Connect with us

Hi, what are you looking for?

हलचल

मैं बागी नहीं हूं : राकेश शर्मा

: जागरण के भ्रष्ट लोगों के खिलाफ प्रमाण जुटा रहा हूं, शीघ्र मुखातिब हूंगा : यशवंत जी, आपने मेरा दैनिक जागरण के बारे में किया गया खुलासा छापा, उसके लिए आपका धन्यवाद। परन्तु आपने ‘बागी’ शब्द का जो इस्तेमाल किया है, वह मेरे मामले में उपयुक्त नहीं है। मैं दैनिक जागरण का कोई बागी पत्रकार नहीं हूं। आपने बात की है बागी होने की तो, दोस्त, मैं बागी तब कहलाता जब मैं अखबार में रहते हुए यह काम करता।

<p style="text-align: justify;">: <strong>जागरण के भ्रष्ट लोगों के खिलाफ प्रमाण जुटा रहा हूं, शीघ्र मुखातिब हूंगा </strong>: यशवंत जी, आपने मेरा दैनिक जागरण के बारे में किया गया <a href="print/5799-jagran-complain.html" target="_blank">खुलासा</a> छापा, उसके लिए आपका धन्यवाद। परन्तु आपने 'बागी' शब्द का जो इस्तेमाल किया है, वह मेरे मामले में उपयुक्त नहीं है। मैं दैनिक जागरण का कोई बागी पत्रकार नहीं हूं। आपने बात की है बागी होने की तो, दोस्त, मैं बागी तब कहलाता जब मैं अखबार में रहते हुए यह काम करता।</p>

: जागरण के भ्रष्ट लोगों के खिलाफ प्रमाण जुटा रहा हूं, शीघ्र मुखातिब हूंगा : यशवंत जी, आपने मेरा दैनिक जागरण के बारे में किया गया खुलासा छापा, उसके लिए आपका धन्यवाद। परन्तु आपने ‘बागी’ शब्द का जो इस्तेमाल किया है, वह मेरे मामले में उपयुक्त नहीं है। मैं दैनिक जागरण का कोई बागी पत्रकार नहीं हूं। आपने बात की है बागी होने की तो, दोस्त, मैं बागी तब कहलाता जब मैं अखबार में रहते हुए यह काम करता।

वैसे, मेरे पास ‘बागी’ होने के आठ साल के दौरान बहुत कारण थे, लेकिन मैं तब भी बागी नहीं हुआ। आठ साल के दौरान अखबार ने मुझे वेज बोर्ड के अनुसार वेतन नहीं दिया, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। पिछले आठ साल से मुझे कन्वींस एलाऊंस के तौर पर मात्र 700 रुपये दिए गए, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। मेरे से जूनियर मेरे बराबर का वेतन लेते रहे लेकिन मैंने कभी वेतन वृद्धि के लिए नाक नहीं रगड़ी। मनमाने ढंग से मेरे तबादले किए गए, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। कई शीर्ष अधिकारियों ने नेताओं और धन पशुओं से मुलाकात करने के लिए दबाव बनाया, मैं तब भी बागी नहीं हुआ।

पिछले दो साल के दौरान फरीदाबाद में काम करने के बावजूद मुझे पे स्लिप पर कुरुक्षेत्र में ही स्थानांतरित दिखाया गया, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। पांच मई 2008 को फरीदाबाद स्थानांतरित करने के समय मैं अपने बच्चों के स्कूल एडमिशन पर 20 हजार रुपये से अधिक खर्च कर चुका था, कंपनी ने एक भी पैसा नहीं दिया, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। फरीदाबाद में शुरुआती दिनों में गृहस्थी जमाने के लिए 62 हजार रुपये की बीमा पालिसी 39 हजार में सरेंडर करने के बावजूद भी मैं बागी नहीं हुआ।

कई बार वेतन वृद्धि के लिए मांग करने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं होने पर कंपनी से लोन लेना पड़ा और उसका ब्याज चुकाया, तब भी मैं बागी नहीं हुआ। 26 दिसंबर 2009 को जब मेरे बच्चों की वार्षिक परीक्षा सिर पर थी, मेरा तबादला रोपड़ किया गया, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। कंपनी को मनमाने ढंग से हांकने वाले लोगों को मैंने खूब खरी-खोटी सुनाई और जिन लोगों पर विश्वास किया, उन्होंने ही पीठ में छुरा घोंपा लेकिन मैं बागी नहीं हुआ। मई 2008 से दिसंबर 2009 तक अखबार की सर्कुलेशन 46 हजार से 57 हजार पहुंची और विज्ञापन छापने वाले श्रेय बटोरने में जुटे रहे, मैं तब भी बागी नहीं हआ। श्रेय बटोरने में जुटे रहने वालों से कोई ये तो पूछता कि क्या विज्ञापन छापने से सर्कुलेशन बढ़ता है। इसके बावजूद भी मैं कभी बागी नहीं हुआ।

फरीदाबाद में कार्यालय के काम को प्रभावित करने वाले लोगों के खिलाफ मेरी बात नहीं सुनी गई, उलटे उनके साथ माननीय निशीकांत ठाकुर जी के रिश्तेदार संतोष ठाकुर मेरे खिलाफ साजिश रचते रहे, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। मुख्य संवाददाता को दरकिनार कर मुख्य महाप्रबंधक जी अपने रिश्तेदार संतोष ठाकुर के कहने पर मेरी राय लिए बगैर लोगों को पदोन्नत करते रहे, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। लोगों के स्थानांतरण में मुख्य संवाददाता को दरकिनार करने के मामले में भी मैं बागी नहीं हुआ। कार्यालय का संपादकीय प्रभारी होने के बावजूद नेताओं का नाम कांटने और छांटने में संतोष ठाकुर का हस्तक्षेप निरंतर रहने के बावजूद भी मैं बागी नहीं हुआ।

वर्ष 2008 की आगरा मीट के दौरान डबचिक में ठहराव के लिए प्रबंध करने के बावजूद वाहवाही मुख्य महाप्रबंधक के रिश्तेदार लूट ले गए, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवसिर्टी से विज्ञापन की डील नहीं होने पर जब संतोष ठाकुर मुंह लटकाए घूम रहे थे और मेरी मदद से उन्हें विज्ञापन मिलने पर भी मुझे कोई क्रेडिट नहीं मिला तो मैं तब भी बागी नहीं हुआ।

2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान मुझे चुनाव के लिए एडवरटोरियल की जिम्मेदारी सौंपने के बावजूद संतोष ठाकुर मेरे कनिष्ठ सहयोगियों के साथ बिना मुझसे बात किए नेताओं से डील करते रहे, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। विधानसभा चुनाव में 20 लाख रुपये से अधिक का एडवरटोरियल संतोष ठाकुर ने कार्यालय के सहयोगियों के साथ इकट्ठा किया (इस हिसाब की संतोष ठाकुर द्वारा तैयार की गई लिस्ट और उनके द्वारा दी गई नामों की पर्ची मेरे पास मौजूद है।) मीनाक्षी शर्मा और समाचार संपादक श्री कमलेश रघुवंशी के बीच ठन जाने के कारण जब मामला बिगड़ा तो मुझे सामने कर दिया गया। इसके बावजूद भी मैं बागी नहीं हुआ।

घर से 250 किलोमीटर दूर जिस शहर में मेरा कोई दुश्मन नहीं था, वहां अखबार के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मेरे खिलाफ साजिशें रची जाती रहीं, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। यूनेस्को और यूएनडेसा की कांफ्रेंस में अमेरिका और फ्रांस जाने के लिए छुट्टी की अनुमति मांगे जाने पर फ्लाइट पकडऩे के दिन ही मुझे अनुमति प्रदान की गई, मैं तब भी बागी नहीं हुआ। दोस्त, अभी तो बहुत सी बातें ऐसी हैं जो मुझे याद नहीं है और उन पर मैं विरोध दर्ज करा सकता था, लेकिन मैं कभी बागी नहीं हुआ।

दैनिक जागरण में तीन साल बाद पत्रकारों के स्थानांतरण की मांग करने वाला मैं इकलौता पत्रकार था और आठ साल के दौरान चार तबादलों को स्वीकार करने वाला भी। मेरे साथ काम करने वाले कितने जूनियर को काम के मामले में प्रमोट किया है और कितनों ने मेरे उत्साह बढ़ाने पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उच्चतर शिक्षा की तरफ कदम बढ़ाया, इसकी एक लंबी फेहरिश्त है। फरीदाबाद तबादले के कारण दो साल तक अपनी एम.फिल. की डिग्री पूरी नहीं कर पाया और पी.एच.डी. का पंजीकरण नहीं करा पाया, उसके बावजूद भी मैं बागी नहीं हुआ। चाहता तो किसी दूसरी जगह आराम से नौकरी कर सकता था, लेकिन जानता हूं कि कौव्वा चाहे किसी भी देश के वातावरण में रह ले, उसका रंग काला ही होता है। ऐसा ही क्षेत्र मुझे पत्रकारिता का दिखाई दिया, इस कारण ही यह फील्ड छोड़ दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बाकी रही मेरे इस सारे प्रयास की भूमिका तो इसका श्रेय आपको जाता है। पिछले छह महीनों से अपने काम को पटरी पर लाने के लिए प्रयासरत रहा हूं, लेकिन पत्रकारिता जगत में होने वाली हलचल को जानने के लिए भड़ास4मीडिया को नियमित तौर पर देखता रहा हूं। आपके द्वारा पिछले दिनों छापी गई पेड न्यूज के संबंध में 72 पृष्ठ की रिपोर्ट में दैनिक जागरण प्रबंधन की ओर से अच्छे प्रत्याशियों के कामों को हाईलाइट करने को अपना दायित्व बताने की सीनाजोरी दिखाने के कारण पैदा हुए क्षोभ के कारण ही मैं यह सब करने के लिए प्रेरित हुआ, ताकि पत्रकारिता जगत की अंदरुनी गंदगी को सभी लोग जान सकें। इस संस्थान में कई ऐसे लोग हैं जिनके बाप की कोई मिल नहीं चलती लेकिन वे देखते ही देखते करोपड़पति हो गए, उनकी पोल भी पूरे प्रमाण के साथ खोलूंगा। प्रमाण जुटा रहा हूं शीघ्र ही फिर आपसे मुखातिब होऊंगा।

आपका

राकेश शर्मा

Click to comment

0 Comments

  1. sonu kumar

    July 21, 2010 at 5:56 am

    Dainik jagran ka sach ujagr krne me rakesh sharma ne bhut himat dikhaye,,Yaro inko sabas do niras nhi kro

    lekin kai patrkar rakesh ke khulase par tippni kar rhe hai ki paid news par to sab khulam khula hai nai bat kya hai.. mere pyare dosto media ki dadagiri ke khilap bolne vale hai kitne.. thude nhi milte ..naye bat ye hai..phir apne apne sanstan me paid news ka naga nach hum sbne dekha bole kitne logto.SEBI ko pukhta sabut de diye oar karvai ke liye rasta bnya..ese logo ki himat badao.. bhayi media me to ye hal hai ki log ret me gardan dekar behte hai..itna dare ki spaktya yad ati hai ki har mod par ruk ruk kar sambhalte hai..itna hi darte hai to ghar se nikalte kyo hai

    dosto journalism me in dino esi chupi hai ki media sosak khub manmarji chala rhe hai. ye asvast hai ki bolne vala hai hi kon.sarkar inko nhi tokti..inme kam karne vale patrkar khule tor par to dur..dube chupe bhi inko naga karne ke liye khuch nhi karte. inki dukandari chal rhi hai..oar ye chuppi is dukan dari ko chalane me bhut yogdan de rhi hai..mai ye nhi kheta khule aam khilapt nokri me rehate ho sakti hai..lakin steh ke niche kannoni dhung se inka such ujagr karne me yogdan to de hi sakte hai

    yashwant bhayi ko dekhiye inke nakel kasne ke liye date hue hai..hum inke sath hai

    sonu kumar

  2. divyen ray

    July 21, 2010 at 6:28 am

    aur karnal se apke jane ke bad vahan kaun log baithe? CGM ko machhli khilane wale

  3. raja

    July 21, 2010 at 6:31 am

    bareilly me hote to aisa nhi hota…bareilly me brahmnon ko hi aage badaya jata hai.

  4. raj

    July 21, 2010 at 10:02 am

    sir ji pranam , sir ji apki bato me sacchai hai, hum apke sath hai. lage raho, meri tarf se ghar me sabko Pranam. apka chhota Bhai.

  5. lokendra

    July 21, 2010 at 11:00 am

    written by lokendra 21.07.0x
    rakesh ji ne sach bola,unpar kya bite wo j ante he ya fir unka pariwar bagi ka mat lab chambal se ppocho rakesh ji ne to gun nahi uthae swabhiman ki laladiee ki
    rakesh ji upar wale ke ghar me der he Anderea na hi he aap ke sath sachaa e he u r win the match sahi ki ya aap bagi nah i ho aap hero ho
    lokendra tiwari gwalior

  6. Neelam Goyal

    July 21, 2010 at 11:12 am

    Rakesh Sharma ji ne jo khulasa kiya hai usmain unke senior se junior sabhi currupt bataye gaye hain. dainik jagran ek akhbar nahin balki paisse ikatha karne ki dukan lag rahi hai.
    main faridabad mai hi rehti hun, aaj dainik jagran padne main bilkul bhi maja nahin ata kyonki aisa lagta hai ki haar khabar paisse dekar likhwai gayi hai.

  7. Rajesh Saxena

    July 21, 2010 at 9:37 pm

    Rakeshji,
    Dainik Jagran ho ya Dainik Bhaskar ya Patrika, yeh sab sale, lale choro ki barat hai. Inhone chote akhbaron ka jeena haram kar diya hai aur khud andar se itne kameene hain ki inke purvaj upar swarg ya narak main eisi auladen paida karne ke liya sir dhunte honge. thanks.

  8. Prakutha

    July 22, 2010 at 5:35 am

    राकेश जी
    नमस्कार!

    आपकी कथा पत्रकारों की सच्ची व्यथा है……इस सन्दर्भ में जानकी बल्लव शास्त्री जी की वो पंक्ति यद् आ रही है ….

    कुपथ-कुपथ रथ दौड़ाता जो
    पथ निर्देशक वह है
    लाज लजाती जिसकी कृति है
    धृति उपदेशक वह है .

    सच तो यही है ! पत्रकारों ने पत्रकारिता को घृणा का रण बना दिया है | लोकतंत्र का चौथा स्तभ अपनी चौथ मानाने की स्थिति को प्राप्त कर चुकी है | एक ओर बाज़ार उसे निगलना चाहती है तो दूसरी ओर लोकतंत्र के दिवालिये पहरुआ ख़ुशी से फुले नहीं समा रहे | कारन की उनकी भ्रष्टता पर नकेल कसने वाली एक मात्र ताकत अपनी औकात खो चुकी है |

    तो अगर लौ कहीं बची है
    जलाये रखो
    कारवां गुजरेगी एक दिन
    सच कहने वाला कोई तो हो !

    प्रकुठा

  9. Prakutha

    July 22, 2010 at 5:38 am

    राकेश जी,
    नमस्कार!

    आपकी कथा पत्रकारों की सच्ची व्यथा है……इस सन्दर्भ में जानकी बल्लव शास्त्री जी की कुछ पंक्तियां याद आ रही है ….

    कुपथ-कुपथ रथ दौड़ाता जो
    पथ निर्देशक वह है ,
    लाज लजाती जिसकी कृति है
    धृति उपदेशक वह है .

    सच तो यही है ! पत्रकारों ने पत्रकारिता को घृणा का रण बना दिया है | लोकतंत्र का चौथा स्तभ अपनी चौथ मानाने की स्थिति को प्राप्त कर चुकी है | एक ओर बाज़ार उसे निगलना चाहती है तो दूसरी ओर लोकतंत्र के दिवालिये पहरुआ ख़ुशी से फुले नहीं समा रहे | कारन की उनकी भ्रष्टता पर नकेल कसने वाली एक मात्र ताकत अपनी औकात खो चुकी है |

    तो अगर लौ कहीं बची है
    जलाये रखो
    कारवां गुजरेगी एक दिन
    सच कहने वाला कोई तो हो !

    प्रकुठा

  10. हरिदत्त जोशी

    July 22, 2010 at 5:54 am

    राकेश जी हम आपकी हिम्मत की जितनी तारीफ करे कम लगती है। आपने जिस दिलेरी और हिम्मत से अखबारों में अंदर खाते फैल रही गंदगी को उदागर करने का साहस जुटाया है वह काफी कम लोगों में होता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले हजारों बंधु आप जैसी कठुता और घुटन प्रतिदिन सहन करते हैं। पत्रकार दूसरों की समस्या तो लिख सकता है लेकिन अंदर खाते जो अन्याय व शोषण उसके साथ होता है उससे वह किसी को वाकिफ नहीं करवाता है। आपने जिस संस्थान के लिए इतना कुछ किया उस संस्थान में भाई-भतीजावाद के चलते आपकी मेहनत का फल किसी दूसरे को मिलता रहा। जागरण में आप ही नहीं बलिक कई ओर पत्रकार भी है जो प्रबंधकीय क्षेत्र में बैठे लोगों की मनमानी के चलते अपनी काबलियत के बावजूद कभी आगे नहीं बढ़ सके हैं। जहां तक बात पेड न्यूज की है वह केवल जागरण में ही नहीं बिल्क भास्कर, हिंदूस्तान जैसे सभी बडे़ अखबारों के लिए धंधा बन चुकी है। राजनेता पैसा फैंककर इन अखबारों से कुछ भी लिखवा सकता है जिससे अखबार की निष्पक्षता और विश्वसनीयता खतम होने की कगार पर पहुंच गई है जो इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए किसी बडी़ चिंता से कम नहीं है। राकेश जी हम उम्मीद करते हैं कि आप अपनी लेखनी में इस तरह की कालिख को साफ करने का काम आगे भी बिना किसी के दबाब में जारी रखेंगे। शायद आपके इस प्रयास से दूसरे पत्रकार बंधुओं का कुछ फायदा हो जाए। हम भ़डास फोर मीडिया को भी इस हिम्मत के लिए बधाई देते हैं जिन्होने राकेश जी की बात को छापा है।

  11. pankaj

    July 22, 2010 at 7:18 am

    rakesh ji app ko mera lal salam

  12. SONU

    July 23, 2010 at 8:20 am

    राकेश भाई

    सिरे लगा कर ही दम लेना. एसा लगे की किसी ने पूरा दम दिखाया है

    यशवंत भाई ने पत्रकारों को एक मंच दिया है ..यशवंत जी की सफलता पत्रकारों को इसे सहयोग देने में है..ओअर अगर दम दिखाने वाले नही होंगे तो अकेले यशवंत कुछ न कर पन्येंगे.. सबको अपनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी.. आओ .यशवंत भाई के अभियान में जुटे

  13. rama sdankar mishra

    July 23, 2010 at 8:48 pm

    yah ek sarthak pahal hai. is se un logo ko gausala milega jo shoshan ka shjkar ho rage gai. patrakarita jagat me aisi pahal ki sakhat aavshakta hai. mai aapke is kadam se bahut khush hu. aaj patrakar swatantra nahi rah gaya doosaro ko nyay dilane ke liye aawaj uthane wala khud gj shoshan ka shjkar go raha hai.

  14. Prakash Singh Rathore

    July 26, 2010 at 6:25 am

    Sir,
    Aapke Hausle Ko Salam. Ishwar Se Kamna Hai Ki Aap Jaldi Swasth Ho Jaye.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

: घोटाले में भागीदार रहे परवेज अहमद, जयंतो भट्टाचार्या और रितु वर्मा भी प्रेस क्लब से सस्पेंड : प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव...

Advertisement