
फोटोग्राफर गोपीनाथ को सलाम
पत्रकारिता की आत्मा को समझ पाना, महसूस कर पाना, उसे जीते रह पाना हर पत्रकार के वश की बात नहीं। फोटोग्राफर तो खासकर दोहरी जिम्मेदारी लेकर चलते हैं। वे न्यूज घटित होते हुए देखते हैं, उसकी संवेदना को कैमरे में कैद करता हैं, उसकी भावना को रिपोर्टर तक पहुंचाते हैं। तब जाकर फोटो और खबर पूरी कहानी बयान कर पाती है। कई बार तो सिर्फ एक तस्वीर का वह असर होता है जो कई-कई पेज लिखे का नहीं होता। एक कमाल के फोटोग्राफर ने 19 साल पहले जो काम कर दिखाया, वह आज पत्रकारिता के इतिहास के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित हो चुका है। हम बात कर रहे हैं के. गोपीनाथ की। वे इन दिनों द हिंदू के चीफ फोटोग्राफर हैं। 19 साल पहले वे इंडियन एक्सप्रेस के फोटोग्राफर हुआ करते थे। बात 1989 की है।
उन्हें सूचना मिली की एक लड़की को पैदा होते ही उसके मां-पिता ने त्याग दिया और वह बेंगलोर के आश्रय नामक एक अनाथालय में पल रही है। सबसे कष्ट की बात यह थी कि लड़की के न तो हाथ हैं और न पैर। हाथ-पैर विहीन इस लड़की के पैदा होने पर इसी कमी की वजह से उसके मां-पिता ने त्याग दिया होगा। गोपी लड़की को देखने अनाथालय पहुंचते हैं और उसकी तस्वीर लेते हैं। वह तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस में प्रमुखता से प्रकाशित होती है।
एक्सप्रेस की तस्वीर व खबर के आधार पर अमेरिका के एक पति-पत्नी हाथ-पैर विहीन लड़की को गोद ले लेते हैं। 19 साल बाद गोपी को एक दिन पता चला कि वही लड़की बेंगलोर के अनाथालय में अपने अमेरिकी मां-पिता के साथ घूमने आई है। गोपी ने लड़की को देखा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। किस तरह एक तस्वीर किसी की जिंदगी बदल सकती है, किस तरह एक संवेदनशील फोटोग्राफर किसी अनाथ का भला कर देता है, फोटोग्राफर के. गोपीनाथ इसके जीते-जागते प्रमाण हैं। गोपी को सलाम।
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