शनिवार की शाम नई दिल्ली के भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् सभागार में कलम के महानायक राजेंद्र माथुर के७५ वें जन्मदिवस पर एक गरिमामय कार्यक्रम में उन्हें याद किया गया. इसमें बड़ी संख्या में पत्रकार, साहित्यकार और बुद्धिजीवी मौजूद थे. कार्यक्रम में पत्रकारिता और भारत की अंतर्राष्ट्रीय छबि पर एक परिसंवाद भी आयोजित किया गया. इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल द्वारा निर्देशित वृतचित्र -कलम का महानायक -राजेंद्र माथुर का शो भी हुआ.
यह इस फिल्म का दिल्ली में पहला शो था. परिसंवाद में वरिष्ठ राजनेता मणिशंकर अय्यर, वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश, कवि और समालोचक अशोक वाजपेयी के अलावा दूरदर्शन की महानिदेशक अरुणा शर्मा भी मौजूद थीं. परिसंवाद में वक्ताओं ने पेड न्यूज पर चिंता जाहिर की और इस बात पर जोर दिया कि पत्रकारों को इस समस्या का जल्द समाधान खोजना चाहिए. टीवी चैनलों की पत्रकारिता से गुम हो रहे सरोकारों को भी देश के लिए अच्छा नहीं माना गया. परिसंवाद का संचालन नई दुनिया के प्रधान सम्पादक आलोक मेहता ने किया.
राजेंद्र माथुर पर बने वृतचित्र में उनकी पत्रकारिता, लेखन और उनके देशप्रेम को खासतौर पर रेखांकित किया गया. बाद में राजेश बादल ने बताया कि माथुर जी पर लगातार फिल्मों का सिलसिला जारी रहेगा क्योंकि एक फिल्म में माथुर जी के बारे में सब कुछ समेटना बेहद मुश्किल है. कार्यक्रम में राजेंद्र माथुर के संस्मरणों को भावुक अंदाज़ में अशोक वाजपेयी ने बयां किया. इस समारोह में माथुरजी की पत्नी श्रीमती मोहिनी माथुर और उनके परिवार के सदस्य भी थे. इसी कार्यक्रम में सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित राजेंद्र माथुर के लेखों का संग्रह -राम नाम से प्रजातंत्र तक का विमोचन भी किया गया.
ramesh singh
August 9, 2010 at 6:38 am
Rajendra Mathur, S.P.Singh aur Prabhasj Joshi – Teeno hi hindi patrakarita kai teen mahan naam hain. Teeno ka nam badi shradha kai sath liya jaata rahega…lekin aik baat Mathur saheb ki, baki dono sai alag hai…SP aur Prabhas Ji ki tarah unhaonai apnai ird gird lafangon ki team jama nahi honai dee..
कुमार हर्ष
August 10, 2010 at 7:45 am
माथुर जी के जन्मदिन के आयोजन पर राजेश बादल की फिल्म दिल को छू लोनो वाली थी…हालांकि फिल्म में कई गांठें महसूस हुई, फिर भी अच्छी प्रस्तुति थी। इस आयोजन के लिए ICCR , ICCR के DG सुरेश गोयल और रंजन बक्शी सभी प्रशंसा के पात्र हैं। माथुर जी का काय्रक्रम हो और गरिमा न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। ICCR के DG सुरेश गोयल और रंजन बक्शी जी से माफी के साथ कह रहा हूं…क्या ये कार्यक्रम आलोक मेहता जी के बिना नहीं हो सकती था…आलोक मेहता जी को संपादक के साथ सरकारी दुकानदार कहा जाता है। प्रमाण देखना चाहते हैं तो 2009 की पदम पुरस्कारों की सूची देख लीजिए। श्रद्धा से किए इस कार्यक्रम का श्राप आलोक मेहता साबित हो सकते हैं…सुरेश गोयल और रंजन बक्शी जी मानसिक तौर पर तैयार रहें।