Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

खबरों के अपराधी की सजा

दुनिया भर की आपराधिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार आदि के खिलाफ लगातार ढोल पीटनेवाला हमारा मीडिया अपने ही घर के भ्रष्ट आचरण के बारे में एक आपराधिक चुप्पी साधे हुए है. पता नहीं अब कितनों को याद है कि लोकसभा के पिछले चुनावों और उसके बाद कुछ राज्यों में हुए चुनावों के दौरान देश के कुछ समाचार पत्रों और चैनलों पर पैसे लेकर खबरें छापने और पैसे लेकर खबरें न छापने के गंभीर आरोप लगे थे. आरोपियों में कुछ बड़े अखबार भी शामिल थे. आरोपो के बारे में वे चुप रहे, लेकिन यह सबको पता चल गया था कि मीडिया बिकता है.

<p style="text-align: justify;">दुनिया भर की आपराधिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार आदि के खिलाफ लगातार ढोल पीटनेवाला हमारा मीडिया अपने ही घर के भ्रष्ट आचरण के बारे में एक आपराधिक चुप्पी साधे हुए है. पता नहीं अब कितनों को याद है कि लोकसभा के पिछले चुनावों और उसके बाद कुछ राज्यों में हुए चुनावों के दौरान देश के कुछ समाचार पत्रों और चैनलों पर पैसे लेकर खबरें छापने और पैसे लेकर खबरें न छापने के गंभीर आरोप लगे थे. आरोपियों में कुछ बड़े अखबार भी शामिल थे. आरोपो के बारे में वे चुप रहे, लेकिन यह सबको पता चल गया था कि मीडिया बिकता है.</p>

दुनिया भर की आपराधिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार आदि के खिलाफ लगातार ढोल पीटनेवाला हमारा मीडिया अपने ही घर के भ्रष्ट आचरण के बारे में एक आपराधिक चुप्पी साधे हुए है. पता नहीं अब कितनों को याद है कि लोकसभा के पिछले चुनावों और उसके बाद कुछ राज्यों में हुए चुनावों के दौरान देश के कुछ समाचार पत्रों और चैनलों पर पैसे लेकर खबरें छापने और पैसे लेकर खबरें न छापने के गंभीर आरोप लगे थे. आरोपियों में कुछ बड़े अखबार भी शामिल थे. आरोपो के बारे में वे चुप रहे, लेकिन यह सबको पता चल गया था कि मीडिया बिकता है.

छोटे- बड़े सब तरह के अखबारों में चुनाव में खड़े प्रत्याशियों के बारे में विज्ञापन खबरों के रुप में छापे गये. ’खबरों’ के आकार प्रकार की दरें तय थीं. पैसा दीजिए, जितनी- जैसी खबर छपवानी है, छप जायेगी.प्रतिद्वंद्वी की ’खबरें’नहीं छपने देनी हैं तो पैसा देकर आप उसे रुकवा सकते हैं. मीडिया की विश्वसनीयता पर इससे बड़ा खतरा कभी नहीं मंडराया था, इससे बड़ा हमला पहले कभी नहीं हुआ था.

कुछ शोर मचा. विश्वसनीयता को बचाने के लिए कुछ आवाजें उठी.  सारे प्रकरण की जांच की मांग भी हुई. क हा गया कि इस अनैतिक आचरण को रोकने के लिए जरुरी कदम उठाये जायेंगे. प्रेस पर नजर रखने के लिए बनी संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इण्डिया भी सक्रिय हुई. पूरे मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनायी गयी. कमेटी ने एक लंबी चौड़ी रिपोर्ट तैयार की. लगने लगा था कि अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिए मीडिया कुछ गंभीर कदम उठायेगा, आरोपियों को अपना आचरण सुधारने के लिए कहा जायेगा, भविष्य में मीडिया की विश्वसनीयता बचाये रखने के लिए कुछ दिशा निर्देश तैयार किये जायेंगे. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ.

प्रेस काउंसिल ने अपने द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट को ही दरकिनार कर दिया. इस रिपोर्ट में आरोपियों के नाम ही नहीं उजागर किये गये थे, उनके कारनामों का कच्चा चिट्ठा भी था. दो सदस्यीय समिति ने छत्तीस हजार शब्दों की रिपोर्ट तैयार की थी. यह रिपोर्ट यदि जनता के सामने आती तो कई मीडिया संगठन बेनकाब हो जाते. प्रेस काउंसिल में बैठे मीडिया घरानों के प्रतिनिधियों को यह कैसे स्वीकार हो सकता था. तय किया गया कि इस रिपोर्ट को संदर्भ दस्तावेज के रूप में काउंसिल के रिकार्ड में रखा जाये. और उचित कार्रवाई के लिए एक और रिपोर्ट तैयार की जाये. इसे फाइनल रिपोर्ट कहा गया. इसके लिए गठित उपसमिति ने मात्र छत्तीस सौ शब्दों की रिपोर्ट तैयार की है. खबरों के नाम पर विज्ञापन छापने वालों में से किसी का भी नाम इस रिपोर्ट में नहीं है. मूल रिपोर्ट के सारे संदर्भ गायब हैं. प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा और मीडिया के स्तर को सुधारने के लिए गठित प्रेस काउंसिल ने इस फाइनल रिपोर्ट के माध्यम से अपने अस्तित्व के औचित्य पर ही प्रश्न चि: लगा दिया है. पैसा लेकर खबर छापने की बात हमारे देश में नयी नहीं है.

पर पहले यह काम अक्सर छोटे अखबार करते थे. पर लोकसभा के पिछले चुनावो में और उसके बाद हुए महाराष्ट्र जैसे राज्यों के चुनावों में ’बड़े अखबारों’ और बड़े चैनल भी इस धंधे में लग गये. मामला संसद में भी उठा था. उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इसे मीडिया की विश्वसनीयता और हमारी चुनाव प्रणाली की सार्थकता के लिए खतरनाक बताया था. इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि प्रेस काउंसिल के माध्यम से कुछ ठोस और सार्थक कार्रवाई हो सकेगी. होनी भी चाहिए थी. दांव पर मीडिया की विश्वसनीयता थी.

पर जो हुआ उसे शर्मनाक ही कहा जा सकता है-खबरों की जगह बेचने की घटना से कम शर्मनाक नहीं है यह बात. सवाल खबरें खरीदने-बेचने के अपराधियों के नाम उजागर करने का ही नहीं है, सवाल यह भी है कि इस काम के लिए नियुक्त समिति की विस्तृत रिपोर्ट को जनता के सामने आने देने से क्यों रोका गया? प्रेस काउंसिल की इस कार्रवाई से किसके स्वार्थ सधते हैं. सारे अखबार नहीं बिके थे, सारे समाचार चैनल भी नहीं बिके थे.

इसलिए यह और जरुरी था कि अपराधियों के चेहरे उजागर किये जायें, ताकि जनता को अपराधियों का पता तो चले ही, यह भी जानकारी हो कि सारी मीडिया दोषी नहीं है. पता नहीं किन दबावों में, और किनके दबावों में, प्रेस काउंसिल ने अपने ही द्वारा नियुक्त समिति की तथ्यों पर आधारित विस्तृत रिपोर्ट को मात्र संदर्भ के लिए रखना उचित समझा और जनता के सामने एक संक्षिप्त रिपोर्ट पेश करना, जिसमें अपराध का ब्यौरा तो है, पर अपराधियों का नहीं. यह आधा-अधूरा सच प्रेस काउंसिल के इरादों पर तो संदेह प्रकट करता ही है, प्रेस की विश्वसनीयता को बचाने के एक अवसर को खो देने का भी उदाहरण है. अपराधियों के नाम उजागर न करने के पक्षधरों का तर्क  यह बताया गया है कि प्रेस काउंसिल का उद्देश्य एक गलत प्रवृति को रोकना है, कुछ नाम उछालने से क्या लाभ मिलेगा?

लेखक विश्वनाथ सचदेव का लिखा यह आलेख ‘प्रभात खबर’ अखबार में प्रकाशित हो चुका है.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement