प्रभाष जी नहीं रहे तो कष्ट ये हो रहा कि उनसे जी भर मिला क्यों नहीं, जमकर बात क्यों नहीं की, उन्हें पूरी तरह से समझने की कोशिश क्यों नहीं की. उनसे कुछ छिटपुट मुलाकातें हुईं, जिसमें प्रभाष जी से परिचयात्मक बातचीत हुई. आज जब अनुरंजन झा ने अपने पुत्र की बर्थडे पार्टी की कुछ तस्वीरें भेजीं तो उसमें कुछ तस्वीरें मेरी और संजय तिवारी की भी थीं. मैं जब बर्थडे पार्टी में पहुंचा तो प्रभाष जी धर्मपत्नी के साथ वहां मौजूद थे. मैं लपका. अपना परिचय दिया. भड़ास4मीडिया पर उनके इंटरव्यू को सराहा.
पैसे लेकर खबरें छापने के धंधे पर उनके जोरदार लेखन की भरपूर तारीफ की और उन्हें बताया कि किस तरह उनके जनसत्ता में लिखे को भड़ास4मीडिया पर भी मैं प्रकाशित करता रहा हूं. प्रभाष जी सुनकर मुस्कराए. उनकी मैंने जमकर तारीफ की. जेनुइन आदमी की इसलिए जमकर तारीफ करता हूं क्योंकि उन्हें उनके किए का हक और सम्मान मिलना चाहिए. उन्हें मैंने नौजवानों का नौजवान और पत्रकारों का पत्रकार कहा. प्रभाष जी मुस्कराए और हाथ जोड़ लिया. मैं उनकी सहजता पर थोड़ी देर के लिए अवाक हुआ. तभी अन्य लोग आए और प्रभाष जी से परिचय देने के बाद बातें करने लगे. मैंने वहां से हटना उचित समझा ताकि प्रभाष जी औरों को भी समय दे सकें. प्रभाष जी के साथ की मेरी और संजय तिवारी की जो दो तस्वीरें हैं, उन्हें मैं यहां प्रकाशित कर रहा हूं.