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नवभारत टाइम्स ने किया पी7 न्यूज वाली कंपनी पीएसीएल का भंडाफोड़

आज के नवभारत टाइम्स के बिजनेस पेज पर प्रकाशित लीड स्टोरी ‘एक कंपनी और 50 लाख लोगों की जमीनी हकीकत ‘, दरअसल ‘पी7 न्यूज’ चैनल की मदर कंसर्न पीएसीएल की करतूतों का भंडाफोड़ है। ये कंपनी हिन्दी समाचार पत्रिका ‘शुक्रवार’ और महिलाओं पर आधारित पत्रिका ‘बिंदिया’ भी निकालती है। वरिष्ठ पत्रकार श्रतुजीत केके की इस स्टोरी के मुताबित पश्चिम दिल्ली सहित देश भर में फैले 280 आफिसों से पीएसीएल जो कारोबार करता है, सेबी उसे अवैध मानती है।

<p style="text-align: justify;">आज के नवभारत टाइम्स के बिजनेस पेज पर प्रकाशित लीड स्टोरी 'एक कंपनी और 50 लाख लोगों की जमीनी हकीकत ', दरअसल 'पी7 न्यूज' चैनल की मदर कंसर्न पीएसीएल की करतूतों का भंडाफोड़ है। ये कंपनी हिन्दी समाचार पत्रिका 'शुक्रवार' और महिलाओं पर आधारित पत्रिका 'बिंदिया' भी निकालती है। वरिष्ठ पत्रकार श्रतुजीत केके की इस स्टोरी के मुताबित पश्चिम दिल्ली सहित देश भर में फैले 280 आफिसों से पीएसीएल जो कारोबार करता है, सेबी उसे अवैध मानती है।</p> <p>

आज के नवभारत टाइम्स के बिजनेस पेज पर प्रकाशित लीड स्टोरी ‘एक कंपनी और 50 लाख लोगों की जमीनी हकीकत ‘, दरअसल ‘पी7 न्यूज’ चैनल की मदर कंसर्न पीएसीएल की करतूतों का भंडाफोड़ है। ये कंपनी हिन्दी समाचार पत्रिका ‘शुक्रवार’ और महिलाओं पर आधारित पत्रिका ‘बिंदिया’ भी निकालती है। वरिष्ठ पत्रकार श्रतुजीत केके की इस स्टोरी के मुताबित पश्चिम दिल्ली सहित देश भर में फैले 280 आफिसों से पीएसीएल जो कारोबार करता है, सेबी उसे अवैध मानती है।

सेबी का मानना है कि जिस ‘कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम’ को रियल एस्टेट कंपनी के तौर पर चलाया जा रहा है, वो गलत है। पूरा मामला आठ साल से सुप्रीम कोर्ट में है और सेबी को उम्मीद है कि फैसले के बाद पीएसीएल के चिट फंड कारोबार का खुलासा हो जाएगा। अगर सुप्रीम कोर्ट सेबी के पक्ष में फैसला देता है तो पीएसीएल के लाखों निवेशकों को कंपनी में जमा कराई गई अपनी पूंजी के हाथ धोना पड़ सकता है। पी7 न्यूज की इस मदर कंसर्न के खिलाफ कई बार इनकम टैक्स के छापे डाले जा चुके हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक पी-7 न्यूज की मदर कंसर्न पीएसीएल देश भर में फैले आठ लाख एजेंटों के जरिए छोटे छोटे इनवेस्टरों को प्लाट की रजिस्ट्री दिखाकर धन को पांच साल में दुगुना या करीब 12.5 फीसदी रिटर्न का लालच देती है। लोग एजेंटों के बिछाए जाल में फंसकर ऐसे प्लॉटों में इनवेस्ट करते हैं, जिसे उन्होंने कभी देखा नहीं है और जिसका कोई दस्तावेज उनको नहीं दिया जाता। कंपनी के लिए मुंबई, दिल्ली, या मध्य प्रदेश के दूरदराज इलाकों की जमीन की कीमत एक ही है। भोले भाले निवेशकों की रुचि अपने धन को दुगुना या तिगुना करने में होती है, इसलिए वो जमीन के फर्जीवाड़े पर ध्यान नहीं देते। सेबी ने इसी को लेकर कंपनी पर शिकंजा कस दिया है। पंजाब के निर्मल सिंह भंगू की कंपनी पीएसीएल ने बतौर गुरवंत एग्रोटेक लिमिटेड के नामसे 1996 में कारोबार शुरू किया था और बाद में पर्ल्स एग्रोटेक कॉरपोरेशन कर दिया गया।

पर्ल्स ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन के नाम से कंपनी ने 2009 में टेलीविजन चैनल लांच किया। इसके लिए सबसे पहले पटियाला में काम करने वाले एक लोकल चैनल को खरीदा गया, जिसका नाम पीबीसी यानी पटियाला ब्रडकास्टिंग कॉरपोरेशन था। नाम में समानता के कारण उस चैनल का लाइसेंस लिया गया और फिर उसे नोएडा शिफ्ट करके पी-7 न्यूज के नाम से हिन्दी चैनल लांच किया गया, जो शुरू से मैनेजमेन्ट में उठापटक को लेकर विवादों में रहा। चैनल खोलने के पीछे कंपनी की मंशा सेबी और इनकम टैक्स के दबाव को कम करने के साथ ही राजनीतिकों से रिश्ते बनाने की चाहत थी। इसीलिए पी-7 न्यूज चैनल में वरिष्ठ पदों पर काम करने वाले कई लोग राजनीतिज्ञों की सिफारिश पर सीधे भर्ती कर लिए गए। इनपुट में काम करने वाले एक शख्स को मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री की सिफारिश पर नौकरी पर रखा गया।

ये शख्स मध्य प्रदेश से जुड़े एक रीजनल चैनल में महत्वपूर्ण पद पर था और वहां से निकाले जाने के बाद तब के बनाए संबंधों का लाभ लेकर पी-7 न्यूज में आ गया। पीएसीएल का मध्य प्रदेश में बड़ा बिजनेस है और इसलिए वो बड़े मंत्रियों की सिफारिशों को खारिज नहीं कर पाती। इसी तरह हाल ही में सहारा समय से निकाई गई एक रिपोर्टर बीजेपी में अपने संबंधों का लाभ लेकर महत्वपूर्ण पद पर आ गई। सीबीआई में अपने रिश्तेदार की सिफारिश पर सहारा समय एनसीआर से निकाला गया एक रिपोर्टर बड़े पैकेज पर आ गया। ऐसे लोग कोई भी काम न करें, लेकिन डायरेक्टर केसर सिंह के चहेते बने हुए हैं। पी-7 से जुड़े लोगों का मानना है कि किसी भी महत्वपूर्ण नेता की सिफारिश लगाकर पी-7 में अच्छे पद और पैकेज पर नौकरी पाना बेहद आसान है। चूंकि कंपनी को अपना कारोबार बचाने के लिए चैनल की आड़ चाहिए, इसलिए कंपनी लगातार घाटा सहने के बावजूद चैनल बंद करने की पोजीशन में नहीं है और केवल तगड़ी सिफारिश के कारण ही नौकरी भी सुरक्षित रहती है।

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0 Comments

  1. KD Siddiqui

    June 29, 2011 at 12:37 pm

    samaj ke in luteron ne apni loto skim me garibon ko bhi nahi chhoda hai, plot ki registry dikha kr 5000/se 7000/ masik kamane walon ko bhi loot liya hai jab yeh un logon tak pahuchegi to unka kya hal hoga .
    inhone apne bachao ke liye media ka sahara liya , aur chanal P7 launch kiya .

  2. Anil Pande

    June 29, 2011 at 2:39 pm

    P7 टेलीविजन चैनल Ka Fita Kisne Kata Tha?
    Lila Dhar Mandloi Ne.

    Ab Yahan Sharad Dutt, Satish Jaikob, Comrade Vishnu Nagar Jaise So called Sahityakar- Patrakar Kaam Karte Hain.

    Inhe Kya naam Dein?

    CHOR-Luteron Ke Charan Chatne wale Ghulam ya Dalle?

  3. Aham

    June 29, 2011 at 3:03 pm

    Come on yaar. What do you mean by “bhole bhale niveshak”! Jo paisa kahi lagata hai to apne bheje ka bharpoor istemaal karta hai or jo aisa karne se mana karta hai, use do chaar suna ke baaju kar deta hai. To kahan ke “bhole-bhaale” hue log? Jahan tak business interests ko media ki aad me poora karne ki baat hai, to adhikaansh newspapers or media channel ka yahi haal hai. Aise me jaroorat hai ek kanoon ki jisme ye nischit kiya jaye ki jo akhbaar ya newschannel khole ya chalaye wo koi or business na kar sake. Tabhi ek had tak P7 jaise or doosare real estate builders ke channelon ka dabba band ho payega.

  4. gumnaam

    June 29, 2011 at 5:05 pm

    maine bhi 20000 jama kiya hai jisko 40000 dene ka vada kiya gaya hai mera kya hoga

  5. gwalior

    June 29, 2011 at 5:11 pm

    पल्स सेबी तो बच रही है पर ग्वलियर मे केसे बचेगी । ग्वलियर मे तो डी एम ने कमपनी कर्यालय को ही कुर्क कर दिया है ओर हाइ कोर्ट ने भि राहत नही दी है प्ल्स के मलिक ओर संचल्को पर दो-दो हज़ार क इनाम भि घोसित हो चुका है कभी ग्वलिओर के अखबारो को भी पद लिया करो । 33 बड़ी चित्फन्द कम्पनिया शिकंजे मे है जिन्मे सी एन इ बी चेनल चलाने वली एच बी एन डेयरी भी शामिल है

  6. हर्ष

    July 4, 2011 at 7:37 am

    यह तो होना ही था, जो लोग अपने भेजे का का इस्‍तेमाल नही करते उनका और हो भी क्‍या सकता है, अपना पैसे कही पर भी निवेश करने से पहले उसके बारे मे पुरी जानकारी होना आवश्‍यक है, मै अहाम मे बातों से सहमत हू, कुछ एैसा ही मेरे साथ भी हूआ,, जब मैने अपने परिवारवालो से कहा की इसमे पैस्‍ो मत लगओ फिर भी वो नही माने उलटा मुझको ही गलत ठहरा दिया, इतना ही नही बल्‍की वह इस चिट फंड के एजंट भी बन गए, कुपया सबसे अनुरोध है,,, एेसे किसी भी लुभावने स्किम की चपेट मे ना आएं,, जिससे की हमे बाद मे बहुत पछताना पडे,,

  7. roshan

    July 4, 2011 at 11:21 am

    mujhe to lagata hai yeisi chor company. jab bhagati hai to sarkar ne pure niveshak logo ka jama paisa un company ko nilam kar kar sare logo ka paisa lota dena chahiye q ki maine dekha mera 1 dost pacl kar raha tha, usne bhahot garib logo ka paisa pacl me jama kiya tha.jo bichare bartan maj kar kaise to bhi pacl me paisa jama kar rahe the.

  8. SULEMAN

    July 10, 2011 at 6:39 am

    हमारे घर के 3 लोगोँ ने पीएसीएल मेँ 5000 प्रती वर्ष जमा करते हैँ और अब पीएसीएल के एजेँट हमारे घर आकर केहते है की आप पीएसीएल मे पैसे मत जमा कीजीए आप GHARIMA ईस कंम्पनी मे पैसे जमा किजीए तो हम क्या करे वो लोग तो पिछा ही छोडने के लीए तैयार नही है ऐक बार तो घर कोई नही देखकर हमारे अम्मी की साईन लेने के लीए आये थे मगर हमारे अम्मी ने कहा की घर मे कोई नही है मै साईन नही करुंगी
    REPLY AND CON. ME. . .
    [email protected]

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