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दोस्तों से छल दोस्त ही करने लगे हैं दोस्तों !

अगड़म-बगड़म : क्या जमाना आ गया है दोस्तों। दोस्त से छल दोस्त ही करने लगे हैं दोस्तों!! नेताओं से भी ज्यादा शातिर होते जा रहे हैं अपने मीडियाकर्मी भाई-बंधु। मीडियाकर्मी अपने ही मीडियाकर्मी साथियों का हक छीनने लगे हैं। बेचारी, अमृतसर की मीडिया, जिसे अब तक खबर ही नहीं कि जालंधर के उन्हीं के मीडियाकर्मी साथियों ने किस तरह उन्हें चपत लगा दी है। मामला कुछ यूं है। जालंधर में कुछ पत्रकारों के सिर पर क्रिकेट डिप्लोमेसी का भूत सवार हुआ। ये पत्रकार हर रविवार किसी न किसी टीम से मैच खेलते हैं और इसी बहाने अपने सामाजिक संबंध प्रगाढ़ करते हैं। हालांकि यह बात अलग है कि इस टीम में खेलने वाले अधिकतर पत्रकारों का पत्रकारिता से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है।

<p><font color="#ff0000">अगड़म-बगड़म</font> : क्या जमाना आ गया है दोस्तों। दोस्त से छल दोस्त ही करने लगे हैं दोस्तों!! नेताओं से भी ज्यादा शातिर होते जा रहे हैं अपने मीडियाकर्मी भाई-बंधु। मीडियाकर्मी अपने ही मीडियाकर्मी साथियों का हक छीनने लगे हैं। बेचारी, अमृतसर की मीडिया, जिसे अब तक खबर ही नहीं कि जालंधर के उन्हीं के मीडियाकर्मी साथियों ने किस तरह उन्हें चपत लगा दी है। मामला कुछ यूं है। जालंधर में कुछ पत्रकारों के सिर पर क्रिकेट डिप्लोमेसी का भूत सवार हुआ। ये पत्रकार हर रविवार किसी न किसी टीम से मैच खेलते हैं और इसी बहाने अपने सामाजिक संबंध प्रगाढ़ करते हैं। हालांकि यह बात अलग है कि इस टीम में खेलने वाले अधिकतर पत्रकारों का पत्रकारिता से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है। </p>

अगड़म-बगड़म : क्या जमाना आ गया है दोस्तों। दोस्त से छल दोस्त ही करने लगे हैं दोस्तों!! नेताओं से भी ज्यादा शातिर होते जा रहे हैं अपने मीडियाकर्मी भाई-बंधु। मीडियाकर्मी अपने ही मीडियाकर्मी साथियों का हक छीनने लगे हैं। बेचारी, अमृतसर की मीडिया, जिसे अब तक खबर ही नहीं कि जालंधर के उन्हीं के मीडियाकर्मी साथियों ने किस तरह उन्हें चपत लगा दी है। मामला कुछ यूं है। जालंधर में कुछ पत्रकारों के सिर पर क्रिकेट डिप्लोमेसी का भूत सवार हुआ। ये पत्रकार हर रविवार किसी न किसी टीम से मैच खेलते हैं और इसी बहाने अपने सामाजिक संबंध प्रगाढ़ करते हैं। हालांकि यह बात अलग है कि इस टीम में खेलने वाले अधिकतर पत्रकारों का पत्रकारिता से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है।

पिछले दिनों इस टीम ने अमृतसर की मीडिया को जालंधर में बुलाया और मैच खेला। मैच में मुख्य मेहमान पंजाब प्रेस क्लब के प्रधान बनाए गए। प्रधान साहब की दरियादिली देखिए, खेल प्रमोशन के लिए 11 हजार रुपये ईनाम देने की घोषणा कर दी। इसमें 5 हजार रुपये अमृतसर और 6 हजार रुपये जालंधर की टीम को देना तय हुआ। क्रिकेट किट की कमी से जूझ रही अमृतसर की टीम ने यह पैसा जालंधर से सस्ता क्रिकेट सामान खरीदने के लिए अग्रिम भुगतान के तौर पर जालंधर की टीम को दे दिया। जालंधर के कुछ पत्रकार खेल सामान निर्माता एक प्रसिद्ध फैक्ट्री में पहुंचे। इस फैक्ट्री के दयालु स्वभाव के मालिक ने अमृतसर की मीडिया के नाम पर ये सामान उन्हें स्पांसर कर दिया और पैसा नहीं लिया।

अब जालंधर के ये पत्रकार अपने संबंधों का फायदा अमृतसर के पत्रकारों को मिलता देख सोच में पड़ गए। यदि ये लोग अमृतसर को सामान फ्री में देते तो अमृतसर के पत्रकारों को 5 हजार रुपये भी देने पड़ते और अमृतसरियों को सामान भी फ्री में मिल जाता। इन पत्रकारों ने बाजार से 5 हजार रुपये का सामान खरीद कर अमृतसर भेज दिया और फैक्ट्री मालिक द्वारा दिया गया सामान खुद रख लिया। दरअसल, फैक्ट्री मालिक कभी किसी को ‘ना’ नहीं बोलते और जालंधर की टीम को सारा सामान वो पहले ही फ्री में दे चुके हैं।

इन पत्रकारों ने न सिर्फ उनके विश्वास को तोड़ा बल्कि अमृतसर के अपने ही पत्रकार भाइयों के साथ छल किया। ऐसे में न तो अमृतसर की मीडिया को यह पता चल पाया कि जालंधर के खेल सामान निर्माता ने उनका सम्मान कर फ्री में सामान भेजा है और न ही फैक्ट्री मालिक को यह पता लगा कि उनके द्वारा फ्री में दिया गया सामान अमृतसर पहुंच पाया या नहीं। झक्की के संज्ञान में यह मामला आया है तो आदत के मुताबिक इस अगड़म-बगड़म को उगलना ही पड़ा। बस एक अनुरोध है, यह सब पढ़ने के बाद क्रिकेट खेलने वाली दोनों टीमें आपस में सिर फोड़ने का खेल न खेलने लगें।

लेखक झक्की दारूवाला मीडिया की आफ द रिकार्ड खबरों के ज्ञाता और भड़ास4मीडिया के व्याख्याता हैं। ये अक्सर दारू में टुन्न रहते हैं और खुद से भी सुन्न रहते हैं, लेकिन ये सब जानते हैं। आप इन तक पत्रकारिता की कोई भी अकथ कहानी अगड़म-बगड़म कालम में प्रकाशित होने के लिए भेजना चाहते हैं तो [email protected] पर मेल करें और सब्जेक्ट लाइन में ”अगड़म-बगड़म” या ”agdam-bagdam” जरूर लिखें ताकि झक्की भाई साहब को दिक्कत न हो।
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