डीजीपी बोले- जल्द खुल जाएगा राज : अंतिम एसएमएस के अर्थ तलाश रही पुलिस : परिजन भी चाहते हैं सच जल्द सामने आए : निरुपमा ने आत्महत्या नहीं की. उसकी हत्या की गई. ऐसा फोरेंसिक रिपोर्ट का कहना है. झारखंड के डीजीपी और एडीजे ने निरुपमा केस की जो प्राथमिक रिपोर्ट तैयार की है उसमें नतीजा निकाला गया है कि निरुपमा को जानबूझकर मारा गया.
झारखंड राज्य फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी ने अपनी रिपोर्ट झारखंड के पुलिस महानिदेशक को सौंपी दी है. इस रिपोर्ट में फोरेंसिक विभाग ने दो ऐसे बिंदुओं पर सवाल उठाए हैं, जिनके आधार पर निरुपमा की हत्या की बात साबित होती है. फोरेंसिक विभाग के सूत्रों के मुताबिक निरुपमा के परिवार ने कहा था कि उसने पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली, लेकिन फोरेंसिक विभाग ने सवाल उठाया है कि अगर ऐसा होता तो पंखे के ब्लेड को नुकसान पहुंचा होता या ब्लेड टेढ़े-मेढ़े हुए होते. फॉरेंसिक विभाग ने पाया कि न ही पंखा और न ही उसके ब्लेड को कोई नुकसान हुआ है. विभाग ने अपनी रिपोर्ट में दूसरा सवाल उठाया है कि निरुपमा के गले पर जो निशान हैं, वे संदेह पैदा कर रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा था कि निरुपमा ने फंदा लगाकर जान दी, लेकिन जो निशान उसके गले पर बने हैं, वे किसी दूसरी तरफ ही इशारा कर रहे हैं.
झारखंड के डीजीपी नेयाज अहमद का कहना है- ”हमने फोरेंसिक व कोडरमा के एसपी की रिपोर्ट प्राप्त कर ली है. हमें दो बड़े सबूत मिले हैं लेकिन अभी और रिपोर्टों को मैं गहनता से देख रहा हूं, जल्दबाजी करना ठीक नहीं है. लेकिन इस शुरुआती रिपोर्ट से तो निरुपमा की हत्या होने की बात निकल रही है. निरुपमा की हत्या केस में हमे आशा है कि अब जल्द ही सारे राज से पर्दा उठ जाएगा. कोडरमा पुलिस की रिपोर्ट में पहले ही निरुपमा की हत्या होने की पुष्टि हो चुकी है. फोरेंसिक रिपोर्ट से इस उलझते हत्या केस को सुलझा लिया जाएगा.”
प्रियभांशु ने बड़ा कदम उठाने की बात क्यों कही? : 29 अप्रैल को सुबह 5.39 बजे निरुपमा द्वारा प्रियभांशु रंजन को भेजे गए एसएमएस में उसकी मौत का रहस्य छिपा है। इस एसएमएस में निरुपमा ने लिखा है- ”…मैं आने की कोशिश करूंगी, तुम पेशेंस रखो और बिना मेरे कहे कोई एक्सट्रीम स्टेप नहीं उठाना। मेरी अंकिता से बात हुई है, तुम अपने आपको कुछ मत करना।” इस एसएमएस संदेश के वाक्यों से जाहिर है कि प्रियभांशु ने कोई बड़ा कदम उठाने की बात निरुपमा की सहेली अंकिता से कही थी, जिसकी बाद में निरुपमा को जानकारी मिल गई थी। पुलिस इस एसएमएस के अर्थ को तलाशने में जुटी है।
पाठक परिवार मर्डर करेगा, पड़ोसी नहीं मानते : झुमरीतिलैया में निरुपमा के पड़ोसियों व परिवार को जानने वालों के गले से यह बात नीचे नहीं उतर रही है कि उच्च शिक्षित और गैर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले इस परिवार के लोग घर की इकलौती बेटी की हत्या जैसा बड़ा कदम उठाएंगे। पूरा परिवार इतना निर्मम कैसे हो जाएगा? वह भी दिन के दस बजे क्योंकि 29 अप्रैल की सुबह साढ़े नौ बजे तक पड़ोसियों ने उसे देखा था। पड़ोस के काली महतो ने पुलिस को दिये बयान में कहा है कि साढ़े नौ बजे उसने अपने बगीचे से खीरा तोड़कर निरुपमा को दिया था। वहीं निरुपमा के फांसी पर लटके होने पर उसे उतारना उसकी मां के लिए मुश्किल काम जरूर था, लेकिन असंभव नहीं। जैसा घर वाले बताते हैं कि सुधा पाठक ने कुर्सी पर चढ़कर फांसी के फंदे को ढीला किया तो निरुपमा का शरीर नीचे गिर गया। इसके बाद तुरंत पड़ोसियों को बुलाया गया और पड़ोसी उसे बोलेरो से पार्वती क्लीनिक ले गए थे। इन बातों की पुष्टि पुलिस ने कर ली है। निरुपमा के परिजन चौतरफा संकट में हैं। बेटी की मौत के बाद मां का जेल जाना और साथ-साथ सामाजिक तौर पर लगे कलंक से परिजन बेचैन हैं। इससे उबरने की छटपटाहट उनमें है। निरुपमा के पिता धर्मेद्र पाठक और भाई समरेंद्र ने कहा कि वे चाहते हैं कि जल्द सत्य सामने आए।
kumar bhawesh
May 18, 2010 at 12:54 pm
बोलेंगे तो बोलोगे की बोलता है.
यशवंत जी निरुपमा मर्डर केस से सम्बंधित ये आपकी पहली story है जिसमे पूर्वाग्रह की बू नहीं आ रही है. पहली बार लगा की आप की इस स्टोरी में कुछ तथ्यों का समावेश किया गया है नहीं तो आपका हर आलेख निरुपमा के माता पिता को ही हत्यारा बता रहा था. दुर्भाग्यवश जिस किसी ने भी आपके आलेख से सहमती नहीं जताई आपने उसके साथ जम कर गालीगलोज की. लेकिन भाई साहब हम जानते है आपके ट्रेंड को इस लिए मै लगातार आपके पोर्टल को पढता रहा. दिल्ली में बैठे आपने और नए उम्र के पत्रकारों ने इसे ओनर किलिंग का मामला बता एक सत्याग्रह छेर तो दिया है लेकिन क्या हमारा यह आन्दोलन ओनर किलिंग के खिलाफ इमानदार प्रयास है या हम आन्दोलन की आर में किसी को बचाने का काम कर रहे है. निरुपमा को जस्टिस मिले इस से मै इत्तेफाक तो जरुर रखता हूँ लेकिन निरुपमा मामले को केवल ओनर किलिंग प्रचारित कर आन्दोलन खरा करने का हिमायती नहीं hun. मै अपने छोटे से शहर में जो सूचना पा रहा हु इससे मै कदापि यह नहीं मान पाउँगा की परिवार वालो ने दिन के १० बजे अपनी बेटी की हत्या की है. अब जबकि फोरेंसिक रिपोर्ट में ये बात आ गयी है की निरुपमा की हत्या hue है तो मामला और उलझता प्रतीत हो रहा है. मेरे दिल्ली के कुछ मित्रो ने मुझे बताया की निरुपमा की हत्या उसके भाई ने अपने मित्रो के सहयोग से करा दी तो किसी मित्र ने बताया की उसका मामा हत्या में शामिल था. तो बिहार के छोटे से शहर से दिल्ली की यात्रा करने वाले उन मित्रो से मै यह कहना चाहता हु की भाई लोग भले आप दिल्ली चले गए लेकिन क्या तुम बिहारी संस्कृति भी भूल गए जहा भाई अपने बहन पर किसी उच्चके की नजर नहीं बर्दास्त कर सकता तो फिर हत्या कैसे करवा सकता ( हत्या करने के लिए शरीर का स्पर्श करना होता है). वो भी एक सुसिक्छित और इज्ज़तदार परिवार. (अभी दोष प्रमाणित नहीं हुआ है) चलो माना की भाई अगर भठिया भी गया तो हत्या के लिए सुबह का समय क्यों चुना जायेगा. मुझे निरुपमा के कमरे से मिला सुसाइड नोट भी भटका रहा है. अगर घर के किसी व्यक्ति ने सुसाइड नोट तैयार की होती तो सीधा साधा नोट तैयार किया जाता. पत्र में लिखी भाषा पत्रकार की भाषा है. डेट में छेरछार बात जहा तक है तो तनाव में लोग भूलते है. बाप और भाई सभी पढ़े लिखे है अब बिहार और झारखण्ड के लोग प्रेम विवाह को मान्यता देने लगे है. ऐसे में हत्या जैसे बरे स्टेप को उठाने की सोच किसी भी मिडल क्लास फॅमिली नहीं सोच सकती. मामला कुछ और भी है. निरुपमा की मौत की वजह सामने आ सके इसके लिए निस्पक्छ आन्दोलन की आवश्यकता है, हम समाज को राह दिखाने वाले जमात से है न की गुमराह करने वाले. भाई एक गुजारिश करूँगा इस पोर्टल के माध्यम से अपने नए उम्र के पत्रकार बंधुओ से जो आँखों में ऊँची उरान का सपना लिए दिल्ली जैसे शहरो की चकाचोंध में अपनी मर्यादा भूल जाते है. पत्रकारिता भले आज की तिथि में व्यवसाय हो गया है लेकिन हमारी कही बातो को आज भी छोटे छोटे शहरो के लोग विस्वसनीयता की नजरो से देखते है. कोई किसी घटना को भले ही अपनी आँखों से देख लेता है लेकिन अगर अगले दिन के अखबार में उस घटना का जिक्र नहीं होता है तो उसे लगता है की शायद मैंने कुछ गलत देख लिया था. तो भाई लोग चलो आप दिल्ली में गिफ्ट के लिए मरो मिटो लेकिन मर्यादा के लिए मरो इस बात के हिमायती नहीं बनो की लरकी का जिस्म हम उसकी मर्जी से ही सही बिना शादी के इस्तेमाल कर सकते है, अब ये तो बताओ भाई की ये बबेला निरुपमा के गर्भवती नहीं रहने पर खरा होता क्या, अपनी बिगरती संस्कृति को बिगारने नहीं सवारने में अपनी हिस्सेदारी दो.
भवेश
kumar bhawesh
May 18, 2010 at 1:10 pm
बोलेंगे तो बोलोगे की बोलता है.
यशवंत जी निरुपमा मर्डर केस से सम्बंधित ये आपकी पहली story है जिसमे पूर्वाग्रह की बू नहीं आ रही है. पहली बार लगा की आप की इस स्टोरी में कुछ तथ्यों का समावेश किया गया है नहीं तो आपका हर आलेख निरुपमा के माता पिता को ही हत्यारा बता रहा था. दुर्भाग्यवश जिस किसी ने भी आपके आलेख से सहमती नहीं जताई आपने उसके साथ जम कर गालीगलोज की. लेकिन भाई साहब हम जानते है आपके ट्रेंड को इस लिए मै लगातार आपके पोर्टल को पढता रहा. दिल्ली में बैठे आपने और नए उम्र के पत्रकारों ने इसे ओनर किलिंग का मामला बता एक सत्याग्रह छेर तो दिया है लेकिन क्या हमारा यह आन्दोलन ओनर किलिंग के खिलाफ इमानदार प्रयास है या हम आन्दोलन की आर में किसी को बचाने का काम कर रहे है. निरुपमा को जस्टिस मिले इस से मै इत्तेफाक तो जरुर रखता हूँ लेकिन निरुपमा मामले को केवल ओनर किलिंग प्रचारित कर आन्दोलन खरा करने का हिमायती नहीं hun. मै अपने छोटे से शहर में जो सूचना पा रहा हु इससे मै कदापि यह नहीं मान पाउँगा की परिवार वालो ने दिन के १० बजे अपनी बेटी की हत्या की है. अब जबकि फोरेंसिक रिपोर्ट में ये बात आ गयी है की निरुपमा की हत्या hue है तो मामला और उलझता प्रतीत हो रहा है. मेरे दिल्ली के कुछ मित्रो ने मुझे बताया की निरुपमा की हत्या उसके भाई ने अपने मित्रो के सहयोग से करा दी तो किसी मित्र ने बताया की उसका मामा हत्या में शामिल था. तो बिहार के छोटे से शहर से दिल्ली की यात्रा करने वाले उन मित्रो से मै यह कहना चाहता हु की भाई लोग भले आप दिल्ली चले गए लेकिन क्या तुम बिहारी संस्कृति भी भूल गए जहा भाई अपने बहन पर किसी उच्चके की नजर नहीं बर्दास्त कर सकता तो फिर हत्या कैसे करवा सकता ( हत्या करने के लिए शरीर का स्पर्श करना होता है). वो भी एक सुसिक्छित और इज्ज़तदार परिवार. (अभी दोष प्रमाणित नहीं हुआ है) चलो माना की भाई अगर भठिया भी गया तो हत्या के लिए सुबह का समय क्यों चुना जायेगा. मुझे निरुपमा के कमरे से मिला सुसाइड नोट भी भटका रहा है. अगर घर के किसी व्यक्ति ने सुसाइड नोट तैयार की होती तो सीधा साधा नोट तैयार किया जाता. पत्र में लिखी भाषा पत्रकार की भाषा है. डेट में छेरछार बात जहा तक है तो तनाव में लोग भूलते है. बाप और भाई सभी पढ़े लिखे है अब बिहार और झारखण्ड के लोग प्रेम विवाह को मान्यता देने लगे है. ऐसे में हत्या जैसे बरे स्टेप को उठाने की सोच किसी भी मिडल क्लास फॅमिली नहीं सोच सकती. मामला कुछ और भी है. निरुपमा की मौत की वजह सामने आ सके इसके लिए निस्पक्छ आन्दोलन की आवश्यकता है, हम समाज को राह दिखाने वाले जमात से है न की गुमराह करने वाले. भाई एक गुजारिश करूँगा इस पोर्टल के माध्यम से अपने नए उम्र के पत्रकार बंधुओ से जो आँखों में ऊँची उरान का सपना लिए दिल्ली जैसे शहरो की चकाचोंध में अपनी मर्यादा भूल जाते है. पत्रकारिता भले आज की तिथि में व्यवसाय हो गया है लेकिन हमारी कही बातो को आज भी छोटे छोटे शहरो के लोग विस्वसनीयता की नजरो से देखते है. कोई किसी घटना को भले ही अपनी आँखों से देख लेता है लेकिन अगर अगले दिन के अखबार में उस घटना का जिक्र नहीं होता है तो उसे लगता है की शायद मैंने कुछ गलत देख लिया था. तो भाई लोग चलो आप दिल्ली में गिफ्ट के लिए मरो मिटो लेकिन मर्यादा के लिए मरो इस बात के हिमायती नहीं बनो की लरकी का जिस्म हम उसकी मर्जी से ही सही बिना शादी के इस्तेमाल कर सकते है, अब ये तो बताओ भाई की ये बबेला निरुपमा के गर्भवती नहीं रहने पर खरा होता क्या, अपनी बिगरती संस्कृति को बिगारने नहीं सवारने में अपनी हिस्सेदारी दो.
भवेश
Prem
May 18, 2010 at 3:18 pm
Koi purv premi to nhi hai iske pichhe? Ye v ek khoj ka vishay hai. Kyuki priyebhanshu delhi me tha, gharwale aisa kr nhi skte, ye atmhtya nhi htya hai. To yhi ho skta hai ki koi tisra pench ho..