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‘पत्रिका’ ने खोल दी ‘भास्कर’ ग्रुप की पोल

भास्कर और पत्रिका की कट्टर दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। जब से पत्रिका ने भास्कर के गढ मध्य प्रदेश में दस्तक दी है, दोनों अखबारों के तेवर और भी खूंखार हो गए हैं। दोनों ही अखबार मार्केट में कांपटीशन करने के साथ-साथ समय-समय पर एक दूसरे के खिलाफ अखबार में खबरें भी प्रकाशित करते रहते हैं। चूंकि भास्कर के कई सारे धंधे हैं, सो खिलाफ छापने का सुख पत्रिका को ज्यादा मिलता है। इस लड़ाई में पाठक और प्रशासन दोनों मजे लेकर अखबारों का काला-पीला जान रहे हैं। ताजा सूचना ये है कि पत्रिका ने फ्रन्ट पेज पर भास्कर ग्रुप की पोल खोली है। एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें भास्कर के डीबी माल में करोड़ों रुपये का घपला होने की बात कही गई है।

<p style="text-align: justify;">भास्कर और पत्रिका की कट्टर दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। जब से पत्रिका ने भास्कर के गढ मध्य प्रदेश में दस्तक दी है, दोनों अखबारों के तेवर और भी खूंखार हो गए हैं। दोनों ही अखबार मार्केट में कांपटीशन करने के साथ-साथ समय-समय पर एक दूसरे के खिलाफ अखबार में खबरें भी प्रकाशित करते रहते हैं। चूंकि भास्कर के कई सारे धंधे हैं, सो खिलाफ छापने का सुख पत्रिका को ज्यादा मिलता है। इस लड़ाई में पाठक और प्रशासन दोनों मजे लेकर अखबारों का काला-पीला जान रहे हैं। ताजा सूचना ये है कि पत्रिका ने फ्रन्ट पेज पर भास्कर ग्रुप की पोल खोली है। एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें भास्कर के डीबी माल में करोड़ों रुपये का घपला होने की बात कही गई है।</p>

भास्कर और पत्रिका की कट्टर दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। जब से पत्रिका ने भास्कर के गढ मध्य प्रदेश में दस्तक दी है, दोनों अखबारों के तेवर और भी खूंखार हो गए हैं। दोनों ही अखबार मार्केट में कांपटीशन करने के साथ-साथ समय-समय पर एक दूसरे के खिलाफ अखबार में खबरें भी प्रकाशित करते रहते हैं। चूंकि भास्कर के कई सारे धंधे हैं, सो खिलाफ छापने का सुख पत्रिका को ज्यादा मिलता है। इस लड़ाई में पाठक और प्रशासन दोनों मजे लेकर अखबारों का काला-पीला जान रहे हैं। ताजा सूचना ये है कि पत्रिका ने फ्रन्ट पेज पर भास्कर ग्रुप की पोल खोली है। एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें भास्कर के डीबी माल में करोड़ों रुपये का घपला होने की बात कही गई है।

खबर का आधार विधानसभा में प्रस्तुत कैग की रिपोर्ट को बनाया गया है। मजे की बात यह है कि आज ही के अखबार में भास्कर के मालिक रमेश चन्द्र अग्रवाल का एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने भास्कर द्वारा शासकीय योजनाओं के सोशल ऑडिट की बात कही है। अब भोपाल की जनता दोनों खबरों को देखकर औचक है कि एक तरफ तो भास्कर के खुद के डीबी माल में करोड़ों के घपले-घोटाले और मजदूरों की मौत के मामले निकलकर आ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भास्कर सोशस ऑडिट की बात कर रहा है। खैर, गेंद पाठकों के पाले में है। आखिर काम्पीटिशन में हमेशा फायदा तो जनता का ही होता है। लीजिए, दोनों खबरें पढ़िए…

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

 


 

डीबी मॉल की जमीन में करोड़ों का घोटाला

भोपाल । भोपाल में संजय नगर की जिस जमीन पर डीबी मॉल बन रहा है, उसके सौदे में सरकार को पौने सात करोड़ का चूना लगा। गृह निर्माण मंडल ने सरकार की अनुमति बगैर वास्तविक आवंटन से पहले 5.90 एकड़ जमीन निविदा के जरिए निजी फर्म आर.के. इन्वेस्टमेंट प्रा.लि. को लीज पर दे दी।

भूमि हस्तांतरण में अनियमित अनुबंध, भुगतान की शर्तो में लाभ देने और बाद में नियमन में पट्टे किराए के रूप में सरकार को 6.71 करोड़ का नुकसान हुआ। यह खुलासा बुधवार को विधानसभा में पेश भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में किया गया है।

आवास एवं पर्यावरण विभाग की ओर से गठित सचिव की अध्यक्षता वाली भू-आरक्षण समिति ने जून 2005 में निर्णय किया था कि संजय नगर की जमीन वाणिज्यिक उपयोग के लिए गृह निर्माण मंडल को दी जानी चाहिए।

हालांकि समिति ने कहा कि बशर्ते वह सरकार को प्रीमियम तथा पट्टे के किराए का भुगतान करे और अपनी लागत से संजय नगर के 5 हजार झुग्गियों के निवासियों के पुनर्वास की व्यवस्था करे।

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वर्ष 2006 में अनुबंध- राजस्व विभाग ने भूमि आवंटन के लिए सरकार एवं गृह निर्माण मंडल से पट्टे का अनुबंध 20 नवम्बर 2006 को किया। इसकी शर्तो के अनुसार भूमि को 3.35 करोड़ रूपए की दर से 2006-07 से 30 वर्षो के लिए पट्टे पर दिया गया। भूमि का अग्रिम आधिपत्य मंडल को 29 अप्रैल 2006 को दिया गया। मंडल ने सरकार को 44.78 करोड़ रूपए तथा 2006-07 एवं 2007-08 के वर्षो के लिए पट्टे के किराए का 6.71 करोड़ रूपए का भुगतान किया।

पुनर्वास में भी सरकार को चूना- संजय नगर के रहने वाले पांच हजार परिवारों का पुनर्वास की व्यवस्था जमीन को लीज पर लेने वाली कंपनी को करनी थी। लीज के अनुबंध में ये शर्त शामिल थी। इसके बावजूद पुनर्वास का खर्च हाउसिंग बोर्ड ने उठाया। विभिन्न स्थानों पर हाउसिंग बोर्ड के खाली पड़े निम्न आय वर्ग वाले आवासों में इन लोगों का पुनर्वास किया गया। उन्हें आज तक उन आवासों का मालिकाना हक नहीं मिला और सरकार को भी करोड़ों का नुकसान हुआ।

गड़बड़ी पर डाला पर्दा- महालेखा परीक्षक की टीम से इस गड़बड़ी की सूचना मिलने पर भी राज्य सरकार और हाउसिंग बोर्ड ने मामले पर पर्दा डाले रखा। हालत यह है कि महालेखा परीक्षक की ओर से मई 2009 में आवास एवं पर्यावरण विभाग को सूचना दी थी। इसके जवाब पर हाउसिंग बोर्ड ने एक साल में भी विभाग को जवाब नहीं दिया। विभाग ने बोर्ड पर सख्ती से जवाब लेकर महालेखा परीक्षक को भिजवाने की जहमत नहीं उठाई।

(पत्रिका, भोपाल में पहले पन्ने पर प्रकाशित खबर)

 


 

आपके सहयोग से भास्कर करेगा सोशल ऑडिट

सरकारें पावन उद्देश्य से जनहित की योजनाएं शुरू करती हैं, लेकिन उनका पूरा लाभ अक्सर लोगों तक नहीं पहुंच पाता। ऐसा कई कारणों से होता है। प्रमुख कारण यह है कि योजनाओं से जनता का न तो जुड़ाव होता है, न जन निगरानी। करों के रूप में चुकाए गए अपने ही पैसे से चलने वाली सरकारी योजनाओं में जनता की भागीदारी, जनता का नियंत्रण नहीं होता।

दैनिक भास्कर ने यह बीड़ा उठाया है कि वह सरकारी योजनाओं पर जनता की सीधी निगरानी की व्यवस्था करेगा। इसे हमने सोशल ऑडिट कहा है और सबसे पहले केंद्र सरकार की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना को चुना है। यह है जेएनएनयूआरएम (जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्युअल मिशन)। शहरों के लिए इतनी बड़ी योजना पहले नहीं बनी। सरकार ने इसमें 1.12 लाख करोड़ रुपए की विशाल धनराशि खर्च करने का लक्ष्य रखा है। 2005 में प्रारंभ इस मिशन ने पांच साल पूरे किए।

अब तक 65 शहरों में 524 प्रोजेक्ट शुरू हुए, जिनमें से महज 61 पूरे हो सके। खर्च हुए कुल 11,129 करोड़ रुपए। कुल मिलाकर पांच सालों में मिशन का केवल 10 से 15 फीसदी काम हो सका, जबकि अब सिर्फ दो साल बाकी हैं। अब भी योजना का पूरा लाभ उठाकर शहरों को ज्यादा रहने लायक बनाकर अगले दो सालों को सार्थक बनाया जा सकता है। जेएनएनयूआरएम की सोशल ऑडिट की इस व्यवस्था का खुलासा आने वाले दिनों में भास्कर में होगा।

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यह जनता की भागीदारी और निगरानी की योजना है। इसलिए इसमें पाठकों का जागरूक होना जरूरी है। सरकार ने योजना बनाई, धन दिया। यह योजना और धन हमारे शहरों को बेहतर और रहनशील बना सके, इसके लिए हमें आगे आना होगा। दैनिक भास्कर के सोशल ऑडिट में मेरा आग्रह है कि आप सब बढ़-चढ़कर भागीदारी करें।

रमेशचंद्र अग्रवाल

चेयरमैन, दैनिक भास्कर समूह

(दैनिक भास्कर, भोपाल में पहले पेज पर प्रकाशित विशेष संपादकीय)

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0 Comments

  1. sunil barua

    July 30, 2010 at 5:58 pm

    ab chor karenge paharedari

  2. Rajesh

    July 30, 2010 at 1:43 pm

    इसे कहते है सो सो चूहे खाकर बिल्ली हज को चली…

  3. Ram Bhuwan Singh Kushwah

    July 30, 2010 at 4:59 pm

    यह सब देखकर सर शर्म से झुक जाता है । हमारा अब कोई जमीर बचा भी है !!!!!!
    गरीबों की वस्ती पर माल ! पहले कभी फिल्मों की पटकथा हुआ करती थीं ,
    वाह री सरकार ! वाह रे जन नेता !
    कर्मचारियों और गरीब पत्रकारों के क्वाटरों को गिरा कर करोडपतियों के लिए बंगले !
    हाउसिंग बोर्ड क्या इसलिए बनाया गया था ?
    सरकार लाभ अर्जन के लिए और राजनीति जेब भरने के लिए !
    कहीं किसी में कोई शर्म बची है क्या ?

  4. rajesh saxena

    July 30, 2010 at 10:03 pm

    ghor kaliyug hai bhai……choro ke sardaar sareaam kah rahe hain ki chori buri hai. bhaskar….jagran….. TOI, HT groups ke kaale karname samne aa jayen to janta netaon ko bhola aur masoom manne lagegi.
    all is well.
    rajesh saxena
    [email protected]

  5. rajshree

    July 31, 2010 at 7:52 am

    we r waiting for comments from Nami Girami Sampadak of Bhaskar

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