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ओम प्रकाश तपस का जाना

[caption id="attachment_17339" align="alignleft" width="99"]स्वर्गीय ओमप्रकाश तपसस्वर्गीय ओमप्रकाश तपस[/caption]बात छह साल पहले की है। कई दिनों बाद ओम प्रकाश तपस से मुलाकात हुई थी। वह अपने नवभारत टाइम्स के दफ्तर से लौटकर आईटीओ से पैदल ही दरियागंज के मेरे दफ्तर में हाजिर हुए। काम निपटाकर मैं उनके साथ निकला। वे बोले, आईटीओ तक पैदल चलते हैं। थोड़ा ही चले कि एक आइसक्रीम वाली रेहड़ी दिखी।

स्वर्गीय ओमप्रकाश तपस

स्वर्गीय ओमप्रकाश तपस

स्वर्गीय ओमप्रकाश तपस

बात छह साल पहले की है। कई दिनों बाद ओम प्रकाश तपस से मुलाकात हुई थी। वह अपने नवभारत टाइम्स के दफ्तर से लौटकर आईटीओ से पैदल ही दरियागंज के मेरे दफ्तर में हाजिर हुए। काम निपटाकर मैं उनके साथ निकला। वे बोले, आईटीओ तक पैदल चलते हैं। थोड़ा ही चले कि एक आइसक्रीम वाली रेहड़ी दिखी।

मैंने कहा तपस जी, आज आइसक्रीम खाते हैं। उन्होंने मुझे घूरा। शायद यह याद दिलाने के लिए कि बंधु भूलो नहीं कि हम दोनों डाइबिटीज वाले हैं। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, तो ऐसा करते हैं सेंगर जी, सबसे महंगी वाली आइसक्रीम खाते हैं। मैं कुछ हैरान हुआ क्योंकि वे अक्सर महंगी आदतों पर भाषण पिला देते थे। मैंने 100 रुपये का नोट निकाला। उन्होंने नोट लिया और आइसक्रीम वाली रेहड़ी के आगे चल दिए।

रास्ते में एक लाचार वृद्धा पटरी पर बैठी थी। तपस जी ने उससे कुछ पूछा, फिर उसे लगे डांटने। उसे भीख मांगने की जगह कामकाज करने की नसीहत देने लगे। इसी बीच उस महिला ने कोई दर्दनाक किस्सा बता दिया। फिर तो वे पिघल गए। उन्होंने ‘आइसक्रीम’ वाला 100 रुपये का नोट उसे दिया और आगे बढ़ गए। मैं चुप था। वे जोर से खिलखिलाए। बोले, इस ‘आइसक्रीम’ में मजा आया। शरीर और आत्मा दोनों को ठंडक मिली। इस ‘आइटम’ ने हमारी सेहत को भी नुकसान नहीं होने दिया। वह बेचारी इससे दो दिन का भोजन करेगी। अक्सर उनका ऐसा खिलंदड़ अंदाज होता था।

मैं करीब दो दशक से उन्हें करीब से जानता था। वंचितों के लिए उनके मन में करुणा का भाव था। मामला जब इनका हो तो वे निरपेक्षता की नीति को ताक पर रख देते थे। कहते थे कि इनकी हिमायत में खड़ा होना, एक पत्रकार की पहली जिम्मेदारी है। वे केवल लिखते ही नहीं थे, अपने जीवन में भी इसे उतारने की कोशिश करते थे। लंबे समय तक स्वतंत्र लेखन करने के बाद वे जनसत्ता (चंडीगढ़) से जुड़े थे। रिपोर्टिंग के दौरन पंजाब में तमाम सामाजिक संगठनों से इनकी करीबी हुई थी। मित्र संगठनों में भी उन्हें कुछ पाखंड दिखता, तो वे कलम चला देते थे। इसीलिए वे अपनी मित्र मंडली में ‘खाड़कू’ कहे जाते थे। तब जनसत्ता में उनके बड़े भाई बनवारी कार्यकारी संपादक हुआ करते थे लेकिन तपस ने कभी कोशिश नहीं की कि उन्हें बनवारी का भाई होने का कोई लाभ मिले। कई बार तो वे उनके लेखों के प्रति अपने मतभेदों की जमकर चर्चा भी करते थे।

नवभारत टाइम्स में वे लगभग डेढ़ दशक तक स्थानीय रिपोर्टिंग से जुड़े रहे। सिखों व मुस्लिम राजनीति के तमाम तानो-बानों की गहरी पहचान उन्हें हो गई थी। चाहे भूमि अधिग्रहण के मामलों में दिल्ली के किसानों की समस्याएं हों या सिखों के सामाजिक संगठनों के सरोकार, ये सब तपस की रिपोर्टिंग के प्रिय विषय थे। लंबे समय तक पंजाब में रहने के कारण सिखों की राजनीति का उन्हें खास जानकार माना जाता था। दिल्ली में 1984 में सिख विरोधी दंगों को उन्होंने बहुत करीब से देखा था। इस नरसंहार के बाद कांग्रेस के प्रति उनके मन में स्थाई गुस्सा बैठ गया था। जब भी उनका कोई मित्र कांग्रेस के प्रति जरा भी ‘मोहग्रस्तता’ दिखाता, वे भिड़ जाते।

चार महीने पहले ही उनका फोन आया था। डीएलए में छपी मेरी एक रिपोर्ट में उन्हें राहुल गांधी व कांग्रेस के प्रति कुछ ‘मोह’ नजर आया था। बोले, आप जैसे लोग भी 84 के हत्यारों का महिमा मंडन करने लगे, तो फिर ‘सच’ को पलीता लगना तय है। बड़ी मुश्किल से मैं उन्हें संभाल पाया था। यही कहकर कि समाजवादी पृष्ठभूमि के जिन नेताओं से उम्मीद कर रहे थे, वे तो एकदम पाखंडी निकले। भाजपा नेताओं को भी परख लिया गया है। ऐसे में कई मौकों पर कांग्रेस कुछ बेहतर नजर आती है। ऐसे तर्कों पर वे कहते थे कि जेपी आंदोलन के ‘हीरो’ तो जोकर निकल गये लेकिन, इसका मतलब यह भी नहीं कि कांग्रेसी ‘देवता’ लगने लगें। वे बोले थे, सेंगर जी तुम भी बिगड़ रहे हो। तुम्हारी खबर लेने दफ्तर आ जाऊंगा। काश, वे कभी आ पाते!

दिल्ली में पिछले दशक में भाषा का आंदोलन जोरों पर था। भाषा आंदोलन में वे जेल तक गए थे। वे हर किस्म के पाखंड के खिलाफ थे। इसमें दोस्तों को भी नहीं बख्शते थे। निजी जीवन में वे एकदम सर्वोदयी थे। कई सालों पहले वे डाइबिटीज के शिकंजे में आ गए थे। जड़ी-बूटियों के प्रति उनका अति विश्वास उनके लिए जानलेवा साबित हुआ। उनकी दोनों किडनियां खराब हो गई थीं। लेकिन, वे जड़ी-बूटियों से ही अपने को ठीक करके दिखाना चाहते थे। स्वाभिमान इतना कि किसी दोस्त को याद तक नहीं किया। कोई ‘सहानभूति’ दिखाए, उन्हें पसंद नहीं था। कहते थे यार-दोस्त प्यार से ‘खाड़कू’ कहते हैं। अब ‘खाड़कू’ यानी योद्धा को कभी निरीह तो नहीं नजर आना चाहिए। आखिरकार 52 वर्ष की उम्र में हमारा यह प्यारा ‘खाड़कू’ 26 अप्रैल को हमेशा के लिए चला गया

अलविदा दोस्त.

लेखक वीरेंद्र सेंगर वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन दिनों डीएलए अखबार, दिल्ली के संपादक हैं.

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0 Comments

  1. sachin yadav

    April 29, 2010 at 11:19 am

    bhagwan unki aatma ko shanti de

  2. sapan yagyawalkya

    April 29, 2010 at 11:19 am

    tapash ji ke jane ki khabar dukhi karne vali hai.shabdon se khelne valon me is tarah ki samvedansilta durlabh hoti ja rahi hai. aise vyaktitvon ka smaran prerak hota hai.alvida kalam ke jindadil sipahi.Sapan Yagyawalkya.Bareli(MP)

  3. Ajay Setia

    April 29, 2010 at 2:09 pm

    I came to know through this web that” Tapas is no more” My heart is felt with deep sorrow and flashed back to 20 years when Tapas was working with me as a Reporter in Jansatta at Chandigarh publication . In my last 30 years of Journalistic carrier I found no other reporter as honest , as sincere and devoted to raise the voice of underprivilage. When I thoght about tapas…remeber the family party organised by him at his residence at yatri nivas Chandigarh( we were sharing the same Yatri Nivas Complex) this was the occassion when he was giving the party to celebrate his joining in Navbharat Times Delhi. After few years I returned to Delhi , we were in touch regularly in 90,s but later on due to our professional compulsions family get together was decreased. Specialy when He left Central Delhi for his own home. My heartiest tribute to Tapas and condolences to his wife and both the daughters. ……………..Ajay Setia his friend.

  4. Nadim Dhanbad

    April 29, 2010 at 2:32 pm

    Tapas ji ka asamaya jaana waakai bahut dukhad hai…Jab tak Navbharat Times mein raha, hamesha ek bade bhai ke jaise pyaar aur daant dono mili…dil se ek nek insaan aur mridubhashi the…May his Soul rest in peace..Aameen!!

  5. arvind kumar singh

    April 30, 2010 at 6:41 am

    adarniya sengar ji ke lekh ko padh kar tamam purani yaden taja ho gayee. tapas jee mere bhi bahut kareebi dost the.ek karmath,samarpit aur moolyon ki patrkatita ke prati hamesha sajag patrkar the. unka jana hindi patrkarita ya aam admi ki patrkarita ko bahut badi chhati hai.hamari koshish honi chahiye ki tapasji ko jinda rakhne ki or bhi sochen.

  6. Shalini Garg

    April 30, 2010 at 10:17 am

    Tapasji jaise journalists hi desh ko sahi disha dete hain. Ishwar unki atma ko shanti pradan kare.

  7. mahandra singh rathore

    May 2, 2010 at 1:26 am

    shree om prakasth tapas ji.

    tapasji is very goodman and well jounilist. He is honest and down to earth journilst.

  8. Ashok Kumar

    May 6, 2010 at 4:23 pm

    your news is very imprecive & good

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