पहले यह तय हो कि निरुपमा की हत्या की गई या उसने आत्महत्या की. अगर आत्महत्या की है तो उसके लिखे सुसाइड नोट को वाकई मार्मिक कहा जाएगा. अगर उसकी हत्या की गई है तो फिर बहुत सोची-समझी साजिश के तहत की गई है और हत्या के पहले पूरी तैयारी की गई. इसी क्रम में सुसाइड नोट को भी अस्तित्व में लाया गया. हत्या की बात सच निकलने पर सुसाइड नोट को ”कथित सुसाइड नोट” कहा जाएगा. फिलहाल सुसाइड नोट के सत्यापन की खातिर उसे फारेंसिक जांच के लिए भेजा गया है.
हम बात कर रहे हैं कि जो सुसाइड नोट है, उसके अंदर लिखा क्या है. निरुपमा पाठक के ‘सुसाइड नोट’ को शनिवार के दिन मां सुधा पाठक की जमानत याचिका के साथ अधिवक्ताओं ने कोडरमा की अदालत में प्रस्तुत किया. सुसाइड नोट के कुछ अंश इस प्रकार है-
”…जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, मुझ पर जिम्मेदारियां बढ़ रही हैं, लेकिन मेरे कंधे चौड़े होते प्रतीत नहीं हो रहे, बल्कि, वे संकीर्ण होते जा रहे हैं. मैं जिम्मेदारियों को उठाने में असहज महसूस कर रही हूं, जो मुझे दी जा रही हैं. जिंदगी मेरे लिए सुंदर रही है. परंतु ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती कि यह आगे भी सुंदर बनी रहेगी. मेरे पास एक सुंदर परिवार है, मैं उसे बहुत प्यार करती हूं. पर मैं निश्चित नहीं कर सकती कि मैं उसे आगे भी प्यार करती रहूंगी. चूंकि मेरी जिंदगी संभावनाओं और असंभावनाओं के इर्द-गिर्द घूम रही है, मैं जीना नहीं चाहती. इसलिए, यह कृत्य मैं कर रही हूं. मेरी आत्महत्या के लिए जीवित चाहे मृत, कोई भी जिम्मेवार नहीं है. जो मुझे जानते हैं, मैं उन्हें सुंदर भविष्य के लिए शुभकामनाएं देती हूं. हो सके तो मेरा अंतिम संस्कार गया जी में करवाया जाए….”
मामला हत्या का है! : पत्रकार निरुपमा पाठक की मौत के मामले में जेल में बंद उसकी मां सुधा पाठक की जमानत याचिका कोडरमा के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने शनिवार को खारिज कर दी। जमानत याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील मुहम्मद रिजवान ने कहा कि एक महिला के लिए फांसी पर लटकी जवान लड़की की लाश को उतार पाना असंभव है। उन्होंने कहा कि मामला पूरी तरह से हत्या का है।
मामला आत्महत्या का है! : याचिका के पक्ष में बहस करते हुए अधिवक्ता यमुना प्रसाद और अरुण कुमार मिश्र ने कहा कि निरुपमा के साथ उसके प्रेमी प्रियभांशु रंजन ने गलत किया था। इसी से तनाव में उसने आत्महत्या की है। आत्महत्या से पहले उसने अपनी हैंडराइटिंग में एक सुसाइड नोट भी लिखकर छोड़ा है। सुधा पाठक के अधिवक्ताओं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी गलत बताया और पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल खड़े किये। बताया गया है कि मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट के आधार पर आत्महत्या का मामला मानते हुए पुलिस ने पहले इसे यूडी (अननेचुरल डेथ) केस दर्ज किया था। साथ ही प्रियभांशु रंजन मीडिया के प्रभाव का इस्तेमाल कर पुलिस पर दबाव बना रहा है।
सीबीआई जांच की मांग : पत्रकार निरुपमा पाठक की मौत के मामले की जांच सीबीआई से कराने के लिए शनिवार को ज्ञापन सौंपा गया। निरुपमा मामले की जांच में स्थानीय पुलिस द्वारा पुख्ता कार्रवाई न करने से खफा निरुपमा के दोस्तों व पत्रकारों ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की। शनिवार को दो सौ से अधिक जेएनयू के छात्रों व पत्रकारों ने प्रेस क्लब से संसद मार्ग तक मौन जुलूस निकाला। इसमें वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय भी शामिल रहे। संसद मार्ग के पास स्थित गोल चक्कर पर तैनात पुलिस बल ने मौन जुलूस को आगे बढ़ने से रोक दिया। इसके बाद गृहमंत्री के नाम का ज्ञापन पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी को सौंपा गया।
ये हैं निरुपमा के सुसाइड नोट के अलग-अलग अंश. कोडरमा से जिन लोगों ने ये सुसाइड नोट भड़ास4मीडिया को उपलब्ध कराए हैं, उनका कहना है कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पत्र निरुपमा ने अपने हाथों से लिखे हैं. सवाल ये उठता है कि क्या निरुपमा अपने प्रेमी और परिवार, दोनों तरफ से हताश-निराश हो चुकी थी जिससे वह आत्महत्या को प्रेरित हुई? या फिर वही सवाल, कि परिजनों ने पूरी तैयारी के साथ निरुपमा को मारा और फर्जी सुसाइड नोट तैयार करा डाला? इन सवालों का जवाब सुसाइड नोट की फोरेंसिक जांच से मिलेगा. इस जांच से ही तय हो सकेगा कि सुसाइड नोट की लिखावट निरुपमा की है या किसी और ने इस पत्र को तैयार कराया है.
पर इतना तो स्पष्ट है कि पुलिस पर काफी दबाव है. ऐसे में बिना दबाव जांच आगे बढ़ाना कोडरमा पुलिस के लिए चुनौती है. दिल्ली और कोडरमा, दोनों जगहों पर आंदोलन किए जा रहे हैं और ये आंदोलन एक दूसरे के खिलाफ हैं. पुलिस पर दबाव बनाने के लिए हैं. दिल्ली के आंदोलनकारी निरुपमा के परिजनों को हत्यारा बता कर पुलिस जांच पर अविश्वास प्रकट कर रहे हैं तो कोडरमा में लोग निरुपमा के परिजनों को निर्दोष बताकर आत्महत्या के लिए प्रियभांशु को जिम्मेदार मान रहे हैं और निरुपमा के परिजनों को परेशान न करने की गुहार लगा रहे हैं. ऐसे में उचित यही है कि पुलिस जांच की फाइनल रिपोर्ट आने तक कोई भी पक्ष न तो दबाव बनाए और न ही सड़क पर उतरे क्योंकि इससे मामला उलझने का खतरा है.
जेसिका लाल मर्डर केस में लोग सड़क पर तब उतरे, मीडिया ने सवाल तब खड़े किए जब पुलिस ने जांच पूरी कर ली और कोर्ट ने फैसला सुना दिया. मामले की दुबारा जांच-पड़ताल की गई और फिर सुनवाई हुई तब जाकर जेसिका को न्याय मिला. पर निरुपमा मामले में तो जांच पूरी होने से पहले ही लोग दबाव बनाने में जुट गए हैं. इस प्रकरण पर एक ब्लागर संतोष ने अपने विचार अपने ब्लाग तूती की आवाज पर प्रकट किए हैं. वे यही सवाल कर रहे हैं कि आखिर बेवजह दबाव क्यों बनाया जा रहा है. संतोष की पोस्ट पढ़ने के लिए आप इस शीर्षक पर क्लिक कर सकते हैं- कोडरमा पुलिस निरुपमा की मौत को हत्या मान रही है तो फिर हायतौबा क्यों?
sudhanshu chouhan
May 17, 2010 at 10:41 am
सूसाइड नहीं साज़िश
यह सूसाइड नोट नहीं बकवास नोट है, जो कथित ही नहीं बल्कि एक फ़्रॉड पत्र है जिसे एक साज़िश के तहत तैयार कराया गया है। एक पत्रकार इतना कमज़ोर नहीं हो सकता, जो समाज के दाकियानुसी सिद्धांतों के आगे अपने प्राणों की बलि दे दे। आज के पत्रकार ख़ासकर निरुपमा जैसी पत्रकार समाज के उन दाकियानुसी विचारों की ऐसी की तैसी करने वाली मज़बूत युवती थी। बस इंसाफ़ की दरकार है, जब सारी साज़िशें परत दर परत खुलती जाएंगी।
sandeep dasan
May 17, 2010 at 12:33 pm
Sudhanshu Chauhan ji Par ek patrakar — Priyabhanshu — aisa napunsak avashya tha ki apni mitra ko garbhvati karne ke baad, uski hatya ki police jaanch mein sahyog karne se teen din tak bachta raha kyonki uske mutabik wo apne pariwar kaakela earning member hai. Aur Nirupma is hijde ke liye apna pariwar chodne ko taiyar thi. Aise Bhadue Patrakaro ka samarthan karne wale kaise hone mai samajh sakta hoon.
atul
May 17, 2010 at 4:08 pm
EKDUM SAHI KAHI NA KAHI PRIYABHANSU KO BACHYA JA RAHA HE. BAKAYDA ISKE LIYE SOCHI SANJHI RANNEETI APNAII GAI HAI TAKI YE AADMI BACH JAYE.
कमल शर्मा
May 18, 2010 at 12:14 pm
निरुपमा पाठक हत्या या आत्महत्या मामले में उसके परिजनों के अलावा जब तक प्रियभांशु से कड़ी पूछताछ नहीं होगी, सच बाहर नहीं आ सकता। हर कोई प्रियभांशु को बचाने में लगा हुआ दिख रहा है। उससे पूछताछ तो होने दो, निर्दोष होगा तो बच ही जाएगा। लेकिन दिल्ली में जिस तरह जुलूस निकल रहे है, जेएनयू में बैठकें हुई हैं और भी जो प्रयास हुए हैं वे सभी प्रियभांशु को बचाने के लिए हो रहे हैं न कि निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए। निरुपमा के मां, बाप और भाई दोषी हो तो उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए, यहां तक कि फांसी की सजा भी दी जाए तो देनी चाहिए। लेकिन प्रियभांशु को बचाने के लिए प्रयास क्यों हो रहे हैं। प्रियभांशु को तो चाहिए भी यही। निरुपमा के बाद फिर दूसरी लड़कियां तलाश करेगा, उन्हें प्रेमजाल में फांसेगा, गर्भवती बनाएगा और यही आत्महत्या, हत्या का मामला होगा। शादी तो खूब मजे कर लेने के बाद कर ही लेगा यह शख्स। कुछ दिनों बाद इसके बयान आएंगे….निरुपमा की मौत ने मुझे अंदर तक तोड़कर रख दिया था। लोग मेरे पर आरोप लगा रहे थे लेकिन मेरी तो पूरी दुनिया उजड़ गई। लेकिन यह और कहीं न कही टांका जरुर भिडा़एगा, सभी लोग देख लेना। निरुपमा मेरी जिंदगी थी, उसके बगैर मैं जीने की कल्पना नहीं कर सकता आदि आदि ढेर सारे बयान आएंगे सामने। सभी के साथ प्रियभांशु से कड़ी पूछताछ नहीं होगी, कुछ बाहर नहीं आएगा।
Rohit
May 18, 2010 at 11:48 pm
एक पत्रकार इतना कमजोर नही हो सकता कि….वो आत्महत्या जैसा कायरतापूर्ण कदम उठाए….इस मामले कि निष्पक्ष जांच होनी चाहिए….औऱ जांच रिर्पोट भी जल्द लोगो के सामने आनी चाहिए…..दिवंगत युवा पत्रकार निरूपमा को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि….