: मजदूर नेता सहित 73 मजदूर गिरफ्तार, तपीश का कहीं अता-पता नहीं : भारी पुलिस फोर्स ने तितर-बितर किया शांतिपूर्ण प्रदर्शन : प्रशासन पूरी तरह मालिकान के पक्ष में : मांगों पर कोई बातचीत नहीं : भूख हड़तालियों को हटाने और आंदोलन के दमन पर तुला प्रशासन : पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की जांच टीम गोरखपुर पहुंची : गोरखपुर, 20 मई। गोरखपुर में 16 मई से शुरू हुए मज़दूर सत्याग्रह के दूसरे चरण के तहत आज मजदूरों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को डीआईजी के नेतृत्व में आई भारी पुलिस फोर्स ने लाठीचार्ज कर तितर-बितर कर दिया।
पुलिस ने मजदूर नेता तपीश मैंदोला सहित 73 मजदूरों को गिरफ्तार किया है लेकिन पुलिस तपिश एवं 30 अन्य मजदूरों की गिरफ्तारी नहीं दिखा रही है। तपीश को 3 मई को अंकुर उद्योग के सामने मजदूरों पर हुई गोलीबारी के मामले में फैक्ट्री मालिक अशोक जालान की तरफ से दर्ज करायी गई झूठी एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार किया गया है और हत्या के प्रयास, बलवा आदि की धाराएं लगाई हैं। प्रशासन बेशर्मी से मालिकों के पक्ष में खड़ा नजर आ रहा है। मजदूरों ने उस घटना में अशोक जालान, उनके बेटे और हिस्ट्रीशीटर प्रदीप सिंह वह अन्य के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करायी थी जिस पर पुलिस-प्रशासन ने कुछ नहीं किया और अशोक जालान की ओर से दर्ज करायी झूठी रपट पर तपीश को गिरफ्तार कर लिया है। अशोक जालान ने रपट दर्ज करायी थी कि तपीश सहित अन्य मजदूर नेताओं ने खुद ही मजदूरों पर गोलियां चलवायी थीं, जबकि अखबारों और टीवी चैनलों के खबरों से साफ पता चलता है गोलीबारी कारखाने के अंदर से हुई थी, और इसकी पहले से तैयारी थी। मजदूर यूनियन ने आशंका जताई है कि तपीश की जान को खतरा है।
इस बीच डीएम कार्यालय पर प्रदर्शन के लिए जा रहे 50 मजदूरों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया, जिसमें से 25 को गंभीर चोट आई है। दोपहर में अपनी जायज मांगों के समर्थन में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लगभग 500 मजदूरों को गोरखनाथ मंदिर के करीब रोक लिया गया था। सभी 500 मजदूरों ने आपस में एक-दूसरे को लंबी रस्सी से बांध लिया था और उसी जगह सड़क बैठ गए थे जहां डीआईजी रेंज की अगुवाई में आए भारी पुलिस फोर्स ने उन्हें रोक रखा था। ताजा जानकारी के अनुसार, पुलिस ने हल्का लाठीचार्ज करके मजदूरों को तितर-बितर कर दिया और 73 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उनमें से 30 गिरफ्तारी नहीं दिखाई और ना ही तपीश की गिरफ्तारी दिखाई गई है। इसके बाद किसी तरह लगभग 250 मजदूर टाउनहॉल पर गांधी प्रतिमा के सामने फिर धरने पर बैठ गए हैं।
गौरतलब है, कि तपीश को किसी और स्थान से गिरफ्तार किया गया – गिरफ्तारी के वक्त वह उस जुलूस-प्रदर्शन में शामिल नहीं थे। पुलिस उन्हें अज्ञात स्थान पर ले गई है और इस बात की आशंका है कि उन्हें नुकसान पहुंचाया जा सकता है। ज्ञात हो कि कुछ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मजदूर नेताओं को लगातार ही ”गंभीर परिणामों” की धमकी देते रहे हैं। वे विशेषतौर पर तपीश, प्रमोद कुमार और प्रशांत को निशाना बनाते रहें हैं और उन पर ”आतंकवादी-माओवादी” का ठप्पा लगा रहे हैं। दो साल पहले भी स्थानीय पुलिस प्रशासन ने मजदूर नेताओं को गिरफ्तार करके मारा-पीटा था, और खबरें मिली थीं कि उनके एनकाउंटर की तैयारी की जा रही है। लेकिन देशभर में विरोध-प्रदर्शन के बाद वे इस हरकत को अंजाम नहीं दे पाए और भारी जनदबाव के कारण उन्हें छोड़ना पड़ा था। लेकिन इस बार प्रशासन इस आंदोलन को बुरी तरह कुचलने को तैयार दिख रहा है। ऐसे में तपीश की जान को भी खतरा है।
3 मई के गोलीकांड के अभियुक्तों की गिरफ़्तारी, दोषी अफसरों पर कार्रवाई, गोलीकांड और दमन की घटनाओं की न्यायिक जांच, घायल मज़दूरों को मुआवज़ा तथा वी.एन. डायर्स के दो कारखानों में तालाबंदी खत्म कर सभी 18 निष्कासित मज़दूरों की बहाली की मांग पर 16 मई की सुबह से भूख हड़ताल शुरू की गई थी। एक मज़दूर की मां सुशीला देवी, तीन मज़दूर बिंदेश्वर राय, सुशील श्रीवास्तव और महेश पाठक तथा स्त्री कार्यकर्ता श्वेता भूख हड़ताल पर बैठे हैं जिनमें से सुशीला, श्वेता और महेश पाठक की हालत बिगड़ गई है। 18 मई की रात प्रशासन ने महेश पाठक को उठाकर जिला अस्पताल में भरती करा दिया था लेकिन उन्होंने वहां भी अनशन जारी रखा और 19 मई की सुबह फिर से आकर भूख हड़ताल में शामिल हो गए।
इलाके के कई कारखानों के सैकड़ों मज़दूर भी दिनो-रात धरनास्थल पर मौजूद रह रहे हैं। इस बीच प्रशासन पूरी तरह मालिकान के पक्ष में काम करते हुए लगातार धरना और भूख हड़ताल को खत्म कराने की कोशिशों में लगा है लेकिन मज़दूरों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। पहले दिन दो दौर की असफल बातचीत हुई थी जिसमें मालिकान निष्कासित मज़दूरों को वापस नहीं लेने पर अड़े हुए थे। उसके बाद से प्रशासन ने वार्ता की कोई कोशिश नहीं की। कल रात भी पुलिस और प्रशासन के बड़े अफसरों की अगुवाई में पुलिस बल मज़दूरों को हटाने की तैयारी में था। इसकी भनक लगते ही धरने पर बड़ी संख्या में बैठे सभी मज़दूरों ने लंबी-लंबी रस्सियों से एक-दूसरे को बांध लिया। जब लगा कि भारी बल प्रयोग किए बिना मज़दूरों को हटाया नहीं जा सकता तो पुलिस वापस लौट गई।
गोरखपुर में 3 मई को हुए गोलीकांड और उसके बाद मज़दूरों के बर्बर दमन के बाद भारी जनदबाव और मज़दूरों के संकल्पबद्ध प्रतिरोध के कारण ज़िला प्रशासन और अंकुर उद्योग के मालिकान को झुकना पड़ा था और मज़दूरों को एक आंशिक जीत हासिल हुई था। मई दिवस की रैली में भाग लेने के कारण अंकुर उद्योग से निकाले गए 18 मज़दूरों को काम पर रख लिया गया था और कारखाना 11 मई से चालू हो गया। लेकिन वी.एन. डायर्स के मालिक तालाबंदी खुलवाने और 18 मज़दूरों की बहाली के मुद्दे पर अड़े हुए हैं।
मज़दूरों ने आंदोलन के पक्ष में जनसमर्थन जुटाने के लिए आज पूरे गोरखपुर शहर में साइकिल रैली निकाली। आंदोलन के समर्थन में गीडा औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने भी कल अपने इलाके में जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया था। बरगदवा के विभिन्न कारखानों के मज़दूरों का एक बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी की जा रही है। इस बीच पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक जांच टीम गोरखपुर में मज़दूरों पर हुई फायरिंग, दमन और श्रम कानूनों के उल्लंघन के आरोपों की जांच करने कल गोरखपुर पहुंची। जांच टीम के सदस्य कल बरगदवा में धरनास्थल पर भी गए और मज़दूरों से बातचीत की। पिछले 2 सप्ताह से भी अधिक समय से जारी मज़दूरों के आंदोलन के प्रति प्रशासन के लगातार दमनात्मक रवैये और उत्तर प्रदेश सरकार की उपेक्षा की कड़ी निंदा फिर तेज़ हो गई है।
mohan
May 21, 2011 at 8:09 am
देखतहइ जौन खुलल बा उहौ बन्द हो जाइ
dileep singh
May 24, 2011 at 2:03 pm
कहीं विकास के नाम पर सड़क, रहवासी मकान बनाने एवं कारखाना खोलने के लिए किसानों की जमीन छीनकर उनके पुश्तैनी कारोबार से दखल किया जाता है, तो कहीं कारखानों को बंद कर दिया जाता है. यह कितनी हास्यास्पद एवं शर्मनाक स्थिति है, इस पर यदि गौर करें तो विकास एवं विनाश की तस्वीर साफ दिखाई देगी. दूसरी बात, रोजगार का ढिढोरा पीटने वाले लोग रोजी-रोटी देने की बात करते हैं और हर साल कारखानों के बंद होने संख्या में इजाफा हो रहा है और हजारों मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं. जब मजदूरों को भूखों मरने की नौबत आती है तो भूख क्या नहीं कराती तो वे कारखाना खोलवाने के लिए सड़क पर मजबूरी में उतर आते हैं. तो विकास की बात करने वाले एवं रोजगार देने वाले धन व बल के दम पर और प्रशासन एवं प्रजातान्त्रिक लोगों के सहयोग से उन पर दमनकारी रवैया अपनाया जाता है, इससे भी मन नहीं भरा तो उन पर गोलियाँ बरसाई जाती हैं. यह सब क्या है, विकास या विनाश. हवा में तो हम उड़ रहे हैं, परन्तु हम कहाँ जा रहे हैं. जरा गौर करके बताईये और बुजुर्गों की बात जैसी करनी वैसी भरनी को न बिसारिये. अभी बहुत कुछ……..