राजस्थान पत्रिका ने नया लेआउट अपना लिया है. पत्रिका के सभी संस्करण (राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक) रविवार 16 मई को नए लेआउट में प्रकाशित हुए. पत्रिका लेआउट बदलाव को अंजाम दिया इफ्रा अवार्ड विजेता डिजाइनर सुमंत वर्मा ने. सुमंत पहले भास्कर में कार्यरत थे. नए लेआउट के मुताबिक अब पत्रिका सोमवार से शनिवार तक एक प्रारूप में और रविवार को अलग प्रारूप में प्रकाशित होगा.
नए लेआउट की स्टाइल शीट और कार्य प्रणाली को इतना आसान बनाया गया है कि क्वार्क की कम जानकारी रखने वाले सब एडिटर भी बेहद कम प्रयास से उम्दा पन्ना बना सकें. गौरतलब है कि पत्रिका उन गिने-चुने अखबारों में शामिल है जहां पेज बनाने का काम अब तक सम्पादकीय विभाग के लोग नहीं किया करते थे और इसके लिए हर पेज पर पेजीनेटर (ऑपरेटर) थे. अब शायद पत्रिका प्रबंधन सब एडिटरों से भी पेज बनवाने का काम प्रारंभ करे.
उधर, अमर उजाला से सूचना है कि प्रबंधन ने अखबार का लेआउट बदलने का फैसला लिया है. इसकी जिम्मेदारी ग्रुप के एक्जीक्यूटिव एडिटर (आर्ट) राजेश जेटली को दी गई है. सूत्रों के मुताबिक जेटली ने ही पिछले दिनों अमर उजाला समूह के टैबलायड अखबार कांपैक्ट को नई साज-सज्जा दी.
SUBHASHSISH ROY
May 17, 2010 at 2:57 am
World is ever changing. Its need of the time. Keep going.
My heartiest Congratulations to RP management.
Subhashish Roy, Jharkhand
kamal.kashyap
May 17, 2010 at 7:07 am
bhai amar ujala ki sakal to badlo sath main kaam ki paranali ko badlo…. aur admiyo ko badlo… nikame logo ko badlo… yuvao ko muka do tabhi kuch hoga
gopal shukla
May 17, 2010 at 12:02 pm
akhbarka le out badalne se kya hoga kam ka tarika badalne se bahut kuchh hoga
Rajat
May 18, 2010 at 3:26 pm
पत्रिका का नया ले-आउट ऐसा लग रहा है, जैसे किसी ने पाठक को विधवाओं की भीड़ में बिठा दिया हो। न खबरों में ढंग से फोटो लगाए जा रहे और न ही कोई खबर, खबर जैसी नजर आती। इस तरह के ले-आउट से पत्रिका पाठकों के बीच अधिक दिन तक नहीं टिक सकेगा। जिस ले-आउट को देखते से ही पढऩे का मन न करे, उसे कोई क्यों खरीदेगा। पत्रिका प्रबंधन ने ले-आउट बदलने में दिलचस्पी दिखाई, लेकिन अपनी डेस्क पर बैठे नादान किस्म के उप संपादकों को बदलने की तरफ ध्यान नहीं दिया। जिन्हें न तो ढंग से भाषा का ज्ञान है और न ही वे किसी खबर की महत्ता को समझ पाते। अपने मन से किसी भी खबर का शीर्षक कुछ भी कर देते हैं। इससे कई बार ऐसा होता है कि शीर्षक जो कुछ कह रहा होता है, उसका जिक्र पूरी खबर में नहीं होता। यकीन न हो तो पत्रिका का कोई भी पुल आउट उठाकर देख लीजिए। खबर कहीं से भी काट दी जाती है, यह सोचे बगैर कि खबर पूरी हो भी पाई या नहीं। जबकि अंदर के पेजों पर उसका शेष भाग डाला जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि ये लोग गांवों और कस्बों से एजेंटों द्वारा भेजी गई खबरों में छेड़छाड़ नहीं करते, लेकिन ब्यूरो कार्यालयों में पदस्थ रिपोर्टरों की अच्छी भाषा और शैली वाली खबरों में छेड़छाड़ कर गुड़-गोबर कर देते हैं। इससे दूसरे दिन रिपोर्टर को पाठकों की तीखी प्रतिक्रिया झेलना पड़ती है। बेचारा हर जगह यही सफाई देता रहता है कि भाई हमारे पेज भोपाल में बनते हैं। बेगार टालने जैसी सोच के साथ काम करने वालों के कारण पाठकों के बीच पत्रिका की छवि खराब होती जा रही है। उम्मीद है कि प्रबंधन समय रहते इस पर भी ध्यान देगा। अन्यथा पत्रिका को न केवल अपनी प्रसार संख्या से हाथ धोना पड़ेगा, बल्कि उसके कई अच्छे रिपोर्टर भी उसका साथ छोड़ जाएंगे।
aditya
May 19, 2010 at 9:34 am
As usual Congratulation for your so call new copy layout.
Yar kuch to saram karon kaise kisi ka (Bhaskar(Sunday) layout or to or clour scheme tak chura kar apna pith thok leto ho. It’s also shame for Mr. sumant (So call designer) aisa socha nahi tha. Patrika ki apni ek shakh thi. Apna ek style tha, but pata nahi kaise apni originality phachan kho ker ranga siyaron ke sath kadam milana chahate hoin.
Change ka hamesa swagat hona hi chahiyea , but dusron ka chura kar nahi.
Chura kar to hamesa apne ap ko nicha hi sabit karna hoga.
Be original
Pathak
sanjayrpanchal
May 22, 2010 at 12:31 pm
Patrika ne layout badal kar “sone me suhaga” ka kam kiya hai…
Patrika ka layout “Bhaskar se 10 guna Achcha” Hai…
Dili Tasalli or Khushi hoti hai Patrika Padkar.
Aesi Khushi, Jo Aajtak Kisi Akhbar se nahi mili…
Patrika…Tum Jiyo Hajaro Saal…Napunsak Media ke is dor me tum hi sachche mard ho…Tumhari jai ho…