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निरूपमा, मेरी दोस्त, मेरी भाभी

आज मेरी जुबान लड़खड़ा रही है….मेरे गले से शब्द नहीं निकल रहे….मैंने कभी नहीं सोचा था कि अपने बीच से ही किसी को खबर बनते देखूंगा….कल तक जो निरुपमा मेरी एक दोस्त हुआ करती थी और दोस्त से ज्यादा मेरे करीबी दोस्त प्रियभांशु की होने वाली जीवनसंगिनी यानि हमारी भाभी….आज वो साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुकी है….मेरे सामने उसी निरुपमा पाठक की स्टोरी वाइस ओवर के लिए आती है….एक आम स्टोरी की तरह जब मैं इस स्टोरी को अपनी आवाज में ढालने की कोशिश करता हूं तो मेरी जुबान लड़खड़ाने लगती है….मेरे गले से शब्द नहीं निकलते….इस स्टोरी को पढ़ता-पढ़ता मैं अपने अतीत में लौट जाता हूं….मुझे याद आने लगते हैं वो दिन जब आईआईएमसी में प्रियभांशु और निरुपमा एकांत पाने के लिए हम लोगों से भागते-फिरते थे और हम जहां वो जाते उन्हें परेशान करने के लिए वही धमक जाते….हमारा एक अच्छा दोस्त होने के बावजूद प्रियभांशु के चेहरे पर गुस्से की भंगिमाएं होतीं लेकिन हमारी भाभी यानि नीरु के मुखड़े पर प्यारी सी मुस्कान….हम नीरु को ज्यादातर भाभी कहकर ही बुलाते थे.

<p style="text-align: justify;">आज मेरी जुबान लड़खड़ा रही है....मेरे गले से शब्द नहीं निकल रहे....मैंने कभी नहीं सोचा था कि अपने बीच से ही किसी को खबर बनते देखूंगा....कल तक जो निरुपमा मेरी एक दोस्त हुआ करती थी और दोस्त से ज्यादा मेरे करीबी दोस्त प्रियभांशु की होने वाली जीवनसंगिनी यानि हमारी भाभी....आज वो साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुकी है....मेरे सामने उसी निरुपमा पाठक की स्टोरी वाइस ओवर के लिए आती है....एक आम स्टोरी की तरह जब मैं इस स्टोरी को अपनी आवाज में ढालने की कोशिश करता हूं तो मेरी जुबान लड़खड़ाने लगती है....मेरे गले से शब्द नहीं निकलते....इस स्टोरी को पढ़ता-पढ़ता मैं अपने अतीत में लौट जाता हूं....मुझे याद आने लगते हैं वो दिन जब आईआईएमसी में प्रियभांशु और निरुपमा एकांत पाने के लिए हम लोगों से भागते-फिरते थे और हम जहां वो जाते उन्हें परेशान करने के लिए वही धमक जाते....हमारा एक अच्छा दोस्त होने के बावजूद प्रियभांशु के चेहरे पर गुस्से की भंगिमाएं होतीं लेकिन हमारी भाभी यानि नीरु के मुखड़े पर प्यारी सी मुस्कान....हम नीरु को ज्यादातर भाभी कहकर ही बुलाते थे.</p>

आज मेरी जुबान लड़खड़ा रही है….मेरे गले से शब्द नहीं निकल रहे….मैंने कभी नहीं सोचा था कि अपने बीच से ही किसी को खबर बनते देखूंगा….कल तक जो निरुपमा मेरी एक दोस्त हुआ करती थी और दोस्त से ज्यादा मेरे करीबी दोस्त प्रियभांशु की होने वाली जीवनसंगिनी यानि हमारी भाभी….आज वो साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुकी है….मेरे सामने उसी निरुपमा पाठक की स्टोरी वाइस ओवर के लिए आती है….एक आम स्टोरी की तरह जब मैं इस स्टोरी को अपनी आवाज में ढालने की कोशिश करता हूं तो मेरी जुबान लड़खड़ाने लगती है….मेरे गले से शब्द नहीं निकलते….इस स्टोरी को पढ़ता-पढ़ता मैं अपने अतीत में लौट जाता हूं….मुझे याद आने लगते हैं वो दिन जब आईआईएमसी में प्रियभांशु और निरुपमा एकांत पाने के लिए हम लोगों से भागते-फिरते थे और हम जहां वो जाते उन्हें परेशान करने के लिए वही धमक जाते….हमारा एक अच्छा दोस्त होने के बावजूद प्रियभांशु के चेहरे पर गुस्से की भंगिमाएं होतीं लेकिन हमारी भाभी यानि नीरु के मुखड़े पर प्यारी सी मुस्कान….हम नीरु को ज्यादातर भाभी कहकर ही बुलाते थे.

हालांकि इस बुलाने में हमारी शरारत छुपी होती थी….लेकिन नीरु ने कभी हमारी बातों का बुरा नहीं माना….उसने इस बात के लिए हमें कभी नहीं टोका….नीरु गाती बहुत अच्छा थी….हम अक्सर जब भी मिलते थे नीरु से गाने की फरमाइश जरुर करते और नीरु भी हमारी जिद को पूरा करती….शुरुआती दिनों में हमें इन दोनों के बीच क्या पक रहा है इस बारे में कोई इल्म नहीं था….बाद में एक दिन प्रियभांशु जी ने खुद ही नीरु और अपने सपनों की कहानी हमें बतायी….दोनों एक-दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते थे….दोनों एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे….दोनों अपने प्यार की दुनिया बसाने के सपने संजो रहे थे….मजे की बात ये कि प्रियभांशु बाबू भाभी की हर बात मानने लगे थे….आईआईएमसी के दिनों प्रियभांशु बाबू और मैं सुट्टा मारने के आदि हुआ करते थे….एक दिन जब मैंने प्रियभांशु से सुट्टा मारने की बात कही तो उसने ये कहते हुए मना कर दिया कि नीरु ने मना किया है….मतलब प्रियभांशु पूरी तरह से अपने आप को नीरु के सपनों का राजकुमार बनाना चाहता था….वो क्या चाहती है क्या पसंद करती है प्रियभांशु उसकी हर बात का ख्याल रखता….हालांकि उस वक्त हम उसे अपनी दोस्ती का वास्ता देते लेकिन तब भी वो सिगरेट को हाथ नहीं लगाता…..अचानक वॉइस ओवर रुम के दरवाजे पर थपथपाने की आवाज आती है….

मैं एकदम अपने अतीत से वर्तमान में लौट आता हूं….वर्तमान को सोचकर मेरी रुह कांप उठती है….मेरी आंखें भर आती हैं….टीवी स्क्रीन पर नजर पड़ती है और उस मनहूस खबर से सामना होता है कि वो हंसती, गाती, नीरु अब हमारे बीच नहीं है….समाज के ठेकेदारों ने उसे हमसे छीन लिया है….नीरु अब हमारी यादों में दफन हो चुकी है….नीरू साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुकी है….वो मर्डर मिस्ट्री जिससे पर्दा उठना बाकी है….क्यों मारा गया नीरु को….किसने मारा नीरु को….आखिर नीरु का कसूर क्या था ?….क्या अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनना इस दुनिया में गुनाह है….क्या किसी के साथ अपनी जिंदगी गुजारने का सपना देखना समाज के खिलाफ है….हमें मर्जी से खाने की आजादी है….मर्जी से पहनने की आजादी है….मर्जी से अपनी करियर चुनने की आजादी है तो फिर हमें इस बात की आजादी क्यों नहीं है कि हम किस के साथ अपनी जिंदगी बिताएं….आज ये सवाल मुझे झकझोर रहे हैं….

लेखक अमित कुमार यादव इन दिनों इंडिया न्यूज में कार्यरत हैं.

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0 Comments

  1. ajay sahu

    May 8, 2010 at 8:50 am

    it is just joke that we live in democretik country. inspite of all mordarnity our inner feeling cliched with nerrow thinking. neither we take birth by our own wishes nor we can lead our life as we want. how surprising tha in hindu mythology it is said that we take human birth after 84 lax birth, but we can note live our own life.

  2. राज हरितवाल

    May 8, 2010 at 9:25 am

    आखिर वहीं हुआ जो समझदार पत्रकारों की एक बिरादरी इस बात की मांग कर ही थी कि उस लड़के को भी गिरफ्तार किया जाए जो नीरू को इस अंजाम तक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है…आखिर पुलिस और कानून का काम भी तारीफ के काबिल है….

  3. raj haritwal

    May 8, 2010 at 9:37 am

    मिस्टर अझय साहू आपकी इनर फिलिंग यही है क्या आप किसी लड़की को कुंवारी मां बना दे….तभी लिख रहे है कि inspite of all mordarnity our inner feeling cliched with nerrow thinkinG.

  4. sanjay mishra

    May 8, 2010 at 9:52 am

    लोकतान्त्रिक कहे जाने वाले इस भारत देश में आज भी लगभग १५० साल पुराने बने अंग्रेजो के कानून पर हम चल रहे हैं जिसका जीता जगता उदहारण हमें आसानी से देखने को मिल जायेगा यदि जेलों में धारा ३७६ भा.द.वि के तहत बंद कैदियों की कहानी पर हम गौर करे तो ज्यादातर कैदी अपनी माशूकाओं की सहमती से शारीरिक सम्बन्ध बनाये थे जो बहुत जल्द ही जीवन के परिणय दाम्पत्य सूत्र बंधन में बंधने वाले थे लेकिन इससे पहले वे पहुंचा दिए गए जेल की सलाखों के पीछे…जहाँ उनके केस की सिर्फ पड़ रही है तारीख और सिर्फ तारीख पर तारीख !!!!!!!!

  5. Alka sharma

    May 8, 2010 at 11:26 am

    kunwari ma! kunwari ma! kah kah kar in mardo ne humara jeena mushkil kar dia koi inse puche ki kya kunware baap nahi hote.un par koi ungli kyo nahi uthti.nirupma ko baar baar kunwari ma kyo bola jata hai priyabhanshu ko to koi kunwara baap nahi kahta.shaadi se purv sharirik sambandh banana to lagta hai mardo ka janam siddh adhikar hai.

  6. Hardeep lashkary

    May 8, 2010 at 11:34 am

    Thoo hai aise samaj par, keede makodon ki tarah jeete aadimanav ‘log’ jo parampara ke naam par self satisfactory tark gadhte hain aur hatyaron ke sath khade ho jate hain..

  7. Chandan

    May 8, 2010 at 12:59 pm

    Baat to sahi farma rahe hai Amit babu. Apne v nahi samjhaya tha dono ki najdikiya kuchh had tk hi thik rhti hai. baki bate reel life me achhi lagti real life me nhi. Vivah purv sharirik kisi v tarah se sahi nhi thahraya ja skta. Chahe htya hui ya atmhtya karan to yhi rha na. Priyebhanshu ko itna aage nhi badhna chahiye tha, apne upr kabu rkhna chahiye tha.

  8. MUkesh kumar hissariya

    May 9, 2010 at 1:28 am

    जख्म परोसा चुपके से
    जय माता दी,
    संसार के प्रत्येक अभिभावक जितना ही अपनी संतान में विलक्षणता के लिए लालायित रहते हैं,उतना ही सबके सम्मुख उसे सिद्ध और प्रस्तुत करने को उत्सुक और तत्पर भी रहा करते हैं.ऐसा नही है की सिर्फ अभिभावक ही ऐसा सोचते और करते है उनकी संतान की भी सोच इससे उपर है .पत्रकार निरुपमा पाठक ने भी अपने ऑरकुट अकाउंट में Five things I cant live without के जवाब मे लिखा है -Not five Things rather five people(my family)……I m one of them.परिवार के प्रति उसकी सोच और प्यार की बानगी आप खुद देखए
    जहाँ तक क्षमताओं की बात करें,निश्चित रूप से प्रकृति/ईश्वर ने स्त्रियों को मानसिक रूप से पुरुषों की तुलना में अधिक सबल और सामर्थ्यवान बनाया है.श्रृष्टि रचना का श्रोत पुरुष अवश्य है परन्तु श्रृष्टि की क्षमता स्त्रियों को ही है..संभवतः इसी कारण ईश्वर ने स्त्रियों को शारीरिक बल में पुरुषों से कुछ पीछे कर दिया,क्योंकि यदि दोनों एक साथ स्त्रियों को ही मिल जाता तो इसकी प्रबल सम्भावना थी कि संसार में पुरुषों की स्थिति अत्यंत दयनीय होती.अगर ऐसा नही होता तो ये समाज पुरुष प्रधान समाज नही हो पाता.और अगर ये समाज पुरुष प्रधान समाज नही होता तो आज निरुपमा पाठक हमारे बीच होती . आज की जो स्थिति है उससे तो ये लग रहा है की समाज में अब माँ ,बाप और भाई ही लड़की का भविष्य तय करेंगे लड़की को अपना निर्णय और भविष्य तय करने का कोई अधिकार नही है अगर कोई लड़की गलती करेगी तो उसका भी हाल निरुपमा पाठक वाला होगा.
    सच तो यह है कि हम एक नकली समाज हैं जो भ्रम में जीता है . और माता-पिता इसी समाज का हिस्सा. ऐसे मामलों में वे खुद को ठगा हुआ ही नहीं मृत मान लेते हैं या मार डालते हैं.निरुपमा पाठक के परिवार ने समाज के भय से जो जख्म चुपके से परोश दिया है उसने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कोई दूसरा नही हमलोग ही ऐसे घटनाओं के लिए जिम्मेदार है.
    खुदा न खास्ते कभी किसी के अंतिम संस्कार में जाने का मौका मिले तो ये तय है अंतिम संस्कार में शामिल होने वाला हर सख्स वंहा से लौटने के बाद अपने आप को बदलने का कसम खाता है कुछ दिनों तक गाड़ी ठीक चलती है फिर वही घोडा और वही मैदान .
    इसी तरह कुछ दिनों तक आंसू बहाने के बाद हम (समाज )फिर एक नई घटना की तैयारी में लग जायेंगे.और भूल जाएँगे सारी पिछली घटनाओं को .
    भगवान निरुपमा की आत्मा को शांति दें.
    मुकेश कुमार हिसारिया ,९८३५०९३४४६,
    मेरा ब्लॉग mukesh-hissariya.blogspot.com

  9. MUkesh kumar hissariya

    May 9, 2010 at 1:29 am

    जख्म परोसा चुपके से
    जय माता दी,
    संसार के प्रत्येक अभिभावक जितना ही अपनी संतान में विलक्षणता के लिए लालायित रहते हैं,उतना ही सबके सम्मुख उसे सिद्ध और प्रस्तुत करने को उत्सुक और तत्पर भी रहा करते हैं.ऐसा नही है की सिर्फ अभिभावक ही ऐसा सोचते और करते है उनकी संतान की भी सोच इससे उपर है .पत्रकार निरुपमा पाठक ने भी अपने ऑरकुट अकाउंट में Five things I cant live without के जवाब मे लिखा है -Not five Things rather five people(my family)……I m one of them.परिवार के प्रति उसकी सोच और प्यार की बानगी आप खुद देखए
    जहाँ तक क्षमताओं की बात करें,निश्चित रूप से प्रकृति/ईश्वर ने स्त्रियों को मानसिक रूप से पुरुषों की तुलना में अधिक सबल और सामर्थ्यवान बनाया है.श्रृष्टि रचना का श्रोत पुरुष अवश्य है परन्तु श्रृष्टि की क्षमता स्त्रियों को ही है..संभवतः इसी कारण ईश्वर ने स्त्रियों को शारीरिक बल में पुरुषों से कुछ पीछे कर दिया,क्योंकि यदि दोनों एक साथ स्त्रियों को ही मिल जाता तो इसकी प्रबल सम्भावना थी कि संसार में पुरुषों की स्थिति अत्यंत दयनीय होती.अगर ऐसा नही होता तो ये समाज पुरुष प्रधान समाज नही हो पाता.और अगर ये समाज पुरुष प्रधान समाज नही होता तो आज निरुपमा पाठक हमारे बीच होती . आज की जो स्थिति है उससे तो ये लग रहा है की समाज में अब माँ ,बाप और भाई ही लड़की का भविष्य तय करेंगे लड़की को अपना निर्णय और भविष्य तय करने का कोई अधिकार नही है अगर कोई लड़की गलती करेगी तो उसका भी हाल निरुपमा पाठक वाला होगा.
    सच तो यह है कि हम एक नकली समाज हैं जो भ्रम में जीता है . और माता-पिता इसी समाज का हिस्सा. ऐसे मामलों में वे खुद को ठगा हुआ ही नहीं मृत मान लेते हैं या मार डालते हैं.निरुपमा पाठक के परिवार ने समाज के भय से जो जख्म चुपके से परोश दिया है उसने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कोई दूसरा नही हमलोग ही ऐसे घटनाओं के लिए जिम्मेदार है.
    खुदा न खास्ते कभी किसी के अंतिम संस्कार में जाने का मौका मिले तो ये तय है अंतिम संस्कार में शामिल होने वाला हर सख्स वंहा से लौटने के बाद अपने आप को बदलने का कसम खाता है कुछ दिनों तक गाड़ी ठीक चलती है फिर वही घोडा और वही मैदान .
    इसी तरह कुछ दिनों तक आंसू बहाने के बाद हम (समाज )फिर एक नई घटना की तैयारी में लग जायेंगे.और भूल जाएँगे सारी पिछली घटनाओं को .
    भगवान निरुपमा की आत्मा को शांति दें.
    मुकेश कुमार हिसारिया ,९८३५०९३४४६,
    मेरा ब्लॉग mukesh-hissariya.blogspot.com

  10. ajay sahu

    May 9, 2010 at 5:05 am

    mera naam sa kais na apna vichar daal daya hai ji thhk nai hai mai yasa lago ko yeah batana chahta hu ki koi bhi vichar dana ha to apna naam sa dai kaya unka koi naam nahi hai
    ajay sahu

  11. RAKESH KUMAR SINGH

    May 11, 2010 at 2:06 pm

    jay mata di

    is ghatna ne yah bata diya hai aj hum bhle hi ko 21wi satbdhi me rah rahe ho par soch aj isha purw ka hai, halaki is mamle me pirybhnsu aur nirupma ko sadi se pahle saririk sambandh nahi banana chahiye , lekin parents ko v saym se kaam lena chhiye tha

  12. amaan ahmed

    May 16, 2010 at 2:53 am

    Amit babu mai bhi aap se bilkul sehmat hu aur jo log kuwari ma ya najaiz sambandho ki baat karte hai unko bata du ki do dilo ke sangam jab kisi bhagwan nahi roka to aap kaun hote hai sawaal khre karne wale………………..

  13. Dhananjay Jha

    May 20, 2010 at 9:32 am

    Dear Alka.. i 100% agree with you, kuwara baap bolna chahiye?
    Priyabhanshu ne galat kiya, ussko saza milni chahiye..
    mardo ka janmsid adikaar nahi hai shararik sambhadh banana, wo aapko ko lagta hai, bcoz u r recepient, its a psychological issue
    tc

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