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पैकेज पत्रकारिता से प्रभाषजी दुखी थे

पत्रकारिता के महानायक थे प्रभाष जोशी : नागपुर : हिंदी पत्रकारिता के मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देते हुए ‘लोकमत’ के संपादक और वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश द्वादशीवार ने कहा कि वे सदैव सत्य के प्रति निष्ठावान रहे। यही कारण था कि वे पहले विनोबा भावे और बाद में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ कार्य करते रहे। तिलक पत्रकार भवन में प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित कार्यक्रम में द्वादशीवार ने मुंबई में उनके साथ बिताए क्षणों को बखूबी याद किया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की गरिमा को जब भी ठेस पहुंची, उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की। हिंदी पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभ रहे जोशी के निधन के साथ ही हिंदी पत्रकारिता के एक युग का अवसान हो गया। उन्हें परंपरा और आधुनिकता के साथ भविष्य पर नजर रखने वाले पत्रकार के रूप में सदा याद किया जाएगा।

पत्रकारिता के महानायक थे प्रभाष जोशी : नागपुर : हिंदी पत्रकारिता के मूर्धन्य पत्रकार प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देते हुए ‘लोकमत’ के संपादक और वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश द्वादशीवार ने कहा कि वे सदैव सत्य के प्रति निष्ठावान रहे। यही कारण था कि वे पहले विनोबा भावे और बाद में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ कार्य करते रहे। तिलक पत्रकार भवन में प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित कार्यक्रम में द्वादशीवार ने मुंबई में उनके साथ बिताए क्षणों को बखूबी याद किया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता की गरिमा को जब भी ठेस पहुंची, उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की। हिंदी पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभ रहे जोशी के निधन के साथ ही हिंदी पत्रकारिता के एक युग का अवसान हो गया। उन्हें परंपरा और आधुनिकता के साथ भविष्य पर नजर रखने वाले पत्रकार के रूप में सदा याद किया जाएगा।

दैनिक भास्कर के संपादक प्रकाश दुबे के अनुसार प्रभाषजी के निधन को लेकर खबर मीडिया ने प्रसारित की कि सचिन तेंदुलकर के आउट होने के कारण उन्हें दिल का दौरा पड़ा, यह सही नहीं है। प्रभाषजी उतने कमजोर नहीं थे जिस प्रकार मीडिया ने प्रचारित किया। देश में लिखने वाले तीन लोगों में एक प्रभाषजी के साथ ही अब पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया है। उन्होंने अपनी कलम का कभी दुरुपयोग नहीं किया। यह उनकी मजबूती ही थी कि उम्र के इस पड़ाव पर भी उन्होंने राजनीतिक दलों से प्रेरित पैकेज पत्रकारिता का विरोध किया।

लोकमत समाचार के कार्यकारी संपादक जयशंकर गुप्त ने कहा कि प्रभाषजी के निधन से पत्रकारिता का एक बड़ा पेड़ उखड़ गया है। वे उनसे तब से जुड़े थे, जब वे जनसत्ता के संपादक हुआ करते थे। उन्होंने पत्रकारिता को नई दिशा और नई धार दी है। पिछले कुछ दिनों से प्रभाषजी काफी दुखी थे। इसका कारण मीडिया में पैकेज पत्रकारिता फैलता दायरा था। वे कलम के जुझारू योद्धा थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ‘दैनिक 1857’ के प्रधान संपादक एस.एन. विनोद ने कहा कि प्रभाषजी के संदेशों को आत्मसात करना ही दिवंगत आत्मा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। पैकेज जर्नलिज्म के खिलाफ उन्होंने आवाज बुलंद की थी। उन्होंने लोकसभा चुनावों के बाद दिल्ली में हुए एक सेमिनार का हवाला देते हुए कहा कि संपादकों के इस सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की उपस्थिति में पैकेज पत्रकारिता की जांच की मांग की गई थी। दुख की बात यह थी कि दूसरे दिन किसी भी समाचार पत्र अथवा टी.वी. चैनल में इस समाचार को स्थान नहीं दिया गया। प्रभाषजी ने सदैव पैकेज पत्रकारिता का विरोध किया है। पैकेज पत्रकारिता पर राष्ट्रव्यापी बहस होनी चाहिए। मीडिया पर जिन गलत लोगों का नियंत्रण हो चला है, उन्हें बेनकाब करने का समय अब आ चुका है।  प्रभाषजी ने सदैव ही पत्रकारों और पत्रकारिता के हितों के संवर्धन के लिए कार्य किया। वे निश्चय ही पत्रकारिता के महानायक थे। प्रास्ताविक भाषण वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप मैत्र ने तथा संचालन संजय लोखंडे ने किया।

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