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दुख-दर्द

जातिवादी जल्लादों से अपनी बेटियों को बचाओ

निरुपमा पाठकनीरू की मौत (17) : सवर्ण होने का जो अहंकार है वह आदमी के विवेक को दफ़न कर देता है : बच्चों को शिक्षा देकर माता पिता उस पर कोई अहसान नहीं करते, वे वास्तव में अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे होते हैं : लड़की कमज़ोर नहीं होती, वह इंसान होती है और लड़कों के बराबर होती है : नयी दिल्ली के एक अखबार में काम करने वाली एक लड़की को उसके घर वालों ने मार डाला. वह झारखण्ड से अपने सपनों को साकार करने के लिए दिल्ली आई थी. जहां उसने देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान से पढाई की और एक सम्मानित अखबार में नौकरी कर ली. उसकी शिक्षा दीक्षा में उसके माता पिता ने पूरी तरह से सहयोग किया, खर्च-बर्च किया, लड़की को दिल्ली भेजा जो उनके लिए एक बड़ा फैसला था. लेकिन इसके बाद वे चाहते थे कि लड़की उनके हुक्म की गुलाम बनी रहे, उनकी शेखी बढाने में काम आये, रिश्तेदारों के बीच वे डींग मार सकें कि उनकी बेटी ने बहुत ही आला दर्जे की पढाई की है और दिल्ली के एक नामी अखबार में काम करती है लेकिन उस लड़की को बाकी आज़ादी देने के पक्ष में वे नहीं थे. वे चाहते थे कि वे अपनी पसंद के किसी ऊंचे परिवार में उसकी शादी करें और उनका मुकामी रंग और चोखा हो. जहालत का आलम यह था कि जब उन्हें लगा कि उनकी हर ख्वाहिश नहीं पूरी हो रही है तो उन्होंने अपनी ही बेटी को मार डाला.

निरुपमा पाठक

निरुपमा पाठकनीरू की मौत (17) : सवर्ण होने का जो अहंकार है वह आदमी के विवेक को दफ़न कर देता है : बच्चों को शिक्षा देकर माता पिता उस पर कोई अहसान नहीं करते, वे वास्तव में अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे होते हैं : लड़की कमज़ोर नहीं होती, वह इंसान होती है और लड़कों के बराबर होती है : नयी दिल्ली के एक अखबार में काम करने वाली एक लड़की को उसके घर वालों ने मार डाला. वह झारखण्ड से अपने सपनों को साकार करने के लिए दिल्ली आई थी. जहां उसने देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान से पढाई की और एक सम्मानित अखबार में नौकरी कर ली. उसकी शिक्षा दीक्षा में उसके माता पिता ने पूरी तरह से सहयोग किया, खर्च-बर्च किया, लड़की को दिल्ली भेजा जो उनके लिए एक बड़ा फैसला था. लेकिन इसके बाद वे चाहते थे कि लड़की उनके हुक्म की गुलाम बनी रहे, उनकी शेखी बढाने में काम आये, रिश्तेदारों के बीच वे डींग मार सकें कि उनकी बेटी ने बहुत ही आला दर्जे की पढाई की है और दिल्ली के एक नामी अखबार में काम करती है लेकिन उस लड़की को बाकी आज़ादी देने के पक्ष में वे नहीं थे. वे चाहते थे कि वे अपनी पसंद के किसी ऊंचे परिवार में उसकी शादी करें और उनका मुकामी रंग और चोखा हो. जहालत का आलम यह था कि जब उन्हें लगा कि उनकी हर ख्वाहिश नहीं पूरी हो रही है तो उन्होंने अपनी ही बेटी को मार डाला.

पुलिस ने लड़की की माँ को गिरफ्तार कर लिया है और उसके परिवार के अन्य लोगों को केंद्र में रख कर जांच चल रही है. लड़की के पिता ने तर्क दिया है कि उन्होंने अपनी बेटी को इतना खर्च करके पढ़ाया लिखाया तो उसे मारने जैसा काम वे क्यों करेंगे. सवाल यह पैदा होता है कि अगर आपने अपनी लड़की को अच्छी शिक्षा दी तो क्या आप ने उस पर अहसान किया? आधुनिक समझ का तकाजा है कि बच्चों को शिक्षा देकर माता पिता उस पर कोई अहसान नहीं करते, वे वास्तव में अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे होते हैं. आधुनिक सोच की यह समझ अगर लोगों में आ जाए तो बहुत कुछ बदल सकता है.
जिस लड़की को जातिवादी व्यवस्था ने हलाल किया उसका नाम निरुपमा था, ब्राह्मण माँ बाप की बेटी थी और उसने एक ऐसे लड़के से दोस्ती कर ली थी जो ब्राह्मण नहीं था. जातिवाद के फासिस्टों को पागल कर देने के लिए इतना ही काफी था. उन्होंने उसे मार डाला. यह हादसा किसी एक परिवार का नहीं है, कम समझ वाले ज़्यादातर मध्यवर्गीय सवर्ण परिवारों में जो भी लड़कियां हैं वे सभी निरुपमा बन सकती हैं. क्योंकि सवर्ण होने का जो अहंकार है वह आदमी के विवेक को दफ़न कर देता है.

इस निरुपमा की माँ भी इसी अहंकार का शिकार हुई और उसने अपनी ही बेटी को पुरातनपंथी सोच के मकतल में झोंक दिया. आज इस तरह की सोच को छोड़ देने की ज़रूरत है. अपनी बेटी को शिक्षित करके उसे अपने दरवाज़े पर हाथी बाँध लेने की मानसिकता को ख़त्म कर देने की ज़रुरत है. अगर ऐसा न हुआ तो देश और समाज का विकास रुक जाएगा और इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि समाज के लोग आगे आयें और निरुपमा की हत्या करने वालों के खिलाफ लामबंद हों. यह निरुपमा हर घर में मौजूद है. लड़की को कमज़ोर मानने वाली जमातों को भी यह बता देने की ज़रूरत है कि लड़की कमज़ोर नहीं होती. वह इंसान होती है और लड़कों के बराबर होती है. बहुत सारे ऐसे परिवारों को देखा गया है जहां लड़का तो चाहे जितनी लड़कियों से दोस्ती करता रहे, बुरा नहीं माना जाता लेकिन अगर लड़की ने किसी से दोस्ती कर ली तो परिवार की प्रतिष्ठा पर आंच आने लगती है. इस सोच में बुनियादी खोट है और इसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए. अगर ऐसा न हुआ तो अपना समाज बहुत पिछड़ जाएगा और विकास की गाड़ी जातिवाद के दलदल में जाकर फंस जायेगी.

होना तो यह चाहिए था कि राजनीतिक स्तर पर जाति के विनाश के कार्यक्रम चलाये जाते क्योंकि आज की सभी राजनीतिक पार्टियों के महापुरुषों ने जाति के विनाश की वकालत की है शेष नारायण सिंहलेकिन महात्मा गाँधी, आम्बेडकर, लोहिया, फुले, पेरियार जैसे नेताओं के नाम पर राजनीति करने वाले लोग आज जाति की संस्था को बनाए रखने में अपना फायदा देख रहे हैं. राजनीति के इन प्यादों की मुखालिफत की जानी चाहिए. लेकिन सवाल उठता है कि करेगा कौन. यह काम वही संस्था करेगी जिसकी वजह से निरुपमा के हत्यारों के दरवाज़े पर कानून की दस्तक पड़ रही है. और यह संस्था आज का नया मीडिया है  जिसमें टेलीविज़न वाले भी थोड़ा बहुत योगदान दे रहे हैं. बाकी मीडिया को भी चाहिए कि वह जाति के विनाश की इस मुहिम में शामिल हो और आने वाले वक़्त में कोई भी निरुपमा जातिवादी जल्लादों का शिकार न बने.

लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कई न्यूज चैनलों व अखबारों में काम कर चुके हैं. उनसे संपर्क करने के लिए [email protected] का सहारा ले सकते हैं.

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0 Comments

  1. kishore

    May 4, 2010 at 12:50 pm

    jatiwadi jalladon aur rapist premiyon se bhi…..

  2. radhshyam tewari

    May 4, 2010 at 1:01 pm

    Shesh ji , save the country from jatibad jallad, if you can.girls will be saved out of 543 how many win election without caste support? why are our leaders are crying for census on caste basis ?

  3. Prakash

    May 4, 2010 at 2:47 pm

    koi jati unchi ya nichi nahi hoti wo uske karam ke anusar hoti hai shesh ji…..
    Waise shesh ji jab apki beti bin byahi maa ban ke aaygi to uski god bharai ki rasam mein hame bhi jarur bulana aur saath mein us ladke ko bhi jisne apki beti ko bin byahi maa banaya ho. hum sab mil ke us ladke ko badhai denge ki bahut accha kam kiya hai shesh ji ki ladki ke saath… aur apki beti ke hone waale baache ke liye tofa bhi le ke aaynge…..

  4. acid

    May 4, 2010 at 9:07 pm

    mera comment kahan gaya

  5. Ishwar chandra

    May 5, 2010 at 5:58 am

    Shesh ji un habas ke shikar ladko ke pairokar malum padte hai jo ladke apna habas mitane ke liye ladkiya dhundhte firte hai. Shesh ji aap umra tisre padaw par kr chuke hai apko itni v budhi khuli ki galat aur sahi me fark samjha jaye. Janaw yah swal jaati-biradri ka nahi hai, yh swal SYSTEM ka hai, vyvstha ka hai. Aap shad aj v aadi-manav yug me ji rhe hai, yani janvaro ki tarh jiske sath jab v mood ban gya uske sath apna hawas mita liya. Yhi to kiya PRIYABHANSHU ne. Nirupma bina shadi ke hi ma ban gayi. Aur yhi uske maut ka karn v hai. In do ne hi ek system ka ulanghan kiya, apne upar kabu nhi rakh paye aur ki jaan chali gyi. Aap jyada shabd jaal bichhakr apne ko vidvan aur budhijivi sabit na kare, bas ek sawal ka jawab de KYA AAP FREE SEX KE PAKSH ME HAI ?? KYA PRIYEBHANSHU-NIRUPMA KO HUM YOUTH LOG APNA AADARSH MAAN LE ??

  6. TK Saumitra

    May 5, 2010 at 7:32 am

    निरूपमा हत्या प्रकरण वाकई झकझोर देने वाला है, पर इससे भी ज्यादा त्रासद तो उसके प्रेमी की ऐय्याश फितरत है। अखबारों में पढ़ा कि निरूपमा के प्रेमी प्रियभांशु को यह तक मालूम नहीं था कि निरूपमा गर्भवती है। यह कैसा अवसरवादी, भोगी और यौनलोलुप प्रेमी है जो निरूपमा की देह भोगने के बाद भी इसकी थाह नहीं ले पाया कि इस मासूम लड़की के गर्भ में क्या हरकत हो रही है? निश्छल प्रेम के पुजारी तो एक-दूसरे का पल-पल ख्याल रखते हैं, पर प्रियभांशु अपनी यौनपिपासा मिटाने के बारह सप्ताह बाद भी इससे नावाकिफ रहा कि नीरू के पेट में उसका बच्चा पल रहा है और अगर इस कठोर सच का सामना उसके परंपरावादी परिवारवाले करेंगे तो शायद वे नीरू के खून के प्यासे हो जाएंगे। प्यार को देह की सीमा तक सीमित करने वाले इस शख्स ने नीरू के शरीर के इस नए सत्य को जान लिया होता तो शायद वह उसे गर्भवती अवस्था में परिवार से मिलने जाने की योजना पर अमल करने से रोक पाता और नीरू पुरातनपंथी कट्टरता की शिकार नहीं बनती। क्या नीरू को मौत के सफर पर भेजने के लिए उसका प्रेमी जिम्मेवार नहीं हैं? नीरू और प्रियभांशु की तरह मैं भी पत्रकार हूं और उदारवादी सोच का पैरोकार रहा हंू। जो लोग नीरू के गर्भभारण से जुड़े सत्य को हाशिए पर रखकर क्रांतिकारी विचार उगल रहे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे अपनी बेटी के बिन ब्याही मां बनना पसंद करेंगे ? श्रीमान शेष नारायण सिंह जी मुझे मालूम है कि अगर आप बेटी के बाप हैं और आपको पता चले कि आपकी बेटी बिन ब्याही मां बन चुकी है तो शायद यह त्रासद सत्य आपको क्रांतिकारी, अति उदारवादी और अतिरेकवादी शब्द उगलने की छूट नहीं देगा और आप बुद्धिजीवी होने की आड़ में भी अपनी पीड़ा दबा नहीं पायेंगे। रही बात नीरू की हत्या की तो यह वाकई समाज के उन भेड़ियों की कारगुजारी है, जो जातिवादी अहंकार के अंधेपन में विवेक खो बैठते हैं। लेकिन नीरू और प्रियभांशु को इन भेड़ियों को मौका देने से रोेकने के लिए शादी से पहले कम से कम ‘कंडोम’ नामक एक सुरक्षित उपाय का इस्तेमाल तो करना ही चाहिए था। प्रियभांशु के प्रति संवदेना प्रकट किए जाने से ज्यादा जरूरी है, उसके भोगी चरित्र का पोस्टमार्टम कर आज के प्रेमियों को प्रियभांशु बनने से रोकना।

    टी.के सौमित्र

  7. TK Saumitra

    May 5, 2010 at 7:39 am

    निरूपमा हत्या प्रकरण वाकई झकझोर देने वाला है, पर इससे भी ज्यादा त्रासद तो उसके प्रेमी की ऐय्याश फितरत है। अखबारों में पढ़ा कि निरूपमा के प्रेमी प्रियभांशु को यह तक मालूम नहीं था कि निरूपमा गर्भवती है। यह कैसा अवसरवादी, भोगी और यौनलोलुप प्रेमी है जो निरूपमा की देह भोगने के बाद भी इसकी थाह नहीं ले पाया कि इस मासूम लड़की के गर्भ में क्या हरकत हो रही है? निश्छल प्रेम के पुजारी तो एक-दूसरे का पल-पल ख्याल रखते हैं, पर प्रियभांशु अपनी यौनपिपासा मिटाने के बारह सप्ताह बाद भी इससे नावाकिफ रहा कि नीरू के पेट में उसका बच्चा पल रहा है और अगर इस कठोर सच का सामना उसके परंपरावादी परिवारवाले करेंगे तो शायद वे नीरू के खून के प्यासे हो जाएंगे। प्यार को देह की सीमा तक सीमित करने वाले इस शख्स ने नीरू के शरीर के इस नए सत्य को जान लिया होता तो शायद वह उसे गर्भवती अवस्था में परिवार से मिलने जाने की योजना पर अमल करने से रोक पाता और नीरू पुरातनपंथी कट्टरता की शिकार नहीं बनती। क्या नीरू को मौत के सफर पर भेजने के लिए उसका प्रेमी जिम्मेवार नहीं हैं? नीरू और प्रियभांशु की तरह मैं भी पत्रकार हूं और उदारवादी सोच का पैरोकार रहा हंू। जो लोग नीरू के गर्भभारण से जुड़े सत्य को हाशिए पर रखकर क्रांतिकारी विचार उगल रहे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे अपनी बेटी के बिन ब्याही मां बनना पसंद करेंगे ? श्रीमान शेष नारायण सिंह जी मुझे मालूम है कि अगर आप बेटी के बाप हैं और आपको पता चले कि आपकी बेटी बिन ब्याही मां बन चुकी है तो शायद यह त्रासद सत्य आपको क्रांतिकारी, अति उदारवादी और अतिरेकवादी शब्द उगलने की छूट नहीं देगा और आप बुद्धिजीवी होने की आड़ में भी अपनी पीड़ा दबा नहीं पायेंगे। रही बात नीरू की हत्या की तो यह वाकई समाज के उन भेड़ियों की कारगुजारी है, जो जातिवादी अहंकार के अंधेपन में विवेक खो बैठते हैं। लेकिन नीरू और प्रियभांशु को इन भेड़ियों को मौका देने से रोेकने के लिए शादी से पहले कम से कम ‘कंडोम’ नामक एक सुरक्षित उपाय का इस्तेमाल तो करना ही चाहिए था। प्रियभांशु के प्रति संवदेना प्रकट किए जाने से ज्यादा जरूरी है, उसके भोगी चरित्र का पोस्टमार्टम कर आज के प्रेमियों को प्रियभांशु बनने से रोकना।

    टी.के सौमित्र

  8. lovekesh

    May 5, 2010 at 7:45 am

    shesh naag ji maaf kijiye jo bhi aap ka naam hai shayad aap bhul rahe hai ki ye hinustaan hai yahi par sharwan jese agya kari putar huye hai jo ki maa baap ki sewa main lage rahe or aap kah rahe hai ki ye to har maa baap ka farz hai parantu aap jis umar main hai ye bhul rahe hai ki beta ya beti ka bhi kuchh farz hota hai na ki kewal maa baap ka………………………….ye hindustaan hai yaha par jyada tar bachche maa baap ke saath rahte hai………………………
    aapko ye sochna chahiye ki agar aap ki bahan ya beti bhi pregnent ho jato to kya aap ka yahi nazariya hota jawab jarur dijiyega ?????????????
    haa main nahi kahta ki unhone maar kar sahi kiya magar jis par gujarti hai wahi janta hai kya haalaat the …………………….plz apni soch apne tak hi rakhe to jyada achchha hai ho sakta hai aap ne agar shadi ki ho to aap ne apne bachchon ko asi chhot de rakhi ho????????????????????????

  9. praveenmohta

    May 5, 2010 at 8:24 am

    यशवंत भाई, सबसे पहले आप बधाई के पात्र हैं की आपने इतने संवेदनशील मुद्दे को इतने करीने से उठाया. मेरे जैसे सभी IIMC के पूर्व और वर्त्तमान छात्र आपके शुक्रगुजार हैं. लेकिन बीते 24 घंटे में जिस तरह से निरुपमा के चरित्र पर कीचड उछाला जा रहा है ये अच्छी बात नहीं है. एक बात समझ लीजिए की निरुपमा की चाहत हमेशा फिजा में जिंदा रहेगी लेकिन पोंगा पंडित ज़रूर नैतिकता की बातें करेंगे. अगर निरुपमा गर्भवती थी तो वो प्रियाभंशु से शादी करने जा रही थी. ये बात किसी के दिमाग में क्यों नहीं है. हमने IIMC के कैम्पस को जीया है. वहाँ की हवा को महसूस किया है. उस कैम्पस में ढेरों सपने बुने जाते हैं. बहुत बार सपने सच भी हुए हैं लेकिन निरुपमा को तो अपनों ने डंक मार दिया. मेरा आपसे नम्र निवेदन है की निरुपमा के चरित्र पर ऊँगली उठाने वाले सारे पोस्ट हटाएँ और आगे भी ऐसे पोस्ट को पब्लिश न करें क्योंकि हर घर में एक बेटी है…..

  10. lovekesh

    May 5, 2010 at 8:54 am

    mera mail kahan gaya yashwant jeeeeeeeeee??????????????????

  11. prashant kumaar

    May 5, 2010 at 9:14 am

    Hello Sir, plz accept my heartiest thanks for writing such a great piece. I would like to say you that don’t hurt by the reactions of those bastards who reacted against your article. They have such a low mind that they can only abuse you but don’t take it seriously.They are not journalists. If they are just ask them ever they achieved or done anything important in life to be proud of. Perhaps not. I know they are parasites. They can’t move the world. They live in archaic past acting as an aadimanav. They have surrendered their mind to the ugly thinking.They can’t rise above the caste line. They ask you in reaction that what if your daughter get pregnant and all abot the rasam of godbharai. I am with you to give them befitting reply. Are baniya ke naukaron kya tum jante ho apne sambidhan ke baare mein ki hum sabhi baligon ko apni tarah se jindagi jene ka adhikar hai. Yes I am ready if my daughter get pregnant. I will make her understand what is right or what is wrong.If I find it or unfit I will leave her to her choise whether to go through an abortion or get married.I will not kill her for the sake of our HONOUR.We are human being and only human can commit the blunder.They will have to understad the Sigmund Freudian theory : As we satiate our desire by self abusing( masturebatig) the opposite sex do the same. Is anybody there to stop it.[i][/i][i][/i]

  12. Ishwar chandra

    May 5, 2010 at 9:18 am

    Praveen ji aap v ponga pandit hi malum padte hai. Mai dekh rha hu ki aapke jaise tathhakathit pragatishil log Nirupma ke maut ke sahare galat baato ko v jayj thara rhe hai. Thoda upar ke tippni par gaur karo ki Saumitra ne kya likha hai. Fir se ek NIRUPMA ki talash me mat raho. IIMC ka naam na kharab karo. Nirupma ki htya ghor nindniye hai, lekin iske liye jimedar kaun hai tumhare jaise bahshi launde jo apni hawas ko kabu me nhi rkh skte. Vah dalil kya de rhe ho ki Nirupma garbhvati hui to kya shadi to karne hi wali thi. Tum koi Nirupma ko jaal me fansa rkhe to samy rhte use mukt kr do.

  13. praveenmohta

    May 5, 2010 at 9:35 am

    इश्वर चंद्र जी, शांत हो जाइए. एक बात अच्छी तरह जान लीजिए IIMC का नाम कोई नहीं खराब कर सकता. इस पूरे प्रकरण पर एकजुटता दिखा कर हमने बता दिया की मुसीबत के वक्त हम एक हैं. गलती बच्चे करते हैं और माँ-बाप गलती माफ करते हैं. अगर आपके बच्चे गलती करेंगे तो क्या उसे जान से मार देंगे? मेरे बारे में आप जो कुछ कहिये कोई फर्क नहीं पड़ता. आपने अपनी भाषा से बता दिया की आप कितना संतुलित सोच सकते हैं? मुझे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं है. आप वाकई महान है. ये जो लोग नैतिकता की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं ये अपने चैनल और अखबारों में उस लड़की को ही जगह देते हैं जो इनका बिस्तर गरम करने को तैयार होती है. हो सकता है की इनकी बहन को भी कोई ऐसे ही नौकरी दे. इस वेबसाइट पर ही सब कुछ लिखा है. रही बात प्रियाभांशु की तो वो अब तक सबके सामने कह रहा है की उसने निरुपमा से प्यार किया…… पहले जानिये फिर बोलिए…

  14. Prakash

    May 5, 2010 at 10:30 am

    प्रवीण, अगर निरुपमा की हत्या हुई या उसने आत्महत्या की हो दोनों ही गलत है…. लेकिन प्रियाभंशु का ये कहना की उसे नीरू की प्रेग्नन्सी का पता नहीं था तो ये गलत है . नीरू की मौत के बाद ये सब कहना ठीक नहीं लग रहा. लेकिन अगर वो प्रियाभंशु का बच्चा नहीं था तो फिर किसका? नीरू अपने घर शादी के लिए मानाने नहीं गई थी उसे तो झूट बोले के उसे वहां बुलाया गया था, तो तुम सभी IIMC के छात्र व वहां की मेधावी छात्राएं ये मत कहो की वो घर शादी के लिए मानाने गई थी… तुम सब logon ने तो यहाँ उसकी शादी की तेयारियां कर ली थी, शादी हो जाती तो फिर पुराने ख़यालात के माँ बाप आत्महत्या कर लेते शायद वो अच्छा होता …. IIMC की फिजाओं में पत्रकारिता की पढाई होती है या बिन ब्याही माँ बनाने की ट्रेनिंग. जैसे IIMC की फिजाओं में पहले भी प्यार पलता रहा है ऐसा प्रवीण ने बताया है तो आगे से पुराने विचारों के माँ बाप को अपनी बेटे बेटियों को यहाँ पढने के लिए नहीं भेजना चाहिए. गिरजा व्यास के पास जाने वाले कुछ पत्रकार ऐसे भी थे जिनके पास अभी कोई कम नहीं है तो वो इसी बात से apna प्रचार karne का मौका मिला. पहले हिन्दू धर्म व जाती प्रथा है क्या इसको जानो उसके बाद इसके बार में कुछ कहो.. इसके बारे में बिना कुछ जाने कह कर तुम अपने माता पिता, दादा दादी, और पूर्वजों को गली दे रहे हो उनकी भर्त्सना कर रहो… गलत बात है…..

  15. kamlesh atwal

    May 6, 2010 at 9:11 am

    hi ,TK Saumitra, tum patrakar hoa yaa taypist. tumre dimak se toa lagta hi tum to primary ke techer be bane lyeak nahi hoa. i know ajekal tumre jsea log he patrkar hote hi

  16. TK Saumitra

    May 6, 2010 at 11:22 am

    Atwal, tum Saumitra ko kyon kosh rahe ho, apne gireban mein jhankar dekh. Teen sari hue panktion mein apna ghatia or durgandhit vichar tumne zahir kiya hai or har pankti mein galti bhari pari hai Tum to achchhe Typist bhi nahi ho. Tumhare jaise log desh ki shiksha par Kalank hain! yah likhkar apni aukat batana zaruri tha?

    neeraj singh

  17. vkkaushik

    May 9, 2010 at 9:17 am

    [b][[b]b]sare ke sare neta jallad hai, kis kis se bachoge, tabhi to cast based census ki wakalat kar rahen[/b] hai.[/b]

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