कई बड़े अखबारों के संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार अवधेश बजाज ने बिच्छू डॉट कॉम वेबसाइट के बाद इसी नाम से 13 नवंबर को पाक्षिक अखबार लांच कर दिया है। 24 पेज के इस अखबार ने धमाका कर रखा है। एमपी की राजनीति में बिच्छू डॉट कॉम अखबार आने से माहौल में काफी गरमाहट है। अवधेश बजाज का कहना है कि वे शीघ्र ही अखबार को साप्ताहिक करने जा रहे हैं। अखबार के लांचिंग अंक में अवधेश ने अपने तेवर के अनुरूप जो संपादकीय लिखा है, वो इस प्रकार है–
मर जाता तो इतनी फुरसत नहीं होती…
दशकों पहले अपने छुटपन की अवस्था में एक कहावत सुनी थी कि पुण्य की जड़ महाकाल में, पाप की जड़ अस्पताल में और दोनों की जड़ भोपाल में। समय ने करवट ली, नाजुक सी बाहों पर मसल की मछलियां उभरने लगीं, तब समझ में आया राजधानियों में पुण्य कम, पाप का प्रतिशत ज्यादा होता है। हमारे अखबार निकालने का प्रयास पापों के प्रतिशत को कम करने का है। हमें यह भली-भांति ज्ञात है कि समग्र मानवीय चेतना, संपूर्ण चराचर विश्व, इतिहास परंपरा बोध के साथ कदम-ब-कदम चलती विज्ञान तकनीकी और नवजात आर्थिक औद्योगिक संस्कृति से प्रभावित समाज से उपजे अखबारात और इलेक्ट्रानिक मीडिया के घरानों के सामने हमारी औकात सर्वव्यापी नहीं है। फिर भी बिच्छू डॉट कॉम उन लोगों की आवाज बनेगा, जिनकी आवाज सत्ता के गलियारों और पूंजीपतियों की तिजोरियों में गुम हो जाती है। हम युगबोध उपदेशात्माकता के सतही स्तर से उपर हैं। हम सामयिक जीवन को अकलुष चकित नेत्रों से देखते हैं। हम शापग्रस्त युग में बदलाव की पीड़ा को अभिव्यक्त करेंगे। वैश्वीकरण के दौर में बड़े अखबारात और इलेक्ट्रानिक चैनल्स के मालिकान स्वेच्छाचारिता के नाम पर वह परोस रहे हैं, जिनका जनता से कोई सीधा सरोकार नहीं है। बड़े अखबारात के संपादकों की हालत वसूली एजेंट और लाइजिनिंग अफसर की तरह हो गई। जो यह नहीं कर पाते, वह यूज्ड कंडोम की तरह फेंक दिए जाते हैं। इलेक्ट्रानिक चैनल्स की मजबूरी हो गई कि टीआरपी के लिए सफोस्टिकेटेट रंडियों की चुहलबाजी, कुत्ता-कूबतरबाजी को दिखाना पड़ा रहा है। दरअसल यह सब वैज्ञानिक उपलब्धियों के दुरुपयोग प्रौद्योगिकी आधार पर हुआ असंतुलित विकास, पूंजी का लाभ-लोभ की दृष्ठि से किया गया असमान वितरण, राजनीति का मूल्यहीनता की दिशा में धकियाए जाने का परिणाम हैं। बिच्छू का डंक समाज को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का अहसास कराएगा। बिच्छू का डंक उन्हें जागृत करेगा, जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता को मेमना बनाकर सत्ताधीशों व अफसरशाहों के दरवाजों पर खूंटे से बांध दिया है। हमें मालूम है कि समय के थपेड़े बिच्छू पर पड़ेंगे, लेकिन हमारे अखबार की धार को भोथरा नहीं कर पाएंगी। हमें तो जिंदा, जागृत, जूनून और जलजले वाले पाठकों का आर्शीवाद और मोहब्बत चाहिए।
और अंत में…
खाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती,
छोटी-मोटी बात से हिजरत नहीं होती।
पहले दीप जले तो चर्चे होते थे,
और अब शहर जले तो हैरत नहीं होती।
तारीखों की पेशानी पर मुहर लगा,
जिंदा रहना कोई करामात नहीं होती।
कोई उठा रखता है छत का बोझ,
दीवारों में इतनी ताकत नहीं होती।
सोच रहा हूं आखिर कब तक जीना है,
मर जाता तो इतनी फुरसत नहीं होती।
बिच्छू डॉट कॉम के संपादक अवधेश बजाज से संपर्क [email protected] के जरिए या फिर उनके मोबाइल नंबर 09425007681 के जरिए किया जा सकता है।