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दुख-दर्द

अगर ये हत्या है तो दोहरा हत्याकांड है

निरुपमा पाठकनीरू की मौत (8) : नीरू हमें माफ़ करना : फर्ज़ी सुसाइड नोट? आत्महत्या का नाटक? हत्या की पूरी तैयारी.?? अपनी ही बेटी की हत्या? उसका कुसूर क्या था… प्रेम करना? या प्रेम को विवाह में बदलने की इच्छा? और अगर ये हत्या है तो फिर ये दोहरा हत्याकांड है. निरुपमा की तस्वीर को कम से कम दो-तीन बार ध्यान से ज़रूर देखिएगा. आपको तस्वीर में कहीं न कहीं अपनी बेटी-बहन ज़रूर नज़र आएगी. और अगर नहीं आती है तो फिर अपने आप को आइने में दो-चार बार ज़रूर देखिएगा कि आपमें इंसान होने के कितने लक्षण बचे हैं. पर सवाल आपके इंसान होने या न होने का भी नहीं है, सवाल तो केवल और केवल ये है कि आखिर कैसे और कब हम इंसान होने की मूलभूत अहर्ताएं भी हासिल कर पाएंगे.

निरुपमा पाठक

निरुपमा पाठकनीरू की मौत (8) : नीरू हमें माफ़ करना : फर्ज़ी सुसाइड नोट? आत्महत्या का नाटक? हत्या की पूरी तैयारी.?? अपनी ही बेटी की हत्या? उसका कुसूर क्या था… प्रेम करना? या प्रेम को विवाह में बदलने की इच्छा? और अगर ये हत्या है तो फिर ये दोहरा हत्याकांड है. निरुपमा की तस्वीर को कम से कम दो-तीन बार ध्यान से ज़रूर देखिएगा. आपको तस्वीर में कहीं न कहीं अपनी बेटी-बहन ज़रूर नज़र आएगी. और अगर नहीं आती है तो फिर अपने आप को आइने में दो-चार बार ज़रूर देखिएगा कि आपमें इंसान होने के कितने लक्षण बचे हैं. पर सवाल आपके इंसान होने या न होने का भी नहीं है, सवाल तो केवल और केवल ये है कि आखिर कैसे और कब हम इंसान होने की मूलभूत अहर्ताएं भी हासिल कर पाएंगे.

नीरू के लिए उसके दोस्त कहते हैं कि वो एक बेहद हंसमुख लड़की थी. उसके सहपाठी कहते हैं कि वो एक अव्वल छात्रा थी. उसके सहकर्मी कहते हैं कि वो होनहार पत्रकार भी थी. फिर आखिर कैसे उसके घरवाले ये शिकायत कर सकते थे कि वो एक अच्छी बेटी नहीं थी. उसका कुसूर सिर्फ इतना था कि उसने अपनी पसंद के एक लड़के से प्रेम करने की हिम्मत कर दी थी…. और उस प्रेम को वो केवल जवानी के दिनों की यादों में संजो कर नहीं रखना चाहती थी, वो उसे विवाह के मुकाम पर पहुंचाना चाहती थी. नीरू नौकरी कर रही थी. आत्मनिर्भर थी. वो चाहती तो घर वालों से छुप कर भी शादी रचा सकती थी और फिर क्या कर लेते उसके वो घरवाले जिन्होंने अपनी ही. कहते भी हलक सूखता है….

नीरू की गलती थी कि वो सही रास्ते से अपनी मंज़िल पाना चाहती थी. अगर नीरू बिना घरवालों की मर्ज़ी के ये शादी कर लेती तो ज़्यादा से ज़्यादा एक दो साल बाद यही लोग उसे वापस अपना लेते. पर हमारे तथाकथित सभ्य समाज को सीधे और सरल तरीके पसंद ही कहां हैं. हमारी गौरवशाली संस्कृति का दम भरने वाले ठेकेदार अब कहां हैं. और क्या नाम देंगे इसे…

अफसोस ये भी है कि नीरू एक पत्रकार थी…. उसे कई और ज़िंदगियों को रोशन करना था पर वो खुद ही बुझ गई… उसे उन्होंने ही बुझा डाला जिन्होंने उसे रोशनी दी थी…. मैं जानता हूं कि अभी भी कई लोग सवाल करेंगे कि क्या गारंटी है कि नीरू ने आत्महत्या नहीं की उसका क़त्ल हुआ है…. तो एक बार उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पूरा ज़रूर पढ़ें…. चलिए आपको बता ही देते हैं सरल भाषा में ये क्या कहती है….

  • उसकी श्वसन नली में कंजेशन था….

  • उसके दोनो फेफड़ों में भी कंजेशन था…

  • ह्रदय के दोनो कोष्ठों में रक्त था…

  • उसके लिवर में कंजेशन था….

  • उसकी किडनी में कंजेशन था…

  • स्प्लीन में कंजेशन था…

मतलब कुल जमा ये कि उसकी मौत दम घुटने से हुई… और ये सामान्य बुद्धि है कि कोई भी अपना गला खुद घोंट कर आत्महत्या नहीं कर सकता है…. लेकिन सबसे दर्दनाक सच सामने लाती है पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की आखिरी लाइन…..
“उसके गर्भाशय में 10-12 हफ्ते का शिशु भ्रूण था”

बहुत से लोग अब इस पर भी उंगलियां उठाएंगे… नाक-भौं सिकोड़ेंगे… क्योंकि समाज की सभ्यता का यही तकाज़ा है…. किसी को नहीं बख्शेंगे ये लोग…. पर मैं केवल ये जानता हूं कि अगर ये हत्या है तो ये दोहरा हत्याकांड है…. क्या कहूं…. जिस धर्म-जाति और ईश्वर की ये समाज दुहाई देता है क्या वाकई उसका कोई अस्तित्व भी है…. क्या ये वही लोग हैं जो साल में दो बार 8 दिनों तक नारी शक्ति की पूजा पाठ कर्मकांड कर के नवें दिन कन्याओं के पैर छूते हैं…. नीरू के शरीर में पल रहा भ्रूण जिस किसी का भी अंश था.. मैं उसे नहीं जानता….पर क्या पुरुषों के लिए भी ऐसी ही सज़ा होगी…. क्या उस बच्चे में उस पुरुष का अंश नहीं है…. या सारी गलती नीरू की ही थी…

ज़ाहिर है अब मैं भावुक हो रहा हूं… और हमारे सभ्य समाज में भावुक केवल सामाजिक प्रतिष्ठा और दकियानूसी नियमों को लेकर हुआ जाता है… मानवीय नीतियों और मूल्यों को लेकर नहीं…. ये भी एक नियम ही है…..

माफ करना नीरू हम तुम्हें बचा नहीं पाए… पर क्या अफसोस करें तुम्हारे जैसी हज़ारों नीरू हम खो चुके हैं… शायद खोते भी रहेंगे…. मेरा पुनर्जन्म में कतई यकीन नहीं है… पर मैं जानता हूं एक और नीरू कहीं और जन्म ले चुकी है… उसकी होनी में क्या लिखा है…. हक… या मौत……

पूरे प्रकरण का सबसे दुखदायी पहलू ये है कि मीडिया जिसका नीरू हिस्सा थी… टीवी या प्रिंट…. लगभग मुंह सिले हुए है… क्यों? वे ही बेहतर जानेंगे…

मयंक सक्सेना

मयंक सक्सेना

अगर आपको लगता है कि नीरू को न्याय मिलना चाहिए तो आप भी चार शब्द तो लिख ही सकते हैं….

 

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लेखक मयंक सक्सेना प्रतिभाशाली युवा पत्रकार हैं. उन्होंने ये विचार अपने ब्लाग पर प्रकट किए हैं. वहीं से इस आलेख को साभार लेकर यहां प्रकाशित किया जा रहा है.

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0 Comments

  1. Raj Agarwal

    May 3, 2010 at 10:51 am

    Dear All

    Just like “Jessica Lal Murder case” or “Ruchika – Rathode case” where the media played a very important and crucial role in assisting judiciary to identify the culpurits and bring them to task, in this case also Media should play an active role……

    I would urge all our fellow members of media, to enroute the case and assist the judiciary….

  2. ashish pandey

    May 3, 2010 at 1:43 pm

    aakhir kab-tak sanatan dharm ke nam par masumo ki bali li jayegi…. sanatan dharm to ye hai ki bekasoor aur pidit ko nyay mile… bhale hi vo bekasoor is duniya mai nahi ho….. nirupma ke hatyaro ko kadi se kadi saza mile taki aane wale bhavishya mai kisi aur nirupma ke sath aisa nahi ho….
    …. hardik shok ke sath

  3. shekahr mallick

    May 3, 2010 at 4:05 pm

    मुझे इंसान होने पर शर्म आती है. क्या प्रेम करना गुनाह है? तो फिर ये सनातनी लोग (निरुपमा का बाप) राधा-कृष्ण की पूजा कैसे करता होगा? मेरे पास अफ़सोस करने को शब्द नहीं है. इस जघन्य मानवीय अपराध के विरोध में जहाँ भी, जिस रूप में भी हो, मेरा विरोध दर्ज किया जाय.

  4. Divya pandey

    May 3, 2010 at 5:11 pm

    maan baut udaas hai ye sab dekh kar….kaise ho gaya ye sab…yakin nahi hota…sharm to aati hai…magar aaj ye kahna hoga ki brahmin kripaya kattar brahmin na bane…kyonki agar vo kattar ho jaate hain to fir vo brahmin nahi rah jaate ….or aatmik prem koi paap nahi.

  5. ashwani kumar rai

    May 3, 2010 at 5:34 pm

    jab tak keval ladaki ko pagadi manane ki parampra rahegi tab tak yesi ghatanayen hongi.

  6. raj

    May 3, 2010 at 7:15 pm

    mayank bhai ek baap aur ek bai bankar bhi sochiye….–nak katane me nirupama ne bhi kasar nahi chhodi….woh yahan delhi me gulchhrey uda rahi thi aur usne pariwar ke vishwas ka katl kiya…waise bhi delhi me rahkar pad rahi ladkiya yahi to kar rahi hai….

  7. sudeep panchbhaiya

    May 4, 2010 at 5:08 am

    ye Kya ho raha hai patraka Ghar me bhe surkshit nagi rah gaye hain Nirupama ki maut samaj ke chehre par tamacha hai. Media ko aage aana hoga.[quote][/quote]:)

  8. मयंक सक्सेना

    May 4, 2010 at 8:23 am

    राज भाई,
    आप जो भी हों…आप एक भाई बन कर सोचने की बात कह रहे हैं और गुलछर्रे जैसा शब्द पिरयोग कर रहे हैं…सामाजिक मर्यादा की दुहाई दे रहे हैं और दिल्ली में रह रही सारी लड़कियों की मानहानि कर रहे हैं….
    चलिए बताइए…लड़के क्या कर रहे हैं यहां….भाई बन कर सोचने से पहले मैं इंसान बन कर सोचना चाहूंगा…अगर आप पत्रकार हैं तो ये पुरुष प्रधान मानसिकता दिमाग से निकाल दें…और भाई होने की बात कर के स्त्री जाति के खिलाफ़ ऐसी बातें….
    गुलछर्रे उड़ाने की बात होती तो वो शादी की बात ही न करती…और पिर सारी बंदिशें लड़कियों पर ही क्यों….
    मैं समज नहीं पाया आप क्या कहना चाहते हैं…वैसे किसी की भाषा ुसकी मानसिकता की परिचायक होती है …मैं ऐसा मानता हूं….महाभारत में जिस कुंती को हम और पांडवों की मां मान पूजते रहे…वो भी अविवाहित मां थी….कर्ण उनका वह पुत्र था…और जिसे पांडवों ने भी भाई सा ही मान दिया…किस तरह की बातें करते हैं…और कोन सी संस्कृति की दुहाई देते हैं आप…..
    आपका
    मयंक सक्सेना
    9310797184

  9. raj

    May 4, 2010 at 11:49 am

    mayank bhai…mai jo kahna chah raha tha ab uske paksh me kai comment aur ek pura passage chapa hai bhadas me…dekhiye…rahi baat aapne kaha ki kunti ki…pooja kunti ki nahi es desh me sita ki hoti hai…jisne 14 saal apni ijjat ki raksha ki…2 saal me hi maa bankar ayodhya nahi loti thi

  10. updesh saxena

    May 4, 2010 at 1:14 pm

    भाई मयंक, निरुपमा मामले में केवल आपकी सक्रियता से प्रशासन और मीडिया की आँखें खुली हैं, इसके लिए हार्दिक धन्यवाद. इसी के साथ मीडिया का एक निर्मोही चेहरा भी सामने आ गया. मीडियाकर्मियों को दिल से इस बात को सोचना चाहिए कि कहीं नीरू हमारी बहन-बेटी होती तब भी क्या वे मौन रहते, प्रशासन तो पहले से ही गूंगा-बहरा होता है. आपकी यह पोस्ट http://www.awajantarmanki.blogspot.com पर किन्ही राजेश शुक्ल के नाम से भी प्रकाशित हुई है. यह सज्जन ब्लाग पोस्ट चोर हैं, दो दिन पहले इन्होने मेरे ब्लॉग http://www.aidichoti.blogspot.com से मेरी भी पोस्ट चुराकर अपने ब्लॉग पर लगा ली थी, तमाम कड़ी टिप्पणियों के बावजूद यह सज्जन नहीं सुधरे हैं. उपदेश सक्सेना, 8010308064

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