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सभी पेड न्यूज की मलाई खा रहे : उदय शंकर

: पत्रकारिता की मौत है पेड न्यूज : नई दिल्ली : निर्भीक पत्रकारिता के उत्‍सव (पत्रकारों को रामनाथ गोयनका एवार्ड दिए जाने) के बाद गुरुवार को रामनाथ गोयनका पुरस्‍कार समारोह के केन्‍द्र में पत्रकारिता का स्‍याह पक्ष भी आया. पत्रकारिता की साख को बेचने की प्रवृत्ति यानी पेड न्‍यूज पर परिचर्चा हुई. सवाल उठे कि क्‍या इस मसले पर खामोशी की राजनीति चल रही है. इस बुराई के पीछे राजनेताओं का कितना योगदान है.

<p style="text-align: justify;">: <strong>पत्रकारिता की मौत है पेड न्यूज</strong> : नई दिल्ली : निर्भीक पत्रकारिता के उत्‍सव (पत्रकारों को रामनाथ गोयनका एवार्ड दिए जाने) के बाद गुरुवार को रामनाथ गोयनका पुरस्‍कार समारोह के केन्‍द्र में पत्रकारिता का स्‍याह पक्ष भी आया. पत्रकारिता की साख को बेचने की प्रवृत्ति यानी पेड न्‍यूज पर परिचर्चा हुई. सवाल उठे कि क्‍या इस मसले पर खामोशी की राजनीति चल रही है. इस बुराई के पीछे राजनेताओं का कितना योगदान है.</p>

: पत्रकारिता की मौत है पेड न्यूज : नई दिल्ली : निर्भीक पत्रकारिता के उत्‍सव (पत्रकारों को रामनाथ गोयनका एवार्ड दिए जाने) के बाद गुरुवार को रामनाथ गोयनका पुरस्‍कार समारोह के केन्‍द्र में पत्रकारिता का स्‍याह पक्ष भी आया. पत्रकारिता की साख को बेचने की प्रवृत्ति यानी पेड न्‍यूज पर परिचर्चा हुई. सवाल उठे कि क्‍या इस मसले पर खामोशी की राजनीति चल रही है. इस बुराई के पीछे राजनेताओं का कितना योगदान है.

क्‍या अब समय आ गया है कि मीडिया में इस बुराई के खिलाफ हल्‍ला बोला जाय. पुरस्‍कार समारोह के बाद पैनल चर्चा में वक्‍ताओं ने ये अहम सवाल उठाए. संचालन एनडीटीवी की निधि राजदान और इंडियन एक्‍सप्रेस की अर्चना शुक्‍ला ने किया. वक्‍ताओं ने एक सुर में पेड न्‍यूज को पत्रकारिता के लिए घातक करार दिया और कहा कि यह जारी रहा तो पत्रकारिता की मौत तय है. श्रोताओं के बीच बैठे कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने उठकर सवाल किया कि खबरों के इस धंधे के खिलाफ पत्रकार कुछ क्‍यों नहीं कर रहे हैं. अखबरों और टीवी में खबरों के साथ उसके प्रायोजक का नाम भी क्‍यों नहीं दे दिया जाता. वरिष्‍ठ पत्रकार अरुण शौरी ने माना कि मीडिया के अंदर इस मसले पर किसी और व्‍यवसाय की तरह खामोशी की राजनीति चल रही है. मीडिया को अपनी रक्षा के लिए इसके खिलाफ निर्भीकता से लड़ाई लड़नी होगी.

स्‍टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर ने कहा कि मीडिया में चुप्‍पी इसलिए है क्‍योंकि सभी इस पेड न्‍यूज की मलाई खा रहे हैं. उन्‍होंने मीडिया के कारोबार में वित्‍तीय पक्ष पर निगाह रखने की जरूरत बताई. श्रोताओं के बीच से भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने सवाल किया कि क्‍या इसका मतलब यह है कि मीडिया एक कारोबार के अलावा कुछ और नहीं रह गया है. सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि मीडिया का लोकतंत्र में अहम स्‍थान है. उन्‍होंने कहा कि मैं मांग करती हूं कि मीडिया लोकतंत्र के चौथे खंभे जैसा व्‍यवहार करे न कि महज चौथा खंभा बना रहे. मीडियाकर्मियों को अपनी भूमिका बतानी होगी. इसे लोकतंत्र का अभिभावक बनना होगा. उन्‍होंने कहा कि हमें एक ऐसा मंच बनाना होगा जहां लोग इसपर बात कर सकें. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को अपनी दमदार भूमिका निभानी होगी.

विज्ञापन गुरु और गीतकार प्रसून जोशी ने कहा कि मीडिया में फैले लालच के कारण यह समस्‍या सामने आई है. हर संस्‍थान इसी तरह पैसे बनाना चाहता है. जिस तरह से गैस और तेल कंपनियां पैसे बनाती हैं उस तरह से मीडिया कंपनियां नहीं बना सकतीं. किसी को कहीं तो इसे इसे रोकने की कोशिश करनी होगी. इंडियन एक्‍सप्रेस के मुख्‍य संपादक शेखर गुप्‍ता ने आगे की कतार में बैठे राजनीतिज्ञों से सवाल किया कि अगर उन्‍हें पैसे के बदले खबर में आने का मौका मिले तो वे क्‍या करेंगे. कांग्रेस नेता कुमारी शैलजा, सचिन पायलट और दीपेन्‍द्र हुड्डा ने कहा कि उन सभी को चुनावों के समय ऐसे प्रस्‍ताव मिले और उन्‍होंने इसे ठुकरा दिया.

चुनाव आयुक्‍त एसवाई कुरैशी ने कहा कि अच्‍छी खबर यह है कि नेता भी इससे पीडि़त हैं और इसलिए इस मसले पर एकजुट हैं. इसी तरह मीडिया भी इसे रोकने के लिये एकजुट होने की जरूरत समझ रहा है. लेकिन बुरी खबर यह है कि सारा लेनदेन अंदरखाने हो रहा है. हम समस्‍या को जानते हुए भी पकड़ नहीं पाते हैं. एआईडीईएम वेंचर्स के राज नायक ने कहा कि पेज थ्री के पेड न्‍यूज और चुनावों के पेड न्‍यूज को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता. उन्‍होंने कहा कि चुनावों के वक्‍त बिकीं खबरें चिंताजनक हैं. उन्‍होंने सुझाव दिया कि पैसे के बल पर खबर छपवाने वालों का नाम सार्वजनिक कर देना चाहिए. लेकिन दूसरे वक्‍ताओं ने उनकी इस सलाह का पुरजोर विरोध किया. उन्‍होंने कहा कि मीडिया कारोबार है लेकिन इसके कुछ मूल्‍य हैं. भ्रष्‍टाचार को वैधानिक नहीं बनाया जा सकता है. साभार : जनसत्ता

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0 Comments

  1. Rajesh Badal

    July 23, 2010 at 11:03 am

    PAID NEWS KI MALAI SABHI NAHI KHATE.KUCH JOB BHI GANWATE HAIN.MENE TO VIRODH MEN VOICE OF INDIA SE GROUP EDITOR KA PAD CHODA HAI.MANAGEMENT EDITORIAL SE 30 LAKH RS.PER MONTH MANG RAHA THA AND I LEFT AGAINST IT.

  2. JASBIR CHAWLA

    July 24, 2010 at 8:43 am

    Kuch apwadon ko choud den to sabhi malai khaa rahe hain.Sab nange hain.Goinka purskar me jin logon ne shirkat kee,un me se kitne is paap ke bhagidar hain?Dharmik Babaon ke samn pravachan khoob ho rahen hain.Jhooti,ek pakshi,purvagrah se khabaron ko koi nahin rok sakta.Sabke moohan ko khoon lag chuka hai.Ab sare bade samacha patra kisi na kisi bahane se khabar chaapne se lekar na chaapne ke paise le rahen hain.Chautha khamba ab vasulee ka danda ban gaya hai.

  3. koi

    July 28, 2010 at 3:14 pm

    sab kha rahen hai

  4. santosh choudhary

    August 8, 2010 at 2:34 pm

    Loktantra ke 4the khambe ko paid news ka dimak lag chuka ab har koi rajesh badal ho jaye yh ho nahi sakta.mere pitaji kahte the PATRAKARITA ek junun hai,yh dudhari talwar hai.lekin aaj ka sabhya samaj ise carporate manne laga hai.ab patrakarita ,course ho gaya ,carrier banana he to chamchagiri karo,paid news banao!Fir bhi mujhe ummeed hi nahi pakka viswash hai ki NAARADMUNI abhi jinda hai.Arun saori ki baat ko gambhirta se lena hoga.

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