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माथुर साहब का बयान और दर्शकों की तालियां

: अंधेरे में रोशनी की किरण – ‘कलम का महानायक’ : भारतीय हिंदी पत्रकारिता  में कलम के महानायक राजेंद्र माथुर निराशा के अंधेरे में रोशनी  की किरण जैसे हैं। उनके बारे में जानकर और उन्हें परदे पर देखकर मौजूदा दौर की पत्रकारिता को लेकर पैदा हुई कुंठा खत्म होती है। ये फिल्म पत्रकारों को बाज़ार के दबावों से उबरने के तरीके सिखाती है। यह निष्कर्ष निकल कर आ रहा है राजेंद्र माथुर पर बनी फिल्म – ‘कलम का महानायक’ के देश भर में हो रहे प्रदर्शन के बाद। इस सप्ताह उत्तराखंड के हरिद्वार व बिहार में पटना में फिल्म के शो हुए।

<p style="text-align: justify;">: <strong>अंधेरे में रोशनी की किरण - 'कलम का महानायक'</strong> : भारतीय हिंदी पत्रकारिता  में कलम के महानायक राजेंद्र माथुर निराशा के अंधेरे में रोशनी  की किरण जैसे हैं। उनके बारे में जानकर और उन्हें परदे पर देखकर मौजूदा दौर की पत्रकारिता को लेकर पैदा हुई कुंठा खत्म होती है। ये फिल्म पत्रकारों को बाज़ार के दबावों से उबरने के तरीके सिखाती है। यह निष्कर्ष निकल कर आ रहा है राजेंद्र माथुर पर बनी फिल्म - 'कलम का महानायक' के देश भर में हो रहे प्रदर्शन के बाद। इस सप्ताह उत्तराखंड के हरिद्वार व बिहार में पटना में फिल्म के शो हुए।</p>

: अंधेरे में रोशनी की किरण – ‘कलम का महानायक’ : भारतीय हिंदी पत्रकारिता  में कलम के महानायक राजेंद्र माथुर निराशा के अंधेरे में रोशनी  की किरण जैसे हैं। उनके बारे में जानकर और उन्हें परदे पर देखकर मौजूदा दौर की पत्रकारिता को लेकर पैदा हुई कुंठा खत्म होती है। ये फिल्म पत्रकारों को बाज़ार के दबावों से उबरने के तरीके सिखाती है। यह निष्कर्ष निकल कर आ रहा है राजेंद्र माथुर पर बनी फिल्म – ‘कलम का महानायक’ के देश भर में हो रहे प्रदर्शन के बाद। इस सप्ताह उत्तराखंड के हरिद्वार व बिहार में पटना में फिल्म के शो हुए।

अगले सप्ताह मध्यप्रदेश में उज्जैन और इंदौर में  कलम के महानायक का शो होगा। इंदौर में पहले भी एक शो हो चुका है। लोगों की मांग के चलते वहां दोबारा फिल्म दिखाई जा रही है। राजेंद्र माथुर के ७५ वें जन्म दिवस के साल में फिल्म के इतने ही शो करने का कार्यक्रम है। फिल्म के निर्माता निर्देशक वरिष्ठ पत्रकार और  राजेंद्र माथुर के वर्षों तक सहयोगी रहे  राजेश बादल के मुताबिक फिल्म का दूसरा भाग भी अगले साल जारी किया जायेगा।

छब्बीस अगस्त को हरिद्वार के प्रेस क्लब ने फिल्म का शो आयोजित किया था। इसमें राजेश बादल के अलावा राजेंद्र माथुर के आत्मीय रहे हरिद्वार के प्रोफेसर कमल कान्त बुधकर और नवभारत टाइम्स में काम कर चुके डॉक्टर देवेन्द्र भसीन के अलावा हरिद्वार के पत्रकार, चिन्तक, लेखक, समाजसेवी, शिक्षाविद और गणमान्य नागरिक मौजूद थे। इस कार्यक्रम में कई बार बेहद भावुक लम्हे आये ,जब राजेंद्र माथुर के साथ निजी रिश्तों को वक्ताओं ने याद किया।

हरिद्वार में राजेंद्र माथुर का करीबी रिश्ता रहा। वे कई बार हरिद्वार गए। इस वजह से वहां के लोगों के पास उनकी यादों का खज़ाना है। राजेश बादल ने माथुर जी पर केन्द्रित फिल्मों को लगातार बनाने की इच्छा का इज़हार किया तो हरिद्वार के लोगों ने उसे भरपूर समर्थन दिया। फिल्म में राजेंद्र माथुर जब कहते हैं कि अपनी पत्रकारिता के दौरान उन्होंने कभी भी अंतरात्मा के खिलाफ नहीं लिखा और न ही कभी वे किसी दबाव में आए तो देर तक हाल में तालियाँ गूंजती रहीं। कार्यक्रम में पेड न्यूज़ के प्रचलन पर चिंता जताई गई।

पटना में एंटी पेड न्यूज़ फोरम के बेनर तले यह फिल्म दिखाई गई। फिल्म को लोगों ने इसलिए भी पसंद किया क्योंकि इसमें राजेंद्र माथुर की पटना यात्रा के विजुअल्स थे और इसमें वे पत्रकारों को आगाह करते हुए कहते हैं कि पत्रकारों को लोगों की छवि खराब करने का कोई अधिकार नहीं है। गैर ज़िम्मेदार पत्रकारिता का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। कश्मीर समस्या पर राजेंद्र माथुर ने फिल्म में जो विश्लेषण किया, उस पर लोग वाह कर उठे। हालांकि फिल्म कार्यक्रम के अंत में दिखाई गई, फिर भी काफी लोगों ने इस का लाभ लिया। राजेश बादल के मुताबिक फिल्म के अगले शो सितम्बर के पहले सप्ताह में उज्जैन और इंदौर में होंगे। इसके बाद भोपाल, नागपुर, मुंबई और अहमदाबाद में ये प्रदर्शन होंगे।

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