सचिन के सत्रह हजार रन पूरे होने पर प्रभाष जी ने लिखने का मन बना लिया था। उन्होंने जनसत्ता आफिस फोन कर कह भी दिया था कि लिखने जा रहा हूं, मेरा आर्टिकल मंगवा लेना। फिर उन्होंने लिखने का कार्यक्रम मैच खत्म होने तक टाल दिया। इसी बीच भारत की हार होते ही प्रभाष जी को हृदय में दर्द शुरू हो गया। वे क्रिकेट मैचों को डूबकर देखा करते थे। उनकी क्रिकेट के प्रति दीवानगी सबको पता है। दर्द शुरू हुआ तो जो एक टैबलेट खाने को दिया जाता है, दिया गया। पर दर्द कम नहीं हुआ। ब्लड प्रेशर कम करने के लिए एक अन्य दवा खाने को दी जाती थी पर उस वक्त वह दवा घर पर नहीं थी। बगल में रहने वाले डाक्टर को फोन किया गया तो वे आए और चेक करने के बाद हार्ट अटैक की सूचना दी। उन्होंने प्रभाष जी को तुरंत अस्पताल ले जाने की सलाह दी। इस दौरान प्रभाष जी की सांस फूलने लगी थी और आंखें बंद होने की स्थिति में थी। अस्पताल ले जाते-जाते प्रभाष जी बेहोश हो चुके थे।
डाक्टरों ने कई घंटे मेहनत की लेकिन प्रभाष जी फिर लौटे नहीं। उनकी मौत करीब साढे़ बारह बजे हुई। रात करीब एक बजे प्रभाष जी के पुत्र संदीप जोशी ने मुझे फोन कर डाक्टरों द्वारा पिता जी के गुजर जाने की पुष्टि करने की सूचना दी। अभी मैं एम्स में हूं। प्रभाष जी के पार्थिव शरीर पर रासायनिक लेप लगाया जा रहा है। वसुंधरा स्थित उनके आवास पर उनका शरीर दर्शनार्थ रखा जाएगा। शाम की फ्लाइट से उन्हें इंदौर ले जाया जाएगा। प्रभाष जी के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। सोपान जोशी पत्रकार हैं तो संदीप जोशी एयर इंडिया में कार्यरत हैं। बेटी सोनाल एनडीटीवी के लिए मुंबई में कार्यरत हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर से बातचीत पर आधारित)