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सब कहने लगे- बिक गया मीडिया… मैनेज होता है मीडिया…

अखबार के पेशे का आत्मसम्मान बचाया : साप्ताहिक अवकाश समाप्त होने के बाद अलीगढ़ से वापस आगरा जा रहा था। बस में चार पांच वृद्ध लोग मिल गए। सभी पवन कुमार वर्मा के ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास के सच्चे प्रतिनिधि थे। पता नहीं किस बात से बात शुरू हुई और जल्द ही मुझसे मेरे काम के बारे में पूछ बैठे। जवाब मिलने पर उन्हीं में से एक बोले- …क्या.. अखबार में नौकरी करते हो। (उल्लेखनीय है कि वे सभी अपनी-अपनी पारिवारिक और संतानों द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों के संबंध में आपस में चर्चा-स्पर्धा कर रहे थे)। मेरी अखबार की नौकरी के लिए ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे मैं कोई पिछड़ा हुआ काम करता हूं। ….खैर अगले 20 मिनट उन्होंने मुझे बताने में लगाए कि मीडिया बिक गया है। सब कुछ मैनेज होता है। कुछ नहीं कर सकता। तुम ही क्या कर लोगे। इस बीच मैंने अपना पेशागत अत्मसम्मान बचाने का असफल प्रयास करते हुए कहा भी कि बाबूजी मैं तो केवल नौकरी करता हूं।..भ्रष्टाचार सभी क्षेत्रों में है।…भष्टाचार द्विपक्षीय क्रिया है आदि..आदि…लेकिन वह नहीं माने।

अखबार के पेशे का आत्मसम्मान बचाया : साप्ताहिक अवकाश समाप्त होने के बाद अलीगढ़ से वापस आगरा जा रहा था। बस में चार पांच वृद्ध लोग मिल गए। सभी पवन कुमार वर्मा के ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास के सच्चे प्रतिनिधि थे। पता नहीं किस बात से बात शुरू हुई और जल्द ही मुझसे मेरे काम के बारे में पूछ बैठे। जवाब मिलने पर उन्हीं में से एक बोले- …क्या.. अखबार में नौकरी करते हो। (उल्लेखनीय है कि वे सभी अपनी-अपनी पारिवारिक और संतानों द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों के संबंध में आपस में चर्चा-स्पर्धा कर रहे थे)। मेरी अखबार की नौकरी के लिए ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे मैं कोई पिछड़ा हुआ काम करता हूं। ….खैर अगले 20 मिनट उन्होंने मुझे बताने में लगाए कि मीडिया बिक गया है। सब कुछ मैनेज होता है। कुछ नहीं कर सकता। तुम ही क्या कर लोगे। इस बीच मैंने अपना पेशागत अत्मसम्मान बचाने का असफल प्रयास करते हुए कहा भी कि बाबूजी मैं तो केवल नौकरी करता हूं।..भ्रष्टाचार सभी क्षेत्रों में है।…भष्टाचार द्विपक्षीय क्रिया है आदि..आदि…लेकिन वह नहीं माने।

उन्होंने यह एक पक्षीय निष्कर्ष निकाल लिया..। उनके अनुसार अन्य सैकड़ों युवाओं की तरह मैं भी उस आराम तलब युवा पीढ़ी का हिस्सा हूं, जो संघर्ष से कोसों दूर है। क्योंकि संघर्ष तो सिर्फ उनकी संतानों ने किया है। जो कहीं पर प्रबंधक हैं। तो कोई कहीं न कहीं वेल सेटल्ड है। पुत्रियों को भी अच्छा दहेज देकर शानदार जगह भेजा गया। (यहां पर वह दहेज की रकम का उल्लेख करना भी नहीं भूले)।

…सादाबाद तक आते आते मेरा धैर्य जवाब दे गया। मैंने उनकी उम्र और बालों की सफेदी को दरकिनार करते हुए प्रतिरोध करने का मन बनाया। …इस प्रकार की चेष्टा के साथ कि आस-पास के अन्य यात्री भी सुन लें। एक बुजुर्ग से पूछा कि बाबूजी आप किस विभाग से रिटायर हैं? बोले- मैं आगरा यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता था। दूसरे से पूछा तो पता चला बैंक से रिटायर थे। एक बुजर्ग ने यह भी बताया कि वह स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। 15 साल की उम्र में जेल चले गए थे।

.मैंने पहले बुजुर्ग से कहा जिस वक्त आप प्रवक्ता बने उस समय नेट जैसी परीक्षा नहीं थी। एमए करने के बाद सीधे पढ़ाने का अवसर मिलता था। बाद में नौकरी वरिष्ठों के आशीर्वाद पर बढ़ती रहती थी। सवाल के लहजे में पूछा.. आप नेट परीक्षा आज की तारीख में क्लीयर करके फिर से लेक्चरर बन सकेंगे? बैंक वालों से कहा- आज क्लर्क के लिए भी बैंक भर्ती बोर्ड है। चपरासी तक के लिए स्पर्धा है। क्या आप बैंकिंग की भर्ती परीक्षा की रीजनिंग सॉल्ब करने का दावा करते हैं? स्वतंत्रता सेनानी जी से भी कहा- …आप के समय में जिसने भी बोल दिया इन्कलाब जिन्दाबाद, वह देशभक्त हो गया। आज मैं भ्रष्टाचार से लड़ते हुए मर भी जाऊं तो कोई मुझे देशभक्त नहीं बल्कि आप जैसे ही मुझे बेवकूफ कहेंगे। चौथे बुजुर्ग से भी कहा कि जिस पिता ने अपनी पुत्री के लिए रिश्ता देखते समय यह देखा हो कि लड़के की उपरी कमाई कितनी है, उसे भ्रष्टाचार पर बात करने का भी नैतिक अधिकार नहीं है।…

यही स्थित अन्य बुजुर्गों के समक्ष रखी। …कुछ निरुत्तर रहे तो एक दो ने इसे मेरी कोरी लफ्फाजी बताया। लेकिन इस बीच मैंने बस में अपना आत्मसम्मान बचाने लायक समर्थन जुटा लिया। …मैंने जोड़ा कि क्यों बुजुर्गों को अपने समय का संघर्ष सबसे जटिल, अपने समय की युवा अवस्था सबसे आदर्शमयी लगती है। जबकि आज स्पर्धा के चलते कदम-कदम पर अस्तित्व के लिए एक जंग लड़नी पड़ रही है।

…इस पूरे प्रकरण में मुझे अभिव्यक्तिजन्य संतुष्टि मली। साथ ही कुछ सह यात्रियों की प्रशंसा। एक चीज और मिली। दो सीटों के बाद कस्बाई लुक लिए एक वृद्धा बैठी थी। कुछ सेकेंडों के मौन के बीच उसने कहा- ..सही कह रहयौ है लल्लू। मैंने इसे अपने दृष्टिकोण को उचित ठहराने का सबसे मजबूत आधार माना। बाद में मन ही मन सोचने लगा कि मैंने उन लोगों को भले ही निरुत्तर कर दिया पर असली सवाल तो यही है न कि अपना मीडिया वाला घर तेजी से अलोकप्रियता हासिल कर रहा है वरना ये सभी इस तरह से मीडिया को गालियां नहीं देते। मुझे लगा, अब भी वक्त है, सभी को संभल जाना चाहिए वरना कल हम लोग किसी को चुप कराने लायक भी नहीं रहेंगे। 

लेखक दीपक शर्मा पत्रकार हैं. उनसे संपर्क 098370-17406 के जरिए किया जा सकता है.

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0 Comments

  1. sankrit mukesh

    January 31, 2010 at 7:13 am

    aksar aisi halat se har chhote-bade patrkaron ko gujarna padta hai

  2. chandan goswami

    January 31, 2010 at 7:52 am

    sahi kaha aapne, kuch patrkar mahanagar palika sambhalte sambhalte, sahi logo ke samachar bhee press se gayab kar dete hei,kyonki oonko mahangar palika ke kuch neato aur chuut bhaiyo ke saath apna dimag aur patrkarta bhul kar chamcha giri karne mei achha lagata hei.. oonko kai neato se har month payment bhee militi hei. aise kaie section hei jaha per aise hei hota hei

  3. rohitash

    January 31, 2010 at 12:52 pm

    APNE YUG ME SABKO ANUPM GYAAT HUA APNA PYALA,APNE YUG ME SABKO ADBHUT GYAAT HUI APNI HALA;PHIR BHI VRIDDHO SE JAB PUCHHA EK YAHI UTTAR PAYA,AB NA RAHE WO PINE WALE AB NA RAHI WO MADHUSHALA.

  4. K.K.SHARMA BKN

    January 31, 2010 at 12:58 pm

    yah baat sahi ha ki kuchh chaploos logo ki vajah se aaj media par unglian uthne lagi ha. lakin aaj bhi media mai bahut se sanjida patrakar ha jinki vajah se media apni jaghe kayam ha.bharist patrakaro ke khilaf muhim chalane ki jarurat bhi ha.

  5. Robin

    February 3, 2010 at 6:44 pm

    Thanks Deepak Ji
    Deepak Ji Aapne 200% sahi baat likhi hai.
    Aaj hum sabhi (Main, aap, aur log bhi) naukri wale aapne aapne astitiva ke liye kitna sanghearsh katre hain , yeh sirf hum hi samagh sakte hain. lakin purani pidhi (matlub bujurgo) ne bhi aapne samay ke hisab se bahut kathin waqt ka samna kiya hain.
    Don’t worry life main sukh aur dukh jeevan chakra ki tarah hain.
    “All is well”

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