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पटना के टेंशनियाये ब्यूरो चीफ की भड़ास

पटना के एक बड़े अखबार के ब्यूरो चीफ इन दिनों बहुत टेंशन में हैं. सरकार के मुखिया के यहां दाल गलनी बंद हो गई है. नो इंट्री का बोर्ड लगा है. इसके कारण एक ओर अखबार के मालिक खफा हैं, तो दूसरी ओर खुद की दुकानदारी भी बंद हो गई है. ऐसे में करें तो क्या करें? बाल खुजला रहे हैं. असली टेंशन तो इस बात का है कि बंद विज्ञापन भी शुरू हो गया और पहले की तरह विज्ञापन बंद कराने, शुरू कराने और अपना हित साधने की स्थिति भी नहीं बची है. अब समझ में आ रहा है कि सरकार के मुखिया के खिलाफ बगावत करने वाले के लिए मीडिया मैनेजमेंट का काम ठीक नहीं रहा. वैसे, अपनी इस स्थिति का सारा ठीकरा वे अपने मालिक के सिर फोड़ रहे हैं. रोते फिर रहे हैं. मालिक ने सब रुपये के लिए कराया और अब उन्हें छोड़कर संपादक के साथ खुद बिक रहे हैं.  

<p align="justify">पटना के एक बड़े अखबार के ब्यूरो चीफ इन दिनों बहुत टेंशन में हैं. सरकार के मुखिया के यहां दाल गलनी बंद हो गई है. नो इंट्री का बोर्ड लगा है. इसके कारण एक ओर अखबार के मालिक खफा हैं, तो दूसरी ओर खुद की दुकानदारी भी बंद हो गई है. ऐसे में करें तो क्या करें? बाल खुजला रहे हैं. असली टेंशन तो इस बात का है कि बंद विज्ञापन भी शुरू हो गया और पहले की तरह विज्ञापन बंद कराने, शुरू कराने और अपना हित साधने की स्थिति भी नहीं बची है. अब समझ में आ रहा है कि सरकार के मुखिया के खिलाफ बगावत करने वाले के लिए मीडिया मैनेजमेंट का काम ठीक नहीं रहा. वैसे, अपनी इस स्थिति का सारा ठीकरा वे अपने मालिक के सिर फोड़ रहे हैं. रोते फिर रहे हैं. मालिक ने सब रुपये के लिए कराया और अब उन्हें छोड़कर संपादक के साथ खुद बिक रहे हैं.   </p>

पटना के एक बड़े अखबार के ब्यूरो चीफ इन दिनों बहुत टेंशन में हैं. सरकार के मुखिया के यहां दाल गलनी बंद हो गई है. नो इंट्री का बोर्ड लगा है. इसके कारण एक ओर अखबार के मालिक खफा हैं, तो दूसरी ओर खुद की दुकानदारी भी बंद हो गई है. ऐसे में करें तो क्या करें? बाल खुजला रहे हैं. असली टेंशन तो इस बात का है कि बंद विज्ञापन भी शुरू हो गया और पहले की तरह विज्ञापन बंद कराने, शुरू कराने और अपना हित साधने की स्थिति भी नहीं बची है. अब समझ में आ रहा है कि सरकार के मुखिया के खिलाफ बगावत करने वाले के लिए मीडिया मैनेजमेंट का काम ठीक नहीं रहा. वैसे, अपनी इस स्थिति का सारा ठीकरा वे अपने मालिक के सिर फोड़ रहे हैं. रोते फिर रहे हैं. मालिक ने सब रुपये के लिए कराया और अब उन्हें छोड़कर संपादक के साथ खुद बिक रहे हैं.  

परेशान ब्यूरो चीफ अपनी भड़ास यहां-वहां निकाल रहे हैं. सबसे अधिक खफा दिल्ली में एक्टिव रहने वाले बीजेपी के उस एमएलसी से हैं, जिसने इनके संपादक की मुखिया के यहां डायरेक्ट इंट्री करा दी. मौके की तलाश में हैं. लेकिन अभी बची हुई आस सिर्फ इतनी है कि मुखिया ने मालिक से मिलना अभी तय नहीं किया है. एमएलसी साहेब इस कोशिश में संपादक की मदद कर रहे हैं.

अखबार में रुतबा कम होने के बाद ब्यूरो चीफ साहेब लेखनी के प्रहार के वैकल्पिक रास्ते तलाश रहे हैं. मुखिया से दुखी पार्टी के ही एक साहित्यकार एमएलसी के साथ मिलकर कुछ सच लिखना चाहते हैं, जो परेशानी बढ़ाए. इस साहित्यकार ने कोशी विपदा के बाद भी पेन नेम से एक बुकलेट लिखकर सरकार की चैनल उड़ा दी थी. परेशानी तो इतनी बढ़ी है कि अपने करीबियों से समस्तीपुर डिस्ट्रिक्ट के विभूतिपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने की भी सोचने लगे हैं. कांग्रेस को सबसे बढ़िया मानने लगे हैं. प्रदेश अध्यक्ष जी स्वजातीय हैं. इसलिए चोंच भी खूब लड़ रही है. उम्मीद में अखबार में स्पेश भी दे रहे हैं. होली के मौके पर इलाका भी घूम आए हैं. वैसे, इनका ससुराल यहां है, इसलिए भरोसा ठीकठाक है. रामविलास पासवान से भी संबंध ठीक कर लिया है ताकि काम आ सकें.

पटना से आई एक पत्रकार (नाम न छापने का अनुरोध किया है) की ई-पाती.

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0 Comments

  1. raju tripathi

    March 6, 2010 at 2:29 am

    दैनिक जागरण रांची से एक और गए
    दैनिक जागरण रांची का लार्खाराता सम्पादकीय विभाग सँभालने का नाम नहीं ले रहा है. संत शरण अवस्थी के शोषण से परेशान होकर अब ओम रंजन मालवीय ने भी जागरण को अलविदा कह दिया है. मालवीय अब सन्मार्ग रांची ज्वाइन कर लिया है. वह भी जागरण छोरने वाले अन्य दर्जनों पुराने कर्मियों की तरह ८ साल से काम कर रहे थे. अब जागरण में दो तीन ब्यूरो के लोगों को छोर वही बचे हैं जो अखबार की नहीं अवस्थी की नौकरी करते हैं. हद तो तब हो गई जब दैनिक जागरण सिल्लिगुरी उनित सँभालने वाले देवेन्द्र सिंह को नकारा विनोद श्रीवास्तव के सामानांतर लोकल में बैठाया जा रहा है.

  2. raju tripathi

    March 6, 2010 at 1:55 am

    सुभाष पाण्डेय क्रांतिकारी पत्रकार हैं. उन्होंने नितीश कुमार को मुख्य मंत्री बनाया. नितीश जी उन्हें भूल रहे हैं. यह अच्छी बात नहीं है. सुभाष पाण्डेय के बिचारों को जान्ने के लिए http://www.subhashpandey1960.blogspot.com पर क्लिक करें.

  3. Kumar

    March 5, 2010 at 12:36 pm

    Subhash pandey sahi track par hain lalan singh ka saath dena ranniti hai aur galat nahi hai . Lalan singh ek bada ulatfer karenge aur subhash pandey ne bilkul sahi kiya hai . Jisko bhadas nikalani ho nikalata rahe

  4. बोलेगे तो बोलोगे कि बोलता है

    March 5, 2010 at 8:42 am

    हा हा हा,
    भैया सब दिन ना होत एक समाना, जब ललन सिह जैसे लोग ताकत का केंद्र नहीं रह सके तो अपने पाण्डेय साहब का कहा से रह पायेगा.

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