प्रभाषजी पर पीआईबी में शोकसभा का आयोजन : ‘प्रभाष जी न किसी के जीवन में हस्तक्षेप करते थे और न ही अपने या अपने परिवार के जीवन में किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त करते थे.’ यह जानकारी आज भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) में बुलाई गयी एक शोक सभा में उनके करीबी सहयोगी और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने वहां मौजूद लगों को दी. पीआईबी के इतिहास में शायद पहली बार किसी वरिष्ठ पत्रकार की याद में शोक सभा का आयोजन किया गया जो कि कभी सरकारी पद पर न रहा हो. पीआईबी की महानिदेशक नीलम कपूर की पहल पर हुए इस आयोजन में कई वरिष्ठ पत्रकार और पीआईबी के अधिकारी मौजूद थे. प्रभाष जी के पुत्र सोपान जोशी ने बताया कि वे कठिनाई और गरीबी में बहुत खुश रहना जानते थे और उनके इस सदगुण को वे हमेशा याद रखना चाहते हैं. प्रभाष जी जब १९५५ में घर से निकल गए थे तो पत्रकारिता करने नहीं गए थे. वह तो संयोग था कि उन्हें हमेशा अच्छे सम्पादक और मालिक मिले और मिलते गए. सोपान ने राहुल बारपुते, नरेंद्र तिवारी और राम नाथ गोयनका का ज़िक्र किया.
वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने प्रभाष जी से जुडी अपनी निजी यादों का ज़िक्र किया और कहा कि वे किसी मंत्री और राह चलते फक्कड़ इंसान से उसी गंभीरता से बातचीत करते थे. इस अवसर पर प्रन्जोय गुहा ठाकुरता ने प्रभाष जी के अंतिम दिनों में हुई बातचीत का उल्लेख किया. उनके सौजन्य से ही स्वर्गीय प्रभाष जी का अंतिम भाषण भी सभा में सुनाया गया.
राम बहादुर राय ने बताया कि अगर प्रभाष जी ने पहल न की होती तो जैन हवाला काण्ड की उनकी बहुचर्चित खबर छप ही न पाती क्योंकि अखबार के समाचार सम्पादक ने तो उस खबर को रोकने का मन बना लिया था. दरअसल खबर २ दिन तक दबी रही. जब प्रभाष जी को पता चला तब खबर छप सकी. जैन हवाला काण्ड आज के मधु कोड़ा की तरह एक राजनीतिक भ्रष्टाचार का मामला था जिसमें ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियों के नताओं के नाम थे. राम बहादुर राय ने कहा कि प्रभाष जी मौलिक आदमी थे. जहां उनका फ़र्ज़ जुटने की प्रेरणा देता था, वे उसमें जुट जाते थे. उन्होंने नतीजों की परवाह कभी नहीं की. अपनी इसी प्रकृत्ति के कारण वे आदमी से मानव बन गए थे. उन्होंने समाज सेवा, राजनीतिक परिवर्तन, व्यवस्था परिवर्तन और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था.
(इस रिपोर्ट के लेखक वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह हैं)