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दुख-दर्द

निरुपमा के लिए आईआईएमसी में आज शांति सभा

नीरू की मौत (5) : भारतीय जनसंचार संस्थान के 2008-09 सत्र की रेडियो और टीवी पत्रकारिता की छात्रा निरुपमा पाठक के निधन से उनके सभी दोस्त और जानने वाले सदमे में हैं. निरुपमा के परिचितों को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि निरुपमा इस दुनिया में अब नहीं रहीं.

<p style="text-align: justify;"><strong>नीरू की मौत (5) : </strong>भारतीय जनसंचार संस्थान के 2008-09 सत्र की रेडियो और टीवी पत्रकारिता की छात्रा निरुपमा पाठक के निधन से उनके सभी दोस्त और जानने वाले सदमे में हैं. निरुपमा के परिचितों को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि निरुपमा इस दुनिया में अब नहीं रहीं.</p>

नीरू की मौत (5) : भारतीय जनसंचार संस्थान के 2008-09 सत्र की रेडियो और टीवी पत्रकारिता की छात्रा निरुपमा पाठक के निधन से उनके सभी दोस्त और जानने वाले सदमे में हैं. निरुपमा के परिचितों को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि निरुपमा इस दुनिया में अब नहीं रहीं.

निरुपमा के चले जाने के दुख को बांटने और उनकी आत्मा की शांति के लिए उनके मित्रों ने आज एक मई, शनिवार को आईआईएमसी परिसर में शाम 4.30 बजे एक शांति सभा का आयोजन किया गया है. निरुपमा के साथियों ने शांति सभा में पत्रकारों, छात्रों, आईआईएमसी शिक्षकों व परिचितों के शामिल होने का अनुरोध किया है.

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0 Comments

  1. Dheeraj Prasad

    May 1, 2010 at 7:27 am

    नमस्कार मित्रो — धीरज प्रसाद ( CNEB NEWS ) नॉएडा से , ( आपसे अनुरोध है की मेरी लेखनी को बिना कुछ विचारे प्रकाशित करें
    निरुपमा के चले जाने से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता, जो बेटियो को बोझ मानते है और उनको भी किसी बात का कोई मलाल नहीं होगा जो बेटियो को काबिल बना कर खुद ही उसकी आवाज़ दबाते हैं|
    फर्क तो उन्हें है, जो सच्चाई को दिया बना कर राहों को रोशन करते चलते है, फर्क उन्हें पड़ेगा जो अपनी उम्र को नहीं देखते की हम कितने के है, पर चल देते है, समाज की कालिमा से लड़ने | सबसे ज्यादा फर्क तो उन बच्चो पर बढेगा जो निरुपाम को अपना आदर्श मानते थे उन छात्राओ पर इस पाप का खास फर्क पड़ेगा जो माँ- पिता को जीवन का आदर्श मान कर आगे बढ़ाते है | खैर- जो हो जाता है उसे नहीं बदला जा सकता | पर अपनी इंसानियत / अपनी सोंच को तो बदला जा सकता है |
    आज निरुपमा हमारे बिच नहीं है, पर उनकी क़ाबलियत है, उनका विश्वास है, जो यह कहता है :-
    मै नहीं रही तो क्या,
    तुम दीप फिर भी जलाते रहना |
    रखना रोशन उन राहों को
    जिनपे जिनपे बद छाता हो
    टूट पड़ना उन पर जो समाज को खाता है
    कहना उन परिवारों से
    जो बेटियो को सपने दिखता है
    और दम घोंट कर पछताता है
    मै नहीं रही तो क्या,
    तुम दीप फिर भी जलाते रहना |
    धन्यवाद् –आपका मित्र
    धीरज प्रसाद
    CNEB न्यूज़

  2. Dheeraj Prasad

    May 1, 2010 at 7:32 am

    नमस्कार मित्रो — धीरज प्रसाद ( CNEB NEWS ) नॉएडा से , ( आपसे अनुरोध है की मेरी लेखनी को बिना कुछ विचारे प्रकाशित करें
    निरुपमा के चले जाने से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता, जो बेटियो को बोझ मानते है और उनको भी किसी बात का कोई मलाल नहीं होगा जो बेटियो को काबिल बना कर खुद ही उसकी आवाज़ दबाते हैं|
    फर्क तो उन्हें है, जो सच्चाई को दिया बना कर राहों को रोशन करते चलते है, फर्क उन्हें पड़ेगा जो अपनी उम्र को नहीं देखते की हम कितने के है, पर चल देते है, समाज की कालिमा से लड़ने | सबसे ज्यादा फर्क तो उन बच्चो पर बढेगा जो निरुपाम को अपना आदर्श मानते थे उन छात्राओ पर इस पाप का खास फर्क पड़ेगा जो माँ- पिता को जीवन का आदर्श मान कर आगे बढ़ाते है | खैर- जो हो जाता है उसे नहीं बदला जा सकता | पर अपनी इंसानियत / अपनी सोंच को तो बदला जा सकता है |
    आज निरुपमा हमारे बिच नहीं है, पर उनकी क़ाबलियत है, उनका विश्वास है, जो यह कहता है :-
    मै नहीं रही तो क्या,
    तुम दीप फिर भी जलाते रहना |
    रखना रोशन उन राहों को
    जिनपे जिनपे बद छाता हो
    टूट पड़ना उन पर जो समाज को खाता है
    कहना उन परिवारों से
    जो बेटियो को सपने दिखता है
    और दम घोंट कर पछताता है
    मै नहीं रही तो क्या,
    तुम दीप फिर भी जलाते रहना |

    धन्यवाद् –आपका मित्र
    धीरज प्रसाद
    CNEB न्यूज़

  3. Dheeraj Prasad

    May 1, 2010 at 9:51 am

    नमस्कार मित्रो — धीरज प्रसाद ( CNEB NEWS ) नॉएडा से , ( आपसे अनुरोध है की मेरी लेखनी को बिना कुछ विचारे प्रकाशित करें
    निरुपमा के चले जाने से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता, जो बेटियो को बोझ मानते है और उनको भी किसी बात का कोई मलाल नहीं होगा जो बेटियो को काबिल बना कर खुद ही उसकी आवाज़ दबाते हैं|
    फर्क तो उन्हें है, जो सच्चाई को दिया बना कर राहों को रोशन करते चलते है, फर्क उन्हें पड़ेगा जो अपनी उम्र को नहीं देखते की हम कितने के है, पर चल देते है, समाज की कालिमा से लड़ने | सबसे ज्यादा फर्क तो उन बच्चो पर बढेगा जो निरुपाम को अपना आदर्श मानते थे उन छात्राओ पर इस पाप का खास फर्क पड़ेगा जो माँ- पिता को जीवन का आदर्श मान कर आगे बढ़ाते है | खैर- जो हो जाता है उसे नहीं बदला जा सकता | पर अपनी इंसानियत / अपनी सोंच को तो बदला जा सकता है |
    आज निरुपमा हमारे बिच नहीं है, पर उनकी क़ाबलियत है, उनका विश्वास है, जो यह कहता है :-
    मै नहीं रही तो क्या,
    तुम दीप फिर भी जलाते रहना |
    रखना रोशन उन राहों को
    जिनपे जिनपे बद छाता हो
    टूट पड़ना उन पर जो समाज को खाता है
    कहना उन परिवारों से
    जो बेटियो को सपने दिखता है
    और दम घोंट कर पछताता है
    मै नहीं रही तो क्या,
    तुम दीप फिर भी जलाते रहना |
    धन्यवाद् –आपका मित्र
    धीरज प्रसाद
    CNEB न्यूज़

  4. santosh valmeeki

    May 2, 2010 at 2:59 pm

    IIMC ke sabhi mitron…NIRUPMA ki mout se hum sabhi dukhi hain,Bhagwan unki AATMMAA ko shanti den aur jinhone unhe mout ke mooh me dhakelaa unhe sadbuddhi….

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