: मीडिया करप्शन के खिलाफ स्थानीय लोगों का ऐतिहासिक विरोध : बाजारू मंडी में रंडी मीडिया के दलालों के कारण ये दिन देखने होंगे : क्या आपने कभी सोचा था कि एक दिन कोई शहर या कस्बा इसलिए बंद रखा जाएगा क्योंकि वहां के लोग पत्रकारों की ब्लैकमेलिंग से पूरी तरह परेशान हो चुके हैं. मीडिया करप्शन इतना बढ़ जाएगा कि इसके खिलाफ बंद तक का आयोजन होने लगेगा, ऐसी कल्पना किसी ने न की होगी.
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सीआईसी ने कहा, पेड न्यूज पर रिपोर्ट सार्वजनिक करे भारतीय प्रेस परिषद
नई दिल्ली। केंद्रीय सूचना आयोग ने भारतीय प्रेस परिषद को निर्देश दिया है कि पेड न्यूज पर दो सदस्यीय उप समिति की रिपोर्ट आरटीआई कानून के तहत स्वत: संज्ञान लेते हुए सार्वजनिक करने के प्रावधान के तहत जारी की जाए।
सलमान और मुलायम की मांग- मीडिया करप्शन भी लोकपाल के दायरे में आए!
द हिंदू अखबार में दो खबरें पिछले दिनों प्रकाशित हुई. एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय कानून और सामाजिक न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक न्यूज चैनल पर एंकर के सवालों के जवाब में उन्हीं से सवाल पूछ लिया कि ”…मीडिया करप्शन को टीम अन्ना वर्जन के लोकपाल के अधीन जांच का विषय क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए. क्या हम लोगों को नीरा राडिया टेप का यहां जिक्र नहीं करना चाहिए.
पहले पर्ची काटो फिर खबर खोजो, हिन्दुस्तान प्रबंधन का नया फरमान
हल्द्वानी। देश में तेजी से बढ़ने का दावा करने वाले हिन्दुस्तान अखबार में इन दिनों पर्ची काटो सिस्टम लागू किया गया है। उत्तराखंड में अखबार के कुमाऊं संस्करण के तहसील व जिला स्टिंगरों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं की रसीद बुक थमाई जा रही है। हर स्टिंगर को 25-25 रसीदों की बुक थमाकर पर्चियां काटने को कहा गया है। प्रत्येक पर्ची की कीमत 700 रुपये रखी गई है।
मीडिया का दूसरा नाम विपक्ष और हस्तक्षेप
: रामनगर (उत्तराखंड) में 14 वरिष्ठ पत्रकार हुए सम्मानित : रामनगर। श्रमजीवी पत्रकार यूनियन रामनगर ईकाई ने पत्रकारिता दिवस के मौके पर वरिष्ठ पत्रकारों को सम्मानित करने के साथ ही गोष्ठी आयोजित की। नवनिर्मित आडिटेरियम भवन में श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ हाईकोर्ट के न्यायाधीश पीसी पंत व कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वीपीएस अरोरा ने दीप प्रज्जवलित कर किया।
हरियाणा में राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणीकरण एवं परिवीक्षण कमेटी गठित
चंडीगढ़ : हरियाणा सरकार ने राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणीकरण एवं परिवीक्षण कमेटी गठित की है। इस कमेटी को ‘पेड न्यूज’ पर जिला स्तरीय मीडिया प्रमाणीकरण एवं परिवीक्षण कमेटी के आदेशों के विरुद्ध अपीलों से सम्बंधित मामलों का निपटान करने के लिए बनाया गया है। हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी श्रीमती सुमिता मिश्रा ने बताया कि इस कमेटी का गठन भारत के चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए किया गया है।
दैनिक जागरण के झूठ के खिलाफ धरना शुरू
पेड न्यूज के मामले में भद पिटा चुके दैनिक जागरण ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा और स्थानीय निकाय चुनावों में पैसे के बदले लोकप्रियता बेचने की मुहिम चला रहा है. नतीजा जनाक्रोश के रूप में सामने आ रहा है. जागरण की ब्लैकमेलर रणनीति का केंद्र बन चुके उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में लगभग आधा दर्जन संगठन जागरण के खिलाफ धरने पर जा बैठे हैं. धरने पर बैठे संगठनों ने जागरण पर कई तरह के आरोप लगाए हैं.
टाइम्स आफ इंडिया मुर्दाबाद, द हिंदू जिंदाबाद
: इन बनियों ने तो पैसे के लिए अब आत्मा तक बेच डाला : अखबार से संपादकों की औकात खत्म करने की शुरुआत किसने की? टाइम्स आफ इंडिया. भारत में पेड न्यूज की व्यवस्थित शुरुआत किस घराने ने की? टाइम्स आफ इंडिया. अखबार की आत्मा, मस्तिष्क और सिरमौर समझे जाने वाले मास्टहेड को बेचने की शुरुआत किसने कर दी है? टाइम्स आफ इंडिया ने.
मर्डोक के अखबार में टीओआई, जागरण और भास्कर की नीचता की कहानी छपी
हमारे देश के अखबारों और चैनलों के मालिक रुपर्ट मर्डोक बन जाना चाहते हैं. इसलिए क्योंकि रुपर्ट मर्डोक दुनिया के सबसे बड़े मीडिया माफिया माने जाते हैं. पर इस मीडिया माफिया ने भारत के अखबारों के पेड न्यूज जैसा गंदा खेल खेलने को बहुत बुरा माना है और इसी कारण इन भारतीय अखबारों का नाम लिख लिखकर इनकी नीचता की कहानी प्रकाशित की है.
संपादक आदित्य सिन्हा की नई सनसनी
: पेड न्यूज मुक्त अखबार होने का लिखित ऐलान कर डाला : जैसे पुलिस थानों के सामने लिखा होता है कि दलालों का प्रवेश वर्जित, पर थानों में सबसे सहज इंट्री इन्हीं दलालों की होती है, उसी तरह अब पेड न्यूज सिंड्रोम को भुनाने की कोशिश मीडिया हाउस करने लगे हैं और इसकी पहली कड़ी में आज से मुंबई से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक डेली न्यूज एंड एनालिसिस (डीएनए) ने फर्स्ट पेज पर एक मुहर नुमा लोगो प्रकाशित करना शुरू किया है जिसमें पेड न्यूज लिखे शब्द के उपर क्रास का निशान बना हुआ है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा पेड न्यूज जटिल समस्या
पेड न्यूज की प्रवृत्ति को एक जटिल समस्या करार देते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि इसे मीडिया और राजनीतिक दलों द्वारा स्व नियमन के जरिये हल किया जा सकता है. मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने एक कार्यक्रम में कहा कि चुनाव आयोग पेड न्यूज के माध्यम से मतदाताओं के मन पर पड़ने वाले अनुचित प्रभाव को लेकर चिंतित है. मतदाताओं के सही और निष्पक्ष सूचना पाने के अधिकार को संरक्षित करने की जरूरत है.
पेड न्यूज मामले पर गौर के लिए मंत्री समूह गठित
: प्रणव मुखर्जी करेंगे इसकी अध्यक्षता : सरकार ने ‘पेड न्यूज’ के मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए इस मामले पर विस्तार से गौर करने और उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए एक मंत्री समूह गठित किया है. यह समूह अपने सुझावों में उन मीडिया समूहों के खिलाफ भारी भरकम जुर्माने की बात कर सकता है, जो इस प्रकार के कार्यों में लिप्त हैं.
पेड न्यूज नहीं ये सुपारी पत्रकारिता है
सुपारी पत्रकारिता के लिए भारत को या भारतीय पत्रकारिता को विशेष रूप से लज्जित करने की आवश्यकता नहीं है। यह केवल भारत में ही नहीं पनप रही बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी अलग अलग नामों से मौजूद है। कहीं इसे रेड पॉकेट जर्नलिज्म तो कहीं व्हाइट एनवेलप जर्नलिज्म कहते हैं। यह वाक्य है भोपाल के संभाग आयुक्त मनोज श्रीवास्तव के। वे भोपाल के शहीद भवन में वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन द्वारा आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे।
If journalists can’t finish paid news, paid news will finish the journalists- P Sainath
P Sainath talked a great deal about the phenomenon of Paid news in great details. He said that Paid news has been defined extremely well by the Press Council of India as any news or writing appearing as having been done in consideration of cash or kind. This phenomenon had been there in Indian media industry for at least the last decade as an undercurrent but 2009 became the year of Tsunami for Paid news. He said that he felt really satisfied by the fact that he could take credit for breaking the story of Paid news in Hindu during the period April to November 2009 during the Maharashtra assembly elections.
Journalists were at best minor Villains or comic relief in the Radia Tapes- P Sainath
[caption id="attachment_18977" align="alignleft" width="236"]P Sainath[/caption]P Sainath needs no introduction. The man who is considered the leading proponent of development journalism in India and one who has his feet firmly grounded in rural India with as much ease as he is seen interacting with the intellectual giants around the globe, Sainath is a Magsaysay award winner and has many more recognitions to his credit.
पेड न्यूज विरोधियों के लिए मौका, करें शिकायत
पेड न्यूज से जुड़े मसलों की जांच-पड़ताल और गाइड लाइन के लिए बनी पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी की तरफ से एक प्रेस रिलीज जारी कर लोगों से अनुरोध किया गया है कि वे पेड न्यूज से जुड़े दस्तावेजों, सुबूतों, आलेखों, अपने विचार आदि को कमेटी के पास पहुंचाएं. इसके लिए मेल आईडी, फैक्स नंबर, फोन नंबर, पता दिए गए हैं. सभी पत्रकार बंधु इस मौके का इस्तेमाल करें और पेड न्यूज से जुड़ी बातें इस कमेटी तक पहुंचाएं ताकि गंदे खेल पर लगाम लगाने की कोशिशों को बल मिले. विज्ञप्ति नीचे है. ध्यान रखें, यह सब लिखने भेजने का वक्त सिर्फ दो हफ्ते का है जिसकी गिनती कल से शुरू हो चुकी है. -संपादक, भड़ास4मीडिया
क्या पेड न्यूज़ के खिलाफ मुहिम बेकार गई (अंतिम)
अब सवाल ये उठता है कि बिहार विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज़ का कारोबार जमकर हुआ है तो क्या ये मान लिया जाए कि पेड न्यूज़ का विरोध करना बेकार है? एक बार फिर ये साबित हो गया है कि चौतरफा विरोध का मीडिया संस्थानों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। वे पहले की तरह ही अपनी टारगेट तय कर रहे हैं और उसे पूरा भी। इसके लिए बेशक उन्हें नए रास्ते खोजने पड़ रहे हैं मगर वे अपना रास्ता बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें मुनाफ़ा चाहिए और किसी भी कीमत पर चाहिए, इसके लिए पत्रकारिता की ऐसी-तैसी होती हो तो हो। यानी वे बदलने वाले नहीं हैं चाहे लोग उन्हें कोसते रहें और हाहाकार मचाते रहें।
अपनी संपत्ति की घोषणा करेंगे संपादक!
संपादकों द्वारा अपनी सम्पत्ति की घोषणा के बारे में एडिटर्स गिल्ड की 24 दिसम्बर को होने वाली बैठक में चर्चा की जाएगी. एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष राजदीप सरदेसाई ने यह बात कही है. कॉरपोरेट लॉबियिस्ट नीरा राडिया के कुछ सीनियर जर्नलिस्टों के साथ हुई बातचीत के बाद कुछ पत्रकारों ने इस मुद्दे को उठाया था. पत्रकारिता के मूल्यों पर एडिटर्स गिल्ड, द प्रेस एसोसिएशन, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और इंडियन वुमेंस प्रेस कोर्प्स द्वारा आयोजित बैठक में इस पर गरमा गरम बहस भी हुआ, जिसके बाद अगली बैठक में इस मुद्दे को उठाने की बात सामने आई.
पेड न्यूज़ कारोबार में चैनलों ने भी दिखाया दम (2)
हालाँकि बिहार में चुनाव के पहले से ही पेड न्यूज़ का कारोबार जमकर चल रहा था। इसमें दल या संभावित प्रत्याशी शामिल नहीं थे। ये मुख्य रूप से सरकार कर रही थी। नीतीश कुमार की विभिन्न नामों से की गई चुनाव यात्राओं के एवज में चैनलों को मोटी राशि बाँटी गई। यानी पहले से ही मीडिया को दाना डालकर पटा लिया गया था। लेकिन आचार संहिता लागू होने के बाद और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग और पत्रकारों की मुहिम की वजह से ऐसा लगता था कि शायद इस बार उनके लिए मुश्किल होगी। फरवरी में लाँच हुए मौर्य टीवी ने तो पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ बाकायदा मुहिम ही छेड़ दी थी, इसलिए भी ये उम्मीद की जा रही थी कि न्यूज़ चैनल ऐसा नहीं करेंगे।
नंगई कम दिखी पर पेड न्यूज़ चालू आहे (1)
बिहार चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन की ऐतिहासिक विजय ने पेड न्यूज़ के कारोबार और चुनाव पर उसके प्रभाव से लोगों का ध्यान हटा दिया है। लगता है कि सब कुछ ठीक-ठाक संपन्न हो गया है और अब इस बात की ज़रूरत नहीं है कि पेड न्यूज़ और मीडिया की भूमिका की पड़ताल की जाए। मगर इसकी ज़रूरत है, क्योंकि तभी पता चलेगा कि बिहार के चुनाव कितने निष्पक्ष हुए और धन के बल पर मीडिया का किसने कैसा इस्तेमाल किया गया।
पेड न्यूज पर प्रेस परिषद ने अपनी सिफारिशें चुनाव आयोग को सौंपी
भारतीय प्रेस परिषद ने चुनावों के दौरान पैसा लेकर खबरें प्रकाशित और प्रसारित करने व धन के दुरुपयोग संबंधी अपनी सिफारिशें चुनाव आयोग को सौंप दी हैं. यह जानकारी राज्यसभा में सोमवार को विधि और न्याय मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने ईश्वर सिंह के सवालों के लिखित जवाब में दी.
Either we finish paid news, or paid news finishes us : Sainath
: Corruption in media affects the health of democracy : The “paid news syndrome” in the media should be resisted as part of a larger struggle for democratic rights because corruption in the media directly affects the health of democracy. The struggle has to be waged in the context of media’s corporatisation, monopolistic trends and structural decline. These views emerged at a day-long seminar on “Abridging Freedom and Fairness of the Media: Combating Challenges,” organised by the Rajasthan Working Journalists’ Union, the People’s Union for Civil Liberties (PUCL) and the Human Rights Law Network here on Sunday.
‘पत्रकारिता बचाओ’ दिवस मनाएं 16 नवम्बर को : डीयूजे
नई दिल्ली. दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) ने सभी मीडियाकर्मियों से 16 नवम्बर (राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस) को पत्रकारिता बचाओ (सेव जर्नलिज्म) के रूप मनाने की अपील की है. वजह है नव उदारीकरण और आर्थिक मंदी के दौर में अभिव्यक्ति की आजादी पर तरह-तरह के बंधन, जिनकी वजह से पत्रकारों को निडर होकर काम करने में कठिनाई बढ़ी है.
झकझोर गई पटना की यह संगोष्ठी
: स्वीकार कर लीजिए, मीडिया नहीं रहा चौथा खंभा : चुनावी माहौल में पटना में आयोजित एक संगोष्ठी पत्रकारों को कई मायनों में झकझोर गई. ‘चुनाव में मीडिया की भूमिका’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में देश के कई नामी गिरामी पत्रकारों ने अपने विचार रखे. श्रोताओं से सीधा संवाद भी हुआ. तर्क वितर्क के बीच निष्कर्ष ये निकला कि बाजारवाद की अंधेरगी में रौशनी की लकीर तलाशनी ही होगी. संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ रजी अहमद ने मौजूदा पत्रकारिता को जनसरोकारों से दूर करार दिया.
पैसे मांगने वाले पत्रकारों की शिकायत करेंगे नेता
पटना में सभी दलों के नेताओं ने एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में पेड न्यूज के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई. इन लोगों ने संकल्प लिया कि वे घोषित या दबे-छिपे किसी भी रूप में खबरों के व्यापार में शामिल नहीं होंगे. नेताओं की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति इस प्रकार है- ”हम सभी राजनीतिक एक स्वर में पेड न्यूज़ (ख़बरों की ख़रीद-बिक्री) का विरोध करते हैं। हम मानते हैं कि पेड न्यूज़ के कारोबार ने हाल के वर्षों में विकराल रूप धारण कर लिया है और ये समूची लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ख़तरा बनता जा रहा है। चुनाव के समय ये प्रवृत्ति ख़ास तौर पर सबसे विकृत रूप में सामने आती है जब कुछ मीडिया संस्थान कई तरह से दबाव बनाकर धन वसूली करने लगते हैं। इससे चुनावी प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होती है, क्योंकि जो प्रत्याशी या दल धन नहीं देते उन्हें या तो वाजिब कवरेज से भी वंचित कर दिया जाता है या फिर उनके विरूद्ध अनर्गल प्रचार शुरू कर दिया जाता है। पेड न्यूज़ की वजह से चुनाव में धनबल का प्रभाव भी बढ़ता है जो कि निष्पक्ष चुनाव की भावना के ख़िलाफ़ है। पेड न्यूज़ को रोकने के लिए चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए क़दमों का हम सभी दल स्वागत करते हैं। हम वचन देते हैं कि इस मामले में उसे हमसे जिस तरह के सहयोग की आवश्यकता होगी हम देंगे।
पेड न्यूज के खिलाफ पटना में संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस करेंगी राजनीतिक पार्टियों
बिहार चुनाव में एक बड़ी घटना घटने वाली है. खबर है कि कल पटना में सभी राजनीतिक दल पेड न्यूज के खिलाफ संयुक्त पत्रकार वार्ता करने जा रहे हैं. राजनीतिक दलों की तरफ से सभी मीडिया संस्थानों को एक प्रेस रिलीज द्वारा सूचित कर दिया गया है कि वे अपने पत्रकार व फोटोग्राफर को कल आईएमए हाल, गांधी पैदमान के पास, पटना में भेज दें. देखते हैं, इस प्रेस कांफेंस का कितना असर पड़ता है मीडिया मालिकों पर, और खुद नेताओं पर. क्योंकि खुलेआम प्रेस कांफ्रेंस में कही गई बातों को अक्सर दीवार व परदे के पीछे झुठला-भुला दिया जाता है. फिलहाल यहां हम वो प्रेस रिलीज प्रकाशित कर रहे हैं जो सभी राजनीतिक पार्टियों की ओर से मीडिया संस्थानों के पास भेजा गया है.
अफरोज आलम मीडिया स्कैन के संपादक बने
अफरोज आलम साहिल मीडिया स्कैन के नए संपादक बनाए गए हैं. साहिल की पहचान देश भर में एक आरटीआई कार्यकर्ता की रही है. उन्होंने आरटीआई के माध्यम से कई खुलासे किए हैं. नवम्बर का अंक अफरोज आलम के संपादन में प्रकाशित होगा. मीडिया स्कैन के इस अंक को पेड न्यूज स्पेशल बनाया गया है. इसमें पेड न्यूज से संबंधित कई मुद्दों को उठाया गया है.
भ्रष्टाचार के रोल माडल बन रहे हैं बड़े अखबारों के मालिक
वरिष्ठ पत्रकार एवं अखबारों में खबरों की खरीद-फरोख्त की जांच के लिये गठित भारतीय प्रेस परिषद की समिति के सदस्य परंजॉय गुहा ठकुरता ने पत्रकारित की सुचिता पर जोर देते हुए पत्रकारों का आह्वान किया कि वे इस भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेडें. दिल्ली में सातवीं कंचना स्मृति व्याख्यानमाला में ‘खबरों की खरीद फरोख्त, पत्रकारिता एवं लोकतंत्र’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए परंजॉय गुहा ठकुरता ने कहा कि पत्रकारिता में आड़ में कुछ लोगों ने विज्ञापन एवं खबरों का घालमेल कर दिया है.
पेड न्यूज : मालिक पकड़ा जाए, पत्रकार नहीं
: क्योंकि पैसा तो मालिक खाता है, माध्यम बनता है पत्रकार : चुनाव में पेड न्यूज के चलते लोकशाही पर मुसीबत संभव : सोमवार को सभी पार्टियों के नेताओं के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त ने नयी दिल्ली में बैठक की और उनसे पैसा लेकर खबर लिखने और प्रकाशित करने की समस्या पर बात की.
इन मालिकों की देशभक्ति और शर्म दोनों मर चुकी है
[caption id="attachment_18155" align="alignleft" width="292"]कहां चली आई : व्याख्यान शुरू होने से पहले अपनी बात रखती तन्वी[/caption]: के. विक्रम राव दहाड़े : पेड न्यूज पर सेमिनार : अरविंद मोहन, पंकज सिंह, राजीव रंजन, राममोहन पाठक, यशवंत ने रखी बात : प्रशिक्षु पत्रकार ने सुनाई पीड़ा :
मीडिया 75 फीसदी भारतीयों से दूर हुआ : साईनाथ
: पत्रकार खुद को पतित न करें, हालात बदलने में लगे लोगों-संगठनों का सपोर्ट करें : पी साईनाथ ने पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कई ऐसी बातें कहीं जिससे मीडिया इंडस्ट्री की दशा-दिशा के बारे में रियलिस्टिक समझ विकसित करने में मदद मिलती है. उन्होंने मीडिया इंडस्ट्री के लिए एकाधिकार रोधी विधेयक की मांग की. वरिष्ठ पत्रकार पी. साईंनाथ कहते हैं कि मीडिया समूह बहुत तेजी से कारपोरेट वर्ल्ड का हिस्सा बनते जा रहे हैं.
पेड न्यूज के राज खोलेंगे जीवीजी कृष्णमूर्ति
: 26 सितंबर को नोएडा में सेमिनार : “पेड न्यूज का खेल कोई दो-या चार साल नहीं बल्कि बीस साल पुराना है” यह कहना है पूर्व चुनाव आयुक्त जीवीजी कृष्णमूर्ति का. किस-किस अखबार के कौन-कौन पत्रकार और संपादक पैसे ले कर खबरें छापते थे, यह अहम राज खोलने वाले हैं पत्रकार से चुनाव आयुक्त की कुर्सी तक पहुंचने वाले जीवीजी कृष्णमूर्ति.
पेड न्यूज : प्रभात खबर की राह चला हिंदुस्तान
बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद नैतिक आग्रहों के आधार पर पत्रकारिता करने के लिये जाने जाने वाले समूह प्रभात खबर ने तत्काल इस बात की घोषणा कर दी है कि वह पूरे चुनाव अभियान के दौरान पेड न्यूज को प्रश्रय नहीं देगा. अखबार ने सात जुलाई को जैकेट पेज छाप कर चुनाव से संबंधित अपनी आचार संहिता का विस्तार से खुलासा किया है.
नेताओं का ऐलान- पेड न्यूज का खेल न खेलेंगे
: लेकिन लोगों में नेताओं के कहे पर संशय : बिहार की धरती से एक और आंदोलन की शुरुआत : पेड न्यूज विरोधी महासम्मेलन में उठी पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आवाज : एंटी पेड न्यूज फोरम की वेबसाइट शुरू : मीडिया संस्थानों व बाजार के दबाव के कारण पेड न्यूज के कारोबार को बढ़ावा :
‘अब चोर भी लेंगे चोरी न करने की कसम!’
: सवाल केवल पेड न्यूज का ही नहीं : चुनावों के समय मीडिया में पेड न्यूज मीडिया के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। इसे लेकर आंदोलन कई रूपों में पिछले 40 सालों से चलता रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह कि जो इस कुरीति का विरोध करते हैं, वही पत्रकार जब अपने मीडिया हाऊस में निर्णायक की भूमिका में आते हैं, तो वह भी वही करते हैं जो अन्य करते हैं। इस संदर्भ में कई लोगों का नाम लिया जा सकता है, लेकिन नाम न लेना ही बेहतर होगा। कल पटना के एलएन मिश्रा संस्थान में ‘एंटी पेड न्यूज फ़ोरम’ द्वारा आयोजित ‘एंटी पेड न्यूज महासम्मेलन’ के अवसर पर जो कुछ देखने को मिला, उससे मेरे अनेक विश्वास टूटे। जिन लोगों को मैं आम आदमी मानता था, वे बहुरुपिये निकले।
पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ आज महासम्मेलन
: लालू और पासवान भी शामिल होंगे : पेड न्यूज़ को रोकने की गरज़ से बिहार-झारखंड के पत्रकारों की ओर से शनिवार को पटना के एलएन मिश्रा इंस्टीट्यूट में एक महासम्मेलन किया जा रहा है। पूरे देश में इस तरह का ये पहला सम्मेलन है जहाँ पत्रकारों की पहल पर पत्रकार और समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े प्रतिष्ठित लोगों के अलावा राजनीतिक दलों के नेता भी जुटेंगे और पेड न्यूज़ के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद करेंगे। सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए देश के दूसरे हिस्सों से भी पत्रकार आ रहे हैं। पैसे देकर न्यूज़ छपवाने का प्रचलन पिछले कुछ सालों में बहुत तेज़ी से बढ़ा है।
खबरों के अपराधी की सजा
दुनिया भर की आपराधिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार आदि के खिलाफ लगातार ढोल पीटनेवाला हमारा मीडिया अपने ही घर के भ्रष्ट आचरण के बारे में एक आपराधिक चुप्पी साधे हुए है. पता नहीं अब कितनों को याद है कि लोकसभा के पिछले चुनावों और उसके बाद कुछ राज्यों में हुए चुनावों के दौरान देश के कुछ समाचार पत्रों और चैनलों पर पैसे लेकर खबरें छापने और पैसे लेकर खबरें न छापने के गंभीर आरोप लगे थे. आरोपियों में कुछ बड़े अखबार भी शामिल थे. आरोपो के बारे में वे चुप रहे, लेकिन यह सबको पता चल गया था कि मीडिया बिकता है.
थानवी, नक़वी, रामकृपाल, नीलाभ भी जुड़े
: पेड न्यूज़ विरोधी अभियान ने जोर पकड़ा : पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ बिहार और झारखंड के पत्रकारों द्वारा छेड़े गए अभियान से पत्रकारों के जुड़ने का सिलसिला जारी है। जनसत्ता के संपादक ओम थानवी का कहना है कि उनका अख़बार हमेशा से इसका विरोधी रहा है और वे पेड न्यूज़ के ख़िलाफ़ चलने वाले हर आंदोलन के साथ हैं। रामकृपाल सिंह का स्पष्ट मत है कि अगर पैसा लेकर ख़बरें छाप या दिखा रहे हैं तो उन्हें ये छिपाना नहीं चाहिए क्योंकि ये पाठकों और दर्शकों के साथ धोखाधड़ी है। नक़वी ये कहते हुए मुहिम में शामिल हुए कि पेड ख़बरों को ठीक ढंग से परिभाषित करने की ज़रूरत है।
ये खबर पेड न्यूज है या नहीं?
मेरठ से एक सज्जन का मेल आया है. उन्होंने लिखा है कि दैनिक जागरण, मेरठ एडिशन में ‘पेड न्यूज’ का प्रकाशन हुआ है. पर उन्होंने जो कटिंग भेजी है, उसमें खबर के नीचे साफ-साफ ADVT लिखा हुआ है. जाहिर है, यह पेड न्यूज नहीं है. विज्ञापन है, जिसे खबर की शक्ल में प्रकाशित किया गया है और अंत में ADVT लिख दिया गया है. खबर को अलग रखने के लिए इसे विज्ञापनों के बगल में व बाक्स में प्रकाशित किया गया है. जिन सज्जन ने मेल भेजा है , उन्होंने लंबा-चौड़ा राइटअप भी भेजा है, जागरण को गरियाते हुए. उसमें उन्होंने लिखा है-
फजीहत के बाद भी नहीं सुधरे जागरण के मालिक
[caption id="attachment_17759" align="alignleft" width="85"]राकेश शर्मा[/caption]: अंत में कांग्रेस प्रत्याशी नवीन जिंदल ने कहा कि संजय जी से बात हुई है, वैश्विक वित्तीय संकट की मार झेल रही कंपनी को मैं कुछ न कुछ मदद जरूर करूंगा : नकारात्मक समाचारों की जब हद हो गई तो अवतार भड़ाना की पत्नी ने फोन मिलाकर संजय गुप्ता जी की ऐसी-तैसी कर दी : चेतन शर्मा बोले कि जागरण के कार्यक्रमों में बिना कोई पैसा लिए शामिल होता हूं तो जागरण को चुनाव कवरेज के लिए पैसे क्यों दूं? :
‘लॉबिंग’ के लिए खूब है पत्रकारों की मांग
: पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे- अंतिम : लाइसेंस निरस्तीकरण की व्यवस्था हो : बावजूद इन व्याधियों के, पेशे को कलंकित करनेवाले कथित ‘पेशेवर’ की मौजूदगी के, पूंजी-बाजार के आगे नतमस्तक हो रेंगने की कवायद के, चर्चा में रामबहादुर राय जैसे कलमची भी मौजूद थे.
विस्मयकारी है आलोक मेहता का कथन
: पत्रकारिता नहीं, पत्रकार बिक रहे-3 : नई दुनिया के आलोक मेहता की आशावादिता और दैनिक भास्कर के श्रवण गर्ग का सवाल चिन्हित किया जाना आवश्यक है। आलोक मेहता का यह कथन कि ”पेड न्यूज कोई नई बात नहीं है, लेकिन इससे दुनिया नष्ट नहीं हो जाएगी”, युवा पत्रकारों के लिए शोध का विषय है। निराशाजनक है। उन्हें तो यह बताया गया है और वे देख भी रहे हैं कि ‘पेड न्यूज’ की शुरुआत नई है।
‘पेड न्यूज’ में विधायक उमलेश फंसीं
: अमर उजाला और दैनिक जागरण ने खुद को बचा लिया : ‘पेड न्यूज’ के मुद्दे पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के बाद अब उत्तर प्रदेश की एक विधायक चुनाव आयोग की जांच के घेरे में आ गई हैं. उत्तर प्रदेश में बिसौली विधानसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय परिवर्तन दल की विधायक उमलेश यादव को चुनाव आयोग ने एक नोटिस दिया है. उनके एक प्रतिद्वंद्वी ने यह शिकायत की थी कि उन्होंने 2007 के विधानसभा चुनाव में ‘पेड न्यूज’ का इस्तेमाल लिया था.
‘पेड न्यूज’ के धंधेबाज धरे जाएंगे
चुनाव आयोग ने कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों में अधिकारियों से पेड न्यूज पर कड़ी नजर रखने और जरूरत पड़ने पर नोटिस जारी करने व कार्रवाई करने को कहा : चुनाव आयोग ने पैसे लेकर खबर छापने (पेड न्यूज) की घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाते हुए पेड न्यूज के धंधेबाजों की शिनाख्त करने और उन्हें धर-दबोचने को कहा है. पेड न्यूज को लेकर देशभर में मचे हो-हल्ला के बाद चुनाव आयोग की नींद आखिरकार टूट गई है. चुनाव आयोग ने पेड न्यूज पर चिंता व्यक्त करते हुए अधिकारियों से चुनाव संबंधी रिपोर्टों पर कड़ी नजर रखने के लिए कहा है.
‘कमीशनखोर पत्रकार’ न रखें
पेड न्यूज के मामले में भारतीय प्रेस परिषद की रिपोर्ट बदलने में लगे हैं कुछ मीडिया घराने. यह खुलासा किया है पत्रकार नरेंद्र भल्ला ने, आउटलुक हिंदी के लैटेस्ट अंक में. इस मैग्जीन में नरेंद्र भल्ला की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. शीर्षक है- ”पेड न्यूज पर पर्दा”. स्टोरी की शुरुआत कुछ इस तरह है- ”पैसे लेकर विज्ञापनों का खबरों की तरह छापने या फिर उन्हें चैनलों पर प्रसारित करने यानी पेड न्यूज को लेकर तैयार रिपोर्ट प्रेस काउंसिल आफ इंडिया (भारतीय प्रेस परिषद) को सौंप दी गई है. परिषद की दो सदस्यीय उप कमेटी द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कुछ मीडिया घरानों पर संगीन आरोप हैं, लिहाजा मीडिया के एक वर्ग ने इसे हूबहू लागू करने से रोकने के लिए लीपापोती शुरू कर दी है. आउटलुक को 71 पृष्ठों वाली इस रिपोर्ट की एक प्रति हाथ लगी है जिसकी सिफारिशें लागू कर दी गईं तो भ्रष्ट गठजोड़ वाले इस खेल पर बहुत हद तक लगाम कसी जा सकती है.”
आयोग को नहीं पता ‘पेड न्यूज’ क्या है
पैसे लेकर विज्ञापन को खबर की तरह छापने की शिकायत के बावजूद भी चुनाव आयोग पेड न्यूज से पूरी तरह अनजान बना हुआ है। आयोग को अभी तक यह मालूम नहीं पड़ पाया है कि आखिर पेड न्यूज किस खेत की मूली है। सबसे मजेदार बात यह है कि आरटीआई के अंतर्गत चुनाव आयोग ने भारतीय प्रेस परिषद को बकायदा एक लेटर लिखकर पेड न्यूज के बारे में सारी जानकारी मांगी है। यह कोई मजाक नहीं है बल्कि आरटीआई के तहत चुनाव आयोग का जवाब है।
फिर हो रहा चुनाव, फिर बिकेंगी खबरें
चंडीगढ़ : पंजाब की नगरपालिकाओं और नगर परिषदों के चुनावों की घोषणा की जा चुकी है. इस तरह, पेड उर्फ प्रायोजित खबरें एक बार फिर लोकतंत्र के साथ भद्दा मजाक करती पूरे प्रदेश भर में नजर आएंगी. पैसे के दम पर मतदाता को बेवकूफ बनाया जाएगा.
Paid news undermining democracy
[caption id="attachment_17327" align="alignleft" width="85"]P. Sainath[/caption]Press Council report : It explicitly names newspapers and channels— including some of the biggest groups in the country — seen as having indulged in the “paid news” practice. The report traces the emergence of the paid news phenomenon over years and phases. Seeks a pro-active role from the Election Commission in initiating action against offenders.
‘पेड न्यूज’ का अर्थशास्त्र
हाल में ‘पेड न्यूज’ की बुराइयों पर राज्यसभा और मीडिया संगठनों में व्यापक चर्चा हुई है। लोग इस मत के हैं कि निष्पक्ष चुनाव के लिए व देश में लोकतंत्र के स्थायित्व के लिए ‘पेज न्यूज’ के दानव पर नियंत्रण पाना आवश्यक है। ‘पेड न्यूज’ की खबरें पहले भी आती रहती थीं परंतु गत लोकसभा-विधानसभा चुनाव के बाद इस प्रथा की जोरदार चर्चा हुई। पिछले दिनों राज्यसभा में भी पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ के सांसदों ने ‘पेड न्यूज’ की खतरनाक प्रवृत्ति पर चर्चा की।
पेड न्यूज में पकड़े गए जागरण व उजाला
नख-दंत विहीन संस्थान प्रेस काउंसिल ने दैनिक जागरण और अमर उजाला को ‘पेड न्यूज’ के एक मामले में अभियुक्त करार दिया है. प्रेस काउंसिल, जिसके पास खुद कोई एक्शन लेने की औकात नहीं है, अब इन दोषी अखबारों और आरोपी प्रत्याशी के खिलाफ एक्शन लेने के लिए अपनी जांच रिपोर्ट चुनाव आयोग के पास रवाना कर दी है. यह मसला पूर्व एमएलए योगेंद्र कुमार ने चुनाव आयोग और प्रेस काउंसिल के समक्ष उठाया था. उन्होंने अपने इलाके में चल रहे पेड न्यूज के धंधे की लिखित कंप्लेन की थी.
भ्रष्ट मीडिया घरानों के नाम खोलेंगी पार्टियां!
चुनाव आयुक्त बोले- हम सिर्फ चुनावी समय के शेर : पैसे लेकर खबर छापने के चलन को लेकर राजनैतिक दलों में मीडिया के खिलाफ असंतोष बढ़ता नजर आ रहा है। भाजपा-कांग्रेस जैसी पार्टियों का कहना है कि अगर चुनाव आयोग कहे तो वे उन मीडिया घरानों के नाम बताने को तैयार हैं, जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी पार्टियों से पैसे लेकर खबर छापने की पेशकश की थी।
पता नहीं इन्हें शर्म आई या नहीं
दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर और दैनिक हिंदुस्तान। संजय गुप्ता, सुधीर अग्रवाल और शोभना भरतिया। तीन बड़े अखबार, तीन बड़े मीडिया ब्रांड और इनके तीन मालिक। तीनों ऐसे मालिक जिन्हें अपने-अपने ब्रांडों के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। तीनों में काबिलियत है। तीनों सिंसीयर हैं। तीनों डायनमिक हैं। तीनों देश व समाज के हित की चिंता करते हुए दिखते हैं। तीनों कभी न कभी किसी न किसी रूप में ताकतवर व्यक्ति, प्रतिष्ठित आदमी, सूझबूझ वाले उद्यमी, सोच-समझ वाले युवा आदि के रूप में अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। तीनों का व्यक्तित्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि तीनों के जीवन का एक नैतिक पक्ष है, जिसे उनके अधीन काम करने वाले लोग उद्धृत करते हैं, फालो करते हैं, बताते रहते हैं। पर इन तीनों ब्रांडों के तीनों मालिकों के दामन पर धब्बा है। बहुत गहरा धब्बा है। पेड न्यूज का धब्बा। पेड न्यूज को भ्रष्टाचार का दूसरा नाम बताया गया है। इन तीनों मालिकों ने कभी न कभी भ्रष्टाचार को देश के विकास में बाधक जरूर बताया है। पर इन्हीं मालिकों ने बदले हुए समय में भ्रष्टाचार को अंगीकार किया।
पैसे लेकर खबर छापने के खिलाफ अभियान तेज
एडिटर्स गिल्ड का बयान- विज्ञापन को खबर के रूप में छापने की प्रथा घोर पत्रकारीय दुराचरण : एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने पैसे लेकर खबरें छापने के खिलाफ जारी अपने अभियान को तेज करने का फैसला किया है। गिल्ड ने सभी संपादकों और वरिष्ठ पत्रकारों को पत्र भेजकर अनुरोध किया है कि वे अपने स्तर से विज्ञापन को बतौर खबर छापने की कोशिशों के खिलाफ सक्रिय होने का संकल्प लें। साथ ही उम्मीद जताई है कि पूरी पत्रकार बिरादरी इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाएगी।
रिपोर्टरों को निर्देश- वसूली करो या नौकरी छोड़ो!
जागरण प्रबंधन नाम-नंबर छापने के लिए ग्राम प्रधान उर्फ मुखिया से पांच हजार रुपए मांग रहा : बिहार में दैनिक जागरण के स्ट्रिंगर और रिपोर्टर इन दिनों हलाकान हैं. उन्हें प्रत्येक ग्राम पंचायत से पांच हजार रुपये वसूलने के निर्देश दिए गए हैं. जो इस निर्देश का पालन नहीं कर रहा है, उसकी नौकरी चली जा रही है. जो लोग आनाकानी कर रहे हैं, उन पर जबर्दस्त दबाव बनाया जा रहा है. नौकरी से हटाने की खुली धमकियां दी जा रही हैं. यह सब काम हो रहा है पांच हजार रुपये वसूलने के लिए. जागरण की तरफ से ‘दैनिक जागरण पंचायत दर्शिका 2010’ नाम से एक बुकलेट छपवाया जा रहा है जिसमें ग्राम पंचायत सदस्य से लेकर सांसद तक का नाम और फोन नंबर होगा. इस काम के लिए पंचायतों, विशेषकर मुखिया से पांच हजार रुपये वसूले जा रहे हैं. वसूली लीगल दिखे, इसके लिए बाकायदा फार्म भी छपवाया गया है. इस फार्म पर काफी नैतिक बातें की गई हैं. एक फार्म भड़ास4मीडिया के पास भी है, जिसे नीचे प्रकाशित किया गया है.
धंधेबाज अखबार का एक और एडिशन
खबर आई है कि जागरण वालों ने ‘दैनिक जागरण सिटी प्लस’ नामक कथित वीकली अखबार हैदराबाद से भी लांच कर दिया है. इस अखबार की करीब 40 हजार कापियां कल हैदराबाद में मुफ्त में बांटी गईं. हैदराबाद में लांच हुए ‘सिटी प्लस’ को इसका 21वां एडिशन बताया जा रहा है. इससे पहले एनसीआर, मुंबई, पुणे, बेंगलोर आदि शहरों में इसके कई एडिशन लांच किए जा चुके है. इस अखबार के एनसीआर में पांच एडिशन हैं- नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, न्यू गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुड़गांव। दिल्ली में चार एडिशन हैं- ईस्ट दिल्ली, वेस्ट दिल्ली, सेंट्रल दिल्ली और द्वारका. पुणे में चार, बेंगलोर में पांच, मुंबई में एक और अब हैदराबाद में एक एडिशन के साथ इस अखबार के कुल 21 एडिशन हो गए हैं. दैनिक जागरण सिटी प्लस का टैगलाइन है- Your guide to neighbourhood news, information and entertainment.
इन अखबारों पर थूकें ना तो क्या करें!
दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर जैसे मीडिया हाउसों ने इमान-धर्म बेचा : देवत्व छोड़ दैत्याकार बने : पैसे के लिए बिक गए और बेच डाला : पैसे के लिए पत्रकारीय परंपराओं की हत्या कर दी : हरियाणा विधानसभा चुनाव में दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर जैसे देश के सबसे बड़े अखबारों ने फिर अपने सारे कपड़े उतार दिए हैं। जी हां, बिलकुल नंगे हो गए हैं। पत्रकारिता की आत्मा मरती हो, मरती रहे। खबरें बिकती हों, बिकती रहे। मीडिया की मैया वेश्या बन रही हो, बनती रहे। पर इन दोनों अखबारों के लालाओं उर्फ बनियों उर्फ धंधेबाजों की तिजोरी में भरपूर धन पहुंचना चाहिए। वो पहुंच रहा है। इसलिए जो कुछ हो रहा है, इनकी नजर में सब सही हो रहा है। और इस काम में तन-मन से जुटे हुए हैं पगार के लालच में पत्रकारिता कर रहे ढेर सारे बकचोदी करने वाले पुरोधा, ढेर सारे कलम के ढेर हो चुके सिपाही, संपादकीय विभाग के सैकड़ों कनिष्ठ-वरिष्ठ-गरिष्ठ संपादक।
खबरों की बिक्री पत्रकारिता की वेश्यावृत्ति
प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष ने कहा- दोषी अखबारों के खिलाफ कार्रवाई होगी : आल इंडिया न्यूज पेपर एडिटर्स कांफ्रेंस की नई दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सभागार में शनिवार को हुई बैठक में प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जीएन रे ने बीते चुनाव में विज्ञापन के तौर पर पैसे जमा कर खबरें छापने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, कुछ अखबारों ने जिस तरह अपनी खबरों को बेचा, उसे पत्रकारिता की वेश्यावृत्ति की ही संज्ञा दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारतीय प्रेस परिषद इस बाबत गंभीर है और मिली शिकायतों के आधार पर दोषी अखबारों के खिलाफ कार्रवाई करने की सोच रहा है। उन्होंने बताया कि मीडिया को संवाद की स्वतंत्रता संविधान ने नहीं दी बल्कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से मिली। सुप्रीम कोर्ट से अखबारों को स्वतंत्रता इस आधार के साथ मिली कि अखबार जनता का मुखपत्र होता है और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। इसलिए उसके पत्रों को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। लेकिन मौजूदा समय में अधिकांश अखबारों ने इसका बेजा इस्तेमाल करना शरू कर दिया है।
पैसे लेकर चुनावी खबर छापने में जागरण फंसा
[caption id="attachment_14681" align="alignnone"]घोसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी राम इकबाल सिंह[/caption]
खास खबर : प्रत्याशियों से पैसे लेकर इकतरफा चुनावी खबरें, विश्लेषण और रिपोर्ट छापने के मामले ने नया मोड़ तब ले लिया जब उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के घोसी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी राम इकबाल सिंह ने दैनिक जागरण के खिलाफ प्रेस काउंसिल आफ इंडिया से लिखित शिकायत कर दी। इस शिकायत में उन्होंने विस्तार से बताया है कि दैनिक जागरण किस तरह से कांग्रेस प्रत्याशी डा. सुधा राय को विजयी बना रहा है और उनके कवरेज का बायकाट किया हुआ है। लिखित शिकायत में राम इकबाल सिंह ने उन खबरों की हेडिंग भी गिनाई है, जो डा. सुधा राय के पक्ष में प्रकाशित की गई हैं। राम इकबाल का कहना है कि उनके समर्थन में जब भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं की सभा होती है, तो वो खबरें भी प्रकाशित नहीं की जातीं। उल्टे उन्हें हराने के लिए नकारात्मक खबरें ‘न नेता न संगठन, रिश्तेदारों के भरोसे चुनावी प्रबन्धन’ शीर्षक से प्रकाशित की जाती हैं।
एक अन्य पत्र घोसी लोकसभा सीट के एक निर्वाचन अभिकर्ता संतोष सिंह ने चुनाव आयोग के घोसी सीट के चुनाव पर्यवेक्षक को लिखा है। इसमें उन्होंने दैनिक जागरण के अलावा दैनिक हिंदुस्तान पर भी प्रत्याशी विशेष से प्रभावित होकर पक्षपातपूर्ण तरीके से चुनावी खबरें प्रकाशित करने का आरोप लगाया है।
ये दोनों पत्र नीचे हू-ब-हू प्रकाशित किए जा रहे हैं…