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माखनलाल : लाल ना रंगाऊं मैं हरी ना रंगाऊं

पंकज कुमार झासन 2001 की एक रात इस लेखक को तत्कालीन प्रधानमंत्री से साक्षात्कार का ‘अवसर’ मिला था. कैमरा टीम और पूरे ताम-झाम के साथ प्रधानमंत्री निवास पहुंच कर पहला सवाल पूछने से पहले ही नींद टूट गयी. लगा, सपने को सच करना चाहिए. पत्रकार बन जाना चाहिए. अखबार में माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय का विज्ञापन देखा तो दौड़ पड़ा सपना पूरा करने भोपाल. निम्न मध्यवर्गीय युवक का सपना. औसत विद्यार्थी का कुछ बड़ा सपना. एक दशक बीत जाने के बाद भी स्वप्न अधूरा है. लेकिन तबसे अब तक या उससे पहले भी इस संस्थान ने उत्तर भारतीय परिवारों से अपनी जेब में पुश्तैनी ज़मीन या घर के जेवरात बंधक रख कर लाये कुछ पैसे और सपने लेकर आने वालों को राह दिखाई है.

पंकज कुमार झा

पंकज कुमार झासन 2001 की एक रात इस लेखक को तत्कालीन प्रधानमंत्री से साक्षात्कार का ‘अवसर’ मिला था. कैमरा टीम और पूरे ताम-झाम के साथ प्रधानमंत्री निवास पहुंच कर पहला सवाल पूछने से पहले ही नींद टूट गयी. लगा, सपने को सच करना चाहिए. पत्रकार बन जाना चाहिए. अखबार में माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय का विज्ञापन देखा तो दौड़ पड़ा सपना पूरा करने भोपाल. निम्न मध्यवर्गीय युवक का सपना. औसत विद्यार्थी का कुछ बड़ा सपना. एक दशक बीत जाने के बाद भी स्वप्न अधूरा है. लेकिन तबसे अब तक या उससे पहले भी इस संस्थान ने उत्तर भारतीय परिवारों से अपनी जेब में पुश्तैनी ज़मीन या घर के जेवरात बंधक रख कर लाये कुछ पैसे और सपने लेकर आने वालों को राह दिखाई है.

आज की तारीख में ऐसा कोई समाचार चैनल, कोई अखबार, कोई जनसंपर्क संस्थान या अन्य तरह की सफल सम्प्रेषण संस्थाए ऐसी नहीं होंगी जिसमें आपको इस संस्थान के छात्र नहीं दिखे. आज इस विश्वविद्यालय को लो-प्रोफाइल का बड़ा संस्थान कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आप देखेंगे की पत्रकारिता के जो बड़े संस्थान महानगरों में हैं वो या तो ‘अंग्रेज़ी दा’ लोगों की बपौती बनी हुई है या फिर कुछ बड़े बाप की बिगड़ी औलादों का ऐशगाह. वहां आपको निरुपमा और प्रियभान्शु की कथाये ज्यादे दिखेंगी बजाय किसी समाचार कथाओं के. या फिर देशद्रोह को फैशन मानने वाले लोगों की कतार से सामना होगा आपका. बाकी कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए पत्रकारिता के दुकानों का तो कहना ही क्या? मोटे तौर पर माखनलाल ने यह दिखाया है कि बिना जींस-कुरता और सिगरेट की भी पत्रकारिता हो सकती है. सरल शब्दों में कहूं तो अन्य उपलब्धियों के अलावा समूचे भारतीय पत्रकारिता को वामपंथ की जागीर समझने वालों से मुक्त करा कर अपने नाम के अनुरूप ही राष्ट्रवादी-राष्ट्रीय पत्रकारिता में इस विश्वविद्यालय ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

हर चर्चित संस्था की तरह इसका भी वैसे विवादों से चोली-दामन का साथ रहा है. राज्य शासन के सीधे नियंत्रण में होने के कारण निश्चित ही इसे राजनीतिक दबावों को ज्यादा झेलना पड़ता है. शरतचंद्र बेहार के कुलपति रहते जब यह लेखक वहां का छात्र था तो आश्चर्य लगता था देखकर कि किस तरह शिक्षकों को मजबूर होकर कोंग्रेसी कार्यक्रमों में हिस्सा लेना पड़ता था. या फिर हिंदी-हिंदू-हिन्दुस्तान को मन भर गाली देने वाले लोगों के लिए किस तरह लाल-कालीन बिछाई जाती थी. आपको मजबूरी में उस बुजुर्ग (से.) आईएएस को खुश रखने के लिए अपनी ही मां-बहनों एवं संस्कृति का मजाक उड़ाने पर भी जबरन मुस्काते रहने पर मजबूर होना पड़ता था. इसके अलावा गली मोहल्लों में, पान ठेलों, बाथरूमों तक में फ्रेंचाइजी बांट कर भी इसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गयी थी.   लेकिन लाख दबावों एवं सीमाओं के बावजूद कुछ अच्छे और कर्तव्यनिष्ठ शिक्षकों के कारण कम से कम यूटीडी में प्रवेश लेने वाले छात्र अपनी पढ़ाई पूरी कर निश्चय ही अपने पिता के लिए दो जून रोटी का जुगाड ज़रूर कर पाते थे. आज तक संस्थान की यह सफलता जारी है. कम से कम वहां से निकले कोई भी छात्र आपको बे-रोज़गार नहीं दिखेंगे. खैर.

बात अभी के विवादों का. जैसा की ऊपर वर्णित किया गया है कि किसे तरह कांग्रेस इस संस्थान को अपनी बपौती समझते थे. अपने पिट्ठुओं को उपकृत कर, पत्रकारिता का ‘क ख ग’ की समझ नहीं रखने वालों को सूबेदार बना कैसे उसको नौकरशाहों का सैरगाह बनाने का बेजा प्रयास किया जाता रहा है. अब-जब मध्य प्रदेश की जनता ने गरदन पकड़ कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया है तो ज़ाहिर है कि उस संस्थान में भी अब कोई बखत नहीं रह गयी है उस पार्टी का. अभी हाल में कांग्रेस के एक नेता ने भगवाकरण का आरोप लगा कर अपनी खीज उतारी है. कांग्रेस प्रवक्ता के अनुसार प्लेसमेंट सहायक के लिए आहूत परीक्षा में भाजपा से सम्बंधित सवाल पूछ कर बकौल प्रवक्ता “वर्ग विशेष को समर्पित संकीर्ण विचारधारा को परोसा जा रहा है.” मसलन जनसंघ के संस्थापक कौन थे, 25 दिसम्बर को किस नेता का जन्म दिन होता है आदि-आदि. अब आप सोचें…मानसिक दिवालियापन की भी कोई हद होनी चाहिए. मध्य प्रदेश को एक मात्र प्रधानमंत्री इस 63 साल में देखने को मिला. क्या उसके बारे में एक छोटा सा सवाल पूछना भाग्वाकरण हो गया?

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी तो नेहरु मंत्रिमंडल में मंत्री थे. संघ से उनका कोई प्रत्यक्ष संबंध भी नहीं था. क्या हम अपने ही भारतीय इतिहास के बारे में सवाल पूछने के अधिकारी नहीं हो सकते हैं? पता करने पर हमें बताया गया है कि उसी सवालों की श्रृंखला में यह सवाल भी था कि अर्जुन सिंह किस राज्य के राज्यपाल थे. तो वह कौन से भाजपाई हो गए? या कांग्रेस के अध्यक्ष रहे महामना मालवीय के बारे में सवाल पूछना भी क्या भगवाकरण था? सवाल अगर भाजपा से सम्बंधित भी हो तो इसमें कोई बुराई क्या है,यह कौन सी संकीर्णता हो गयी? आखिरकार जब असामाजिक तत्व जैसी छवि रखने वाले संजय गाँधी समेत पूरे नेहरु परिवार को हम याद कर सकते हैं. इस गरीब देश में 600 के करीब संस्थान एक ही परिवार के नाम पर रख सकते हैं. लेकिन विशुद्ध भारतीय विचारों की पार्टी जिसकी अभी भी आधा दर्ज़न राज्यों में सरकार हो या जिसके बुरी हालत में भी 116 सांसद हो, उसकी बात करना संकीर्णता हो गयी.

ताज्जुब तो यह है कि हम हिटलर से लेकर हेराल्ड लास्की को पढ़ें. माओ से लेकर  मेकाले तक का महिमामंडन बर्दास्त है हमें, समाजवाद से लेकर अवसरवाद तक झेलते रहे. पकिस्तान और मुस्लिम लीग की बात करते रहे. घुसपैठियों को प्रश्रय देने वालों की बात करें, बस भूल कर भी कभी एक भारतीय विचारक द्वारा विशुद्ध भारतीय आधार पर, भारतीयों के लिए सोचे गए विचारधारा की बात जुबान पर ना लायें. अपने छात्र रहते हमें याद है कि किस तरह हमें अपने संस्थान में ‘लज्जा शंकर हरदेनिया’ जैसे दुराग्रही विचारकों को झेलना पड़ता था. छात्रों द्वारा बार-बार अपमानित कर बाहर निकल जाने को मजबूर करने पर भी निर्लज्ज हो गंगा और भारत के नक़्शे का मजाक उड़ाना वह नहीं छोड़ते थे. या अभी भी याद है किस तरह साहित्यकार ‘विजय बहादुर सिंह’  ने खुलेआम संस्थान के सेमीनार में यह कहा था कि “ आज के भारत में नक्सली एकमात्र मर्द हैं”. चिल्ला-चिल्ला कर हम जैसे छात्रों ने उनकी बातों का विरोध किया था.

तो यह सब झेलना कही से संकीर्णता नहीं हुई, लेकिन किसी ऐसे नायक जिनने पूरे मध्य प्रदेश से प्रधान मंत्री पद का इकलौता गौरव दिया था, केवल इसलिए कि वो किसी दूसरी पार्टी से हैं, बात करना संकीर्णता हो गयी. विश्वविद्यालय प्रशासन य राज्य सरकार से आग्रह कि निश्चय ही किसी भी तरह के दबाव में आये बिना भारत के नायकों, भारतीय विचारों जिनको आज तक प्रश्रय नहीं दिया गया उन्हें लोगों तक पहुचाने का राष्ट्रीय कार्य करते रहे. लिखते-लिखते मीरा का भजन याद आ रहा है. लाल ना रंगाऊं मैं हरी ना रंगाऊं, अपने ही रंग में रंग दे चुनरिया. वास्तव में ‘लाल’ और ‘हरे’ रंग की अतिवाद से मुक्ति हेतु किसी भी तरह का प्रयास करने में कोई बुराई नहीं है. भले ही लाख सर पटक ले कोई. और बदरंग कांग्रेस को किसी भी तरह का बेजा आरोप लगाते समय अपने गिरेबान में पहले झांक कर इस संस्थान में जैसी उपरोक्त वर्णित गंदगी मचाई गयी थे उसको याद कर लेना चाहिए. तमाम तरह के आरोपों-अभियोगों के बावजूद माखनलाल छोटे-छोटे शहरों के भरी बोर दोपहरों से झोला उठाये तमाम सपनों को उसका आकाश मयस्सर करवाते रहे यही कामना.

लेखक पंकज कुमार झा रायपुर के ‘दीप कमल’ के संपादक हैं.

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0 Comments

  1. Rahil Akodiya

    June 4, 2010 at 2:47 pm

    Raman sarkar ke chatukaroN or adwani ki dhoti main ghuse interneti “patrkaroN” ka dimag itna hi ochha hota soch sakta hai. LetistoN ko gariane ke alawa or kisi kaam ke bhi paise le liya karo BJP se pankaj urf Jayram…

  2. nikash parmar

    June 4, 2010 at 3:00 pm

    aapka lekh padhkar Deewar wale amitabh ki yaad aati hai. apne sansthan ke prati apka lagav marmsparshi hai. ise rajneetik rang dene walo ke prati aapki akramakta shlaghniya hai. aap sadhuvad ke paatra hain.

  3. समरेंद्र

    June 4, 2010 at 3:30 pm

    पंकजी आप राजनीति को काफी करीब से देख रहे हैं। शायद यह आपके लिए कोई बात नहीं होगी। जब इस तरह की बात केवल-केवल राजनीतिक फायदे के लिए लोग करते हैं। यही हाल पूरे देश में। खासतौर से विवि तो राजनीति की पहली पाठशाला, माफ कीजिए अखाड़ा माना जाता है।

  4. Animesh

    June 4, 2010 at 3:43 pm

    25 December for Sirf Vajpayee hi nahin, M A Jinnah bhi paida hue the. Advani, Jaswantji se pooch len. Jesus Christ khair ‘neta’ ki shreni me nahin aate. Aur kisne kaha ki Shyama Prasad Mookerji ka RSS se rishta nahin tha? Arre bhai, jab RSS ne Bhartiya Jana Sangh namak apni political party banayi, to pooch kar dekh len uske pahle adhyaksh kaun the. Aur us waqt naara bhi tha: Kaun karega Desh Akhand, Bharatiya Jana Sangh. Lekin 25 December ko paida hue neta ne NDA banane ke liye in sab muddon ko thande baste me daal diya. Rahi baat Makhanlal Univ ki, toh yah sarvavidit hai ki MP ki BJP sarkar apne adhinasth sabhi sansthanon ko Bhagva rang me rangne me juti hui hai. Isme sharmane ki kya baat hai? Lage Raho!

  5. neeraj jha

    June 4, 2010 at 3:58 pm

    bahu achha pankaj jee, kucchh yesa hi vichar mere man me bhi aa raha tha.

  6. Dr Matsyendra Prabhakar

    June 4, 2010 at 4:45 pm

    Pankaj ji, main aap ke tarkon se poori tarah sahmat hoon. desh men Rajneejti ka charitra to bahut pahle se hi duragrahi tatha nakaratmak se bhi aage badhkar VIDHWANSAK raha hai; Darasal aaj ki patrakarita men bhi ab aise logon ki hi fauz khadi ki ja rahi hai jo apne desh, iski dharti, itihas, sanskriti aur parampara ki samajh rakhen ya na rakhen lekin uska cheerharan avashya karen. sath hi apne Itihas, Bhoogol, Nagrik jeevan aur Samajshashtra ka kahin koi sakaratmak sandarbh lene ki koshish bhi na karen.

  7. राम भुवन सिंह कुशवाह

    June 4, 2010 at 5:41 pm

    पंकज कुमार जी ,अपने ठीक लिखा है । मुझे कॉंग्रेस के कतिपय नेताओं की बुद्धि पर तरस आता है । यदि माखनलाल पत्रिकारिता वि वि की परीक्षा में कुछ ऐसे प्रश्न भी पूंछ लिए गए जो कोंग्रेसियों के हिसाब से भाजपा के बारे में भी थे तो इससे क्या फर्क पडनेवाला है ?वैसे सबकी जानकारी के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रति पादित ‘एकात्म मानववाद’संसार के जितने भी राजनैतिक वाद हैं उनमे सबसे व्यावहारिक और दोषरहित है । यह दूसरी बात है कि भाजपा के नेताओं ने ही इससे किनारा कर लिया है पर एक दिन अवश्य आयेगा जब इस वाद पर अमल शुरू हो जाएगा । अपने देश की विशेषता ही यह है कि हमें अपनी हर चीज बेकार लगती है और वही जब बाहर से आएगी तो उसे अपनाने और उसका अनुशरण करने में हम पीछे नहीं रहते । आज तो सबाल पूंछ लिया तो गज़ब हो गया जब उन विचारों को दुनियाँ मानेगी तब वे कोंग्रेसी पछिताने काबिल भी रह सकेंगे ? यह भी सुनिश्चित नहीं है क्योंकि तब उनका नाम इतिहास में भी उल्लेख के काबिल नहीं बचेगा ।

  8. sushil Gangwar

    June 5, 2010 at 5:58 am

    Aaj Jugaad ki patrkarita ka rog fail chuka hai. Mai pichle 9 saal patrakarita me hu. mai banner ke liye kaam kar chuka hu. Patrakarita me naukri milna ashaan nahi hai. Esliye ab blog likhkar l apna gujara kar rahe hai . Kisi ka jugaad hai to vah naukri par lag jata hai. Nahi to Patrakarita ki degree jhole me band ho kar niklne ke entjaar me sadti rahti hai. Aap apne Newspaper me dekh sakte hai ki vaha par kitne log patrakaar banne ke layak hai or kitne nahi ? fir bhi samchar patro or TV chennal me kaam kar rahe hai . Bade sharma se likhna padta hai . Kuchh nami girami TV chennal ke Reporter or Anchor etne bekaar hai jo bolna bhi nahi jaante hai. Ek tv chennal ka reporter hakla hai dusre ka totla.Magar mumbai se dono reporting kar rahe hai. Jab delhi me press barta ke douran mera prichay ek ese javaaj patrakaar se huaa , jo hakla cum totla tha. parantu vah kaphi dino se kaam kar raha tha. Ese kya kahege ?
    http://www.sakshatkar.com

  9. rajesh kumar

    June 5, 2010 at 6:03 am

    kkkkkkkkkkkk

  10. keshav acharya

    June 5, 2010 at 6:11 am

    यह किसी पार्टी की बात नहीं है और नहीं किसी विचार धारा की ये लड़ाई है हमारे विश्वाश और आत्मसम्मान की जिस संसथान ने देश की पत्रकारिता की पूरी पीढ़ी दी है अब उसी पर सवाल खड़े हुए है आखिर हमारी जिम्मेदारी है इस नमक क हक को अदा करना …….आइये इस बार इसे सिर्फ बहस का मुद्दा ना बनाये बल्कि एक पूरी बिरादरी की आवाज़ बने ऐसा प्रयास हो….

  11. jagriti

    June 5, 2010 at 6:59 am

    dear jha ji
    aap ke soch thik he –aap apni chhavi kharab mat kare –aap sab jante he–
    aap kiski vakalat kar rahe hein, aap bilkul sahi hain, parantu aap v c ke bare me jane to pata chal jayega. vc ????? logo me fut dal kar logo ke bhaichara ko kharab karega
    hum apke na dushman he na dost par samaj aur sansthan ke hit ko sarvopari manana jaruri , aap imandari se vichar kijiye –vc —bjp- rss ka bada dost he jo dushman se bhi khatarnak he.madhya pradesh –bjp-rss ka bhala chahte ho to iske kamo ki janch kare to pata chal jayega…?????isko apna kam nikalna aur sodebaji karni aati he–iss dunia me har adami ki kimat lagani aati –chinta na kare-aap dekh lena–?????

  12. vishal thakur

    June 5, 2010 at 8:24 am

    ye to theek h bt mere dost nivesh k sath bhi markseet mistak hui h.us bande ki net pr result m 1subj me ree tha pr wo markseet pr 2 subj m ho gaya.mistak to logo se ho jati h pr. Makhanlal University bhi National h is tarah ki mistak student’s k sath theek nahi h.

  13. कौशलेन्द्र

    June 5, 2010 at 7:49 pm

    हम किसी को भी सिर्फ इसलिए गलती करने की इजाजत नही दे सकते की उनसे पहले वालों ने भी यही गलती की थी……….मुझे तो यह कोई तर्क नहीं लगता है…..कभी न कभी तो इसका अन्त होना ही चाहिये और इसी में हमारी और विश्वविद्यालय की भलाई है…….

  14. Manoj

    June 6, 2010 at 12:27 pm

    dear
    yah jankar achha laga ki mcu ke student aaj bhi apne v.v. ke liye anurag rakhte he. samay badal gaya he, chizo ko naye nazriye se dhekhna hogo.

  15. rakesh

    June 7, 2010 at 6:44 am

    दोनों ही मामले गड़बड़ हैं. एक इस तरफ खड़ा है और दूजा दूसरी तरफ. पत्रकारिता और समाज के बारे मैं कौन सोचेगा. हमारा मानना है कि विश्वविद्यालय को इस राजनीति से बचाकर रखना होगा. पंकज जी कि कलम तटस्थ नहीं है. वैचारिक बहस मैं लज्जाशंकर हरदेनिया और विजय बहादुर सिंह पर लगाये आरोप ने आपके विचारों को ओछासाबित कर दिया है.

  16. पंकज झा.

    June 7, 2010 at 10:03 am

    अब इसमें ओछापन कहाँ से आ गया राकेश जी? बिलकुल सच्ची बात कह रहा हूं..विजय बहादुर जी के यही शब्द थे कि भारत में ‘नक्सली एकमात्र मर्द हैं’ कौन बर्दास्त करेगा इस बात को. हमें नहीं रहना इन बातों के बाद तटस्थ. करनी ही होगी भर्त्सना ऐसे तत्वों का चाहे वो कितना भी बड़ा आदमी हो. इसी तरह अगर आपने कभी लजा शंकर हरदनिया को सुना अहो तो आपको पता चलेगा कि कितनी हिकारत के साथ वह भारत की बात करते हैं.ऐसे में जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध….ओछेपन के आरोप का सामना करते हुए भी हम ऐसे तत्वों को लाख बार दुत्कारेंगे.

  17. * >.

    June 7, 2010 at 10:05 am

    अब इसमें ओछापन कहाँ से आ गया राकेश जी? बिलकुल सच्ची बात कह रहा हूं..विजय बहादुर जी के यही शब्द थे कि भारत में ‘नक्सली एकमात्र मर्द हैं’ कौन बर्दास्त करेगा इस बात को. हमें नहीं रहना इन बातों के बाद तटस्थ. करनी ही होगी भर्त्सना ऐसे तत्वों का चाहे वो कितना भी बड़ा आदमी हो. इसी तरह अगर आपने कभी लजा शंकर हरदनिया को सुना हो तो आपको पता चलेगा कि कितनी हिकारत के साथ वह भारत की बात करते हैं.ऐसे में ” जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध…” ओछेपन के आरोप का सामना करते हुए भी हम ऐसे तत्वों को लाख बार दुत्कारेंगे.

  18. Manish Jha

    June 8, 2010 at 12:09 pm

    pankaj jee ‘deep kamal’ ke sampadak hain. ab kaun se sampadak hain, ye pata nahi chal paa raha. lekin samay bahut hai inke pas. khali samay me, apni vritti ke anusar, agar unhone congress ko gali de hi di to kaun si badi baat ho gayi. hame itna pratikriyavadi nahi hona chahiye. mp me bjp ka shashan hai….bjp ki sarkar se agar kuch vigyapan nikalwane me unka yah lekh safal ho jaye to unke lekhan ko bhi safal maan lena chahiye. rahi bat congress ko “gariyan” ki to bhai aisa karna apke sikshit hone to darshata hai. aur pankaj jee sikshit hain aur wo bhi MCU se. pankaj ji badhai ho. bahut badhia likhne chhi. enahi likhet rahu. gharo ke kharcha niklet rahwak chahi na??

  19. पंकज झा.

    June 9, 2010 at 6:09 am

    मनीष जी …कतय घर घर अछि यौ ? एना कही प्रतिक्रया भेलैये? संपादक माने ‘संपादक’ होइत छई…कौन सा संपादक …ई कोन बात भेल? हमर पत्रिका सही में भाजपा के पत्रिका छई..घोषित रूप सव…आ प्रसार में छत्तीसगढ़ के सब सव बेसी संख्या वला….विज्ञापन हम लैत नहीं छी, बाटैत छी…. बुझलहु? गाँव-घर के आदमी छी से नीक बात …हमरो घर के चिंता केलहु ताहि लेल साधुवाद….मुदा, मुद्दा पर बात करितहु तय बेसी नीक लागैत ..आ अहूं तहने बुद्दिजीवी कहल जैतहु….कियैक बुद्धियार समाज के रहितो एहेन गुलाम मानसिकता बनेने छी की कांग्रेस के आलोचना अहांके ‘गारि’ बुझाईत अछि? सब विचारधारा के बात सामने आबय दियऊ…ओहि में जे नीक लागे तकरा अपनाऊ…लेकिन एना जे चाहब, कि खाली डपोरशंख जेका बिना मतलब कांग्रेस के चरण-वंदना करैत रही ताहि में कोन बुधियारी?

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