माथुर साहब का बयान और दर्शकों की तालियां

: अंधेरे में रोशनी की किरण – ‘कलम का महानायक’ : भारतीय हिंदी पत्रकारिता  में कलम के महानायक राजेंद्र माथुर निराशा के अंधेरे में रोशनी  की किरण जैसे हैं। उनके बारे में जानकर और उन्हें परदे पर देखकर मौजूदा दौर की पत्रकारिता को लेकर पैदा हुई कुंठा खत्म होती है। ये फिल्म पत्रकारों को बाज़ार के दबावों से उबरने के तरीके सिखाती है। यह निष्कर्ष निकल कर आ रहा है राजेंद्र माथुर पर बनी फिल्म – ‘कलम का महानायक’ के देश भर में हो रहे प्रदर्शन के बाद। इस सप्ताह उत्तराखंड के हरिद्वार व बिहार में पटना में फिल्म के शो हुए।

पत्रकार राजेंद्र माथुर के योगदान को याद किया

पत्रकार राजेंद्र माथुर ने भारतीय पत्रकारिता खासकर हिन्‍दी पत्रकारिता की जो सेवा की, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. यह बात वरिष्‍ठ पत्रकार और फिल्‍म निर्माता राजेश बादल ने कही. वे प्रेस क्‍लब हरिद्वार की ओर से आयोजित गोष्‍ठी में बतौर मुख्‍य अतिथि बोल रहे थे. उन्‍होंने कहा कि राजेंद्र माथुर अंग्रेजी के प्राध्‍यापक थे.

गरिमामय कार्यक्रम में याद किए गए राजेंद्र माथुर

शनिवार की शाम नई दिल्ली के भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् सभागार में कलम के महानायक राजेंद्र माथुर के७५ वें जन्मदिवस पर एक गरिमामय कार्यक्रम में उन्हें याद किया गया. इसमें बड़ी संख्या में पत्रकार, साहित्यकार और बुद्धिजीवी मौजूद थे. कार्यक्रम में पत्रकारिता और भारत की अंतर्राष्ट्रीय छबि पर एक परिसंवाद भी आयोजित किया गया. इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल द्वारा निर्देशित वृतचित्र -कलम का महानायक -राजेंद्र माथुर का शो भी हुआ.

हर अखबार में दो खेमे हैं : मृणाल पांडे

: एक पाठक के हित की बात करने वाला तो दूसरा अखबार के शेयरधारकों का खेमा : जनसंवाद माध्यम स्वयं तैयार करे ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ : नागपुर में राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान आयोजित : मीडिया जरूरत से ज्यादा अहंकार से ग्रस्त : वर्तमान दौर में बदलती स्थितियों में जनसंवाद माध्यमों को स्वयं आगे आकर अपना ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ तैयार करना होगा। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार व प्रसार भारती की अध्यक्ष सुश्री मृणाल पांडे का। वे नागपुर के धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में आयोजित राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थीं। महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा एवं दैनिक भास्कर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य विषय ‘राज, समाज और आज का मीडिया’ था।

सरकारी आलोक में रज्जू बाबू की सालगिरह

राजेंद्र माथुरदृश्य-1 : राजेंद्र माथुर की 75वीं जयंती का आयोजन। सात अगस्त की शाम साढ़े पांच बजे। दिल्ली के आईसीसीआर के आजाद भवन का बैंक्वेट हॉल। नौसिखिया से लेकर खुद को दिग्गज समझने वाले पत्रकारों की भीड़। पूरी जमात चाय-पान के लिए इकट्ठी हो चुकी थी। अशोक वाजपेई तो भीड़ में घुल गए थे। जयराम रमेश (पर्यावरण मंत्री) सरकारी ओहदा और सुदर्शनीयता से आकर्षण का केन्द्र बने हुए थे। ये बात अलग है, कि उनके दाहिनी ओर जूठे कप-प्लेट रखे जा रहे थे। मणिशंकर आए तो भीड़ भरे हॉल में हलचल मच गई। यूं तो नरेश गोयल को ढेर सारे लोग जानते ही हैं, फिर भी रंजन बख्शी पूरे प्रोटोकॉल के साथ उनका परिचय करवा रहे थे। उमस ज्यादा थी। खचाखच भीड़ की वजह से कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही थी। हॉल के एसी का व्यवहार किसी कंजूस या जमाखोर सरीखा लग रहा था। चाय-पान से निकल कर कुछ लोग आजाद भवन के मुहाने पर लगे वोल्टास के टावर एसी की शरण में चले गए।

कलम के महानायक की याद

राजेंद्र माथुर: राजेंद्र माथुर की जयंती (7 अगस्त) पर खास : इकतीस मार्च 1991 की रात। मैंने नवभारत टाइम्स का प्रथम संस्करण छपने को भेजा ही था कि प्रधान संपादक राजेन्द्र माथुर जी का फोन आया। बोले, भोपाल जाना चाहोगे? मैं समझा नहीं। उन्होंने बात बढ़ाते हुए कहा, ‘‘नई दुनिया भोपाल में समाचार संपादक के तौर पर तुम्हें चाहता हूं। अच्छी पत्रकारिता करके दिखाओ। मैंने कहा, ‘जैसा आपका आदेश। लेकिन जाने से पहले मैं एक बार मिलना चाहूंगा।’ माथुर जी ने कहा ‘चिंता मत करो। चार अप्रैल को आगरा में शताब्दी पर मिलो। मैं खुद तुम्हें ज्वाइन कराने चलूंगा।’ अगले दिन मेरा इस्तीफा हो गया।

माथुर साहब को पढ़कर एक पीढ़ी पली-बढ़ी है

[caption id="attachment_17827" align="alignleft" width="99"]राजेंद्र माथुरराजेंद्र माथुर[/caption]: राजेंद्र माथुर की जयंती (7 अगस्त) पर खास : रचना और संघर्ष का सफरनामा : राजेंद्र माथुर की पूरी जीवन यात्रा एक साधारण आम आदमी की कथा है। वे इतने साधारण हैं कि असाधारण लगने लगते हैं। उन्होंने जो कुछ पाया, एकाएक नहीं पाया। संघर्ष से पाया, नियमित लेखन से पाया, अपनी रचनाशीलता से पाया। इसी संघर्ष की वृत्ति ने उन्हें असाधारण पत्रकार और संपादक बना दिया। राजेंद्र माथुर का पत्रकारीय व्यक्तित्व इस बात से तय होता है कि उनके लेखन में विचारों की गहराई कितनी है।

राजेंद्र माथुर पर 142 पन्नों की नई किताब

भोपाल के पत्रकार शिव अनुराग पटैरया की स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर पर केन्द्रित पुस्तक आई है. पुस्तक का प्रकाशन ‘प्रभात प्रकाशन’ नई दिल्ली ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल की ‘पत्रकारिता के युग निर्माता’ श्रृंखला के तहत किया है. स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर ने आजादी के बाद की हिन्दी पत्रकारिता को साहित्य और अनुवाद के आवरण से बाहर निकालकर आधुनिकता के युग में प्रवेश कराया.