जयपुर में पिंक सिटी प्रेस क्लब की अंदरुनी राजनीति में नया मोड़ तब आ गया जब वरिष्ठ पत्रकार ईशमधु तलवार ने भड़ास4मीडिया के पास एक पत्र भेजकर पिंक सिटी प्रेस क्लब की कार्यप्रणाली के बारे में कई खुलासे किए। ईशमधु को बीते दिनों पिंक सिटी प्रेस क्लब की सदस्यता तीन महीने के लिए खत्म कर दी गई थी। इस मामले की खबर भड़ास4मीडिया पर ईशमधु की सदस्यता खत्म, वीरेंद्र फिर बने अध्यक्ष शीर्षक से प्रकाशित की गई थी। सदस्यता खत्म किए जाने के बाद ईशमधु पिंक सिटी प्रेस क्लब के चुनाव में शामिल नहीं हो सके थे और वीरेंद्र सिंह राठौड़ फिर से अध्यक्ष निर्वाचित घोषित किए गए थे। ईशमधु ने जो पत्र भड़ास4मीडिया के पास भेजा है, उसमें सदस्यता खत्म होने के प्रकरण के बारे में विस्तार से अपना पक्ष रखा है और प्रेस क्लब की कार्यप्रणाली के बारे में काफी कुछ बातें कही हैं।
पत्र उन्होंने एक जगह लिखा है- ”..मेरे जीवन में कभी ऐसा पड़ाव आएगा, मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। मैं सचमुच ये सब बातें बहुत व्यथित मन से लिख रहा हूं। मैं तीस साल से पत्रकारिता में हूं। पत्रकारों को गलत के खिलाफ आवाज उठाने वाला माना जाता है और मैं भी पत्रकारिता को उसी रूप में देखता आ रहा हूं। लेकिन मेरे साथ जो हुआ है, वह आश्चर्यजनक है। प्रेस क्लब में एक सच्चाई की तरफ अंगुली उठाने का नतीजा यह है कि मुझे अपमानित किया गया। अब भी पाखण्ड का सहारा लिया जा रहा है। अपने आपको ‘भोला-भाला’ बताने वालों का असली चेहरा देखना हो तो आप एक बार प्रेस क्लब जरूर आइये..”
पूरा पत्र इस प्रकार है-
संपादक
भड़ास4मीडिया
महोदय,
मैं ‘भड़ास’ ब्लाग और ‘भड़ास4मीडिया’ पोर्टल का पुराना प्रशंसक हूं। लेकिन इन दिनों नौकरी की व्यस्तताओं के चलते ‘भड़ास’ से मुलाकात हुए कई दिन हो जाते हैं। यही वजह है कि बिहार से एक मित्र ने बताया तो मुझे पता चला कि मेरे बारे में आपके पोर्टल पर कोई खबर छपी है। खबर के मुताबिक मेरे खिलाफ फैसला पिंकसिटी प्रेस क्लब की साधारण सभा में लिया गया। अगर ऐसा होता तो बात ही क्या थी। मुझे प्रेस क्लब प्रबंधन ने जिस कारण से निलंबित किया, वो कारण मुझे आज तक पता नहीं। मैं लगातार साधारण सभा की मांग करता रहा, लेकिन पत्रकारों के नेता बने प्रेस क्लब के प्रबंधकों ने मेरी एक नहीं सुनी। मैंने लिखित में भी इसकी मांग की लेकिन, उसे भी किनारे कर दिया गया। मेरे खिलाफ अध्यक्ष और महासचिव की शिकायत थी। इन्होंने खुद ही अपनी तथाकथित अनुशासन समिति से एकतरफा सुनवाई कराई और खुद ही फैसले पर हस्ताक्षर कर दिए। शिकायतकर्ता ही न्यायाधीश बन जाए तो क्या फैसला होगा, यह सभी जानते हैं। बाद में चुनाव घोषित करने के लिए 7 मार्च, 2009 को साधारण सभा बुलाई तो उससे ठीक एक दिन पहले 6 मार्च को मुझे तीन महीने के लिए प्रेस क्लब से निलंबन का आदेश थमा दिया, ताकि मैं साधारण सभा में अपनी बात ना कह सकूं और चुनावों में भी भाग नहीं ले सकूं। हालांकि मुझे चुनावों में भाग भी नहीं लेना था। मैं तीन बार क्लब का अध्यक्ष रह चुका हूं और पिछले कई सालों से क्लब में कोई चुनाव नहीं लड़ रहा हूं।
पिंकसिटी प्रेस क्लब की आज क्या हालत है, जरा इसे भी जान लीजिए। प्रदेश के प्रतिष्ठित अखबार ‘राजस्थान पत्रिका’ का एक भी पत्रकार आज प्रेस क्लब का सदस्य नहीं है। राजस्थान पत्रिका में काम करने वाले पत्रकार ‘प्रेस क्लब’ की छाया से भी डरते हैं। क्लब के पास से गुजरते हुए भी वे भयभीत होते हैं, पता नहीं कब कोई शिकायत कर दे और नौकरी से हाथ धोना पड़ जाए। इसके अलावा ‘दैनिक भास्कर’ जैसे बडे़ अखबार से प्रेस क्लब में कोई चुनाव नहीं लड़ सकता। ऐसे में जो तलछट बचा है, वो प्रेस क्लब में मौजूद है। तलछट ही मूंछों पर ताव देकर क्लब में घूमते रहते हैं। ‘वोट बैंक’ के लिए गैर पत्रकारों को साधारण सदस्य बना लिया गया है, ताकि इनका कुर्सी पर कब्जा कायम रहे। कुछ पदाधिकारियों ने अपने अखबार में काम करने वाले रिसेप्शनिस्ट, स्टोरकीपर और चपरासी तक को साधारण सदस्यता दे दी है। प्रेस क्लब की बार में सुनील सिंह नाम का जो कर्मचारी शराब पिलाता है, उसका भई प्रेस क्लब के महासचिव के दफ्तर में एक मामूली कर्मचारी है, लेकिन प्रेस क्लब में वह पत्रकार के रूप में साधारण सदस्य है।
पिंकसिटी प्रेस क्लब में आज जो हालात हैं, उनका अंदाज आप इससे लगा सकते हैं कि प्रेस क्लब के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह राठौड आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं। इनके खिलाफ आज भी चाकूबाजी का एक मुकदमा अदालत में चल रहा है। अदालत इन्हें एक बार भगोड़ा भी साबित कर चुकी है और इनके खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट भी जारी कर चुकी है।
मेरे जीवन में कभी ऐसा पड़ाव आएगा, मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। मैं सचमुच ये सब बातें बहुत व्यथित मन से लिख रहा हूं। मैं तीस साल से पत्रकारिता में हूं। पत्रकारों को गलत के खिलाफ आवाज उठाने वाला माना जाता है और मैं भी पत्रकारिता को उसी रूप में देखता आ रहा हूं। लेकिन मेरे साथ जो हुआ है, वह आश्चर्यजनक है। प्रेस क्लब में एक सच्चाई की तरफ अंगुली उठाने का नतीजा यह है कि मुझे अपमानित किया गया। अब भी पाखण्ड का सहारा लिया जा रहा है। अपने आपको ‘भोला-भाला’ बताने वालों का असली चेहरा देखना हो तो आप एक बार प्रेस क्लब जरूर आइये।
अब इस पूरे प्रसंग की पृष्ठभूमि भी जान लीजिए। बडा दुखद प्रसंग यह है कि दीवाली के आसपास मेरे मोबाइल पर एक पत्रकार का फोन आया कि भाई साहब, यहां प्रेस क्लब आकर देखिए कि यहां क्या हो रहा है। मैंने बस यहीं गलती कर दी, उस वक्त मैं क्लब परिसर में ही मौजूद था, लिहाजा वहां चला गया, जहां मुझे नहीं जाना था। जो कुछ देखा तो मैं हैरान रह गया। एक हलवाई और उसके करीब दर्जन भर कर्मचारी प्रेस क्लब के पिछवाडे वाले अहाते में व्यावसायिक स्तर पर मिठाइयां बनाने में लगे हुए थे। बडे-बडे थालों में मिठाइयां रखीं थीं और गैस की भटिटयां चल रही थीं। क्लब के बाहर हाफ बाडी ट्रक खडे थे, जिनमें लादकर मिठाइयां ले जाई जा रही थीं। उन दिनों दीपावली पर रसद विभाग घरेलू गैस सिलेण्डर का व्यावसायिक इस्तेमाल करने वाले हलवाइयों पर छापे मार रहा था और हमारे यहां प्रेस क्लब की सुरक्षित दीवारों में कानून का उल्लंघन किया जा रहा था। वहां हलवाई घरेलू गैस सिलेण्डरों से मिठाई बना रहा था। (बाद में पता चला कि इसी हलवाई ने एक बडे पदाधिकारी की शादी में खाने का सारा इंतजाम किया था।)
मैंने वहां से बाहर आकर अध्यक्ष और महासचिव से पूछ लिया कि यह सब क्या हो रहा है, मेरा यह पूछना ही शायद मेरा कसूर हो गया। वे बौखला गये। जवाब कुछ इस तरह का दिया- ‘हमारी मर्जी’। हमने फिर भी कुछ नहीं किया। अगले ही दिन घर पर प्रेस क्लब के अध्यक्ष और महासचिव के हस्ताक्षरों से एक फरमान पहुंच गया कि मैंने प्रेस क्लब के कुछ कर्मचारियों और पदाधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया। वे कौन से कर्मचारी और पदाधिकारी थे, मुझे आज तक पता नहीं चला और न ही बताया गया। मेरे द्वारा मांगने पर भी लिखित शिकायत की प्रति नहीं उपलब्ध कराई गई। मुझे अपने सूत्रों से यह जरूर पता चला कि जो अनुशासन समिति मुझे पत्र देकर सुनावाई के लिए बुलवा रही थी, उसमें अध्यक्ष और महासचिव ने ही मेरे खिलाफ कोई शिकायत लिखकर दी थी और किसी कर्मचारी की कोई शिकायत आज तक नहीं है।
अनुशासन समिति में मेरे साथ क्या होगा, मैं पहले ही जानता था, क्योंकि उसमें इनके ही लोग थे, जिन्होंने अभी पत्रकारिता में प्रवेश ही किया है। इसलिए ही मैं साधारण सभा की मांग कर रहा था। मैं उनसे पूछता ही रहा कि किसकी क्या शिकायत है, ये सब ब्यौरा मांगता रहा, लेकिन प्रबंधन ने मुझे कुछ भी उपलब्ध नहीं करवाया। जहां तक मेरी जानकारी है सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि अगर आपने आरोपी को शिकायतों का ब्यौरा उपलब्ध नहीं करवाया है तो यह नहीं माना जाएगा कि उसे सुनवाई का मौका दिया गया है। इस तरह बिना सुनवाई का मौका दिये ही क्लब प्रबंधन ने मेरे खिलाफ इकतरफा फैसला सुना दिया।
अब मेरे पास कुछ कहने को बचा है तो वो है, जिस पर लोग आजकल यकीन नहीं करते। ‘आरोप निराधार, असत्य और मनघडंत हैं’, ये शब्द तमाम किस्म के खण्डनों में इस तरह इस्तेमाल किये जाते रहे हैं कि छपते-छपते ये पिट गये हैं और कोई इन पर भरोसा नहीं करता। क्या मैं भी अब इन्हीं शब्दों में अपनी सफाई पेश करूं ?
ईशमधु तलवार
ई-10, गांधीनगर, जयपुर
मोबाइल- 09413327070
मेल- [email protected]