यदि लोकतंत्र में प्रेस का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता रहेगा तो लोकतंत्र का चौथा खंभा होने का दावा भी खो बैठेंगे। यह कहना था प्रेस इंस्टीच्यूट आफ इंडिया के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ पत्रकार अजित भट्टाचार्य का। दिग्गज पत्रकार प्रभाष जोशी की याद में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में श्रद्धांजलि देते हुए भट्टाचार्य ने कहा कि जोशी खबरों के प्रकाशन में धन लेने की नई प्रवृत्ति के विरोधी थे। उन्होंने तमाम वरिष्ठ पत्रकारों को इसके खिलाफ एकजुट किया। मैंने और उन्होंने अपने दस्तखत से प्रेस कौंसिल आफ इंडिया में याचिका भी दायर की। उन्होंने बताया कि जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान आपातकाल का विरोध करते हुए उन्होंने ‘प्रजानीति’ का संपादन किया। उनका लेखन, संपादन बाद में ‘जनसत्ता’ के प्रकाशन में और निखरा। वे जन सरोकार के आंदोलनों में भी बेहद सक्रिय रहे।
दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट (डीयूजे) व दिल्ली मीडिया सेंटर फार रिसर्च एंड पब्लिकेशंस (डीएमआरसी) की ओर से गांधी शांति प्रतिष्ठान में सोमवार को हुई श्रद्धांजलि सभा में प्रभाष जोशी को याद किया गया। आखिरी सांस तक जोशी में लगाव, प्रतिबद्धता और लेखनी की खासियत को मीडिया के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय पत्रकारों साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सराहना की। श्रद्धांजलि सभा में प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार हरीश खरे, सांसद अर्जुन सिंह, माकपा महासचिव प्रकाश करात, प्रेस कौंसिल आफ इंडिया के सदस्य शीतला सिंह और इंटरनेशनल फेडरेशन आफ जर्नलिस्ट की निदेशक जैक्लिन पार्क की ओर से आए शोक संदेश पढ़े गए। सभा ने इस मौके पर आमराय से अधिकारों से लैस स्वायत्तशासी मीडिया कमीशन, अधिकार संपन्न मीडिया कौंसिल और पत्रकारों-गैर पत्रकारों के वेतनमान के संबंध में सरकारी मशीनरी बनाने के साथ ही संसद में मीडिया पर श्वेत पत्र लाने के प्रस्ताव पास किए गए। यह भी तय हुआ कि ‘खबर के बदले धन’ और सूचना के अधिकार पर प्रभाष जोशी के लेखों व भाषणों को इंटरनेट पर डाला जाए जिससे पत्रकारों में सामाजिक सरोकार बढ़े। आईजेयू के महासचिव मदन सिंह ने बताया आंध्र व केरल में उनका संगठन इन विषयों पर पुस्तिकाएं छापकर जन-जागरूकता बढ़ा रहा है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस के संपादक एमके वेणु, चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय आदि भी इस मौके पर उपस्थित थे।
‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव ने कहा कि उन्होंने पत्रकारिता को आत्मीय बनाया, सैकड़ों शब्द दिए। हर विषय पर लिखा। ऐसा जोश और दृढ़ता बहुत कम लोगों में होती है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि अब वे नहीं हैं लेकिन कुछ लोग आएंगे जो आज बढ़ रहे दबावों का मुकाबला कर सकेंगे। चिंतक लेखक डा मुरली मनोहर प्रसाद सिंह का कहना था कि प्रभाष जी वाचिक परंपरा में भी थे। सैकड़ों मुद्दों पर वे बोलते । कभी प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटे। दिल्ली में हुए सिख नरसंहार के दौर में उन्होंने ‘जनसत्ता’ में कभी एकतरफा खबरें नहीं छापीं। उन्होंने यह बताया कि पत्रकार ज्ञानी हो और पांडित्य की परंपरा से सीख लेते हुए अपनी राह बनाते हुए पत्रकारिता करे। पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि पत्रकारिता में राहुल बारपुते, राजेंद्र माथुर व प्रभाष जोशी एक अलग स्कूल है। इनकी कार्यशैली जन को सशक्त बनाने की रही। पत्रकार को आम जन से अलग नहीं होना चाहिए और राजतंत्र इतना मजबूत न हो कि लोकतंत्र पर भारी पड़े।
शिक्षा शास्त्री अनिल सदगोपाल ने कहा कि शिक्षा और विकास के विकास पर उनके पास ढेरों सवाल होते थे। वे ऐसे इंसान थे जो मानवीय समीकरणों को रिश्ता देकर चीजों पर सोचते-समझते थे। सामाजिक सरोकार की लड़ाई लड़ने वालों की वे एक उम्मीद थे। ‘खबर के बदले धन’ के मामलों की पड़ताल के लिए गठित प्रेस कौंसिल आफ इंडिया की एक समिति के सदस्य प्रणंजय गुहा ठाकुर्ता ने कहा उनमें सही बातों के समर्थन की जिद थी। वे आंदोलन के लिए अलग-अलग प्रदेशों के नगरों में जाते। हमारे सामने सबूत-गवाह पाने की दिक्कत होती। उनका कहना होता कि अखबार में छपा है उसके पीछे की बात हम बता रहे हैं। अब खंडन के लिए तो वे आएं। जन सरोकारों के मुद्दे, हिंद स्वराज, सूचना का अधिकार ऐसे कई आंदोलन रहे जिनके लिए वे हमेशा सक्रिय रहे।
सीएसडीएस के विपुल मुदगल ने बताया कि सूचना के अधिकार पर चल रहे आंदोलन के दौरान उन्हें करीब से जानने का मौका मिला। जनसुनवाई में उन्होंने भाग लिया। उनका श्रद्धा जीवन मे थी। जनांदोलन में पत्रकारिता का उनका अपना योगदान रहा है। खेल समीक्षक व पत्रकार प्रदीप मैगजीन ने कहा क्रिकेट के प्रति बच्चों की तरह उनमें उत्साह था। वे उस पर प्रतिक्रिया भी देते। पत्रकार व संपादक के रूप में उन्होंने युवाओं को हमेशा बढ़ावा दिया। टोटल टीवी के उमेश जोशी ने कहा, समझौता करना उनकी फितरत में नहीं था। उन्होंने पत्रकारों को निष्पक्ष पत्रकारिता सिखाई। उनमें खासी आत्मीयता और उत्साह था।
कवि-लेखक मंगलेश डबराल ने अपने लंबे संपर्क को याद करते हुए बताया कि बाबरी ध्वंस के बाद प्रभाष जी ने उन्माद के खिलाफ मोर्चा संभाला। सांप्रदायिकता के खिलाफ वे सक्रिय हुए। कुमार गंधर्व की गायकी से खासे प्रभावित थे उनके ही जरिए वे कबीर तक पहुंचे। उन्होंने विष्णु पराड़कर की पत्रकारिता के ढांचे को तोड़ा और उसे जनसरोकारों से जोड़ा। वे पत्रकारिता में लोकतत्व के हिमायती रहे। उनके लेखन में भी छोटे-छोटे गणदेवों का उल्लेख है जिनसे लोक चेतना का विकास हुआ। पत्रकार मनोहर नायक ने कहा, उन्होंने संस्कारों को एक नया परिवेश अपनी लेखनी से दिया। पत्रकार रवींद्र त्रिपाठी ने कहा कि विनोबा से खासे प्रभावित थे प्रभाष जोशी। उन्होंने ही उन्हें जेपी से जोड़ा। विनोबा विभिन्न भाषाओं के जानकार थे और उनकी भाषा में जैसा प्रवाह है वह प्रभाष जी में भी है।
सभा के अंत में डीयूजे के अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार पांडे ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता और सच्चाई जरूरी होती है। विभिन्न अखबारों के संपादन में हमेशा उन्होंने यह साबित किया। खबरों के प्रकाशन के बदले धन के विरोध में उन्होंने चार लेख लिखे। डीयूजे के फोरम से विरोध किया और प्रेस कौंसिल में अपील की। डीयूजे उनकी प्रतिबद्धता और आंदोलनों की पक्षधरता में हमेशा सहयोगी रहा। साभार : जनसत्ता