैनल से हम निकले।

रहेगी हर बात दिल में इस राज के बाद, तेरे चैनल में ना रखेंगे ये कदम आज के बाद।

माननीय सर्वश्री जूनियर टीवी जर्नलिस्ट बंधु

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0 Comments

  1. kavi ka prashanshak

    April 16, 2010 at 12:32 pm

    mera jeevan kora kaadaz kora hi rah gaya…
    bhayi gazab ki peedadaayi kavita hai…

  2. ajay

    April 17, 2010 at 4:26 am

    शायद हमारे ही चैनल की व्यथा है.

    “हमारी भी पहचान यही है”

    क्या खूब लिखा है।

  3. Anshul Srivastava

    April 17, 2010 at 4:39 pm

    Bhai Apki Kavita Se lagta Hai Ki aap pure devotion k sath is organisation se jude the aur apki koi izzat nhi hui bahut dukh hota jab koi khi 1 parivar ki tarah judta hai aur bina kisi vajeh k agar usko vahan se hta diya jata hai sach me apke kahani sunkar mere bhi aashu aagye bhagwan apko ye dukh sahan karne ki chamta de


    Best Regards,

    Anshul Srivastava
    Chief Managing Director
    Akela Timesvision

    mobile: +91-9919956730
    Office: +91-522-2473080
    Fax: +91-522-4048812
    E-mail: [email protected]
    web site: http://www.akela.tv

  4. vikas tripathi

    April 18, 2010 at 4:53 pm

    bhai, aapne bilkul sahi likha he….lakin aisi nabat na aye kya iske liye kabhi patrakar sangathit ho payenge ya phir ….bhai wah hi kahte rahenge….

  5. pramod

    April 20, 2010 at 7:25 am

    isse pat lagta hai ki media me jitni chamak hai ….utna hi shoshan bhi hai…..
    achchha hoga ki fir se koshish kare

  6. ajay kumar

    April 21, 2010 at 9:39 am

    yaswant ji ye kabita jisne bhi likhi par khub likhi or ye dard hai har us aadhmi ka jo hai kishi na kishi channel main chote pad par ya kahe ki fiel main bhagne wala ghoda … main in sab baton main chupe dard ko bade hi acchi tarah se samaj raha hunn par mujko aapse se gujarish hai ki kam se kam humko bhi kabhi kahi thodi si jgah de diya karo kyun ki hum bhi ishi desh or ishi karm ke ghode hai .. lekin un besharmon ko koi sharm nahi aaty jo ki channel main kishi bade pad par kya hogaye apne aapko channel ka malik man lete hai or ye khud ko fir us khuda se kah nahi aankte hai .magar ye bhol jate hai ki tum jo bahan par baite ho bo bhi is feld ke gode ki hi bajah se kyun ki khabar to feld se hi aaty hai … or ek baat or main aapse kahna chahunga ki koi esha niyam kyun nahi banta ki desh se srtingar ko khtm kiya jaye or unko stoper rakha jaye jisse ki usmain kuch dam ban sake barna stringar to shir bhookha marne ke liye hai ya fir wo bhi dalal teek ka sadasya ban jaye …… ajay kumar mathura ……

  7. sujit

    April 21, 2010 at 11:23 am

    bahut accha likha hai………….ek yuva tv Journalist kaa ye haal hai pataa nahi desh,samaaz,sarkari machinary desh ko kha jaaayenge

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