आज नवभारत टाइम्स, दिल्ली ने पहले पन्ने पर एक संपादकीय नुमा पीस छापकर बताया है कि वह यंग इंडिया का यंग पेपर है. युवाओं का अखबार बनने के लिए एनबीटी ने क्या-क्या गुल खिलाएं हैं, इसके बारे में भी जानकारी दी गई है. खास बात यह है कि आज से एनबीटी ने अपने मास्टहेड में एनबीटी के साथ ‘यंग इंडिया, यंग पेपर’ भी लिखना शुरू कर दिया है. संपादकीय के अंत में कहा गया है- ‘महज उम्र से नहीं, मन से यंग इस नए इंडिया की कहानी एनबीटी सुनाता रहेगा.’ पूरा संपादकीय इस प्रकार है-
सलाम यंग इंडिया
दुनिया के सबसे जवान देश की आवाज बन गया है एनबीटी
यंगिस्तान जैसे जुमले सुन-सुनकर आप थक चुके होंगे। इंडिया नौजवानों का देश है।, यह बताने की भी अब जरूरत नहीं। हमारी औसत उम्र 24 बरस है और इस मामले में हम दुनिया के सबसे यंग देश हैं, इस बात को भी दुहराना आपको बोर कर सकता है। लेकिन तब इस बात का अहसास भी आपको होगा कि जवानी के इस जलवे को अगर किसी पेपर ने अपनी पहचान बनाया है, तो वह एनबीटी ही है।
एनबीटी यंग इंडिया का यंग पेपर हैं (देखें मास्ट) और अपनी इसी पहचान के बूते वह देश की राजधानी का सबसे चहेता अखबार है।
इंडिया की आबादी में आ रहे इस बदलाव को एनबीटी ने बरसों पहले जान लिया था, और इसीलिए कलर, डिजाइन, ले-आउट और कंटेंट में ऐसे बदलाव किए गए, जिन्हें हिंदी मीडिया में नामुमकिन समझा जाता था। एनबीटी ने लैंग्वेज की जिद छोड़कर यंग इंडिया की जुबान अपनाई, कैची हैडलांइंस के साथ मजेदार खेल किए, हाल में पापा डोंट प्रीच और ईयर ट्वेंटी-10 जैसे ट्रेंडी मुद्दे उठाए, युवाओं के अहसासों को आवाज दी और कॉलेज लाइफ पर फोकस किया।
आज का इंडिया जिन चीजों के लिए जाना जाता है, वे सभी उसकी यूथ पावर की निशानी हैं- बीपीओ-आईटी सेक्टर, इसका सिनेमा, इसके नौजवान क्रिकेटर और यहां तक कि इसके यंग पॉलिटिशिन। लेकिन बाहर ही नहीं, घरों के भीतर भी फैमली लाइफ को यंग जेनरेशन ही नए रंग में ढाल रही है। और नतीजा ये कि पूरे इंडिया का नजरिया उम्र की हदों को पार करके यंग और मॉडर्न हो गया है।
महज उम्र से नहीं, मन से यंग इस नए इंडिया की कहानी एनबीटी सुनाता रहेगा।
media ka madhav
February 11, 2010 at 6:50 am
kya sare budhau out ho gaye???
sanjay
February 11, 2010 at 8:26 am
sal nbt ne to hindi hi Maa bahan ak kar yung india ko barbad karne par dulit hain.
विनीत कुमार
February 11, 2010 at 5:43 pm
नया क्या किया है। लगातार एफ.एम चैनलों को सुनकर आइडिया मार लिया। बात बस इतनी है कि प्रिंट में लाकर हिम्मत दिखायी है।..वैसे भी राहुल गांधी को ध्यान में रखकर सोचनेवाले लोगों को हर कुछ यंग दिखना ज्यादा जरुरी भी है।.