जागरण और भास्कर पर मेरी टिप्पणी से किसी और को आघात लगा हो या न, लुधियाना में फिर से आये सुशील खन्ना को बहुत चोट लगी लगी है. तभी तो उन्होंने फट से जवाब दे मारा. मैं यहां यह बताना चाहता हूं कि मुझे पत्रकारिता में निशिकांत ठाकुर नहीं बल्कि राकेश शांतिदूत लेकर आये थे. स्थानीय संपादक के रूप में निशिकांत जी ने समय-समय पर मेरी तरक्की में जरूर भूमिका अदा की और जागरण से निकाल बाहर करने में भी. सुशील जी से पूछना चाहता हूं कि जिस दिन उनसे त्यागपत्र मांगा गया था, उस दिन उन्होंने निशिकांत ठाकुर के बारे में मुझसे फोन पर क्या कहा था.
अगर उन्हें याद नहीं तो मेरे पास उनके फोन की रिकॉर्डिंग मौजूद है, सुनना चाहते हैं तो उपलब्ध करवा दूंगा. धर्मशाला से लुधियाना, लुधियाना से नोएडा और फिर वहां से लुधियाना तक का सफ़र पंजाब के मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. चीमा के माध्यम से किस तरह तय किया, अगर उनके पास जानकारी नहीं है तो वो भी मेरे पास है. जिस निशिकांत को बचाने के लिए उन्होंने कलम उठाई है, वह कितने सच्चे और साफ़ हैं, उनके बारे में खुद सुशील जी की टिप्पणी मेरे पास उपलब्ध है. सुशील जी से मेरी गुजारिश है, मेरी चिंता छोड़ कर अपनी करें. समाज में बहुत से लोग तमाम क्वालिटी के बाद भी जुगाड़ के अभाव में अच्छी जगह नहीं पहुंचते. हम अक्सर बेकार लोगों को झेल भी रहे होंगे जो ऊंचे पदों पर सिर्फ इसलिए काबिज हैं क्योंकि वे किसी महान व्यक्ति के रिश्तेदार हैं. सुशील जी, बता दें कि दैनिक जागरण में टेलीफोन आपरेटर से लेकर विशेष संवाददाता तक के पद पर चीफ जनरल मैनेजर निशिकांत ठाकुर की ही जाति-इलाके और परिवार के लोग क्यों काबिज हैं? जागरण में आने से पहले इन लोगों का पत्रकारिता से कोई नाता-रिश्ता तक नहीं रहा है. निश्चित है कि इन लोगों को जगह देने के लिए किसी प्रतिभा का गला तो घोटा गया होगा.
खन्ना जी जिस निशिकांत जी की चिंता में दुबले हो गए हैं, उन निशिकांत जी के बारे में दुनिया जानती है कि इनके तीन साले हैं. एक हैं बीसी बत्सल जो जालंधर में हैं और एच आर डिपार्टमेन्ट का कामकाज देखते है. दूसरे हैं एसी चन्द्र जो जालंधर में ही सर्कुलेशन मैनेजर हैं. तीसरे हैं कविलाश मिश्र जो दिल्ली ब्यूरो में विशेष संवाददाता हैं. इन तीनों सगे भाइयों के गोत्र अलग-अलग क्यों है? कैलाश नाथ जालंधर में रिपोर्टिंग टीम के मुखिया हैं. जागरण में आने से पहले कानपुर में कोई छोटा-मोटा काम करते थे. मीडिया से इनका कोई लेना-देना नहीं था. मामा की कृपा से आज अख़बार की दुनिया में हैं. पहले इन्हें चंडीगढ़ में रिपोर्टिंग में जोड़ा गया. कामकाज नहीं आने की वजह से चंडीगढ़ की ब्यूरो चीफ मीनाक्षी ने उनसे काम लेना बंद कर दिया और उन्हें निकाल दिया गया. वह अमर उजाला में रहे. इसके बाद जालंधर बुला लिया गया. ड्यूटी डेस्क पर लगायी गयी . इसके बाद धीरे से उसे जालंधर रिपोर्टिंग में दूसरी पोजीशन पर एडजस्ट किया गया. इसके बाद योजनाबद्ध तरीके से मेरा ट्रान्सफर चंडीगढ़ किया गया और कैलाश की ताजपोशी कर दी गयी. किसी भी समय वह जालंधर का समाचार संपादक बनाया जा सकता है, खन्ना जी की बारी फिर भी नहीं आने वाली. फिर वह क्यों इतने चिंतित हैं? मुझे उम्मीद है कि खन्ना जी को मेरा सन्देश पहुंच गया होगा और निशिकांत जी को भी. मेरे खिलाफ कोई आरोप या मामला रहा हो तो उसकी बात करें, रीढ़हीन प्राणी की तरह व्यवहार न करें.
धन्यवाद.
ऋषि नागर
Editor
Day Night News
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