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संजीव-उपेंद्र भी खर्च घटाने की कवायद में लगे

सहारा में संजीव श्रीवास्तव और उपेंद्र राय की टीम खर्च पर कटौती की कोशिश में लग गई है। इनपुट को कंबाइंड करने से करीब 14 कम लोगों की जरूरत पड़ेगी। अब कुल मिलाकर 44 लोगों से पांच चैनलों के इनपुट का काम चलाने की योजना है। इसके अलावा ज्यादा वेतन पाने वाले लोगों के कामकाज की समीक्षा की योजना है।

<p align="justify">सहारा में संजीव श्रीवास्तव और उपेंद्र राय की टीम खर्च पर कटौती की कोशिश में लग गई है। इनपुट को कंबाइंड करने से करीब 14 कम लोगों की जरूरत पड़ेगी। अब कुल मिलाकर 44 लोगों से पांच चैनलों के इनपुट का काम चलाने की योजना है। इसके अलावा ज्यादा वेतन पाने वाले लोगों के कामकाज की समीक्षा की योजना है।</p>

सहारा में संजीव श्रीवास्तव और उपेंद्र राय की टीम खर्च पर कटौती की कोशिश में लग गई है। इनपुट को कंबाइंड करने से करीब 14 कम लोगों की जरूरत पड़ेगी। अब कुल मिलाकर 44 लोगों से पांच चैनलों के इनपुट का काम चलाने की योजना है। इसके अलावा ज्यादा वेतन पाने वाले लोगों के कामकाज की समीक्षा की योजना है।

कहा जा रहा है कि इसी योजना के शिकार विपिन धूलिया और संजय काव हैं। कई और लोग भी अभी लाइन में हैं। संजय काव और सहारा समय उत्तर प्रदेश के संस्थापक चैनल हेड विपिन धूलिया जिस केबिन में बैठते थे, वो खाली करा लिया गया है। ये दोनों लोग अब एचआर में देखे जाने लगे हैं। सूत्रों का कहना है कि सहारा में बड़े पदों पर बैठे रहने वाले लोग और संस्थान के साथ हेराफेरी करने वाले लोग इन दिनों नए वरिष्ठों के निशाने पर हैं।

सहारा समय (बिहार-झारखंड) के प्रभारी संजय मिश्र को किनारे करने के बाद दो लोगों ज्ञानेश और खालिद की टीम के जिम्मे इस चैनल के संचालन का कामकाज सौंपा गया है। यह घटनाक्रम कम से कम एक हफ्ते पहले हुआ है। इस घटनाक्रम से घबराए हुए सहारा समय (मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़) के प्रभारी राजेश भी हैं। माना जा रहा है कि देर-सबेर उन पर भी गाज गिर सकती है।

खर्च घटाने के प्रकरण पर सूत्रों का कहना है कि पहले भी ऐसी कवायदें हुईं पर उनका शिकार निचले स्तर के आम पत्रकारों-मीडियाकर्मियों को बनाया गया। तब भी यह बात उठी थी कि नीचे के लोगों पर गाज गिराने से स्थिति नहीं सुधरने वाली। जरूरत है उपर के स्तर पर समीक्षा की।  संजीव-उपेंद्र की टीम ने अब उपर के स्तर पर समीक्षा शुरू की है तो कई लोग इसका स्वागत कर रहे हैं पर कुछ लोग कह रहे हैं कि यह सब अपने लोगों को सहारा में लाने की कवायद का हिस्सा है, जब तक सहारा में कार्यरत वरिष्ठों को किनारे नहीं किया जाएगा, तब तक अपने लोगों को कैसे लाकर प्रमोट किया जा सकता है।

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0 Comments

  1. lalla

    February 2, 2010 at 9:36 am

    सहाराकर्मी कहते हैं हमारा ग्रुप टीम इंडिया का प्रायोजक बनने के लिए 500 करोड़ रुपए खर्च करता है. हमारा ग्रुप हॉकी टीम को प्रायोजित करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करता है. आईपीएल की टीम खरीदने को बेताब रहता है. अगर इन सब गैर उत्पादक कामो के लिए ग्रुप के पास पैसा है तो फिर ग्रुप में दिन रात मेहनत मशक्कत करनेवाले लोगों को सैलरी देने के लिए पैसा क्यों नहीं है ?
    सवाल है कि आखिर क्या हुआ ऐसा की साल भर पहले जो संस्थान बड़े-बड़े दावे कर रहा था वो साल भर में ही धाराशायी होने के कगार पर पहुंच गया. सहारा ग्रुप ने पिछले साल में अपने कर्तव्ययोगियों की सैलरी दो बार बढ़ाई. ये वही ग्रुप है जिसने अच्छा ख़ासा पैसा देकर पुण्य प्रसून वाजपेयी को ग्रुप संपादक बनाया था. वाजपेयी जी के साथ आए लोगों को भी अच्छा ख़ासा पैसा दिया गया. तो फिर अचानक एक साल में ही गंगा उल्टी क्यों बहने लगी. क्यों आर्थिक तंगी का रोना रो कर निचले और मझोले स्तर के लोगों पर गाज गिराई जा रही है.

    कर्तव्ययोगी कार्यकर्ताओं का कहना है कि आखिर क्यों ग्रुप ने अपने छोटे और मझोले स्तर के कर्मचारियों पर गाज गिराने की सोची. आखिर किसी भी संस्थान में इस स्तर पर काम करने वाले लोगों की भूमिका शीर्ष स्तर पर प्रबंधकों की तरफ से तय की गई योजनाओं को अमल में लाना होता है. मीडिया संस्थानों में तो और भी कड़ाई से आलाअधिकारियों की बनाई गई व्यूहरचना पर अमल किया जाता है. ऐसे में अगर संस्थान नुकसान में चल रहा है तो गड़बड़ी किसकी है ? कर्तव्ययोगी ये कहते हैं कि हम तो चैनलों के प्रबंधकों की तरफ से तय की गई रणनीति को अमल में लाते हैं. लेकिन अगर चैनल फायदा नहीं कमा रहा तो इसमें रिपोर्टर की भूमिका क्या है. उसकी भूमिका तो सिर्फ ख़बर देने तक है. विज्ञापन जुटाना और चैनल के आर्थिक हितों को साधने का काम तो मार्केटिंग और आला प्रबंधन का है. फिर मैनेजमेंट में ऐसे लोगों को सज़ा देने के बजाए क्यों छोटे लोगों पर गाज गिराई

  2. lalla

    February 2, 2010 at 9:43 am

    bhai sahab

    meri pahli comment bhi to chhapen.

  3. lalla

    February 2, 2010 at 9:46 am

    dhanya ho adminstraor bhaiya

  4. lalla

    February 2, 2010 at 9:50 am

    yashvant ji

    kisko bitha rakha hai mera pahla lekh /comment kha gaya are pahle vala comment to publish karen. pita ji.

  5. om

    February 2, 2010 at 10:16 am

    asal me sahara india me aise log management me hain jinaka kahana hai ki meri salary and perks badate raho hum nichale staff se kam salary par kam kara lenge. yahi karan hai ki sahara me salary gap bahot bada hai.

  6. kautilya

    February 2, 2010 at 7:18 pm

    I also heard that all the assignment desks have been combined and it may bring some positive results also.This may also help in managing the input desk with minimum number of staffs and will thus cut the expenditure.
    But again there is a problem. All the input heads of respective channels hardly do any work.Let me name them….Rajesh Bawa of Bihar, Rajesh Jha of MP, Sushil ji of UP,Vibhakar of UP, they all are ‘Matadhish’ . They dont do anything except moving here and there all day and the poor juniors are forced to work like ‘janwars’.
    The so called seniors dont even havea system or phone set because they never do any work. The most interesting part is that all of them pend the day together and then do a meeting also without fail. I will ask just one question what is the need of meeting when all day you see each other.
    They are a burden on the channel and Sanjeev and Upendra should definitely look into it. They are hardly different from Vipin Dhulia or Sanjay Kaw.But if Sanjeev thinks that some junior fellow will come to him and say these things it is practically not possible. Sanjeev will have to invent a mechanism to have proper feedback from the hardworking and honest workers.
    Now coming to some other big fishes of the channels. There are many news anchors who get fat salaries but they are duffers. Let me cite a few examples. Ranjana Sharma and Kimi Arora were earlier anchors in NCR but when Sumit Roy became CEO both of them were sent to national channel. If anyone sees sahara channel, I am deliberately using the word if anyone sees the hannel, because we all know that Sahara’s TRP is ninth in the top ten channels, he or she will easily make out the real quality of both these anchors. Both these anchors get roughly a lakh rupees as their salaries. It was done only because they were very very close to the previous CEO.The present management must look into it.

    They are many cartoons in the channel who should be thrown out at the earliest.
    Unless these things are done, there is no hope of any improvement.

  7. satosh

    February 3, 2010 at 3:47 am

    अरे भैया कई बार कहा और लिखा गया आपकी इस साइट पर सहारा के बारे में। सहारा की ये परंपरा है। नए आते हैं और जाते हैं। सहारा हर नए खिलाड़ी पर करोड़ों खर्च करता है। फिर कर रहा है पर रहेंगे ठाक के तीन पात।

  8. abc

    February 3, 2010 at 8:13 am

    Sahara is not worth discussing all the comments are posted by sahara employees ….Gangotri ko swakch karo sab theek ho jayega

  9. x-press

    February 3, 2010 at 11:50 am

    ?????????????

  10. lalla

    February 4, 2010 at 5:58 am

    Apne bihari bhai ko kyon bacha rahe hain yashvant ji?

  11. lalla

    February 4, 2010 at 8:15 am

    Aaye hain hari bhajan ko aur autan lage kapas.Yeh bat Sanjeev aur upendra par shat pratishat lagoo hoti hai.

  12. kumar singh

    February 26, 2010 at 9:51 pm

    मोहदय,सहारा में खर्च कम नहीं बल्कि अपने लोगों को मोटे वेतन पर लाकर,निरंतर खर्चें बढ़ाए जा रहे है…आप जरा कभी सहारा न्यूज़ डेस्क को देखने की कोशिश तो करें…यहां बेचारे कर्मचारियों के पास बैठने के लिए…ढंग की कुर्सियां तक नहीं है…। मोहदय,यह मुझे देखने का अवसर मिला जब मैं अपने एक मित्र से मिलने गलती से डैक्स तक पहूंच गया था….वेचारे हर तरफ से शोषण तो इन छोटे कर्मचारियों का ही हो रहा है…संजीव जी और उपेंद्र जी को कहें….पहले अपने लोगों का और खुद का वेतन कम करें…और इन वेचारे कर्मचारियों के बारे में कुछ सोचे…कुमार सिंह

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